कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने कुछ दिनों पहले दावा किया था कि उनके पास चुनाव आयोग के खिलाफ सबूतों का ‘एटम बम’ है। इसी कथित बम को चलाने के लिए राहुल गाँधी ने गुरुवार (7 अगस्त 2025) को एक घंटा 11 मिनट लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस की। लेकिन यह एटम बम उनके पहले कई दावों की तरह फुस ही निकला।

हार की हताशा में डूबे राहुल गाँधी लगातार देश के चुनाव आयोग को निशाना बना रहे हैं लेकिन तथ्यों और सबूतों से अक्सर दूर ही भागते नज़र आते हैं और इस बार भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने कई पुराने आरोप दोहराए और कई मनगढ़ंत दावे भी किए। लेकिन अपने कथित सबूतों के अंत तक आते-आते राहुल गाँधी खुद ही सवालों के घेरे में आ गए हैं।

राहुल के मनगढ़ंत दावों की असलियत

बीजेपी को एंटी इनकंबेसी नहीं लगती: राहुल गाँधी

देश के चुनाव आयोग को पानी पी-पीकर कोसने वाले राहुल गाँधी की इस प्रेस कॉन्फ्रेस का पहला आरोपी एंटी इनकंबेसी को लेकर था। उन्होंने कहा कि बीजेपी को ऐंटी इनकंबेसी नहीं लगती है। यानी अगर देश के मतदाता बीजेपी को चुन रहे हैं तो इसमें गलती ना तो कॉन्ग्रेस के कर्मों की है, ना राहुल गाँधी की मेहनत में कमी है। बल्कि चुनाव आयोग ही सबसे बड़ी गड़बड़ी कर रहा है। वोट चोरी के गंभीर आरोपों के बीच इस तरह की हल्की बात करना राहुल गाँधी की गंभीरता पर भी सवाल खड़े करता है।

UPA के 10 वर्षों के दौरान गुजरात के चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने वापसी की थी, मध्य प्रदेश में भी इस दौर में लगातार बीजेपी जीतती रही। तो क्या तब भी एंटी इनकंबेसी ना होने का जिम्मेदार चुनाव आयोग था?

एग्जिट पोल्स पर राहुल गाँधी का दावा

राहुल गाँधी ने अपने दावे के दौरान कहा कि ओपिनियन पोल्स और एग्जिट पोल्स का डेटा अलग-अलग रहता था। एक पूरी विस्तृत करोड़ों वोटरों वाली चुनावी प्रक्रिया को ओपिनियन या एग्जिट पोल्स के आधार पर गलत ठहरा देना एक हास्यास्पद तर्क से ज्यादा क्या ही हो सकता है?

एग्जिट पोल्स पीछे 10 वर्षों से तो शुरू हुए नहीं है। माना जाता है कि 80 के दशक में यह प्रक्रिया शुरू हुई थी और सर्वे के आधार पर हार-जीत का अनुमान लगाया जाता रहा है। लोकसभा चुनाव की ही बात करें तो 2004, 2009 में अधिकतर एग्जिट पोल्स सही साबित नहीं हुए।

साल 2014 के एग्जिट पोल्स में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने का दावा शायद एक भी बड़े एग्जिट पोल ने नहीं किया था और 2024 के एग्जिट पोल्स में जितनी सीटें एनडीए को मिलने का दावा किया गया था वो भी गलत ही साबित हुआ। तो क्या ये सभी चुनावों को गलत ठहरा दिया जाए?

अलग-अलग चरणों में चुनाव पर भी सवाल

राहुल गाँधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान कहा कि कागज से वोट एक दिन में पड़ते थे लेकिन ईवीएम से महीनों लग जाते हैं। चुनाव के शेड्यूल को लेकर भी उन्होंने सवाल उठाए हैं। इतनी बड़ी व्यवस्था, हजारों-लाखों ईवीएम को लाना ले जाना, हजारों जवानों का चुनाव की सुरक्षा के लिए पहुँचना, यकीनी तौर पर यह एक दिन में करना मौजूदा परिस्थितियों में लगभग नामुमकिन है। राहुल का दावे को लेकर भी कई सवाल हैं। देश के पहले आम चुनाव से ही बात करें तो पहले आम चुनाव दिसंबर 1951 से फरवरी 1952 के बीच हुए थे। जाहिर है ये एक दिन में नहीं हो गए।

