मोदी किसान

1960 के दशक में देश अनाज की भयानक कमी से जूझ रहा था। बड़ी आबादी विदेशों से आने वाली मदद पर निर्भर थी। सूखे और उत्पादन में कमी ने समस्या को विकराल बना दिया था। तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। इसके बाद देश का खाद्य उत्पादन सेक्टर बदल गया। हमारे किसान आत्मनिर्भर हो गए। PM शास्त्री के 6 दशकों के बाद भारत को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जिसने किसानों के हितों के लिए अमेरिका से लड़ाई मोल ले ली है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसानों और पशुपालकों के हितों से समझौता नहीं करने वाले हैं। नई दिल्ली में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने बिना ट्रंप या टैरिफ का जिक्र किए हुए कहा, “किसानों का हित हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। और मुझे पता है कि इसके लिए मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं तैयार हूँ।”

PM मोदी ने कहा कि देश के किसानों, मछुआरों और पशुपालकों के हित में भारत तैयार है। उनके इस बयान ने स्पष्ट कर दिया कि भारत का किसानों को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर क्या रवैया रहने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है। अमेरिका ने यह टैरिफ दो किश्तों में लगाए हैं। अमेरिका का कहना है कि रूस से तेल खरीद के चलते भारत पर यह टैरिफ लगाए गए हैं।

दूध के सौदे’ से मोदी सरकार ने किया इनकार

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यह भी कहा है कि वह आने वाले समय में टैरिफ की दरें और बढ़ाएंगे। अमेरिका का भारत पर टैरिफ लगाने का फैसला व्यापार समझौते की बातचीत टूटने के बाद सामने आया। बीते लगभग 3-4 महीनों से यह बातचीत चल रही थी। इसलिए लिए भारतीय और अमेरिकी अधिकारी पाँच बार मिल चुके थे। समझौते की अधिकांश बातों पर दोनों पक्ष सहमत भी थे। यहाँ तक कि यह उम्मीद भी जताई गई थी कि अमेरिका के 15% टैरिफ पर भारत के साथ समझौता हो जाएगा।

यह समझौता 1 अगस्त के पहले होना था। हालाँकि, भारत इसमें कुछ चीजों पर अड़ गया और उसने इनके बिना समझौता करने से इनकार कर दिया। इसके चलते अंतिम मौके पर ट्रेड डील टूट गई। सामने आई जानकारी के अनुसार, अंतिम मौके तक सारी बातें तो तय हो गईं थी लेकिन पूरा मामला डेयरी और कृषि सेक्टर पर फँसा हुआ था। मोदी सरकार ने अमेरिका से साफ़ कर दिया कि वह डेयरी और कृषि क्षेत्र में कोई भी रियायतें नहीं देगी।

अमेरिका लगातार यह चाहता था कि उसके यहाँ उत्पादित दूध और कृषि उत्पाद भारत में बेचे जाए। SBI की एक रिपोर्ट बताती है कि यदि अमेरिकी कम्पनियों को भारत में डेयरी क्षेत्र में खुला एक्सेस दे दिया जाता तो इससे देश में दूध की कीमतें 15% तक गिर सकती थीं। इसके चलते भारतीय दूध उत्पादकों को ₹1 लाख करोड़ तक का नुकसान होता। इससे दूध का आयात 250 लाख टन/वर्ष बढ़ जाता। भारतीय डेयरी उत्पादकों को लागत निकालने में भी समस्या आती और पहले से स्थापित डेयरी चलाने में मुश्किल होती।

इससे भारत में 8 करोड़ डेयरी उत्पादकों के रोजगार पर खतरा मंडराने लगता और बड़ी समस्याएँ खड़ी होतीं। यही नहीं दूध की कीमतों में गिरावट सीधे तौर पर भारतीय गायों की नस्लों को तक प्रभावित करती। भारत ने अमेरिका की डेयरी पर जिद मानने से इसलिए भी इनकार कर दिया क्योंकि वह अपने यहाँ इस सेक्टर को 30 बिलियन डॉलर (लगभग ₹2.5 लाख करोड़) तक की सब्सिडी देता है। इसमें से ₹85 हजार करोड़ तो सीधे तौर पर दूध उत्पादकों को दी जाती हैं।

