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जिनकी दलीलों से फाँसी पर लटका पाकिस्तानी आतंकी आमिर अजमल कसाब, उनको राज्यसभा में भेजते ही कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम को याद आई ‘बिरयानी’: राष्ट्रहित पर तुष्टिकरण भारी


उज्जवल निकम, अजमल कसाब

मशहूर वकील उज्ज्वल निकम आजकल सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे हैं। वजह? 26/11 मुंबई हमलों में आतंकी अजमल कसाब को फाँसी की सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले उज्जवल निकम को राष्ट्रपति ने राज्यसभा का नामित सदस्य बनाया है। राष्ट्रपति ने उन्हें ये सम्मान दिया, लेकिन विपक्ष खासकर कॉन्ग्रेस समर्थक और कुछ मुस्लिम एक्टिविस्ट इस बात से भड़के हुए हैं। उज्जवल निकम की पुरानी बात को उठाकर कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम ट्रोल कर रहा है, जिसमें निकम ने कहा था कि कसाब को जेल में बिरयानी दी गई।

हालाँकि बाद में निकम ने खुद माना कि ये बात उन्होंने गढ़ी थी, ताकि कसाब के लिए जनता में हमदर्दी न बढ़े। लेकिन अब ट्रोलर्स इसे बीजेपी की साजिश और निकम का झूठ बताकर हमला बोल रहे हैं। सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों में कई तरह के लोग शामिल हैं। सबसे ज्यादा सक्रिय हैं कॉन्ग्रेस के लोग, उसके समर्थक और कुछ ऐसे एक्टिविस्ट जो मुस्लिम वोट बैंक से जुड़े मुद्दों पर बोलते रहते हैं।

इसी में से एक हैं कॉन्ग्रेस की प्रवक्ता और मुंबई हमलों के समय पत्रकार रही सुप्रिया श्रीनेता। सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर लिखा, “निकम ने कसाब को बिरयानी की फर्जी कहानी फैलाई, जिसे बीजेपी ने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया और अब निकम को राज्यसभा सीट देकर इनाम दिया गया। इनका कहना है कि निकम ने कॉन्ग्रेस को बदनाम किया।”

पप्पू यादव ने लिखा कि मोदी जी ने निकम को झूठ बोलने का इनाम दिया, क्योंकि बिरयानी की बात फर्जी थी।

शेख शफीक अंसारी ने निकम के बयान को कोट किया कि कसाब ने बिरयानी मांगी थी, और बाद में निकम ने खुद माना कि ये झूठ था। इन्हें लगता है कि निकम ने ये सब सांप्रदायिक माहौल बनाने के लिए किया।

कॉन्ग्रेस समर्थक पत्रकार ने लिखा कि निकम ने बिरयानी की झूठी कहानी फैलाई, जिससे बीजेपी और संघ को कॉन्ग्रेस के खिलाफ प्रचार का मौका मिला। अब निकम को राज्यसभा सीट सांप्रदायिक सोच के लिए मिली, न कि कानूनी योग्यता के लिए।

वैसे, मुकेश कुमार की मानें तो उज्जवल निकम कोई ज्ञानी वकील नहीं हैं और न ही उन्हें कानून से कुछ लेना देना है। खैर, इन हास्यास्पद बातों पर क्या लिखें, ये सोचने का भी मन नहीं करता।

बहरहाल, उज्जवल निकम की ट्रोलिंग की वजह है – बिरयानी वाली बात। 26/11 के मुंबई हमलों के बाद, जब कसाब को पकड़ा गया था, निकम पब्लिक प्रॉसीक्यूटर थे। उन्होंने मीडिया में कहा कि कसाब ने जेल में बिरयानी माँगी थी। ये बात आग की तरह फैली। बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया और कॉन्ग्रेस की यूपीए सरकार पर हमला बोला कि वो आतंकियों को बिरयानी खिला रही है। बाद में निकम ने माना कि ये बात झूठ थी। उन्होंने ये इसलिए कहा था ताकि कसाब के लिए जनता में कोई हमदर्दी न बढ़े, क्योंकि कुछ लोग कसाब को ‘बेचारा’ दिखाने की कोशिश कर रहे थे।

