मैसूर का विश्व प्रसिद्ध दशहरा, जिसे सदियों से एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता रहा है, इस बार राजनीति के विवाद में उलझ गया है। कर्नाटक सरकार ने दशहरा महोत्सव 2025 के उद्घाटन के लिए बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका बानू मुश्ताक को आमंत्रित किया है। इस फैसले ने राज्य में सियासी तूफान ला दिया है। मुद्दा सिर्फ इतना नहीं कि बानू मुश्ताक मुस्लिम हैं- असली सवाल यह है कि क्या कोई ऐसी महिला, जिसकी हिंदू देवी-देवताओं में आस्था तक नहीं है, दशहरे जैसे गंभीर धार्मिक अनुष्ठान का नेतृत्व कर सकती है?
बीजेपी ने इस पर सख्त ऐतराज जताते हुए कहा है कि दशहरा कोई ‘सरकारी’ बटन-दबाने का समारोह नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक परंपरा है। हर वर्ष देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ इसकी शुरुआत होती है और इसे शुरू करने वाले को पूरे मन से भक्त होना जरूरी माना जाता है। ऐसे में बानू मुश्ताक को इस आयोजन की शुरुआत करने देना हिंदू आस्था का सीधा अपमान नहीं तो और क्या है?
क्या है विवाद की जड़?
दशहरा हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मैसूर में इसका विशेष महत्व है, जहाँ चामुंडी पहाड़ियों पर देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ उत्सव की शुरुआत होती है। इस परंपरा में दशकों से देवी की पहली पूजा कोई श्रद्धालु अतिथि करता रहा है। टीपू सुल्तान की सोच रखने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने धर्म का अपमान करके बानू मुश्ताक को बतौर मुख्य अतिथि बुलाने की घोषणा कर रहे, जिसका विवाद बीजेपी कर रही है।
बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह परंपरा मैसूर के राजाओं ने शुरू की थी और यह पूरी तरह से देवी चामुंडेश्वरी के प्रति भक्ति से जुड़ी है। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने सीधे तौर पर कहा है कि यह एक पवित्र त्योहार है, न कि कोई सांस्कृतिक उत्सव और इसे तुष्टिकरण की राजनीति का मंच नहीं बनाया जा सकता।
ಮೈಸೂರು ದಸರಾದ ಚಾಮುಂಡೇಶ್ವರಿ ದೇವಿಯ ಪವಿತ್ರ ಉತ್ಸವವು ಭಕ್ತಿಯ ಮತ್ತು ಸಂಪ್ರದಾಯದ ಮೇಲೆ ಅವಲಂಬಿತವಾಗಿದೆಯೇ ಹೊರತು, ಇದು ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ಪ್ರದರ್ಶನವಲ್ಲ. ಧರ್ಮದ ಆಧಾರದ ಮೇಲೆ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಆಚರಣೆಯನ್ನೂ ಶಾಸ್ತ್ರಗಳಿಗೆ ಅನುಗುಣವಾಗಿ ನಡೆಸಲಾಗುತ್ತದೆ.
ಆದರೂ, ಇಂಡಿ ಒಕ್ಕೂಟ ಪದೇ ಪದೇ ಹಿಂದೂಗಳ ಭಾವನೆಗಳನ್ನು ಅವಮಾನಿಸುತ್ತಿದೆ. ಮೊದಲು… pic.twitter.com/n2xTferb2m— Shobha Karandlaje (@ShobhaBJP) August 25, 2025
वहीं, बीजेपी के पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा ने सवाल उठाया, “हम बानू मुश्ताक की साहित्यिक उपलब्धियों का सम्मान करते हैं, लेकिन क्या वह देवी चामुंडी में विश्वास करती हैं? क्या उन्होंने कभी हमारे रीति-रिवाजों का पालन किया है? अगर नहीं, तो उन्हें क्यों आमंत्रित किया गया?” सवाल का सीधा मतलब यह है कि अगर यह एक धार्मिक कार्यक्रम है तो इसका उद्घाटन वही व्यक्ति क्यों करे, जिसकी उस धर्म में आस्था ना हो? बीजेपी का मानना है कि यह केवल राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम है, जिसका धार्मिक परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है।
सरकार कहती है सबके लिए है दशहरा- लेकिन क्या पूजा भी ‘सब’ के लिए है?
