अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) पर जब मैं टीवी, समाचार और सोशल मीडिया के माध्यम से चारों ओर लाखों-करोड़ों लोगों को एक साथ योग करते देखती हूँ, तो मेरे स्कूल के दिन आँखों के सामने तैर जाते हैं। यह नज़ारा अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी योग का जलवा है।
मेरे लिए यह किसी अद्भुत कहानी से कम नहीं, क्योंकि आज से 10-15 साल पहले योग को उस नजरिए से देखा ही नहीं जाता था, जैसा आज इसे देखा जा रहा है। 1 दशक पहले जहाँ योग को ऋषि मुनियों की तपस्या का हिस्सा माना जाता था, वहीं आज इसे जन-जन की जरुरत और दिनचर्या माना जा रहा है।
कुछ लोग योग को एक धंधा बना चुके हैं, वहीं बड़ी सँख्या में लोग इसे सकारात्मक रूप से अपनाकर दूसरों को जागरूक करने में लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस योग दिवस पर 40 देशों के करीब 3 लाख लोगों के साथ मिलकर योग किया। लेकिन मैं पीएम मोदी की एक बात से बिल्कुल सहमत हो चुकी हूँ। पीएम ने संदेश दिया कि योग की कोई सीमा नहीं है, यह सभी का है और सभी के लिए है, और अशांत दुनिया में शांति का रास्ता दिखाता है।
पहले और अब के योग में बड़ा अंतर: मेरी नज़र से
मुझे आज भी याद है, जब मैं छठी से 12वीं क्लास तक स्कूल में योग करती थी और प्रतियोगिताओं में सर्टिफिकेट भी जीतती थी। तब योग मेरे लिए बस एक ‘विषय’ था – पढ़ाई-लिखाई का एक हिस्सा, जिससे मैं सक्रिय रहती थी, मेरा शरीर स्वस्थ रहता था, दिमाग तेज होता था और चेहरे पर चमक भी आती थी। मेरी मासूम सी सोच थी कि योग से बस चर्बी नहीं बढ़ती और लंबी उम्र तक जवान रहा जा सकता है।
लेकिन उस दौर में समाज में योग को लेकर आज जैसी जागरूकता नहीं थी। लोग इसे ज्यादातर ऋषि-मुनियों की साधना या कुछ खास, आध्यात्मिक लोगों का काम मानते थे। आम आदमी के लिए योग करना कई बार एक मुश्किल या बोझ जैसा लगता था।
एक दशक पहले योग के फायदे इतने खुलकर सामने नहीं आए थे, और न ही लोग इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने के लिए इतने उत्सुक थे।
योग क्रांति: एक वैश्विक आवश्यकता और नए अवसर
फिर आया ‘योग क्रांति’ का दौर। 21 जून 2015 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की पहल की, तब से योग के प्रति लोगों की सोच में सचमुच एक बड़ा बदलाव आया है।
आज योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवनशैली बन गया है। अब यह किसी मजबूरी की तरह नहीं, बल्कि हमारे स्वस्थ रहने के लिए एक बड़ी आवश्यकता के रूप में देखा जाता है। पहले जहाँ योग कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित था, आज यह एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है।
पीएम मोदी की इस पहल का ही नतीजा है कि आज दुनिया के कोने-कोने में, पहाड़ों से लेकर समंदर तक, लोग योग का अभ्यास कर रहे हैं। पीएम मोदी ने बताया कि जब उन्होंने 2015 में इस दिवस की बात की थी, तब 175 देश उनके साथ खड़े थे। आज उन्हें खुशी है कि योग लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया है।
अब तो दिव्यांग साथी ब्रेल में योग शास्त्र पढ़ा रहे हैं, और गाँवों में भी लोग योग ओलंपियाड में भाग ले रहे हैं। योग का महत्व कोविड महामारी के दौरान और भी स्पष्ट हुआ। लोगों ने तन-मन को स्वस्थ रखने के लिए इसमें विश्वास जताया।
लॉकडाउन के बाद, पार्कों में योग कक्षाओं की संख्या बढ़ी, और कई योग केंद्र ऑनलाइन व ऑफलाइन मोड में सामने आए। इससे न केवल लोगों को फिट रहने में मदद मिली, बल्कि योग एक करियर और रोजगार के बड़े क्षेत्र के रूप में भी उभरा है।
दीप्ति कुलश्रेष्ठ और प्रीति वर्मा जैसी योग शिक्षिकाएँ, जो वर्षों से इस क्षेत्र में हैं, बताती हैं कि पीएम मोदी के प्रयासों से योग को आज जो लोकप्रियता मिली है, वह अभूतपूर्व है। लोग अब योग को पुरानी बात नहीं मानते, बल्कि इसकी ज़रूरत महसूस कर रहे हैं। यहाँ तक कि जनसंपर्क जैसे अन्य क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी अब योग कक्षाएँ दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें इसमें अपार संभावनाएँ दिख रही हैं।
योग: स्वास्थ्य, पहचान और कमाई का जरिया
आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया पर योग वीडियो की बाढ़ आ गई है। लोग योग करके अपनी दिनचर्या साझा कर रहे हैं, दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं, और बहुत से लोग इसे कमाई का जरिया भी बना रहे हैं। योग अब ‘मी टू वी’ (मैं से हम तक) के भाव को समझा रहा है, जहाँ यह एक व्यक्तिगत अभ्यास से बढ़कर वैश्विक साझेदारी का माध्यम बन रहा है। भारत अपने योग विज्ञान को आधुनिक रिसर्च से जोड़कर इसका और प्रचार-प्रसार कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान है कि हम सब मिलकर योग को एक जन आंदोलन बनाएँ। एक ऐसा आंदोलन जो दुनिया को शांति, स्वास्थ्य और समरसता की ओर ले जाए। जहाँ हर व्यक्ति योग से अपने दिन की शुरुआत करे और