श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने सिंगापुर की शिपिंग कंपनी एक्स-प्रेस फीडर्स पर 1 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 8,400 करोड़ रुपए) का जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना 2021 में कोलंबो पोर्ट के पास जहाज एमवी एक्स-प्रेस पर्ल के डूबने से हुए भयानक पर्यावरणीय हादसे के लिए लगाया गया था। यह श्रीलंका का अब तक का सबसे बड़ा पर्यावरणीय संकट माना जाता है।

लेकिन अब कंपनी ने साफ कर दिया है कि वह इस आदेश का पालन नहीं करेगी। समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कंपनी के सीईओ श्मूएल योसकोविट्ज़ ने कहा कि इतनी बड़ी रकम चुकाने से वैश्विक शिपिंग कारोबार पर असर पड़ेगा और यह एक खतरनाक मिसाल बनेगी।

यानी अदालत के आदेश के बावजूद कंपनी मुआवजा देने से इनकार कर रही है, जिससे श्रीलंका को न्याय और पर्यावरणीय सुधार के प्रयासों पर बड़ा झटका लग सकता है।

सिंगापुर ध्वज वाले एमवी एक्स-प्रेस पर्ल का डूबना और श्रीलंका की सबसे भयानक समुद्री प्रदूषण आपदा

एमवी एक्स-प्रेस पर्ल एक 1098 फुट लंबा कंटेनर जहाज था, जिसका मालिकाना हक सिंगापुर की कंपनी ईओएस रो प्राइवेट लिमिटेड (एक्स-प्रेस पर्ल ग्रुप का हिस्सा) के पास था और इसे एक्स-प्रेस फीडर्स प्राइवेट लिमिटेड संचालित करती थी। यह कंपनी एशियाई समुद्री रूट्स में बड़ी शिपिंग कंपनी मानी जाती है।

यह जहाज भारत के गुजरात स्थित हजीरा पोर्ट से श्रीलंका के कोलंबो पोर्ट की ओर जा रहा था। इसमें कुल 1496 कंटेनर थे, जिनमें से 81 खतरनाक सामग्री से भरे थे।

इनमें 25 कंटेनर नाइट्रिक एसिड (खतरनाक रसायन, जिसका इस्तेमाल उर्वरकों और विस्फोटकों में होता है), इसके अलावा सीसा (लेड) की ईंटें, कैल्शियम कार्बाइड, और सैकड़ों मीट्रिक टन प्लास्टिक नर्डल्स ले जाए जा रहे थे।

ये प्लास्टिक नर्डल्स बोतलें, बैग जैसे उत्पाद बनाने में काम आते हैं, लेकिन ये नष्ट न होने वाले (नॉन-बायोडिग्रेडेबल) पदार्थ हैं। समुद्र में फैलने पर ये पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रदूषित करते हैं।

जब एमवी एक्स-प्रेस पर्ल अरब सागर में था, तब जहाज के एक कंटेनर से 20 मई 2021 को 26 मीट्रिक टन नाइट्रिक एसिड लीक होने लगा। क्रू ने इसे रोकने की कोशिश की, लेकिन जहरीली गैसों ने जहाज़ की  बिजली प्रणाली को नुकसान पहुँचाया और लगातार तकनीकी खराबियाँ शुरू हो गई। इस वजह से कतर और भारत के बंदरगाहों ने जहाज को खतरनाक माल उतारने की अनुमति नहीं दी और जहाज को मजबूरी में कोलंबो जाना पड़ा।

यह जहाज 25 मई 2021 को कोलंबो से लगभग 17 किलोमीटर दूर लंगर डालकर खड़ा हुआ। अगले दिन, यानी 26 मई को, नाइट्रिक एसिड के रिसाव से जहाज में भीषण आग लग गई, जो 11 दिन तक जलती रही।

श्रीलंका की नौसेना, वायुसेना और अंतरराष्ट्रीय बचाव दलों की कोशिशों के बावजूद आग काबू में नहीं आई। आग ने अन्य कंटेनरों को भी अपनी चपेट में ले लिया, जिससे धमाके हुए और जहरीला धुआँ दूर से दिखाई देने लगा। आखिरकार, 2 जून 2021 को जहाज दो हिस्सों में टूटकर डूब गया। यह हादसा नेगोम्बो लैगून (जो यूनेस्को की रामसर साइट है) के पास 180 फीट गहरे पानी में हुआ।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना दशकों में सबसे बड़ा समुद्री प्रदूषण साबित हुई। इसमें 87 टन से ज्यादा प्लास्टिक नर्डल्स समुद्र में फैल गए, जो श्रीलंका के पश्चिमी तट पर 80 किलोमीटर लंबी पट्टी (नेगोम्बो से कालुतारा तक) पर बहकर आ गए। इससे समुद्र तट, नदियों के मुहाने और मैंग्रोव जंगल गंभीर रूप से दूषित हो गए। ये नर्डल्स समुद्री जीवों की खुराक में शामिल होकर पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करने लगे।

