मालेगाँव ब्लास्ट रामजी

“ATS ने RSS से जुड़े तीन लोगों को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया था। उन्हें टॉर्चर करके मार दिया और रिकॉर्ड में फरार बता दिया।”

यह दावा 2008 के मालेगाँव ब्लास्ट की जाँच में शामिल रहे महबूब मुजावर ने दैनिक भास्कर से बातचीत में किया है। इसी ब्लास्ट का फैसला सुनाते हुए NIA की कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय समेत 7 लोगों को बरी कर दिया।

मुजावर जिन तीन लोगों की हत्या की बात कर रहे हैं उनका नाम संदीप डांगे, रामजी कलसंगार और दिलीप पाटीदार है। इनमें से एक रामजी कलसंगार NIA कोर्ट के फैसले के बाद सुर्खियों में आए थे। वे 17 साल से लापता हैं और उनकी पत्नी आज भी सुहागिन की तरह जीवन जी रही हैं।

मुजावर ने दैनिक भास्कर को बताया है कि इन तीनों लोगों की हत्या के बाद भी ऐसा दिखाया गया कि ये सभी जीवित हैं। इसे साबित करने के लिए इनके घरों में जाँच के लिए अधिकारी भी भेजे जाते थे। इससे लोगों को लगता था कि इनकी जानकारी पुलिस के पास नहीं है और ये फरार हैं। मुजावर ने कहा है:

“संदीप, रामजी और दिलीप को जिंदा बताने की कोशिश सब परमबीर के कहने पर हो रही थी। तीनों की मौत को राज रखने के लिए सिचुएशन क्रिएट की गई”

मालेगाँव ब्लास्ट में मोहन भागवत को फँसाने के अपने दावे को ATS में रहे महबूब मुजावर ने फिर से दोहराया है। कहा है कि उन्हें जो दो टास्क दिए गए थे, उनमें से एक मोहन भागवत को उठाने का आदेश था। मुजावर के अनुसार, इन आदेशों का मकसद ‘भगवा आतंकवाद’ की झूठी कहानी गढ़ना था।

हालाँकि, मुजावर ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया था। उनका कहना है कि मोहन भागवत जैसी बड़ी शख्सियत को बिना किसी ठोस वजह के पकड़ना उनके बस की बात नहीं थी। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा और IPS अधिकारी परमबीर सिंह ने झूठे केस में फँसा दिया, जिससे उनकी 40 साल की पुलिस सेवा खत्म हो गई।

मुजावर ने बताया कि पूरी जाँच एक ‘फर्जी अफसर’ ने की थी, जो कि झूठ पर आधारित थी। उन्होंने हालिया NIA कोर्ट के फैसले पर कहा कि इससे साबित हो गया है कि ‘भगवा आतंकवाद’ नहीं था, यह सब कुछ फर्जी था।

जिस 600 किलो RDX को जमा करने के आरोपों में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित को पकड़ा गया था, उस पर मुजवार कहते हैं, “अफसरों ने 600 किलो RDX की कहानी गढ़ी और साध्वी प्रज्ञा-कर्नल पुरोहित को इससे जोड़ने की कोशिश की।”

महबूब मुजावर ने 2016 में सोलापुर कोर्ट में अपने ऊपर चल रहे केस में जमा किए गए एफिडेविट में भी इसका जिक्र किया था।

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