वहीं, कर्नाटक सरकार ने अपने फैसले का बचाव किया। गृह मंत्री परमेश्वर ने कहा कि मैसूर दशहरा एक ‘राजकीय उत्सव’ है और इसे सिर्फ धर्म के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अतीत में भी अन्य मजहबी लोगों, जैसे निसार अहमद और मिर्ज़ा इस्माइल ने इस उत्सव में भाग लिया है। उनका तर्क है कि यह सभी के लिए एक उत्सव है और इसमें धर्म को मिलाना सही नहीं है। कॉन्ग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने भी बानू मुश्ताक के आमंत्रण का समर्थन करते हुए कहा कि यह उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के सम्मान में किया गया है और इसे उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि से नहीं जोड़ना चाहिए।
#WATCH | On the BJP questioning Booker Prize winner Banu Mushtaq to inaugurate Mysore Dasara festival 2025, Congress MP Syed Naseer Hussain says, "Banu Mushtaq is a literary figure. She has been awarded Booker Prize. She is one of the very progressive writers of our state. If she… pic.twitter.com/hPutm5wXg4
— ANI (@ANI) August 25, 2025
सरकार का दावा है कि दशहरा सबका उत्सव है। मंत्री एचके पाटिल ने कहा, “दशहरा सभी के लिए है, इसमें किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए।” लेकिन सवाल यही है- क्या पूजा करने का हक भी उस व्यक्ति को दिया जा सकता है, जो उस पूजा में विश्वास ही नहीं रखता?
#WATCH | On the BJP questioning Booker Prize winner Banu Mushtaq to inaugurate Mysore Dasara festival 2025, Karnataka Minister HK Patil says, "Dasara is for all. It is a state festival. It is unfortunate that some people are trying to play politics…Nobody should do politics in… pic.twitter.com/LuFD697z2u
— ANI (@ANI) August 25, 2025
अगर ऐसा है, तो क्या मुस्लिम मस्जिदों के उद्घाटन में किसी हिंदू संन्यासी को बुलाया जाएगा? क्या कोई नास्तिक हज का नेतृत्व करेगा? यदि नहीं- तो फिर हिंदू पर्वों को क्यों इस तरह के प्रयोगों का अखाड़ा बनाया जा रहा है?
क्या है मैसूर दशहरा की परंपरा?
मैसूर का दशहरा उत्सव कोई साधारण कार्यक्रम नहीं है, यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जो सदियों से चला आ रहा है। यह विजयादशमी के दिन चामुंडी पहाड़ियों में देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ शुरू होता है। इस दौरान, भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसे ‘जंबू सवारी’ कहते हैं। इस जुलूस में सजे-धजे हाथी देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति को लेकर चलते हैं। यह उत्सव पूरी तरह से भक्ति और आस्था का प्रतीक है, जिसमें हर अनुष्ठान शास्त्रों के अनुसार किया जाता है।
बीजेपी का मूल सवाल यही है कि क्या एक धार्मिक कार्यक्रम का उद्घाटन ऐसा व्यक्ति कर सकता है, जिसकी उस धर्म में आस्था न हो? यह सवाल राजनीतिक भले ही लगे, लेकिन यह करोड़ों भक्तों की भावनाओं से जुड़ा है जो इस उत्सव को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक पवित्र अनुष्ठान मानते हैं। जिस प्रकार इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है। उसी प्रकार हिंदू उत्सव में किसी मुस्लिम से उद्घाटन करवाना भी एक तरह से गलत है। जो लोग हिंदुओं का विरोध करते हैं, उन्हें माता चामुंडेश्वरी की पूजा क्यों करनी चाहिए?