फोटो साभार – AFP

इस हादसे में समुद्र में फैले रसायन और नाइट्रिक एसिड ने तटीय पानी को जहरीला बना दिया। इसके चलते हजारों मछलियाँ मारी गई। साथ ही 417 ऑलिव रिडले कछुए, 48 डॉल्फिन, 8 नीली व्हेल और असंख्य समुद्री जीव तट पर मृत पाए गए।

आग से उठे जहरीले धुएँ में नाइट्रोजन ऑक्साइड और भारी धातुएँ थीं, जिसने कोलंबो की वायु गुणवत्ता खराब कर दी। इस प्रदूषण से सीग्रास, कोरल रीफ और प्लवक (प्लैंकटन) को गंभीर नुकसान पहुँचा, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ।

यह त्रासदी केवल समुद्र और हवा तक सीमित नहीं रही, बल्कि इंसानों और अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ी। प्रभावित इलाकों में एक साल से ज्यादा समय तक मछली पकड़ने पर रोक लगानी पड़ी। नतीजतन 20,000 से अधिक मछुआरे और उनके परिवार अपनी रोजी-रोटी खो बैठे।

इसके अलावा, प्रदूषित समुद्र तटों की वजह से पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ा। सिर्फ शुरुआती सफाई में ही 70 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 58 करोड़ रुपए) से ज्यादा खर्च हुए। मछुआरों को मुआवजा देने के लिए भी फंड जारी करना पड़ा। जब श्रीलंका पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उस समय इस हादसे ने हालात को और बिगाड़ दिया।

इस पूरे मामले में पर्यावरण संगठनों जैसे सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल जस्टिस (CEJ) और प्रभावित समुदायों ने श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने माँग की कि संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए। खासतौर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून (UNCLOS) के उस सिद्धांत का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि ‘प्रदूषक को ही भुगतान करना चाहिए।’

इसी बीच, जहाज एमवी एक्स-प्रेस पर्ल के रूसी कप्तान विटाली ट्यूटकालो को जून 2021 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें श्रीलंका से बाहर जाने से रोक दिया गया। कंपनी एक्स-प्रेस फीडर्स ने कप्तान की रिहाई के लिए जुर्माना चुकाने की पेशकश की, लेकिन श्रीलंकाई अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला और सिंगापुर स्थित एक्स-प्रेस फीडर्स द्वारा हर्जाना देने से इनकार

श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2025 में पाँच जजों वाली बेंच ने 361 पन्नों का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने एक्स-प्रेस फीडर्स और उसकी संबंधित कंपनियों (जिनमें ईओएस रो प्राइवेट लिमिटेड भी शामिल है) उसको जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इस हादसे ने समुद्री पर्यावरण को अभूतपूर्व तबाही दी और लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनी श्रीलंकाई सरकार को एक साल के भीतर शुरुआती 1 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 8400 करोड़ रुपए) मुआवजा दे। इसमें से 2.3 करोड़ डॉलर 23 सितंबर 2025 तक जमा कराने थे। अदालत ने यह भी कहा कि भविष्य में जरूरत पड़ने पर और भुगतान भी बहाली के लिए वसूला जा सकता है।

यह मुआवज़ा आर्थिक नुकसान, पारिस्थितिक तंत्र की बहाली और लंबे समय तक हुए नुकसान को ध्यान में रखकर तय किया गया। अदालत ने कंपनी की लापरवाही और खतरनाक माल की सही जानकारी न देने को गंभीर गलती माना।

इस फैसले को दुनियाभर में सराहना मिली और इसे वैश्विक जवाबदेही की दिशा में अहम कदम बताया गया। चार साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद यह फैसला न्याय की उम्मीद की तरह देखा गया था।

लेकिन अब मामला उलझ गया है क्योंकि एक्स-प्रेस फीडर्स ने यह रकम देने से साफ इनकार कर दिया है। कंपनी के सीईओ श्मूएल योसकोविट्ज़ ने एएफपी से कहा कि वह भुगतान नहीं करेंगे और अदालत के आदेश को लटकती हुई तलवार (हैंगिंग गिलोटीन) करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह फैसला वैश्विक शिपिंग उद्योग के लिए  खतरनाक मिसाल बनेगा और कंपनियों को असीमित जिम्मेदारी के खतरे में डाल देगा।

