प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार (29 अगस्त 2025) को दो दिन की यात्रा पर जापान पहुँच चुके हैं। इस दौरान वे जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से मुलाकात करेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री SCO सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के शहर तिआनजिन जाएँगे। यहाँ उनकी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बैठक भी होने की संभावना है।
SCO सम्मेलन के दौरान ही पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भी मुलाकात होगी। टैरिफ को लेकर भारत की अमेरिका के साथ संबंधों में तल्खी के बीच जापान, रूस और चीन के प्रमुखों से पीएम मोदी की बातचीत को अहम माना जा रहा है।
पीएम मोदी की यात्रा से पहले चीन के सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने एक संपादकीय लिखा है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को ऐतिहासिक बताया गया है।
#Editorial: Today, as the “twin engines” of Asia’s economic growth, key representatives of the Global South, and members of the SCO, BRICS, and the G20, China and India share a mission to push the international order toward greater democracy and fairness. https://t.co/FjvsXryBir pic.twitter.com/9RTuzx8WbT
— Global Times (@globaltimesnews) August 28, 2025
‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा है, “भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन शहर में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। यह 7 वर्षों में उनकी पहली चीन यात्रा है। इसे दोनों देशों के बीच संबंधों में आई ठंडक के बाद इसे एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब भारत और चीन अपने कूटनीतिक संबंधों के 75 साल पूरे कर रहे हैं।”
आगे लिखा है कि हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच कुछ सकारात्मक घटनाएँ हुई हैं, जैसे हिमालयी सीमा पर सैनिकों द्वारा मिठाइयों का आदान-प्रदान, भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए तिब्बत की यात्रा फिर से शुरू होना और भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने की संभावना जताई जाना। यह सब इस ओर इशारा करता है कि दोनों देश धीरे-धीरे अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा कि गलवान की घटना के बाद दोनों देश यह मानने लगे हैं कि सीमा विवादों के बजाय, संसाधनों को आर्थिक विकास और रणनीतिक प्राथमिकताओं पर लगाना अधिक तर्कपूर्ण है। सुस्त वैश्विक आर्थिक सुधारों के बीच दोनों देशों को आर्थिक विकास के लिए स्थिरता जरूरी है। 2024 में द्विपक्षीय व्यापार साल-दर-साल 1.7% की बढ़ोतरी के साथ 138.478 अरब डॉलर तक पहुँच गया था।
संपादकीय में लिखा है कि 2025 की शुरुआत से ही दुनिया में ‘रूस-यूक्रेन युद्ध, मिडिल ईस्ट की अशांति और अमेरिका की घरेलू राजनीति और विदेश नीति में बदलाव’ जैसी कई समस्याएँ आई हैं। अमेरिका अब अपने सहयोगियों को समर्थन देने के बजाय ‘लेन-देन की राजनीति’ अपना रहा है, कुछ जगहों पर तो अमेरिका ने सहयोगियों और साझेदारों की कीमत पर लाभ लेने की नीति अपनाई है। इससे भारत-अमेरिका संबंधों में भी खटास आई है।
इस संपादकीय में पीएम मोदी के भारत के स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए संबोधन का भी उल्लेख किया गया है। इसमें लिखा है, “प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर कहा था कि ‘भारत अपने किसानों के हितों पर कोई समझौता नहीं करेगा और किसी भी दबाव के सामने दीवार बनकर खड़ा रहेगा’। भारत अब व्यापार में विविधता लाने के लिए करीब 40 देशों के साथ मिलकर नीतियों पर काम कर रहा है। यह रणनीतिक स्वतंत्रता चीन की विदेश नीति से मेल खाती है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग की नई संभावनाएँ बन रही हैं।”
इसमें स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है कि कुछ पश्चिमी मीडिया संस्थान इस सुधार को ‘अमेरिका-विरोधी गठबंधन’ के रूप में दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह सच्चाई को गलत ढंग से पेश करता है। भारत और चीन की विदेश नीति स्वतंत्र और अपने-अपने राष्ट्रीय हितों पर केंद्रित है।
संपादकीय के अनुसार, “CNN की एक टिप्पणी में सही कहा गया कि भारत-चीन संबंधों में बदलाव भारत की ‘रणनीतिक स्वतंत्रता’ की नीति का उदाहरण है, जो किसी भी गुट का हिस्सा बनने के बजाय अपने हितों को प्राथमिकता देती है।”
संपादकीय में आगे लिखा है कि इतिहास की ओर देखें तो भारत उन पहले देशों में से था, जिन्होंने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दी थी। भारत और चीन ने 1950 के दशक में ‘पंचशील सिद्धांत’ का प्रस्ताव दिया था जो आज भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों की एक मूल भावना है।
इसमें कहा गया है, “एशिया के आर्थिक विकास के ‘डबल इंजन’ होने के साथ-साथ, ग्लोबल साउथ के प्रमुख प्रतिनिधि और एससीओ (SCO), ब्रिक्स (BRICS) और जी20 (G20) के सदस्य होने के नाते, चीन और भारत की साझा जिम्मेदारी है कि वे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को और अधिक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण दिशा में आगे बढ़ाएँ।”
‘ग्लोबल टाइम्स’ ने आखिर में लिखा, “मोदी की चीन यात्रा भारत-चीन संबंधों को सुधारने का एक बढ़िया अवसर है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि अब दोनों बड़े देश अपने रिश्तों को विरोधी नहीं बल्कि साझेदार की तरह सँभालने की कोशिश कर रहे हैं।”
अखबार ने लिखा, “जब भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों के 75 साल पूरे कर रहे हैं, तब उम्मीद की जा रही है कि नई दिल्ली और बीजिंग दोनों मिलकर एक नया अध्याय लिखेंगे, जहाँ ‘ड्रैगन और हाथी’ मिलकर दुनिया में शांति, स्थिरता और समृद्धि की दिशा में योगदान देंगे।”