उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मंगलवार (5 अगस्त 2025) को बादल फटने से आई भयावह बाढ़ ने कई इलाकों को तहस-नहस कर दिया। गंगोत्री के पास बसे गाँव धराली में तबाही सबसे ज्यादा देखने को मिली। यहाँ लोगों के घर, जीवन और रोजगार सब पानी में बह गए। इस भयानक मंजर का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसने हर किसी को दुखी कर दिया। जहाँ देश के ज्यादातर लोगों ने इस आपदा पर दुख और संवेदना जताई, वहीं कुछ इस्लामी कट्टरपंथी सोशल मीडिया यूजर्स ने इस त्रासदी का मजाक उड़ाया।

अली सोहराब, करिश्मा अजीज जैसे लोग और उनके समर्थकों ने इस दर्दनाक घटना पर खुशी जताई। उन्होंने इसे ‘कुदरत का बुलडोजर’ बताया। धराली में आम लोगों के घर-सम्पत्ति बर्बाद होने और जानें जाने पर असंवेदनशील रवैया दिखाते हुए यह इस्लामी कट्टरपंथी अपनी घृणा का प्रदर्शन करते रहे।

देवभूमि उत्तराखंड में हाल के महीनों में राज्य सरकार ने अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। खासतौर पर उन जगहों पर कार्रवाई हुई जहाँ बिना अनुमति के मजहबी ढाँचे खड़े किए गए थे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने बुलडोजर चलाकर सार्वजनिक जमीनें खाली कराईं। कई जगह मजार-मदरसे तोड़े गए।

ये कार्रवाई कुछ इस्लामी कट्टरपंथियों को पसंद नहीं आई। यही लोग इस प्राकृतिक आपदा को ‘अल्लाह का बदला’ बताकर पेश कर रहे हैं। किसी ने ट्वीट किया, “ये आपदा है या बुलडोजर चल रहा है?” एक और ने लिखा, “खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।” ये सब बातें सीधे-सीधे एक मजहबी बहाने से मानव त्रासदी का मजाक उड़ाना है।

इन प्रतिक्रियाओं की जड़ उस मानसिकता में है जहाँ कुछ लोग खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। सालों तक चली तुष्टिकरण की राजनीति ने कुछ मुस्लिम वर्गों को ये यकीन दिला दिया कि उनको कोई भी कानून तोड़ने का अधिकार है। लेकिन जब मोदी सरकार और उत्तराखंड की धामी सरकार ने कानून को सब पर बराबर लागू किया, तो यह लोगों को चुभने लगा।

इस्लामी कट्टरपंथी कानूनी कार्रवाई को दमन बताते हैं। यही वजह है कि जब देवभूमि में बाढ़ आई, तो उन्होंने इसे ‘अल्लाह का बदला’ कहकर पेश किया, क्योंकि वहाँ की सरकार ने अवैध निर्माण गिराए थे। उनके हिसाब से यह उन पर हुए दमन का हिसाब हो रहा था।

यह सोच वही है जिसने देश के बँटवारे को जायज बताया, दंगों में तालियाँ बजाईं और आतंकवादियों तक के लिए सहानुभूति जताई। इन लोगों को सिर्फ वही बातें सही लगती हैं जो उनके मजहबी एजेंडे को पूरा करती हैं।

सबसे शर्मनाक बात ये है कि तथाकथित ‘सेकुलर’ या ‘उदारवादी’ आवाजें इस पर खामोश हैं। अगर कोई हिंदू इस तरह मुस्लिम आबादी वाले इलाके की किसी त्रासदी पर खुशी जताता, तो हर चैनल, हर मँच पर हंगामा होता। लेकिन जब हिंदुओं के दुख पर जश्न मनाया जाता है, तो सब चुप हो जाते हैं।

ये लड़ाई किसी मजहब के खिलाफ नहीं है, ये लड़ाई उस जहरीली सोच के खिलाफ है जो मानवता को बाँटती है और त्रासदी को मजाक का जरिया बनाती है। ऐसे समय में जब पूरे देश को एकजुट होकर पीड़ितों के लिए खड़ा होना चाहिए, तब इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसे बदला और अल्लाह का बदला दिखाने का हथियार बनाना चुना है।

जिस ख़ुशी के साथ वे मृत्यु का जश्न मनाते हैं, वह उनके वैचारिक दिवालियापन का आईना है और बाकी देश के लिए एक चेतावनी है। जब किसी की मौत पर कोई हँसे, तो समझ लीजिए कि हम सिर्फ डिजिटल नफरत नहीं देख रहे, ये हमारी आत्मा पर हमला है।

क्योंकि जब इंसानियत मरने लगे और मौत पर ताली बजाई जाए, तब हम सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं बल्कि उस विचारधारा से जूझ रहे होते हैं जो देश की आत्मा को ही नष्ट करना चाहती है।

मूल रूप से यह रिपोर्ट जिनित जैन ने अंग्रेजी में लिखी है, इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

Source link

Search

Categories

Recent Posts

Tags

Gallery