इस्लामी आक्रांताओं ने राम जन्मभूमि पर ढाँचा खड़ा कर दिया, भारत माता गुलाम रहीं, स्वतंत्र भारत में मामला न्यायालय में चला गया, इसलिए हिंदुओं को अपने ही अराध्य को भव्य मंदिर में देखने के लिए 5 सदी की प्रतीक्षा करनी पड़ी। पर हिंदुओं का उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि ऐसा कोई संकट नहीं होने के बाद भी मिथिला की वह पवित्र भूमि दशकों उपेक्षित रही, जहाँ से जगत जननी जानकी सीता प्रकट हुईं। अब इस प्राकट्य स्थल को नव जीवन देने का बीड़ा उनके ‘लव (नीतीश कुमार)-कुश (अमित शाह)’ ने उठाया है।

अक्षत-तुलसीदल से लोगों को किया जा रहा आमंत्रित

जानकी मंदिर और कॉरिडोर के शिलान्यास को भव्य बनाने के लिए पुनौरा धाम में तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं। अमित शाह और नीतीश कुमार समेत कई बड़े नेता और साधु-संत व आम लोग इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम में लाखों लोगों को पहुँचने का अनुमान लगाया जा रहा है।

इस शिलान्यास समारोह के लिए घर-घर आमंत्रण का अभियान भी चलाया जा रहा है। घर-घर जाकर लोगों को पीले अक्षत और तुलसी दल देकर कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। साथ ही, नगर से गुजरने वाले राहगीरों को भी कार्यक्रम में बुलाने के लिए न्योता दिया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार, इस शिलान्यास कार्यक्रम को तीन दिवसीय भव्य उत्सव के तौर पर मनाया जाएगा। माता जानकी के दिव्य मंदिर की नींव के लिए 11 नदियों का पवित्र जल लाया जाएगा। इनमें गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, धौलीगंगा, लक्ष्मणा गंगा, सरस्वती, कमला और सरयू नदियाँ शामिल हैं।

मंदिर प्रबंधन ने शिलान्यास कार्यक्रम की शाम मंदिर पर दीपोत्सव का आयोजन करने करने का फैसला भी लिया है। इसे लेकर शिलान्यास के दिन लोगों से एक दीपक के साथ आने की अपील की जा रही है। उस दिन मंदिर के साथ-साथ सीताकुंड परिसर को 51,000 दीपों से सजाने की योजना है।

क्या है पुनौरा धाम के विकास की योजना?

बीते 1 जुलाई को बिहार कैबिनेट ने पुनौरा धाम में मंदिर निर्माण के लिए 882.87 करोड़ रुपए के बजट को मंजूरी दी थी। इस राशि में से 137 करोड़ रुपए से जानकी मंदिर का निर्माण किया जाएगा, 728 करोड़ रुपए से पर्यटन से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास होना है। 10 वर्षों तक इसके रख-रखाव पर 16.62 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है।

इस तीर्थ के विकास के लिए 50 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। विकास परियोजना में पारंपरिक वास्तुकला के अनुरूप एक विशाल मंदिर का निर्माण और इसका संरक्षण व सौंदर्यीकरण शामिल है। साथ ही, मंदिर परिसर के चारों तरफ प्रवेश द्वार, विश्राम गृह, यज्ञशाला, भोजनालय, मेडिटेशन सेंटर और प्रवचन हॉल का निर्माण भी किया जाएगा।

पर्यटन सुविधाओं के विकास के तहत परिसर में होटल, रेस्टहाउस, संग्रहालय, स्मृति द्वार और स्मारक भवन का निर्माण किया जाएगा। मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में हरियाली बनाए रखने के लिए सुंदर जलाशय और फव्वारे लगाए जाएँगे और बगीचों का निर्माण भी किया जाएगा। साथ ही, ‘सीता-वाटिका’ और ‘लव-कुश वाटिका’ का भी विकास किया जाएगा।

श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बस टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा और मंदिर तक पहुँचने और ठहरने के लिए भी इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाएगा। साथ ही, आधुनिक पार्किंग स्थल, चौड़ी सड़कें और स्ट्रीट लाइट्स के साथ फुटपाथ बनाए जाएँगे। इसके अलावा क्षेत्र में डिजिटल सूचना केंद्र और सुरक्षा के लिए कैमरे लगाए जाएँगे।

दशकों से उपेक्षित रहे जानकी जन्मस्थान की नीतीश कुमार ने ली सुध

अयोध्या की राम जन्मभूमि की तरह ही माता सीता का जन्मस्थान भी वर्षों तक उपेक्षा और अनदेखी का शिकार रहा है। अयोध्या में तो विवाद का बहाना बनाकर दशकों तक मंदिर निर्माण को टाल दिया गया लेकिन मिथिला की इस पवित्र पर किसी तरह का विवाद भी नहीं था फिर भी यह पावन स्थल अनदेखी के अँधेरे में डूबा रहा। ना भव्य मंदिर बनाया गया और ना ही किसी तरह के बड़े स्तर के विकास कार्य किए गए।

