तमिलनाडु में पीएम मोदी

तमिलनाडु के अरियालुर जिले में बसे छोटे से गाँव गंगईकोंडा चोलपुरम में रविवार (27 जुलाई 2025) को एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ। इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चोल साम्राज्य के महान सम्राट राजेंद्र चोल-प्रथम की जयंती और उनकी दक्षिण-पूर्व एशिया की समुद्री यात्रा के 1,000 साल पूरे होने का जश्न मनाया। गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण की शुरुआत की स्मृति में भी यह उत्सव आयोजित किया गया।

इस अवसर पर पीएम मोदी ने मंदिर में पूजा-अर्चना की, एक स्मारक सिक्का जारी किया और चोल वास्तुकला व शैव धर्म पर आधारित एक प्रदर्शनी का अवलोकन किया। यह समारोह न केवल चोल साम्राज्य की गौरवशाली विरासत को याद करने का अवसर था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता और आधुनिक भारत के विकास के संकल्प को भी दर्शाता था।

गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में पीएम मोदी ने की पूजा-अर्चना

प्रधानमंत्री का स्वागत पारंपरिक तमिल रीति-रिवाजों के साथ किया गया। मंदिर के पुजारियों ने ‘पूर्ण कुंभम’ के साथ उनका अभिनंदन किया। पीएम मोदी ने वेष्टि (धोती), सफेद कमीज और गले में अंगवस्त्र पहनकर मंदिर की परिक्रमा की और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की।

गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में पूजा करते पीएम मोदी

गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, वो चोल वास्तुकला का एक अनुपम उदाहरण है। इस मंदिर की भव्यता और इसके नक्काशीदार गलियारे, मूर्तियाँ और प्राचीन शिलालेख आज भी दुनिया भर में प्रशंसा का विषय हैं।

समारोह में तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि, केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन, वित्त मंत्री टी. थेनारासु, हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ निधि मंत्री पी.के. शेखर बाबू और परिवहन मंत्री एस.एस. शिवशंकर सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

प्रधानमंत्री ने मंदिर परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा आयोजित चोल शैव धर्म और वास्तुकला पर आधारित प्रदर्शनी का भी दौरा किया। इस प्रदर्शनी में चोल साम्राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत को दर्शाया गया था। इसके बाद पीएम मोदी को चोल मंदिर की तस्वीर और स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।

राजेंद्र चोल-प्रथम की स्मृति में सिक्का जारी

समारोह का एक मुख्य आकर्षण था राजेंद्र चोल-प्रथम की स्मृति में एक स्मारक सिक्के का विमोचन। इस सिक्के के जरिए चोल साम्राज्य के इस महान सम्राट की उपलब्धियों को सम्मान दिया गया। राजेंद्र चोल-प्रथम (1014-1044 ई.) ने अपने शासनकाल में चोल साम्राज्य को दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक विस्तारित किया था। उनकी समुद्री यात्रा और सैन्य विजयों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित किया था। गंगईकोंडा चोलपुरम को उन्होंने अपनी शाही राजधानी बनाया और वहाँ भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी उनकी दूरदर्शिता और स्थापत्य कौशल का प्रतीक है।

आदि तिरुवथिरई महोत्सव में शामिल हुए पीएम मोदी

यह समारोह आदि तिरुवथिरई महोत्सव का हिस्सा था, जो 23 जुलाई से शुरू हुआ और 27 जुलाई को समाप्त हुआ। यह उत्सव तमिल शैव भक्ति परंपरा का प्रतीक है, जिसे चोल शासकों ने विशेष रूप से प्रोत्साहित किया था। इस परंपरा को 63 नयनमार संतों और उनकी भक्ति कविताओं ने और समृद्ध किया।

इस साल यह उत्सव और भी खास था क्योंकि यह राजेंद्र चोल की जन्म नक्षत्र तिरुवथिरई (अर्द्रा) के साथ मेल खाता था। समारोह में शिवाचार्य और ओथुव (शिव भजनों में पारंगत गायक) ने भक्ति भजनों के साथ पीएम मोदी का स्वागत किया, जिससे माहौल और भी आध्यात्मिक हो गया।

