NCRB रिपोर्ट 2022

5 मई को टाइम्स नाउ ने ‘सबसे ज़्यादा अपराध दर वाले शीर्ष 10 भारतीय राज्यों का खुलासा!’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। इसमें दावा किया गया है कि ‘2024 एनसीआरबी की विस्तृत अपराध रिपोर्ट’ में उत्तर प्रदेश में अपराध दर ‘7.4 प्रति व्यक्ति’ है (जिसका मतलब है कि प्रति 1,00,00 जनसंख्या पर 7,40,000 अपराध)। जबकि 2024 के आँकड़े अब तक एनसीआरबी ने जारी ही नहीं किए हैं। नवीनतम आँकड़ा 2022 का है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी 6 मई को यही प्रकाशित किया। जागरण ने भी 22 मई को इसे प्रकाशित किया। इन सभी रिपोर्टों में एक जैसे दावे किए गए।

दावा क्या है?

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति क्राइम रेट 7.4 है। इसका मतलब है कि प्रति 100,000 पर 7,40,000 अपराध होता है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह आँकड़ा 2024 एनसीआरबी रिपोर्ट के हवाले से है। नौ अन्य राज्यों के लिए भी इसी तरह के हाई क्राइम रेट का दावा किया गया है। इसका मतलब है कि देश में अपराध बढ़ा है।

देश में सर्वाधिक क्राइम वाले 10 राज्य

  1. उत्तर प्रदेश – प्रति व्यक्ति 7.4 क्राइम रेट
  2. अरुणाचल प्रदेश – प्रति व्यक्ति 5.8 क्राइम रेट
  3. झारखंड – प्रति व्यक्ति 5.3 क्राइम रेट
  4. मेघालय – प्रति व्यक्ति 5.1 क्राइम रेट
  5. दिल्ली (एनसीटी) – प्रति व्यक्ति 5.0 क्राइम रेट
  6. असम – प्रति व्यक्ति 4.4 क्राइम रेट
  7. छत्तीसगढ़ – प्रति व्यक्ति 4.0 क्राइम रेट
  8. हरियाणा – प्रति व्यक्ति 3.8 क्राइम रेट
  9. ओडिशा – प्रति व्यक्ति 3.8 क्राइम रेट
  10. आंध्र प्रदेश – प्रति व्यक्ति 3.6 क्राइम रेट

रिपोर्ट का आँकलन किया जाए तो पता चलता है कि इन सभी राज्यों में जनसंख्या से ज्यादा अपराध हुए हैं, यानी करीब- करीब हर व्यक्ति क्राइम का शिकार हुआ है। क्योंकि इनमें प्रति व्यक्ति अपराध दर 1 से अधिक है। यही दावा सिविल सेवा से लेकर बैंकिंग परीक्षा की तैयारी कराने वाले PW IAS, Adda 24 7 और Study IQ जैसी संस्थानों ने अपने वेबसाइट पर किया।

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आखिर इन राज्यों में क्राइम रेट हाई क्यों हैं? उत्तर प्रदेश में अपराध ज्यादा होने की वजह चोरी , हिंसा, सांप्रदायिक अशांति को बताया गया। वहीं अरुणाचल प्रदेश और मेघालय जैसे राज्यों में कम क्राइम रेट की वजह पहाड़ों पर दूरदराज क्षेत्रों में स्थानीय जनजातीय समुदाय का रहना बताया गया है। इसकी वजह से पुलिस तक शिकायतें कम आती हैं।

झारखंड और छत्तीसगढ़ में, नक्सली हिंसा और अवैध खनन की वजह से क्राइम होता है। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध और सड़क पर होने वाली हिंसा काफी है, जिससे क्राइम रेट ज्यादा है। असम में जातीय संघर्ष और सीमा विवाद हिंसक घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। हरियाणा और ओडिशा में महिलाओं के साथ अपराध और ग्रामीण असमानता बढ़ रही है, इसलिए सामाजिक तनाव तेजी से बढ़ रहा है। आंध्र प्रदेश में साइबर क्राइम और वित्तीय गड़बड़ियों का मामला सबसे ज्यादा है।

वास्तविकता

राज्यों को लेकर किए गए दावे पूरी तरह से निराधार हैं और NCRB की आधिकारिक रिपोर्ट इसका समर्थन नहीं करता। पहली बात की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट वर्ष 2022 में होने वाले क्राइम को लेकर दी गई है, न कि 2024 के लिए। इसे 3 दिसंबर 2023 को जारी किया गया था। 2023 या 2024 के लिए कोई भी NCRB रिपोर्ट अभी तक NCRB वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं हुई है। हमने NCRB के अधिकारियों से भी इसे लेकर बातचीत की है। उन्होंने साफ कहा है कि 2022 की रिपोर्ट ही वेबसाइट पर मौजूद नवीनतम रिपोर्ट है।

2022 में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेश में क्राइम रेट के आँकड़े

एनसीआरबी 2022 की रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का डेटा है। ये मीडिया रिपोर्टों को झुठलाती हैं। भारत में अपराध 2022 की तालिका 1A.3 के अनुसार, देश में क्राइम रेट प्रति 100,000 जनसंख्या पर 422.2 थी, जबकि उत्तर प्रदेश में अपराध दर प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 322 है। यानी मीडिया रिपोर्ट में किए गए प्रति व्यक्ति 7.4 से काफी कम।

एनसीआरबी के आँकड़ों से साफ पता चलता है कि दिल्ली में क्राइम रेट सबसे ज्यादा है। यहाँ प्रति एक लाख आबादी पर 1512.8 अपराध हुए हैं। जबकि केरल में प्रति 100,000 लोगों पर 1274.8 अपराध दर्ज किए गए। इसकी तुलना उत्तर प्रदेश से की जाए तो ये काफी कम हैं। इतना ही नहीं यूपी में अपराध केरल, हरियाणा, गुजरात, तमिलनाडु आदि कई अन्य राज्यों से कम हुए हैं।

मीडिया में ये दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश में अपराध दर प्रति 100,000 पर 7,40,000 है, यानी 24 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 170 करोड़ से ज्यादा क्राइम। ये अपने आप में ही गलत आँकड़ा है।

प्रमुख मीडिया वेबसाइटों ने जिस तरह से मनगढ़ंत आँकड़ों का प्रचार किया है ये काफी चिंता की बात है। इससे जनता को गलत जानकारी मिलती है, आधिकारिक आँकड़ों को कमजोर करती है साथ ही राज्य की कानून व्यवस्था की कथित नाकामी को लेकर प्रशासन पर गलत दबाव बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य को लेकर गलत रिपोर्ट पेश करना ज्यादा गंभीर मामला है। साथ ही ये पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है। इस झूठे आँकड़े को हजार बार कहकर योगी आदित्यनाथ सरकार के अपराध को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल उठाए जाते हैं।

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