वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ में तेजस्वी यादव

पटना के गाँधी मैदान में रविवार (29 जून 2025) को ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ नाम से एक बड़ी रैली हुई। इस रैली का आयोजन इमारत-ए-शरिया नाम के एक मजहबी संगठन ने किया था। इसका मकसद था वक्फ संशोधन बिल 2025 का विरोध करना। इस रैली में बिहार की विपक्षी पार्टियों के बड़े-बड़े नेता शामिल हुए जैसे तेजस्वी यादव, पप्पू यादव और AIMIM के अख्तरुल ईमान।

दरअसल, पटना के गाँधी मैदान में आयोजित ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली सिर्फ वक्फ बिल के खिलाफ नहीं थी, बल्कि इसके पीछे 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की सियासत है। आइए, समझते हैं कि ये रैली थी क्या और क्यों, इसका असली मकसद क्या था और इसने बिहार की सियासत को कैसे गर्म कर दिया।

गाँधी मैदान की रैली में क्या – क्या कहा गया

रविवार को पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में हजारों लोग जमा हुए, खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग। रैली में नेताओं ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर जमकर हमला बोला। तेजस्वी यादव ने कहा, “ये देश किसी के बाप का नहीं है। ये हम सबका हिंदुस्तान है।” उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वो न सिर्फ वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है, बल्कि मुस्लिमों, पिछड़ों और दलितों के वोट देने के अधिकार को भी छीनने की साजिश रच रही है। तेजस्वी ने ऐलान किया कि अगर बिहार में उनकी सरकार बनी, तो वो इस वक्फ संशोधन कानून को लागू नहीं होने देंगे।

गाँधी मैदान की रैली में मंच पर बैठे तेजस्वी और इस्लामी नेता (फोटो साभार : X_yadavtejashwi)

AIMIM के नेता अख्तरुल ईमान ने इस बिल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि ये कानून वक्फ बोर्ड की आजादी छीनता है और जिलाधिकारियों को ज्यादा ताकत देता है।

कॉन्ग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान खान प्रतापगढ़ी ने शेरो-शायरी के साथ अपनी बात रखी और कहा, “ये बिल मुसलमानों को मंजूर नहीं है। ये हमारी बर्बादी का कारण बनेगा।” वहीं, निर्दलीय सांसद मगर कॉन्ग्रेस नेता पप्पू यादव ने मंच से खूब माहौल बनाने की कोशिश की।

वीआइपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने कहा कि जैसे मछली को पानी चाहिए, वैसे ही मुसलमानों को वक्फ बोर्ड चाहिए। उन्होंने बीजेपी पर मुस्लिमों की विरासत लूटने का इल्जाम लगाया।

सीपीआई माले के दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि ये बिल पूरे हिंदुस्तान पर हमला है और इसे रोकने के लिए नफरत फैलाने वालों को सत्ता से हटाना होगा। राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी ने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट में इस बिल के खिलाफ फैसला उनके पक्ष में आएगा। कुल मिलाकर रैली में काफी भड़काऊ बयानबाजी हुई, जिसमें शरिया, वक्फ और मुस्लिम अधिकारों की बातें जोर-शोर से उठीं।

वक्फ बिल क्या है और विवाद क्यों?

वक्फ का मतलब है वो संपत्ति जो मुस्लिम समुदाय के मजहबी, सामाजिक या शैक्षिक कामों के लिए दी जाती है – जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान या स्कूल। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों को संभालता है। केंद्र सरकार ने 2025 में वक्फ कानून में कुछ बदलाव किए, जिसे वक्फ संशोधन बिल कहा जा रहा है। सरकार का कहना है कि ये बदलाव पारदर्शिता लाने, महिलाओं को ज्यादा हिस्सेदारी देने और वक्फ संपत्तियों के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए हैं। इस बिल को बनाने से पहले संसदीय समिति, मुस्लिम संगठनों और कई लोगों से सलाह ली गई थी। सरकार कहती है कि कोई कानून थोपा नहीं गया।

लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये बिल वक्फ बोर्ड की आजादी छीनता है और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला है। उनका इल्जाम है कि बीजेपी इस बिल के जरिए मुस्लिमों की संपत्ति पर कब्जा करना चाहती है और उनके वोट देने के हक को भी कमजोर कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में इस बिल की वैधता पर सुनवाई चल रही है और फैसला अभी तक नहीं आया है।

