गुजराती पत्रकारिता में ‘क्रांति’ हुई है। मोदी से लेकर ट्रंप तक के खिलाफ ‘अग्रणी’ अखबार ‘ गुजरात समाचार ‘ में भी संपादकीय प्रकाशित होते रहते हैं। 18 अगस्त को भी एक लेख ‘गुजरात समाचार’ में प्रकाशित हुआ है। शीर्षक है – ‘देश के सामने की चुनौतियाँ।’ शीर्षक पढ़कर या ‘गुजरात समाचार’ का नाम सुनकर लेख में ‘मोदी के शासन के तहत देश बर्बाद हो चुका है और उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए’ ऐसा भाव होगा, स्वाभाविक तौर पर ऐसा लग सकता है। लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है। लेख का टोन बहुत सामान्य है। यह एक सामान्य संपादकीय लेख की तरह है।

समाचार के संपादकीय लेख की शुरुआत हाल ही में मनाए गए स्वतंत्रता दिवस से होती है। लेख में कहा गया है कि जश्न मनाने के लिए उपलब्धियों की कमी नहीं है। भारत ने जो ऊँचाइयाँ हासिल की हैं, वह छोटी बात नहीं है, क्योंकि भिन्नताएँ और विविधताएँ होने के बावजूद देश लगातार मजबूत बनता जा रहा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और राष्ट्रीय एकता का उल्लेख आता है।
इसके बाद आर्थिक मामलों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है और गरीबी भी घट रही है।इसके बाद दूसरे चरण की शुरुआत होती है। इसमें कुछ खामियों और चुनौतियों की बात की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की थोड़ी चर्चा होती है और अमेरिका और टैरिफ का उल्लेख दिखाई देता है। मजबूत संस्थाएँ होनी चाहिए और नियमों के आधार पर व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, ऐसी सारी बातें लिखी गई हैं।
आखिरी पैराग्राफ में संपादक लिखते हैं, “कभी-कभी बहुमत भेड़ों के झुंड जैसा होता है। भाजपा शासित राज्यों में विधानसभा सत्र होने से पहले विधायक पूछने वाले प्रश्नों की चिट्ठी पार्टी की तरफ से दी जाती है। विधायक अपने क्षेत्र के असली प्रश्न नहीं पूछ सकते… ये सभी लोकतंत्र को अपंग करने वाली हैं और ये एक बड़ा चुनौती है। विपक्ष भारत के चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं पैदा हुई थी।”
आगे लिखा, “चुनाव आयोग का निष्पक्ष व्यवहार भारतीय राजनीतिक प्रणाली की नींव है, जिस पर बाकी सब निर्भर है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं और मतदाताओं दोनों के मन में कोई संदेह या उलझन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। यह लेख सामान्य है।” जैसा अखबार में छपता है, वैसा ही है। लेकिन मूल बात यह है कि यही लेख, शब्दशः चार दिन पहले एक अंग्रेजी अखबार ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के हिंदी संस्करण में प्रकाशित हो चुका है।
14 अगस्त, 2025 को रात 11:01 बजे प्रकाशित इस लेख का शीर्षक है– ’79वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत की उपलब्धियां और चुनौतियाँ, मजबूत संस्थाओं की आवश्यकता ‘
चार दिन बाद गुजरात समाचार में प्रकाशित संपादकीय और बिजनेस स्टैंडर्ड के इस लेख में अंतर इतना है कि एक हिंदी में है और एक गुजराती में। दूसरी बात ये है कि ‘गुजरात समाचार’ ने अंतिम पैराग्राफ में भाजपा-विरोधी टिप्पणियाँ की हैं, जो बिजनेस स्टैंडर्ड के लेख में नहीं हैं। बाकी का पूरा लेख पहले से आखिरी तक शब्दशः एक जैसा है। कहीं कोई बदलाव नहीं किया गया है। पैराग्राफ भी समान हैं, शुरुआत भी एक जैसी है और अंत में गुजरात समाचार द्वारा जोड़ी गई कुछ टिप्पणियों के अलावा बाकी का हिस्सा समान है।
आमतौर पर एक अखबार का लेख दूसरे में प्रकाशित होती रहती हैं,लेकिन संपादकीय लेखों की अदला-बदली आम तौर पर नहीं होती है। कई अखबार-मीडिया संस्थाएँ एक-दूसरे से सामग्री लेती रहती हैं, लेकिन इसमें उस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख होता है। कई गुजराती अखबार विदेशी अखबारों की रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं, लेकिन इसके लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। दोनों के बीच एक प्रकार का टाई-अप होता है।
‘गुजरात समाचार’ ने ऐसी कोई स्पष्टता नहीं लिखी है। फिर भी वास्तविकता जानने के लिए ऑपइंडिया ने जब ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ से संपर्क किया, तो यह पता चला कि दोनों अखबारों के बीच ऐसा कोई टाई-अप नहीं किया गया है। न ही अंग्रेजी अखबार ने या उसके हिंदी संस्करण ने गुजरात समाचार को अपने लेख प्रकाशित करने के लिए विशेष अधिकार दिए हैं। गुजरात समाचार के सूत्र भी कहते हैं कि उनका कोई टाई-अप नहीं है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिज़नेस स्टैंडर्ड इस विषय में जाँच कर रहा है और जाँच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
(मूल रूप से ये लेख गुजराती में लिखी गई है। इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)