वर्षों तक ना केवल स्थानीय लोग बल्कि दूर-दराज के श्रद्धालु यहाँ एक भव्य मंदिर का इंतजार करते रहे लेकिन अब इन हालातों को बदलने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाई है। उनके प्रयासों के बाद माता जानकी का भव्य मंदिर आकार लेने जा रहा है। यह भव्य मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र तो बनेगा है, साथ ही साथ बिहार के धार्मिक-सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी होगा।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के बाद माता सीता के जन्मस्थान को भी संजीवनी मिली है। सीएम नीतीश कुमार कहते हैं कि यहाँ भव्य मंदिर बनने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ माँ जानकी की पूजा-अर्चना करने आएँगे। साथ ही, वे कहते हैं कि पर्यटकों के आगमन से रोजगार का भी सृजन भी किया होगा।

नीतीश कुमार लगातार पुनौरा धाम जाकर तैयारियों को जायजा ले रहे हैं। बीते 26 जुलाई को सीएम नीतीश और उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पुनौरा धाम पहुँचे थे और वहाँ उन्होंने पूजा-अर्चना करने के अलावा तैयारियों की समीक्षा की भी की थी। कुछ दिनों पहले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने भी इस पवित्र स्थल का दौरा किया था।

पुनौरा धाम में तैयारियों का जायजा लेते सीएम नीतीश कुमार

कैसा होगा माता जानकी का मंदिर?

इस तीर्थ स्थल के विकास के लिए डिजाइन सलाहकार के तौर पर उसकी कंपनी को नियुक्त किया गया है जो अयोध्या में राम मंदिर की मास्टर प्लानिंग और वास्तुकला सेवाओं के लिए नियुक्त की गई थी। पिछले 22 जून को नीतीश कुमार ने सीएम नीतीश ने मंदिर सहित अन्य संरचनाओं का डिजाइन शेयर किया था।

राम मंदिर के वास्तुकार रहे आशीष सोमपुरा ही इस मंदिर के आर्किटेक्ट हैं। उनका कहना है कि माँ जानकी के मंदिर का आर्किटेक्चर राम मंदिर के जैसा ही भव्य हो इसका पूरी कोशिश रहेगी। माता जानकी का यह मंदिर दशकों-सदियों तक मजबूती से टिका रहे इसके लिए खास तैयारियाँ की गई हैं।

इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के लाल बलुआपत्थरों (रेड सैंडस्टोन) से किया जाएगा जिसके चलते पूरे मंदिर का स्वरूप एक तरह से दिखेगा। यह पत्थर सदियों तक बिना टूटे या क्षतिग्रस्त हुए संरचना को मजबूती देता है। इस मंदिर की ऊँचाई 151 फीट होगी।

मंदिर परिसर निर्माण की परियोजना

क्या है सीतामढ़ी का ऐतिहासिक महत्व?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राजा जनक को भूमि में हल चलाते समय सोने के घड़े में सीता मिली थीं। भूमि से मिलने के कारण माता सीता को भूमिपुत्री या भूसुता भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाराजा जनक के राज्य जनकपुर में भयंकर अकाल पड़ने के बाद एक ऋषि ने उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी थी और बंजर जमीन जोतने को कहा था।

जिले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, भगवान इंद्र को वर्षा करने हेतु मनाने के लिए जब राजा जनक सीतामढ़ी के पास कहीं हल चला रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि राजा जनक ने उस स्थान पर एक कुंड खुदवाया था जहाँ सीता प्रकट हुई थीं और उनके विवाह के बाद उस स्थान को चिह्नित करने के लिए राम, सीता और लक्ष्मण की पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित की थीं।

इस कुंड को अब जानकी कुंड के नाम से जाना जाता है और जानकी मंदिर के दक्षिण में स्थित है। वेबसाइट के मुताबिक, समय के साथ-साथ यह स्थान जंगल में तब्दील हो गया और करीब 500 वर्ष पहले बीरबल दास नामक एक हिंदू तपस्वी को ईश्वरीय प्रेरणा से उस स्थान का पता चला था।

वे जब अयोध्या से आए तो उन्होंने जंगल साफ किया और उन्हें राजा जनक द्वारा स्थापित मूर्तियाँ मिलीं और उन्हें वहाँ मंदिर बनवाकर माता जानकी की पूजा शुरू कर दी। इस स्थान पर मौजूदा मंदिर को करीब 100 वर्ष पुराना माना गया है।



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