बिहार में इस्लामी सियासत का POWER GAME

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से करीब 48 सीटों पर मुस्लिम वोटरों का दबदबा है। इन सीटों पर 20 से 40 फीसदी या उससे ज्यादा मुस्लिम आबादी है। बिहार में कुल 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो किसी भी पार्टी का खेल बना या बिगाड़ सकती है। यही वजह है कि विपक्षी पार्टियाँ जैसे आरजेडी, कॉन्ग्रेस और AIMIM इस रैली के जरिए मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने में जुट गईं।

विपक्ष बीजेपी पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण की सियासत करने का इल्जाम लगाता है। लेकिन इस रैली को देखकर लगता है कि खुद विपक्ष ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहा है। वक्फ जैसे मुद्दों को उठाकर ये पार्टियाँ मुस्लिम समुदाय को भड़काने और अपने पक्ष में करने की कोशिश में हैं। तेजस्वी यादव ने रैली में कहा, “हम मुस्लिम समाज के साथ हैं और उनकी लड़ाई अंतिम साँस तक लड़ेंगे।” ये बयान साफ दिखाता है कि उनका मकसद मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ खींचना है।

वक्फ के बहाने सक्रिय हुई AIMIM

बता दें कि पिछले यानी साल 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने बिहार में 5 सीटें जीती थीं, खासकर सीमांचल इलाके में। सीमांचल के चार जिलों किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में 24 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 12 पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। AIMIM की जीत ने विपक्षी गठबंधन (महागठबंधन) का खेल बिगाड़ा था, क्योंकि उनके वोट बँट गए। इस बार भी AIMIM वक्फ जैसे मुद्दों को उठाकर मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।

इमारत-ए-शरिया और मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी

इस रैली के पीछे इमारत-ए-शरिया और इसके प्रमुख मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी का बड़ा रोल रहा। मौलाना ने वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए देशभर में जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने 5 करोड़ ईमेल के जरिए अपनी बात सरकार तक पहुँचाई। हालाँकि वो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) से निकाले जा चुके हैं और उनकी इस रैली को भी AIMPLB ने समर्थन नहीं दिया। AIMPLB ने साफ कहा कि वो इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं चाहता, इसके बावजूद इस मजहबी संगठन के मंच पर सभी विपक्षी राजनीतिक पार्टियाँ न सिर्फ मौजूद रही, बल्कि अपने-अपने अंदाज में मुस्लिमों से समर्थन भी माँग लिया।

बिहार में असली मुद्दा क्या होना चाहिए?

बिहार के चुनाव में स्थानीय मुद्दों जैसे रोजगार, उद्योग और विकास की बात होनी चाहिए। लेकिन इस रैली में सिर्फ वक्फ और मजहबी मुद्दों पर जोर रहा। विपक्षी पार्टियाँ मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए तुष्टिकरण की सियासत कर रही हैं। बीजेपी पर ध्रुवीकरण का इल्जाम लगाने वाले ये लोग खुद मजहबी आधार पर वोट माँग रहे हैं। ये रैली इसका सबूत है।

मुस्लिम समुदाय में भी कई सवाल हैं। जैसे, वक्फ बोर्ड की अरबों की संपत्ति का फायदा आम मुसलमान को क्यों नहीं मिलता? शिया और सुन्नी बोर्ड अलग-अलग क्यों हैं? गाँधी संग्रहालय के संयुक्त सचिव और मुस्लिम स्कॉलर आसिफ वासी कहते हैं, “वक्फ बिल का ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट 18 पार्टियों में बँटा हुआ है। 18 फीसदी मुस्लिम वोट हैं, तो 78 फीसदी गैर-मुस्लिम वोट भी हैं।” उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड की संपत्ति से आम मुसलमान को आज तक कोई खास फायदा नहीं हुआ।

वक्फ रैली पर बीजेपी और जेडीयू की प्रतिक्रिया रही तीखी

पटना की इस रैली पर बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने इसे तुष्टिकरण की पराकाष्ठा और लोकतांत्रिक परंपराओं को चुनौती देने वाला कदम बताया। सिन्हा ने कहा कि वक्फ संशोधन बिल संसद की माँग और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर पारित हुआ है। इसका मकसद वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाना और उनके गलत इस्तेमाल को रोकना है। उन्होंने साफ किया कि इस कानून में मजहबी स्वतंत्रता पर कोई आँच नहीं आती। गैर-मुस्लिम सदस्यों की भूमिका सिर्फ प्रशासनिक होगी, न कि मजहबी।