अलग-अलग चरणों में चुनाव से बीजेपी को फायदा होता है तो ऐसा 2004 के आम चुनावों में भी होना चाहिए था तब भी आम चुनाव 4 चरणों में हुए थे। अगर चुनाव के चरणों के आधार पर ही कोई पार्टी हारती है तो कॉन्ग्रेस को 2009 का लोकसभा चुनाव हार जाना चाहिए था क्योंकि तब भी चुनाव 5 चरणों में हुए थे।

किसी भी पार्टी का इस आधार पर चुनाव हारना या जीतना कि कितने चरणों में चुनाव हो रहे हैं ये बेतुका तर्क ही लगता है। अलग-अलग चरणों में चुनाव कराए जाने की वजह लॉजिस्टिक की जरूरतें, सेना और अर्द्धसैनिक बलों को उपलब्धता के आधार पर तय होती आई है ना कि किसी पार्टी की हार और जीत के लिए।

‘लाडली बहना’ जैसी योजनाओं पर सवाल

राहुल गाँधी ने कहा, “चुनाव जीतने पर ऐसा माहौल बनाया जाता है कि लाडली बहना, पुलवामा, सिंदूर के कारण चुनाव जीते।” लाडली बहना जैसी योजनाओं को राहुल गाँधी सिर्फ नैरेटिव का हिस्सा बताकर खारिज कर देना चाहते हैं लेकिन तथ्य इसके खिलाफ हैं। जनकल्याणकारी योजनाओं के नाम पर वोट मिलना कोई नई बात नहीं है।

सबसे ताज़ा उदाहरण ही देखें तो आने वाले कुछ दिनों में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस चुनाव के लिए खुद कॉन्ग्रेस ने ‘माई बहिन मान योजना’ का एलान किया है। इसमें कॉन्ग्रेस की सरकार बनने पर ज़रूरतमंद महिलाओं को 2500 रुपए महीना की सम्मान राशि दिए जाने की बात है। ऐसा ही वादा कॉन्ग्रेस ने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी किया था।

राहुल गाँधी को अब लगता है कि ऐसी बीजेपी की किसी योजना के नाम पर वोट नहीं मिलते तो क्यों उनकी पार्टी ऐसी घोषणाएँ कर रही है, जाहिर है इसमें तथ्य कुछ भी नहीं है और राहुल गाँधी सिर्फ अपनी तरफ से फर्जी नैरेटिव गढ़ रहे हैं।

अंदरूनी सर्वे पर टिके हैं राहुल के दावे

राहुल गाँधी चुनाव में फर्जीवाड़े के जो सब दावे कर रहे हैं उनमें उनका आधार पार्टी के कुछ अंदरूनी सर्वे में हैं। कॉन्ग्रेस के अंदरूनी सर्वे ने राहुल गाँधी को बताया था कि कॉन्ग्रेस पार्टी कर्नाटक में 16 सीटें जीतने जा रही है लेकिन जब कॉन्ग्रेस 16 सीटें ना जीत पाई तो यह चुनावी धोखाधड़ी हो गई। अब यूँ तो बीजेपी भी चुनाव से पहले 400 पार की बात कर रही थी तो क्या ऐसे में बीजेपी को भी सड़क पर उतरकर हल्ला-हंगामा शुरू कर देना चाहिए कि उनका अनुमान या सर्वे गलत साबित हो गया तो पूरा इलेक्शन ही गड़बड़ है।

महाराष्ट्र को लेकर दोहराए आरोप

महाराष्ट्र को लेकर राहुल गाँधी ने फिर वही पुराने आरोप दोहराते हुए महाराष्ट्र में 40 लाख वोटर बढ़ने पर सवाल उठाए। राहुल गाँधी ने इस बीच एक महत्वपूर्ण बात कही कि उनके पास महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद चुनाव में धाँधली से जुड़ा कोई सबूत नहीं था और बाद में उन्होंने इसकी पड़ताल की थी। हालाँकि, कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे, राहुल गाँधी की बात मानें तो ये सब आरोप और सवाल बिना किसी सबूत के उठाए जा रहे थे।

महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच वोटरों का बढ़ना कोई नई बात नहीं है और पहले भी ऐसा कई बार देखा जा चुका है। महाराष्ट्र को लेकर राहुल गाँधी के दावों का हम पहले भी फैक्ट चेक कर चुके हैं जिसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

