मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक बड़े फैसले में, 4 साल की बच्ची से रेप के दोषी 20 साल का एक जनजातीय युवक की फाँसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। ट्रायल कोर्ट ने दोषी को मौत की सजा सुनाई थी क्योंकि बच्ची स्थायी रूप से दिव्यांग थी।
हाई कोर्ट ने माना कि यह अपराध बहुत ही गंभीर है। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की बेंच ने कहा, “यह सच है कि आरोपित ने 4 साल 3 महीने की बच्ची का रेप किया, फिर उसे गला घोंटकर मरा हुआ समझकर ऐसी जगह फेंक दिया जहाँ उसे कोई ढूँढ़ न सके। लेकिन यह भी साफ है कि उसने क्रूरता से अपराध नहीं किया है।”
कैसे बदली फाँसी की सजा उम्रकैद में
आरोपित के खिलाफ रेप या मर्डर जैसा कोई भी केस दर्ज नहीं था। आरोपित पढ़ा-लिखा नहीं है। आरोपित एक जनजातीय समुदाय से आता है और बचपन में ही घर छोड़कर ढाबे पर काम करने चला गया था।
कोर्ट ने कहा कि बच्ची स्थायी रूप से दिव्यांग है इस बात का कोई पुख्ता मेडिकल सबूत नहीं है। डॉक्टर ने भी साफ-साफ नहीं बताया कि किस अंग को कितना नुकसान हुआ या चोट से जीवन भर की दिव्यांगता होगी।
दोषी के वकील ने दलील दी कि यह मामला सिर्फ अंदाजे पर आधारित है और कोई गवाह नहीं है। वकील ने कहा कि बच्ची को कोई गंभीर या स्थायी चोट नहीं आई थी और सबूत बाद में बनाए गए थे। वकील ने यह भी कहा कि आरोपित की कम उम्र और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उसे फाँसी देना ठीक नहीं है।
सरकार की ओर से एक वकील ने फाँसी की सजा बरकरार रखने की माँग की, लेकिन हाई कोर्ट ने सभी बातों पर गौर करते हुए फाँसी की सजा को 25 साल की कठोर कारावास और 10,000 रुपए जुर्माने में बदल दिया। अगर वह जुर्माना नहीं देता है, तो आरोपित की जेल की सजा एक साल के लिए और बढ़ जाएगी।
मामला क्या है?
घटना अक्टूबर 2022 की है। आरोपित ने बच्ची की झोपड़ी में घुसकर सोने के लिए खाट माँगी। उसी रात आरोपित ने पास के एक घर का दरवाजा खोला जहाँ बच्ची अपने माता-पिता के साथ सो रही थी। आरोपित ने बच्ची का अपहरण कर रेप किया।
इसके बाद आरोपित ने बच्ची को मरा हुआ समझकर एक आम के बगीचे में बेहोशी की हालत में फेंक दिया। घटना के समय बच्ची 4 साल 3 महीने की थी और आरोपित 20 साल का था।