ट्रोलर्स अब यही बात पकड़कर कह रहे हैं कि निकम ने देश को गुमराह किया, कॉन्ग्रेस को बदनाम किया और अब बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा सीट देकर झूठ का इनाम दिया। लेकिन असल में ये सिर्फ बहाना है। असली वजह है राजनीति और वोट बैंक। ट्रोलर्स खासकर कॉन्ग्रेस समर्थक और कुछ मुस्लिम एक्टिविस्ट इस मुद्दे को उठाकर दो चीजें कर रहे हैं-

  1. बीजेपी को घेरना : निकम को बीजेपी से जोड़ा जा रहा है, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें 2024 में मुंबई से लोकसभा टिकट दिया था (हालाँकि वो हार गए) और अब राज्यसभा सीट दी। ट्रोलर्स इसे बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति से जोड़ रहे हैं।
  2. मुस्लिम वोट बैंक को खुश करना : कसाब एक पाकिस्तानी आतंकी था, जिसने 150 से ज्यादा लोगों की जान ली। फिर भी कुछ लोग उसे ‘पीड़ित’ दिखाने की कोशिश करते हैं। बिरयानी वाली बात को उठाकर ट्रोलर्स ये दिखाना चाहते हैं कि कसाब के साथ गलत हुआ। ये मुस्लिम वोटर्स को लुभाने की रणनीति है, क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि कसाब जैसे मुद्दों पर सॉफ्ट कॉर्नर दिखाने से वोट मिलते हैं।

ट्रोलिंग के पीछे की असली वजह क्या है?

वोट की राजनीति : कॉन्ग्रेस और उसके समर्थक जानते हैं कि मुस्लिम वोट बैंक उनके लिए अहम है। कसाब को लेकर हमदर्दी दिखाकर या निकम को झूठा बताकर वो मुस्लिम कम्युनिटी में ये मैसेज देना चाहते हैं कि वो उनके साथ हैं। उन्हें निकम से कोई खास दिक्कत नहीं है, न ही कॉन्ग्रेस से कोई प्यार – बस बीजेपी को घेरना है और वोट लेना है।

पुरानी हार का बदला : 2008-2012 में कॉन्ग्रेस की सरकार थी, तब निकम सरकारी वकील थे। बिरयानी वाली बात उस समय कॉन्ग्रेस के लिए भी फायदेमंद थी, क्योंकि वो आतंक के खिलाफ सख्त रुख दिखाना चाहते थे। लेकिन अब, जब निकम बीजेपी के साथ जुड़े, तो कॉन्ग्रेस को मौका मिला पुराने हिसाब चुकाने का। वो निकम को निशाना बनाकर बीजेपी पर हमला कर रहे हैं।

ये ट्रोलिंग गलत क्यों है?

दोगलापन : जब कसाब का केस चल रहा था, तब महाराष्ट्र और दिल्ली में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने ही निकम को पब्लिक प्रॉसीक्यूटर बनाया था। निकम ने जो बिरयानी वाली बात कही, वो सरकारी इशारे पर ही कही गई होगी, ताकि कसाब को सजा दिलाने में मदद मिले। उस समय कॉन्ग्रेस ने इसका विरोध नहीं किया। कसाब को फाँसी भी 2012 में कॉन्ग्रेस सरकार ने ही दी। अब वही लोग निकम को झूठा बता रहे हैं, क्योंकि वो बीजेपी के साथ हैं। ये दोगलापन है।

आतंक के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करना : निकम ने कसाब को फांसी दिलाकर देश की सेवा की। 26/11 के हमलों में 150 से ज्यादा लोग मरे थे। निकम ने न सिर्फ कसाब को सजा दिलाई, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि आतंकी के लिए कोई हमदर्दी न बने। लेकिन ट्रोलर्स अब उसी बात को पकड़कर निकम को बदनाम कर रहे हैं। ये आतंक के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है।