इस फायदे को लेकर अमेरिकी डेयरी उत्पादक भारत आते और भारतीय उत्पादकों से सस्ता दूध बेच कर उन्हें धंधे से बाहर करते। यह मोदी सरकार को नहीं मंजूर हुआ, उसने इसके चलते यहाँ समझौते से इनकार का दिया और मेज पर रखी ट्रेड डील को ठुकराने में भी हिचक नहीं दिखाई। उसने ट्रंप सरकार को स्पष्ट कर दिया कि वह भारतीय पशुपालकों के हितों को सबसे ऊपर रखेगी ना कि अमेरिकी कारोबारी घरानों को।

किसानों के हितों के चलते नहीं की डील

मोदी सरकार ने डेयरी के साथ ही किसानों के हितों को भी सबसे ऊपर रखा। ट्रेड डील के लिए अमेरिका भारत के खाद्य बाजार में भी एंट्री चाहता था। अमेरिका भारत में सेब, बादाम और GM फसलें बेचना चाहता था। भारत ने लगातर GM फसलों का विरोध किया है। अमेरिका के भारत में इन उत्पादों को आयात करने से छोटे किसान प्रभावित होते। भारत में सेब जैसे फल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के छोटे किसान उगाते हैं। अमेरिका में यही काम बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ करती हैं।

ऐसे में इनकी भारतीय बाजार में एंट्री ना सिर्फ छोटे किसानों के लिए हानिकारक होती बल्कि इससे देश में रोजगार का संकट भी पैदा हो सकता था। भारत में अब भी लगभग 70 करोड़ लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का लगभग 20% कृषि क्षेत्र से आता है। इसके अलावा अमेरिका यहाँ के बाजार में GM फसलें भी बेचना चाहता है। भारत ने वर्षों से GM फसलों को स्वास्थ्य और पर्यावरण चिंताओं के चलते रोक रखा है।

भारत कई विदेशी खाद्य उत्पादों पर 150% तक की इम्पोर्ट ड्यूटी लगाता है। इससे वह अपने यहाँ किसानों के हितों को प्रभावित होने से रोकता है। यही कदम उसने अमेरिका से डील के मामले में उठाया। भारत ने स्पष्ट किया कि वह बड़े टैरिफ और लाखों करोड़ के व्यापार घाटे को लेकर तो चीजें झेल सकता है लेकिन किसानों और डेयरी उत्पादकों के हितों को प्रभावित नहीं होने देना चाहता है, क्योंकि इससे जुड़े लोग ही भारत की आत्मा हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने यहाँ तक स्पष्ट किया कि वह इसके लिए ‘बड़ी कीमत’ चुकाने को तैयार हैं।

सम्मान निधि से MSP तक: मोदी सरकार किसानों के लिए करती रही है काम

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी टैरिफ केचलते किसानों के हितों की बात की हो, ऐसा कुछ नहीं है। मोदी सरकार जबसे सत्ता में आई है, उसने किसानों के भले के लिए कई कदम उठाए हैं। मोदी सरकार ने फसलों की MSP को लेकर अभूतपूर्व बढ़ोतरी की है। उदाहरण के लिए धान की MSP 2013-14 में ₹1310 थी जो 2024-25 में बढ़ कर ₹2300 से अधिक हो गई। इस प्रकार इन दामों में लगभग 80% की बढ़त की गई।

2014 तक देश में लगभग ₹4 लाख करोड़ की ही फसलें सरकार खरीद रही थी। मोदी सरकार में यह 4 गुना हो कर ₹16 लाख करोड़ पहुँच चुकी है। इसके अलावा मोदी सरकार ने किसानों को सीधा नकद लाभ भी दिया है। मोदी सरकार ने 2019 से 2025 के बीच किसानों को ₹3.69 लाख करोड़ सम्मान निधि के रूप में दिए हैं। यह पैसे किसानों को खाद-बीज खरीदने में काम आते हैं। देश में लगभग 10 करोड़ किसान इसका लाभ ले रहे हैं।

इसके अलावा मोदी सरकार ने किसानों के क्रेडिट कार्ड की सीमा भी बढ़ाई है। नैनो यूरिया जैसी कई सुविधाएँ दी हैं। ऐसे में चाहे सामने अमेरिका हो या कोई और ताकत, भारत किसानों के हित में हमेशा खड़ा मिलेगा।



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