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क्या हिंदू होना ही है साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और मेजर उपाध्याय का दोष?


कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह और मेजर रमेश उपाध्याय

मालेगाँव ब्लास्ट मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी की विशेष अदालत ने आज (31 जुलाई 2025) उन सातों आरोपितों को बरी कर दिया, जिनके नाम का इस्तेमाल करके कभी UPA सरकार ने ‘हिंदू आतंकवाद’ के नैरेटिव को गढ़ने का प्रयास किया था। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उस बाइक वाली थ्योरी को भी खारिज किया जिसके आधार पर हिंदू संत और सेना से जुड़े लोग निशाने पर लिए गए थे।

कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय रहीरकर, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर द्विवेदी के खिलाफ सबूतों की कमी बताई। स्पेशल जज ए.के. लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा और सबूतों में कई असंगतियाँ हैं। कोर्ट ने ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी को सिरे से खारिज करते हुए जोर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन दोषसिद्धि नैतिक आधार पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों पर होनी चाहिए।

स्पेशल जज एके लाहोटी ने 500 पेज से ज्यादा के अपने फैसले में विस्तार से बताया कि अभियोजन पक्ष ने केस को साबित करने में कई गलतियाँ कीं। उन्होंने कहा, “पूरी जाँच के बाद यह साफ है कि अभियोजन कोई ठोस सबूत लाने में विफल रहा है। सबूतों में कई असंगतियाँ हैं, इसलिए सभी आरोपितों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।”

हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए छाँटे गए तीन नाम

29 दिसंबर 2008, ब्लास्ट वाले दिन और 31 जुलाई 2025, यानी फैसले वाले दिन के बीच 16 साल 10 महीने (लगभग 17) बीत चुके हैं। इस लंबे अंतराल में निर्दोषों के साथ क्या-क्या हुआ ये सोच भी रूह कँपाने वाली है। केस में तीन ऐसे नाम हैं जिनके साथ अत्याचार की हर हदें पार की गईं।

ये तीन नाम- साध्वी प्रज्ञा, मेजर रमेश उपाध्याय और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित के हैं। केस की जाँच के नाम पर राज्य एटीएस ने इन बेगुनाहों को न केवल मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया, बल्कि इन्हें शारीरिक यातनाएँ भी दीं।

इन्हें इतना तड़पाया गया कि साध्वी प्रज्ञा को तो वेंटिलेटर तक पर जाना पड़ा था और मेजर उपाध्याय को सरेआम धमकी मिलती थी कि उनकी बेटी का रेप हो जाएगा। वहीं कर्नल पुरोहित को ‘देशद्रोही’ साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया।

आज जब ये सारे लोग अदालत की नजर में भी बेगुनाह साबित हो चुके हैं तो आइए एक बार फिर याद दिलाएँ कि जाँच के नाम पर इन ‘हिंदुओं’ को कैसे निशाना बनाया गया था।

जाँच के दौरान तीनों पर बरपाया गया कहर

साध्वी प्रज्ञा के साथ अमानवीयता की हर हद की गई पार

मेजर की पत्नी को नंगा घुमाने, बेटी का रेप करने की धमकी

लेफ्टिनेंट कर्नल का तोड़ दिया गया पैर

मालेगाँव ब्लास्ट के इस पूरे मामले में भगवाधारी साध्वी प्रज्ञा या सेना की वर्दी वाले कर्नल पुरोहित-मेजर उपाध्याय जैसे लोग निशाने पर क्यों लिए गए, ये समझना अब कोई कठिन नहीं है। धमाका मस्जिद के पास हुआ था। कॉन्ग्रेस ने इसे अपने वोटबैंक के लिए जमकर भुनाया। रैली कर करके हिंदुओं को आतंकवादी कहा गया।

जब सवाल उठे कि ये किस आधार पर दावे हो रहे हैं तो खुद को सही साबित करने के लिए यूपीए सरकार में फँसाए गए 7 निर्दोष, जिन्हें तरह-तरह की यातना देकर मजबूर किया गया कि वो मानें ब्लास्ट में उनका हाथ था। इन निर्दोषों संत और सेना से जुड़े लोग थे।

पूर्व नौकरशाह आरवीएस मणि ने कॉन्ग्रेस के दौर में गृह मंत्रालय में एक अंडर-सेक्रेटरी के रूप में काम किया था। अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में, मणि ने संपूर्ण मिलीभगत का वर्णन किया हुआ है। उन्होंने बताया है कि किन-किन खिलाड़ियों ने ‘भगवा आतंक’ की कहानी गढ़ने के लिए मिलीभगत की और कैसे, कई वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता से लेकर कई अन्य लोग इस साजिश में शामिल थे।

वहीं कोर्ट में भी कोर्ट में भी गवाहों ने यह जानकारी दी थी उनके ऊपर हिंदू नेताओं को फँसाने के लिए कहा गया था। ये जानकारी चौंकाने वाली थी, लेकिन जब तक ये सच सामने आया तब तक कॉन्ग्रेस के तुष्टिकरण का शिकार ‘निर्दोष’ हो चुके थे। कॉन्ग्रेस ने देश की सेना के कर्नल पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय और भगवाधारी साध्वी प्रज्ञा का इस्तेमाल ये फैलाने के लिए किया कि उनकी हिंदू आतंकवाद की थ्योरी एकदम सही है।

ये ध्यान रहे कि आज कोर्ट ने जो फैसला दिया है उससे न तो वो लोग खुश हैं जिनका मकसद हिंदुत्व को बदनाम करने का रहता है और न ही वो लोग, जिन्हें कुछ भी करके हिंदुत्व को आतंकवाद का पर्याय बताना था। 2008 के उस दौर में इस मालेगाँव ब्लास्ट के बाद एक तरफ मुस्लिमों को रैलियों के दौरान ये बताकर खुश किया जा रहा था कि इसे इस्लामी आतंकियों ने अंजाम नहीं दिया है बल्कि हिंदू आतंकवादियों ने दिया है। वहीं दूसरी तरफ, हिंदू नेताओं को पूरे मामले में फँसाने की साजिश चल रही थी।

खुद गवाहों ने इस बात को स्वीकारा था कि उन पर योगी आदित्यनाथ समेत अन्य हिंदू नेताओं का नाम लेने का दबाव था। इसके अलावा जो प्रताड़नाएँ मेजर और कर्नल को दी गई थीं उसका मकसद भी यही था कि ये अपने बयानों में हिंदू नेताओं का नाम ले… लेकिन ये सब होता कैसे? कुछ दिन यूपीए शासन में ये नैरेटिव गढ़ा-बढ़ा। मगर फिर हकीकत सामने आने लगी।

केस एनआईए के पास गया, चार्जशीट दाखिल हुई, गवाहों की पेशी हुई और हकीकत खुलती गई। ये भी सामने आया कि ये पूरा नैरेटिव सिर्फ जनता का ध्यान CWG घोटाले से हटाने के लिए किया था। इसी बीच ब्यूरोक्रेट आरवीएस मणि की किताब जनता के बीच आई, जिनसे कॉन्ग्रेस के हिंदूविरोधी चेहरे को शीशे जैसा साफ कर दिया।

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