कसाब के लिए हमदर्दी : ट्रोलर्स की बातों से ऐसा लगता है जैसे वे कसाब को बेचारा दिखाना चाहते हैं। बिरयानी वाली बात को बार-बार उठाकर वो ये मैसेज दे रहे हैं कि कसाब के साथ गलत हुआ। ये गलत है, क्योंकि कसाब एक आतंकी था, जिसने बेगुनाहों का खून बहाया।

देश के हीरो का अपमान : निकम ने अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर आतंकियों के खिलाफ केस लड़ा। उन्हें सम्मान मिलना चाहिए, न कि ट्रोलिंग। ट्रोलर्स सिर्फ पॉलिटिकल स्कोरिंग के लिए एक हीरो को निशाना बना रहे हैं।

दरअसल, 26/11/2008 को मुंबई हमले के बाद पूरा देश गुस्से में था। कसाब को पकड़ा गया और लोग चाहते थे कि उसे सख्त से सख्त सजा मिले। लेकिन कुछ लोग, खासकर लेफ्ट-लिबरल और कुछ एक्टिविस्ट कसाब को ‘बेचारा’ दिखाने की कोशिश कर रहे थे। वे कहते थे कि कसाब गरीब था, मजबूरी में आतंकी बना। ऐसे में निकम ने बिरयानी वाली बात कही, ताकि जनता का गुस्सा बना रहे और कसाब के लिए हमदर्दी न बढ़े। ये एक रणनीति थी और उस समय कॉन्ग्रेस को भी इसमें कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन अब, जब निकम बीजेपी के साथ हैं, वही बात ट्रोलर्स के लिए हथियार बन गई।

निशाना निकम नहीं, बल्कि भाजपा और मुस्लिम वोटबैंक

ट्रोलर्स का मकसद निकम को बदनाम करना नहीं, बल्कि बीजेपी को घेरना और मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना है। वे कसाब के लिए हमदर्दी दिखाकर ये मैसेज देना चाहते हैं कि बीजेपी सांप्रदायिक है और कॉन्ग्रेस मुस्लिम समुदाय की हितैषी है। लेकिन सच ये है कि कसाब को फाँसी कॉन्ग्रेस सरकार में ही हुई। अगर निकम ने झूठ बोला, तो उस समय कॉन्ग्रेस ने क्यों नहीं रोका? अब निकम को ट्रोल करना सिर्फ पॉलिटिकल गेम है।

बता दें कि उज्ज्वल निकम एक मशहूर वकील हैं, जो मुंबई में कई बड़े केस लड़ चुके हैं। 1993 के मुंबई ब्लास्ट, गुलशन कुमार मर्डर, प्रमोद महाजन हत्याकांड और सबसे बड़ा – 26/11 का कसाब केस। कसाब ने 166 लोगों की जान ली थी, और निकम ने बतौर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (सरकारी वकील) उसे फाँसी दिलाई। पद्मश्री मिला, Z+ सिक्योरिटी मिली। 2024 में बीजेपी ने उन्हें मुंबई से लोकसभा टिकट दिया, लेकिन वो हार गए। अब राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा में भेजा है। लेकिन ये बात अब कॉन्ग्रेसियों को पच नहीं रही।

उज्ज्वल निकम एक ऐसे वकील हैं, जिन्होंने देश के लिए बड़ा काम किया। कसाब जैसे आतंकी को सजा दिलाकर उन्होंने लाखों लोगों का गुस्सा शांत किया। बिरयानी वाली बात एक रणनीति थी, जिसे उस समय की सरकार ने भी सपोर्ट किया था। अब उसे बहाना बनाकर ट्रोल करना गलत है। ट्रोलर्स को न निकम से दिक्कत है, न कॉन्ग्रेस से प्यार – वे सिर्फ वोट की राजनीति और बीजेपी को घेरने के लिए ये सब कर रहे हैं। ये दोगलापन है। देश को निकम जैसे लोगों का सम्मान करना चाहिए, न कि उन्हें ट्रोल करना। कसाब जैसे आतंकियों के लिए हमदर्दी दिखाना देश के साथ गद्दारी है। हमें अपने हीरोज का साथ देना चाहिए, न कि पॉलिटिकल गेम में उन्हें नीचा दिखाना।



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