पीएम मोदी ने चोल विरासत को बताया भारत की एकता का सूत्र

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में चोल साम्राज्य को भारत के स्वर्णिम युगों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि राजेंद्र चोल और उनके पिता राजराजा चोल ने भारत की सांस्कृतिक और सैन्य शक्ति को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

चोल साम्राज्य ने न केवल भारत में, बल्कि श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक व्यापार और कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। पीएम ने इस बात पर जोर दिया कि चोल शासकों ने भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोया था और उनकी सरकार भी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विजन के साथ उसी दिशा में काम कर रही है।

उन्होंने काशी-तमिल संगमम और सौराष्ट्र-तमिल संगमम जैसे आयोजनों का जिक्र किया, जो भारत की प्राचीन सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का प्रयास हैं।

पीएम मोदी ने यह भी बताया कि नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान तमिल शैव परंपरा के संतों ने आध्यात्मिक नेतृत्व किया था और तमिल संस्कृति से जुड़े पवित्र सेंगोल को संसद में स्थापित किया गया। यह क्षण भारत की सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।

चोल साम्राज्य की प्रेरणा से सैन्य और प्रशासनिक सुधार

प्रधानमंत्री ने चोल साम्राज्य की सैन्य और प्रशासनिक उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने बताया कि राजराजा चोल ने एक शक्तिशाली नौसेना की नींव रखी, जिसे राजेंद्र चोल ने और मजबूत किया। चोल साम्राज्य ने ‘कुडवोलाई अमैप्पु’ प्रणाली के जरिए लोकतांत्रिक चुनाव की शुरुआत की थी, जो उस समय की वैश्विक मान्यताओं से कहीं आगे थी।

पीएम मोदी ने यह भी उल्लेख किया कि चोल शासकों ने जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया था। राजेंद्र चोल ने गंगा जल को उत्तर भारत से दक्षिण भारत लाकर चोल गंगा झील (अब पोन्नेरी झील) में स्थापित किया था, जिसे आज भी उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक माना जाता है।

पीएम मोदी ने आधुनिक भारत को चोल विरासत से जोड़ा

पीएम मोदी ने कहा कि चोल साम्राज्य की आर्थिक और रणनीतिक उपलब्धियाँ आज भी भारत को प्रेरित करती हैं। उन्होंने ‘विकास भी, विरासत भी’ के मंत्र के साथ अपनी सरकार के प्रयासों का जिक्र किया।

पीएम मोदी ने कहा कि पिछले एक दशक में भारत ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए मिशन मोड में काम किया है। विदेशों से चुराई गई 600 से अधिक प्राचीन मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ भारत वापस लाई गई हैं, जिनमें से 36 तमिलनाडु की हैं। इनमें नटराज, लिंगोद्भव, दक्षिणामूर्ति और अर्धनारीश्वर जैसी मूर्तियाँ शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि भारत की शैव दर्शनशास्त्र वैश्विक मंच पर भी मान्यता प्राप्त कर रहा है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत की सफल लैंडिंग के बाद उस स्थान को ‘शिव-शक्ति’ नाम दिया गया, जो भारत की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रतीक है।

पीएम ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देते हुए हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ किसी भी खतरे का जवाब देने की ताकत को दिखाया है। यह ऑपरेशन दुनिया को यह संदेश देता है कि भारत अपने दुश्मनों के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं छोड़ेगा।

तमिलनाडु में स्थापित होंगी राजाराजा चोल और राजेंद्र चोल की मूर्तियाँ

प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि तमिलनाडु में जल्द ही राजराजा चोल और राजेंद्र चोल की भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाएँगी, जो भारत के ऐतिहासिक गौरव को दर्शाएँगी। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को डॉ. कलाम और चोल शासकों जैसे लाखों युवाओं की जरूरत है, जो शक्ति और समर्पण से देश के सपनों को साकार करें।

गंगईकोंडा चोलपुरम में आयोजित यह समारोह न केवल चोल साम्राज्य की गौरवशाली विरासत का उत्सव है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक एकता और आधुनिक भारत के विकास के संकल्प को भी दर्शाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा तमिलनाडु के लोगों के लिए एक यादगार पल रहा, जिसमें उन्होंने चोल शासकों की उपलब्धियों को नमन किया और भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के अपने विजन को दोहराया। यह समारोह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र को और मजबूत करने का एक शानदार अवसर साबित हुआ।

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