बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने है। पक्ष-विपक्ष अपने-अपने हथियारों को धार देने में जुटा है। मीडिया में भी बिहार को लेकर राजनीतिक साक्षात्कारों का सीजन लौट आया है। इसी कड़ी में बिहार के विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सामाचार एजेंसी ANI से करीब 57 मिनट की लंबी बातचीत की है।
इस दौरान तेजस्वी यादव ने बीजेपी नीत एनडीए से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाए। बिहार के हालात को बदतर बताने की कोशिश की। यह भी दावा किया कि 2020 का चुनाव राजद को धांधली से हराया गया था और इस बार उनकी पार्टी का बिहार की सत्ता में आना तय है।
इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है। चुनावी मौसम में हर पार्टी/नेता अपने विरोधियों को नकारा बताते हैं। जब तक अंतिम नतीजे नहीं आते हर पार्टी/नेता अपनी जीत के दावे करती है। चुनाव के बाद हार का ठीकरा फोड़ने के लिए बकरा खोजते हैं।
इस साक्षात्कार के दौरान तेजस्वी यादव ने मीडिया पर भी निशाना साधा, जो भारत की राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद से विपक्षी नेताओं के लिए सबसे जरूरी कार्यों में से एक बन चुका है। तेजस्वी यादव ने नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत से लेकर बिहार के जंगलराज तक का ठीकरा मीडिया पर फोड़ने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि मीडिया गुलाम हो चुकी है और उसके प्रोपेगेंडा से बीजेपी जीत रही है। जब उनसे पूछा गया कि बिहार से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक ने उनसे कब अनफेयर ट्रीटमेंट किया तो जवाब में तेजस्वी यादव ने कहा कि राजद की जब भी सरकार आती है तो कॉकरोच की मौत को भी बड़ा बनाकर दिखाया जाता है। आज अपराध हो रहे हैं, लेकिन कोई उसे जंगलराज नहीं बोलता है।
तेजस्वी यादव का यह भी कहना था कि कोई भी घटना होने पर अपराधी को राजद और उसके लोगों से जोड़ दिया जाता है। उसे लालू यादव और तेजस्वी यादव का करीबी बताकर मीडिया दिखाती है। उन्होंने कहा कि राजद की सरकारों को मीडिया ‘महाजंगलराज’ बातकर पेश करती है। कहा जाता है कि उस समय लोग बाहर नहीं निकलते थे। उन्हें उठा लिया जाता था।
आगे तेजस्वी यादव कहते हैं कि कानून-व्यवस्था की स्थिति की तुलना आँकड़ों के आधार पर ही हो सकती है। यदि राजद सरकारों से एनडीए सरकार के समय के अपराध के आँकड़ों की तुलना की जाए तो पता चलता है कि नीतीश कुमार के राज में अपराध सबसे बेलगाम है। लेकिन मीडिया सवाल नहीं पूछ रहा।
आप नीचे लगे वीडियो में 12 मिनट से लेकर 17 मिनट 40 सेकेंड के बीच यह पूरी बातचीत सुन सकते हैं।
जंगलराज बिहार का भयावह अतीत है
जंगलराज- एक ऐसा शब्द है, जिसका बिहार की राजनीति में बार-बार लगातार इस्तेमाल होता है। 1990 से 2005 तक का वह शासनकाल जब तेजस्वी यादव के माता-पिता लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री रहीं, उस कार्यकाल को ‘जंगलराज’ कहा जाता है।
उस दौर में बिहार ने जातीय नरसंहार का भयावह सिलसिला देखा। ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा सुना। अपहरण को ‘उद्योग’ बनते देखा। एक मुख्यमंत्री की बेटी की शादी में शो रूम लूटते और भय से कारोबारियों को बिहार छोड़कर भागते देखा। रोजी-रोजगार से लेकर शिक्षण-स्वास्थ्य संस्थानों को मरते देखा। हेमा मालिनी के गालों की तरह सड़क बनाने का वादा करने वालों के राज में गड्ढों वाली सड़क पर जनता को हिचकोले खाते देखा। लालटेन वाला अंधकार युग देखा है।
सीवान के चंदा बाबू नाम के एक पिता के दो बेटों को तेजाब से नहलाने और एक को गोली मरवा देने वाला राजद का नेता देखा। राजद के उस विधायक को भी देखा जो एक दलित बच्ची को उसके घर से उठाकर अपनी जीप में डालता है। उससे रेप करता है। उसी दौर में IAS अधिकारी बीबी विश्वास की पत्नी, माँ, भतीजी का लगातार दो साल तक यौन शोषण किया गया। जब मामला सामने आया तो आरोपित को बचाने में पूरी सरकार को लगते देखा।
एएनआई को दिए इंटरव्यू में तेजस्वी यादव जंगलराज को झुठलाने की कोशिश करते हुए उदाहरण देने की बात करते हैं। ऊपर मैंने चंद घटनाओं के बारे में बताया है। पर ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त इतनी लंबी और भयावह है कि मेरी उँगलियाँ थक जाएँगी, की बोर्ड दबाव से उखड़ जाएँगे, पढ़ते-पढ़ते आपकी आँखें धँस जाएँगी, लेकिन जंगलराज की वे घटनाएँ खत्म नहीं होंगी जो दर्ज हैं और उनसे अधिक जो कहीं दर्ज ही नहीं हुईं।
तेजस्वी यादव को बताना चाहिए कि इनमें से कौन सी घटना कॉकरोच का मरना है। या फिर इनमें से कौन सी घटना को अंजाम देने वालों का राजद से लिंक नहीं रहा है, बल्कि वे कॉकरोच थे।
क्या आँकड़ों की बात करने से धुल जाएगा जंगलराज?