एक्स-प्रेस फीडर्स के सीईओ श्मूएल योसकोविट्ज़ ने साफ कहा कि उनकी कंपनी 1 अरब डॉलर का जुर्माना नहीं चुकाएगी। उन्होंने तर्क दिया कि समुद्री व्यापार की नींव सीमित जिम्मेदारी (Limitation of Liability) पर टिकी है और श्रीलंका सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस सिद्धांत को कमजोर करता है। उनके मुताबिक, अगर ऐसी मिसाल कायम हुई तो भविष्य में समुद्री हादसों के निपटारे पर खतरा मंडराएगा और बीमा प्रीमियम बढ़ेंगे, जिसका बोझ आखिरकार उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।

योसकोविट्ज ने हादसे के लिए माफी माँगी और कहा कि कंपनी पहले ही 170 मिलियन डॉलर मलबा हटाने, समुद्र व तट की सफाई और मछुआरों को मुआवज़ा देने पर खर्च कर चुकी है। उन्होंने कहा, “हम छुप नहीं रहे… हम और भुगतान करने को तैयार हैं, लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों के तहत तय होना चाहिए और अंतिम निपटान होना चाहिए। अदालत के आदेश की तरह ‘लटकती तलवार’ के नीचे काम करना असंभव है।”

अगस्त 2025 में कंपनी ने बयान जारी कर अदालत के फैसले पर नाराजगी जताई। कंपनी ने आरोप लगाया कि अदालत ने जहाज के रूसी कप्तान विटाली ट्यूटकालो और स्थानीय एजेंटों को मुकदमे पूरे होने से पहले ही अपराधी मान लिया। कप्तान जून 2021 से श्रीलंका में फंसे हैं और अदालत में न तो पेश हो पाए और न ही कानूनी प्रतिनिधित्व मिल पाया।

कंपनी ने यह भी कहा कि अदालत ने श्रीलंकाई अधिकारियों की भूमिका को नजरअंदाज किया, जबकि जहाज डूबने से एक हफ्ते पहले उनके ही विशेषज्ञों ने जहाज की जाँच की थी और कोई चेतावनी नहीं दी थी। साथ ही, कंपनी ने याद दिलाया कि जहाज ने मदद माँगी थी लेकिन कतर, भारत और श्रीलंका तीनों ने खतरनाक कंटेनर उतारने से इनकार कर दिया था।

ध्यान देने योग्य है कि जुलाई 2023 में लंदन की एडमिरल्टी कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून (1976 LLMC) के तहत कंपनी की जिम्मेदारी को सिर्फ 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 19 मिलियन पाउंड) तक सीमित कर दिया था। श्रीलंका ने इसके खिलाफ अपील की है।

साथ ही, श्रीलंकाई सरकार ने कंपनी पर सिंगापुर की इंटरनेशनल कमर्शियल कोर्ट में भी मुकदमा किया है, लेकिन यह मामला लंदन अपील पर टिका हुआ है। श्रीलंका के पास अदालत के आदेश को लागू करने के लिए सीमित विकल्प हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों पर संपत्ति जब्त करना, इंटरपोल नोटिस जारी करना, बीमा कंपनियों पर दबाव डालना या अधिकारियों के विदेश दौरे पर गिरफ्तारी। लेकिन सिंगापुर और श्रीलंका के बीच कोई पारस्परिक संधि (reciprocity treaty) नहीं होने के कारण विदेशी अदालतें इस फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका यह मुद्दा सरकार-से-सरकार स्तर पर उठा सकता है या फिर अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण (ITLOS) में ले जा सकता है, लेकिन वहाँ भी नतीजा तभी आएगा जब दोनों पक्ष सहमत हों, जो फिलहाल मुश्किल दिखता है।

हालाँकि समुद्र तट पर सफाई अभियान से हालात कुछ बेहतर दिख रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सूक्ष्म प्लास्टिक (microplastics) समुद्र तल और खाद्य श्रृंखला में दशकों तक बने रहेंगे। यह पूरा मामला दरअसल राष्ट्रीय पर्यावरणीय न्याय और अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के बीच की खींचतान को दिखाता है।

श्रीलंका पूर्ण जवाबदेही चाहता है, जबकि एक्स-प्रेस फीडर्स जवाबदेही तो दिखा रहा है, लेकिन अपनी शर्तों पर। अब देखना यह है कि असली न्याय मिलेगा या यह लड़ाई सालों तक खिंचती रहेगी।

(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रद्धा पांडे ने लिखी है। इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है)

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