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खेला होबे, संदेशखाली, मुर्शिदाबाद… वैचारिक विष्ठा करने से पहले सब भूल गईं सागरिका जी, बंगाल-हिंदुओं के लिए ‘T-R-A-G-E-D-Y’ सिंड्रोम है TMC


टीएमसी सांसद सागरिका घोष और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी

सागरिका घोष ने ‘द प्रिंट’ पर मोदी सरकार की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा है, जिसमें सागरिका घोष ने 11 साल में हुई ‘दुर्घटनाओं’ और प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी सरकार को घेरा है। आइए जानते हैं कि सागरिका घोष की बातों में कितनी सच्चाई है।

सागरिका घोष का ‘सच’ और हकीकत: दीदी के चश्मे से देश देखना

सागरिका घोष अपने लेख में मोदी सरकार पर ‘सत्यमेव जयते’ का सम्मान न करने और केवल ‘हेडलाइन मैनेजमेंट’ पर ध्यान देने का आरोप लगा रही हैं। सागरिका घोष M-O-D-I सिंड्रोम यानी Misinformation, Opacity, Distractions, and Incompetence (गलत सूचना, अस्पष्टता, भटकाव और अक्षमता) का जिक्र कर रही हैं।

लेकिन, सागरिका घोष की अपनी बातों में ही कितनी सच्चाई है, यह हमें देखना होगा। लगता है सागरिका जी को अपनी ‘दीदी’ यानी ममता बनर्जी को छोड़कर कोई और काम करता हुआ पसंद ही नहीं आता।

M-O-D-I सिंड्रोम या टीएमसी का ‘T-R-A-G-E-D-Y’ सिंड्रोम?

सागरिका घोष मोदी सरकार को M-O-D-I सिंड्रोम (Misinformation, Opacity, Distractions, and Incompetence) का शिकार बता रही हैं। लेकिन, अगर हम पश्चिम बंगाल में उनकी ही पार्टी TMC के राज को देखें, तो हमें एक नया और अधिक भयावह सिंड्रोम दिखाई देता है, जो T-R-A-G-E-D-Y (त्रासदी) है।

दुर्घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं पर बचकानी सोच

सागरिका घोष ने अहमदाबाद विमान दुर्घटना, ट्रेन पटरी से उतरने और कुंभ मेले में भगदड़ जैसी घटनाओं का जिक्र करते हुए मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सागरिका घोष का यह तर्क कि ऐसी दुर्घटनाएँ और प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे कोविड-19 से हुई मौतें) सीधे सरकार की ‘खामियाँ’ हैं, पूरी तरह से बेतुका और बचकाना है।

क्या किसी सरकार का कंट्रोल विमान दुर्घटनाओं या कुंभ जैसे बड़े आयोजनों में होने वाली भगदड़ पर हो सकता है, जब लाखों लोग एक साथ आते हैं? ऐसी घटनाएँ दुनिया भर में होती हैं और अक्सर नियति और अप्रत्याशित परिस्थितियों के अधीन होती हैं।

यह तो भगवान की माया और नियति का खेल है, जिसे किसी भी सरकार के पाले में डालना नासमझी और बचकानापन है। यदि सागरिका जी यह मानती हैं कि उनकी ‘ममता दीदी’ के राज में ऐसी दुर्घटनाएँ नहीं होतीं या प्राकृतिक आपदाएँ नहीं आतीं, तो यह उनकी संकीर्ण सोच का प्रमाण है।

कोविड-19 के आँकड़ों पर आरोप

कोविड-19 से हुई मौतों के आँकड़ों को लेकर भी सागरिका घोष ने सवाल उठाए हैं। यह सच है कि वैश्विक महामारी के दौरान आँकड़ों को लेकर बहस हुई है, लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि ऐसी अभूतपूर्व स्थिति में सटीक आँकड़ों का संग्रह एक जटिल चुनौती थी।

सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए हर संभव प्रयास किया, और दुनिया के कई देशों में भी ऐसे ही आँकड़े सामने आए थे, जो बाद में संशोधित हुए। क्या वह यह कहना चाह रही हैं कि दुनिया की किसी भी सरकार ने कोविड से हुई मौतों के सही आँकड़े नहीं दिए?

क्या सागरिका घोष ममता दीदी को भारत का पीएम बनाने का सपना देख रही हैं?

सागरिका घोष को तृणमूल कॉन्ग्रेस ने राज्यसभा भेजा है। उनके पति राजदीप सरदेसाई को ‘रसगुल्ला पत्रकारिता’ के लिए जाना जाता है, जिन्होंने ममता बनर्जी से पश्चिम बंगाल की हिंसा पर कभी कड़े सवाल नहीं पूछे, ताकि उनके ‘चाय पर चर्चा’ में ‘रसगुल्ले’ मिलते रहें। यह सब देखकर तो यही लगता है कि सागरिका घोष ममता दीदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाने का ख्वाब देख रही हैं।

लेकिन, क्या उन्हें यह नहीं दिखता कि जिस ममता दीदी के राज में हिंदुओं का अस्तित्व खतरे में है, महिलाएँ असुरक्षित हैं, और पूरी कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, वह भारत को कैसे चला सकती हैं? क्या उनका सपना भारत को एक इस्लामी मुल्क बनाने का है, जहाँ हिंदुओं को अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाए?

जिस सरकार के राज में रामनवमी के जुलूस पर पत्थरबाजी होती है, धर्मांतरण के खतरे को ‘मानसिक उन्माद’ यानि पागलपन बताया जाता है, और अपने ही नागरिकों को घर छोड़ने पर मजबूर किया जाता है, क्या ऐसी सरकार देश को आगे ले जा सकती है?

आईना देखना जरूरी है

सागरिका घोष मोदी सरकार पर ‘झूठ’ बोलने और ‘जवाबदेही से बचने’ का आरोप लगा रही हैं। लेकिन, उन्हें सबसे पहले कहीं और झांकना होगा। जिस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा है, वह पश्चिम बंगाल में अराजकता, हिंसा और तुष्टिकरण का प्रतीक बन चुकी है।

भारत में मोदी सरकार ने विकास के कई आयाम गढ़े हैं, चाहे वह सड़कें हों, एयर पोर्ट हों या डिजिटल इंडिया का सपना। हाँ, कोई भी सरकार पूर्ण नहीं होती और गलतियाँ भी होती हैं, लेकिन उन्हें ऐसे पेश करना जैसे हर आपदा और दुर्घटना के लिए सिर्फ सरकार जिम्मेदार है, यह निराधार और राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है।

भारत की जनता मोदी के कामकाज से प्रेरित होकर उन्हें वोट देती है, जबकि ममता दीदी दादागिरी करके वोट छीनती हैं।

सागरिका घोष जी, आपको यह समझना होगा कि पत्रकारिता का धर्म सच्चाई दिखाना होता है, न कि किसी विशेष राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देना। अगर आपको ‘M-O-D-I सिंड्रोम’ दिखाई देता है, तो अपनी ही पार्टी के ‘T-R-A-G-E-D-Y सिंड्रोम’ पर भी नजर डालनी चाहिए।

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