यह सत्य है कि नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में अपराध पर जिस तरह अंकुश लगाया था, जैसे अपराधियों का दमन किया था, बाद में वैसा नहीं दिखा। इसकी सबसे बड़ी वजह नीतीश कुमार का दो मौकों पर राजद के साथ मिलकर सरकार बनाना भी है।
यह भी सच है कि बिहार पुलिस के पास दर्ज अपराधों की संख्या को एकमात्र मानक मान लिया जाए तो लालू-राबड़ी के 15 साल के मुकाबले संख्या कहीं अधिक दिखती है। पर यह अधूरा सत्य है। मीडिया और खासकर सोशल मीडिया के विस्तार से अब किसी अपराध को दफन कर देना आसान नहीं रहा। लोग मामले दर्ज कराने थाने तक पहुँच रहे हैं। बिहार ही नहीं अन्य राज्यों में भी इस पैमाने पर आपको नंबर अधिक ही देखने को मिलेंगे।
पर जंगलराज केवल अपराध की संख्या से नहीं आता। आँकड़ों में चंदा बाबू के तीन बेटों का मारा जाना तो केवल तीन हत्या के रूप में दर्ज है। लेकिन, क्या यही आँकड़े यह भी बताते हैं कि उन्हें किस बेरहमी से मारा गया था? चंदा बाबू ने किस भय में जिंदगी गुजारी? इस घटना ने कितने माँ-बाप को डराया ? इसने कितने शहाबुद्दीन को कानून को रौंद देने की छूट दी?
डाटा भले यह बता दे कि कितनी हत्या हुई। कितने किडनैप किए गए। लेकिन, क्या उससे यह भी पता चलेगा कि उस दौर में हत्या और अपहरण एक ‘उद्योग’ बन चुका था? एक कारोबार था, पैसे कमाने का एक जरिया था? राजनेताओं, अधिकारियों और माफियाओं का ऐसा गठजोड़ इसके पहले कहीं देखा ही नहीं गया था? और सबसे बड़ी बात अपराध का साम्राज्य शहाबुद्दीन जैसे गुंडों और ‘सालों’ के भरोसे चलता था?
बाथे नरसंहार हो या अन्य जातीय नरसंहार, डाटा में वह केवल चंद लोगों की हत्या कही जाएगी। लेकिन इसने भूमिहारों का जनमानस किस वृहद रूप से प्रभावित किया, वह डाटा से सामने नहीं आएगा। ‘भूरा बाल साफ करो’ के नारे से सवर्णों में पैदा हुआ डर आँकड़े नहीं बताते। डाटा नहीं बताता कि बिहार में लोगों ने अपना सरनेम छिपाना शुरू कर दिया था।
मीडिया का गढ़ा नहीं है जंगलराज
ANI को दिए साक्षात्कार में तेजस्वी यादव यह बताने की कोशिश करते हैं कि ‘जंगलराज’ मीडिया का गढ़ा प्रपंच है। वह यह भी बताने की कोशिश करते हैं 2014 से पहले मीडिया दूध की धुली थी। वास्तविकता यह है कि 2014 से पहले भी मीडिया चारा घोटाले के सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव पर ‘मेहरबान’ थी, आज भी है।
मुख्यधारा की मीडिया हो या लिबरल वामपंथी गैंग उसने पहले लालू यादव की सामाजिक न्याय के मसीहा के तौर पर छवि गढ़ने की कोशिश की। उसे राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की। बाद में इस लालू यादव की ‘मैनेजमेंट गुरु’ के तौर पर ब्रांडिंग की कोशिश की। यह मीडिया इतनी दरबारी रही है कि वह लालू यादव के कुर्ता फाड़ हुड़दंग को ही होली मानती थी।
यह बिहारियों का जीवट था कि इन छवियों के सामने उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे जंगलराज की हर एक पीड़ा लेकर सामने आए। उन्होंने कानूनी लड़ाइयाँ लड़ी। सोशल मीडिया ने उन्हें दफन कर दी गई घटनाओं को फिर से सामने लाने का मंच दिया। फिर मीडिया गैंग भी ‘जंगलराज’ के सत्य को स्वीकार करने के लिए मजबूर हुई।
तेजस्वी यादव को तो इस मीडिया का शुक्रगुजार होना चाहिए, क्योंकि वह उनमें भी बिहार का भविष्य देखती है। वह उनके जंगलराज के दाग धोने की हरसंभव कोशिश करती है। अपराध के आँकड़े सामने रखकर यह जताने की कोशिश करती है कि जिसे जंगलराज कहा जाता है वो असल में ‘शांति के दिन’ थे।
पर तेजस्वी यादव का दुर्भाग्य यह है कि जंगलराज का सत्य बिहार के भीतर इतने गहरे तक धँसा है कि वह इन थोथले कु(तर्कों) के झाँसे में नहीं आता। लालू यादव के पूरे कुनबे के इसी दुर्भाग्य में बिहार का ‘सौभाग्य’ छिपा है।