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कनाडा की रिपोर्ट में खालिस्तानी संगठनों को विदेशों से फंडिंग मिलने का खुलासा

भारत लंबे समय से यह आरोप लगाता रहा है कि खालिस्तानी कट्टरपंथी संगठनों को विदेशों से, खासकर कनाडा से, आर्थिक मदद मिलती है। अब पहली बार खुद कनाडा की आधिकारिक रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि कर दी है।

कनाडा की खुफिया एजेंसी Assessment of Money Laundering and Terrorist Financing Risks in Canada की ताजा रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि खालिस्तानी संगठन न केवल कनाडा में सक्रिय हैं, बल्कि उन्हें विदेशों से लगातार आर्थिक सहयोग भी मिल रहा है। उनकी तरफ से यह स्वीकार करना भारत के उस दावे को मजबूत करता है, जिसमें कहा गया था कि कनाडा खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई करने में नाकाम रहा है।

नई रिपोर्ट में क्या है खास

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले कनाडा में खालिस्तानी संगठनों का एक बड़ा फंडरेजिंग नेटवर्क था। समय के साथ यह नेटवर्क छोटे-छोटे समूहों और व्यक्तियों तक सिमट गया है। ये लोग भले ही किसी विशेष संगठन से जुड़े न हों, लेकिन खालिस्तान आंदोलन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और आर्थिक सहयोग इस पूरे नेटवर्क को जिंदा रखने का काम कर रहा है।

रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि कनाडा समेत कई देशों से इन संगठनों को लगातार फंडिंग हो रही है। यही वजह है कि भारत में खालिस्तान समर्थक हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने की लगतार कोशिश कर रहे हैं।

पुख्ता सबूतों की बात

कनाडा के आपराधिक कानून (Criminal Code) के तहत कई संगठनों को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है। इसमें हमास, हिजबुल्लाह, बब्बर खालसा इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन जैसे संगठन शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इन संगठनों को कनाडा से वित्तीय मदद मिलने के सबूत खुफिया एजेंसियों और कानून प्रवर्तन इकाइयों ने जुटाए हैं। यानी अब यह बात केवल आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि आधिकारिक रूप से दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं कि कनाडा की धरती का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है।

खलिस्तानियों पर भारत का दावा सही साबित

भारत वर्षों से कहता रहा है कि कनाडा खालिस्तानी तत्वों को खुली छूट देता है। भारतीय अधिकारियों का कहना था कि वहाँ से न केवल फंडिंग होती है बल्कि प्रचार-प्रसार और राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिशें भी होती हैं।

इस मुद्दे को लेकर भारत और कनाडा के बीच कई बार तल्ख बयानबाज़ी हुई। अब जब कनाडा की अपनी एजेंसी ने स्वीकार किया है कि यह नेटवर्क मौजूद है और सक्रिय भी है, तो भारत का दावा पूरी तरह सही साबित होता है।

कनाडा ने अपनी जमीन पर खालिस्तानी गतिविधियों की मौजूदगी मानी

दिलचस्प बात यह है कि कनाडा की खुफिया एजेंसी की इस रिपोर्ट ने यह भी स्वीकार किया है कि उसकी धरती से खालिस्तानी कट्टरपंथी सक्रिय हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 1980 के दशक से ही कनाडा स्थित खालिस्तानी समूह पंजाब में अलग सिख राज्य की माँग के लिए हिंसक तरीकों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं।

भारत लंबे समय से इस खतरे की तरफ ध्यान दिला रहा था, लेकिन कनाडा की सरकारें अक्सर इसे नजरअंदाज करती रहीं। खासकर पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर यह आरोप लगता रहा कि उन्होंने खालिस्तानी समर्थकों को राजनीतिक वजहों से नजरअंदाज किया।

कनाडा का दोहरा रवैया और कूटनीतिक संकट

रिपोर्ट में एक और अहम बात सामने आई। रिपोर्ट में जहाँ खालिस्तानी तत्वों की मौजूदगी और फंडिंग का सच स्वीकार किया, वहीं उसने भारत पर भी आरोप लगाया कि वह कनाडा में हस्तक्षेप और जासूसी करता है। रिपोर्ट में भारत का नाम चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ ‘विदेशी हस्तक्षेप के प्रमुख आरोपितों’ में शामिल किया गया है।

यानी एक तरफ तो कनाडा यह मान रहा है कि खालिस्तानी आतंकवाद उसकी जमीन से पनप रहा है, दूसरी तरफ भारत पर हस्तक्षेप का आरोप लगाकर कूटनीतिक संतुलन बनाने की कोशिश भी कर रहा है। यह दोहरी स्थिति कनाडा को उलझन में डाल रही है।

निज्जर मामले से भारत-कनाडा के रिश्तों पर पड़ा असर

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब भारत और कनाडा के रिश्ते हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ठंडे पड़े थे। कनाडा ने इस मामले में भारत पर आरोप लगाया था, लेकिन भारत ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया। अब जब सीएसआईएस ने आधिकारिक तौर पर खालिस्तानी गतिविधियों की मौजूदगी स्वीकार कर ली है, तो यह कनाडा के लिए असहज स्थिति है।

हाल ही में जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के बीच मुलाकात हुई। दोनों देशों ने रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए नए उच्चायुक्त नियुक्त करने और व्यापार वार्ता फिर से शुरू करने पर सहमति जताई। ऐसे में यह रिपोर्ट दोनों देशों के बीच बातचीत का अहम मुद्दा बन सकती है।

खलिस्तानी गतिविधियों से खतरा अब भी बरकरार

रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि आतंकवादी संगठनों के लिए विदेशों से मिलने वाला आर्थिक सहयोग उनकी गतिविधियों को जिंदा रखने का सबसे बड़ा साधन है। खालिस्तानी समूह भी इसी तरह प्रवासी समुदायों और गैर-लाभकारी संस्थाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। कनाडा के सामने अब यह चुनौती है कि वह अपने लोकतांत्रिक ढांचे और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए कैसे इन कट्टरपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाए।



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