राहुल गाँधी ने कहा कि लोगों को महाराष्ट्र के चुनाव में गड़बड़ नजर आई थी। महाराष्ट्र के चुनाव में अगर लोगों को गड़बड़ी लगती तो जाहिर तौर पर प्रदर्शन किए जाते, चुनाव आयोग के दफ्तर का लोग घेराव करते लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया। जैसे राहुल गाँधी पहले बिना सबूतों के आरोप लगा रहे थे, वैसे ही इस बार लोगों के कँधे पर बंदूक रखकर अपनी बात सही साबित करने पर तुले हैं।

राहुल गाँधी के सबूत में कितना दम?

अपनी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबूत के नाम पर राहुल गाँधी ने कर्नाटक की एक लोकसभा सीट (बेंगलौर सेंट्रल) के अंतर्गत आने वाली एक विधानसभा सीट (महादेवपुरा) का डेटा दिया। यानी जिस बम को फोड़ने की बात राहुल गाँधी कर रहे थे वो बिना बारूद वाला ही निकला। इस लोकसभा सीट पर बीजेपी ने 32,707 वोटों पर जीत दर्ज की थी। राहुल गाँधी ने दावा किया इस सीट पर 1,00,250 फर्जी वोटर थे, इनमें उन्होंने डुप्लिकेट वोटर, फेक एड्रेस और गलत फोटो जैसे चीजें बताई।

चुनाव में डेटा एंट्री में गड़बड़ियाँ होती हैं, मतदाता सूची में गलतियाँ रहती हैं और कई बार लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने पर अपना नाम नहीं कटवा पाते या जानबूझकर एक से अधिक जगहों पर वोट डालते हैं।

ये ऐसी समस्याएँ हैं जिनके बारे में लोगों को पता है। चुनाव प्रक्रिया से जुड़े लोगों को इस बात का बखूबी अंदाजा है लेकिन ऐसे मुद्दों को राहुल गाँधी ने एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बता दिया है। जो बचकाना आरोपी ही लगता है।

राहुल गाँधी ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों को लेकर जो सवाल उठाए हैं वो लंबे वक्त से चले आ रहे हैं। एक घर में कई वोटरों का होना, फोटो सही ना होना, कई जगहों पर एक ही व्यक्ति के वोट होना समस्याएँ हैं और इन्हीं के सुधार के लिए चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसी प्रक्रिया शुरू की है। बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है और इस पर भी राहुल गाँधी समेत अन्य विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं।

यह विशुद्ध हंगामा इसलिए हैं कि चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में कमियों पर आपत्ति माँगी हैं लेकिन कई दिनों बाद भी एक भी राजनीतिक दल की और से कोई भी आपत्ति नहीं दर्ज कराई गई है। जब राहुल गाँधी, कॉन्ग्रेस और अन्य दलों के पास अपनी बात सही साबित करने का मौका है तो वे खामोश हैं।

उल्टा अब सवाल राहुल गाँधी पर ही हैं कि अगर वोटिंग लिस्ट में असंगतियाँ होती हैं, जिनका एक लंबा इतिहास है तब भी क्यों वे SIR जैसी प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। राहुल गाँधी और अन्य दलों को ऐसी जाँच के बाद खुलकर चुनाव आयोग का समर्थन करना चाहिए।

कर्नाटक में भी नवंबर 2024 और जनवरी 2025 में कॉन्ग्रेस को वोटर लिस्ट दी गई थी लेकिन अब तक कॉन्ग्रेस ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने 7 अगस्त को राहुल गाँधी को पत्र लिखा है। आयोग ने राहुल से कहा कि अगर उनके पास वोटर लिस्ट में फर्जी नामों की जानकारी है, तो वे प्रक्रिया के तहत शपथ पत्र के साथ शिकायत दर्ज करें।

राहुल तो ठहरे राहुल, उन्होंने इसका जवाब बाहुबली फिल्म के अंदाज में देते हुए कहा, “मैं राजनेता हूँ, मैं झूठ नहीं बोलता। मेरे शब्द ही शपथ हैं।” इतने गंभीर विषय पर जवाब देने के बजाय फिल्मी अंदाज में बाद करना ये बताता है कि वो अपने ही आरोपों को लेकर कितने गंभीर हैं।



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