सिन्हा ने राजद-कॉन्ग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि ये पार्टियाँ वोटबैंक की सियासत के लिए भ्रम और अराजकता फैलाना चाहती हैं। उन्होंने 2013 के वक्फ कानून का जिक्र किया, जब रातोंरात दिल्ली की 120 से ज्यादा वीवीआईपी संपत्तियाँ वक्फ को सौंप दी गई थीं। सिन्हा ने कहा कि अब ऐसी मिलीभगत की संस्कृति नहीं चलेगी।

बिहार बीजेपी ने इस रैली में तेजस्वी यादव के बयान पर सीधा निशाना साधा। बिहार बीजेपी ने लिखा, “तेजस्वी यादव की गाँधी मैदान रैली का असली एजेंडा अब सामने आ गया है। मंच से अब बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान की नहीं, बल्कि शरीया और शरीयत की बातें हो रही हैं। क्या तेजस्वी और राहुल गाँधी बिहार को संविधान नहीं, शरीयत से चलाना चाहते हैं? देश को बाँटने वाली इस खतरनाक राजनीति का जवाब जनता 2025 में देगी। बिहार बाबा साहब के संविधान से चलेगा, शरीयत से नहीं।”

बिहार के मंत्री जमा खान ने विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी में कुछ भी बोल रहे हैं, बिना ये सोचे कि उनकी बातें समाज में सौहार्द बिगाड़ सकती हैं। खान ने कहा कि विपक्ष खासकर राजद और कॉन्ग्रेस मुस्लिम समुदाय को बहकाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बिहार की जनता नीतीश कुमार पर भरोसा करती है। जमा खान ने रैली को सियासी मंच बताते हुए कहा कि ये सिर्फ भावनाओं को भड़काने की कोशिश थी, लेकिन 2025 में एनडीए फिर से सरकार बनाएगी, क्योंकि जनता सच्चाई जानती है।

लालू और नीतीश में मुस्लिम वोटर किसके साथ?

बिहार में वक्फ बिल का मुद्दा इसलिए भी गर्म है, क्योंकि यहाँ 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो चुनाव में बड़ा रोल अदा करती है। इस मुद्दे पर दो बड़े नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की साख दाँव पर है। लालू की पार्टी राजद हमेशा से मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के सहारे सियासत करती रही है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार अपनी ‘सेकुलर’ छवि और सभी समाज के लिए काम करने के लिए जाने जाते हैं, इसलिए बिहार में मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके समर्थन में रहा है।

90 के दशक में लालू और नीतीश एक साथ थे और दोनों को सेकुलर माना जाता था। लेकिन 2005 में नीतीश ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और अपनी अलग पहचान बनाई। उस वक्त मुस्लिम वोटरों ने उनका साथ दिया। 2005 में जेडीयू के 4 मुस्लिम विधायक जीते, 2010 में 7, और 2015 में 5। लेकिन 2020 के चुनाव में नीतीश का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता, जो दिखाता है कि मुस्लिम वोटरों में उनकी लोकप्रियता घटी है। वक्फ बिल पर जेडीयू के समर्थन ने इस नाराजगी को और बढ़ाया है।

सीमांचल का सियासी समीकरण

सीमांचल के चार जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया मुस्लिम बहुल हैं। यहाँ की 24 विधानसभा सीटों में से 12 पर मुस्लिम वोटर हार-जीत तय करते हैं। 2020 में एनडीए ने 11 सीटें जीतीं, महागठबंधन को 8 मिलीं और AIMIM ने 5 सीटें हासिल कीं। अब वक्फ संसोधन कानून के बहाने इस बार राजद और AIMIM इसी वोटबैंक पर नजर जमाए बैठे हुए हैं।

‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी। ये रैली दिखाती है कि राजद, कॉन्ग्रेस और AIMIM जैसी विपक्षी पार्टियां मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए तुष्टिकरण की सियासत कर रही हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये पार्टियाँ वाकई मुस्लिम समुदाय की भलाई चाहती हैं या सिर्फ वोटबैंक की सियासत कर रही हैं? बिहार के 18 फीसदी मुस्लिम वोटर इस चुनाव में किसके साथ जाएँगे, ये वक्त बताएगा। लेकिन इतना साफ है कि इस रैली ने बिहार के चुनाव को मजहबी रंग दे दिया है। रोजगार, विकास और शिक्षा जैसे मुद्दों की जगह वक्फ जैसे मुद्दों ने सियासत को गर्म कर दिया है और ये देखना बाकी है कि इसका असर चुनाव में कैसे दिखेगा।



Source link

Search

Categories

Recent Posts

Tags

Gallery