प्रभावशाली भूमिका निभाने वाले विद्वानों को मान्यता देते हुए, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार (12 जुलाई 2025) को राज्यसभा के लिए चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को मनोनीत किया। जिनका नाम उज्ज्वल निकम (प्रसिद्ध वकील), सी. सदानंदन मास्टे (समाजसेवी), हर्षवर्धन श्रृंगला (पूर्व विदेश सचिव) और डॉ मीनाक्षी जैन, जो इतिहास लेखन में भारतीय दृष्टिकोण की सशक्त आवाज मानी जाती हैं।
The President of India has nominated Ujjwal Deorao Nikam, a renowned public prosecutor known for handling high-profile criminal cases; C. Sadanandan Maste, a veteran social worker and educationist from Kerala; Harsh Vardhan Shringla, former Foreign Secretary of India; and… pic.twitter.com/eN6ga5CsPw
— ANI (@ANI) July 13, 2025
डॉ मीनाक्षी जैन का नाम आज देश की उन इतिहासकारों में शुमार होता है, जिन्होंने इतिहास लेखन के क्षेत्र में दशकों से जारी वामपंथी प्रभुत्व को चुनौती दी और भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक स्थलों से जुड़े तथ्यों को बिना किसी राजनीतिक दबाव के साक्ष्य आधारित तरीके से प्रस्तुत किया।
It’s a matter of immense joy that Dr. Meenakshi Jain Ji has been nominated to the Rajya Sabha by Rashtrapati Ji. She has distinguished herself as a scholar, researcher and historian. Her work in the fields of education, literature, history and political science have enriched…
— Narendra Modi (@narendramodi) July 13, 2025
दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में इतिहास की प्रोफेसर रह चुकीं डॉ. जैन को वर्ष 2020 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। वर्तमान में वे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) की वरिष्ठ फेलो हैं।
डॉ. मीनाक्षी जैन कौन हैं?
डॉ जैन एक प्रसिद्ध इतिहासकार, लेखिका और शिक्षाविद हैं, जो भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और मंदिर पर केंद्रित अपने शोध के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और युवाओं को भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास देखने के लिए प्रेरित किया। उनका दृष्टिकोण यह रहा है कि भारतीय इतिहास को पश्चिमी या वामपंथी चश्मे से नहीं, बल्कि मूल भारतीय परंपरा और संस्कृति को आधार बनाकर समझा जाना चाहिए।
प्रमुख लेखन और योगदान
डॉ मीनाक्षी जैन ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन किया है, जिनमें से कुछ को स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया गया है। उनका लेखन मुख्य रूप से उन ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, जिन्हें लंबे समय तक दबाया या नजरअंदाज किया गया।
‘राम और अयोध्या’ (2013)
‘राम के लिए युद्ध: अयोध्या में मंदिर का मामला’ (2017)
इन दोनों पुस्तकों में डॉ जैन ने ऐतिहासिक, पुरातात्विक और साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर यह साबित किया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद एक भव्य राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1989 से पहले तक लगभग सभी ऐतिहासिक दस्तावेज इसी बात की ओर इशारा करते हैं।
अयोध्या मामले पर वामपंथियों के प्रोपेगेंडा की निकाली हवा
डॉ जैन ने अयोध्या मामले में वामपंथी इतिहासकारों जैसे इरफान हबीब, डीएन झा, रोमिला थापर और आरएस शर्मा की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि कैसे इन इतिहासकारों ने ‘विष्णु हरि शिलालेख’ को फर्जी साबित करने का प्रयास किया, जिसे 1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान मलबे से बरामद किया गया था।
यह शिलालेख साफ शब्दों में दर्शाता है कि 12वीं शताब्दी में उस स्थान पर एक विष्णु मंदिर था। जब इरफान हबीब ने दावा किया कि यह शिलालेख किसी ‘निजी संग्रह’ से वहाँ लाया गया, तो संस्कृत विद्वान और पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुणाल ने लखनऊ संग्रहालय से ‘त्रेता के ठाकुर’ मंदिर का वास्तविक शिलालेख खोज निकाला। यह शिलालेख टूटे-फूटे और अपठनीय अवस्था में था, जबकि विष्णु हरि शिलालेख पूरी तरह से स्पष्ट और प्रामाणिक था। इससे वामपंथी दावे की पोल खुल गई।
रिकॉर्ड में हेराफेरी को भी किया उजागर
डॉ जैन ने ब्रिटिश काल के राजस्व रिकॉर्ड्स में की गई हेराफेरी को भी उजागर किया। उन्होंने बताया कि 1857 के बाद के ब्रिटिश दस्तावेजों में अयोध्या के विवादित स्थल को केवल ‘जन्मभूमि’ के रूप में दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में उसमें ‘और बाबरी मस्जिद’ जोड़ दिया गया, ताकि मुस्लिम पक्ष का दावा भी प्राचीन दिखे।
यह हेराफेरी वामपंथी सोच के संरक्षण में की गई ताकि सत्य को भ्रम में बदला जा सके। जिसके बाद डॉ. जैन ने भारतीय इतिहास में वामपंथी दृष्टिकोण के एकाधिकार को कठोरता से चुनौती दी है।
उन्होंने बार-बार यह कहा है कि वामपंथी इतिहासकारों ने अदालतों को अपनी राय को तथ्यों के रूप में प्रस्तुत किया और मुस्लिम पक्ष को झूठा आश्वासन दिया कि वे यह मुकदमा जीत सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि ये इतिहासकार स्वयं अदालत में पेश नहीं हुए और अपने छात्रों को भेजते रहे, जबकि बाहर लेखों और पुस्तकों के माध्यम से भ्रम फैलाते रहे।
काशी और मथुरा पर डॉ. जैन के काम
अयोध्या के बाद डॉ जैन ने काशी और मथुरा जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के इतिहास पर गहन अध्ययन शुरू किया। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘विश्वनाथ: उदय और पुनरुत्थान’ (2024) काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास पर केंद्रित है।
इस पुस्तक में उन्होंने बताया कि मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा मंदिरों को बार-बार तोड़ा गया, लेकिन हर बार हिंदू समाज ने उनका पुनर्निर्माण किया। उन्होंने अहिल्याबाई होल्कर, मराठों और अन्य नायकों के योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया। मथुरा पर उनका काम अभी शोध के स्तर पर है, लेकिन वे इस विषय पर भी आने वाले समय में पुस्तक प्रकाशित करने की योजना में हैं।