राफेल फाइटर जेट

भारतीय वायुसेना (IAF) ने एक बार फिर फ्रांस से और राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए जोरदार माँग उठाई है। यह माँग उसकी लंबे समय से लटकी हुई 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) परियोजना के तहत है, जिसमें ज्यादातर विमान भारत में ही विदेशी सहयोग से बनाए जाने हैं।

वायुसेना जल्द ही इस परियोजना को शुरू करने के लिए रक्षा खरीद परिषद (DAC) से प्रारंभिक मंजूरी (AoN) माँगेगी, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करते हैं। सूत्रों के मुताबिक, यह मंजूरी अगले एक-दो महीनों में मिल सकती है।

हालाँकि सवाल ये है कि ये माँग आखिर उठ क्यों रही है? भारतीय वायुसेना को किस चीज की कमी है? इस माँग को पूरा करने में कितना खर्च आएगा? और वायुसेना के सामने किस तरह की चुनौतियाँ हैं, आईए… आसान तरीके से समझते हैं।

राफेल से जुड़ा क्या है ये पूरा मामला

बीते कुछ सालों से भारतीय वायुसेना की ताकत कम हो रही है। अभी वायुसेना के पास 31 फाइटर स्क्वाड्रन (16-18 विमानों की टुकड़ी) हैं, जो अगले महीने पुराने मिग-21 विमानों के रिटायर होने के बाद 29 तक सिमट जाएँगे। यह अब तक का सबसे निचला स्तर होगा।

वायुसेना को 42.5 स्क्वाड्रन की जरूरत है, ताकि वह पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से एक साथ होने वाली चुनौतियों का सामना कर सके। इस कमी को पूरा करने के लिए वायुसेना चाहती है कि फ्रांस से और राफेल विमान खरीदे जाएँ, जो 4.5वीं पीढ़ी के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं।

यह माँग हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर (7-10 मई 2025) के बाद और तेज हो गई है। इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए थे। इन हमलों में राफेल विमानों ने लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी ताकत और उपयोगिता साबित हुई। लेकिन इस ऑपरेशन ने यह भी दिखाया कि अगर भारत को भविष्य में ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, तो उसके पास पर्याप्त आधुनिक विमान नहीं हैं।

वायुसेना को क्यों है इतने सारे राफेल की जरूरत

भारत के सामने दो बड़े खतरे हैं: पाकिस्तान और चीन। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने चीनी मूल के J-10 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया, जो PL-15 मिसाइलों से लैस थे। ये मिसाइलें 200 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तक मार कर सकती हैं। इसके अलावा खबर है कि चीन जल्द ही पाकिस्तान को 40 J-35A स्टील्थ फाइटर जेट्स देने वाला है, जो पाँचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक विमान हैं। दूसरी ओर भारत के पास अभी पाँचवीं पीढ़ी का कोई विमान नहीं है। राफेल जो 4.5वीं पीढ़ी का है, भारत का सबसे आधुनिक विमान है।

वायुसेना का कहना है कि अगर हमें पाकिस्तान और चीन की संयुक्त चुनौती का सामना करना है, तो हमें और राफेल विमानों की जरूरत है। ये विमान न केवल हवा में दुश्मन के विमानों से लड़ सकते हैं, बल्कि जमीन पर सटीक हमले भी कर सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर में राफेल ने SCALP क्रूज मिसाइलों और HAMMER प्रेसिजन-गाइडेड हथियारों का इस्तेमाल करके आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया था। यह दिखाता है कि राफेल भारत की रक्षा के लिए कितना जरूरी है।

भारतीय वायुसेना को किस बात की कमी?

भारतीय वायुसेना की सबसे बड़ी कमी है उसके फाइटर स्क्वाड्रनों की घटती संख्या। अभी 31 स्क्वाड्रन हैं, जो अगले महीने 29 हो जाएँगे। यह कमी तब और गंभीर हो जाती है, जब हम देखते हैं कि हमें 42.5 स्क्वाड्रनों की जरूरत है। पुराने मिग-21 विमान अब रिटायर हो रहे हैं, और नए विमानों की खरीद में देरी हो रही है। MRFA प्रोजेक्ट, जिसके तहत 114 नए विमान खरीदे जाने हैं, वो पिछले 7-8 सालों से अटका हुआ है। इसका शुरुआती खर्च 1.2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा अनुमानित था, और अब यह और बढ़ सकता है।

इसके अलावा भारत के पास अभी पाँचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट्स नहीं हैं, जबकि पाकिस्तान को चीन से ऐसे विमान मिलने वाले हैं। भारत का अपना AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) 2035 तक तैयार होगा, लेकिन तब तक हमें रूसी सुखोई-57 या अमेरिकी F-35 जैसे विमानों पर विचार करना पड़ सकता है। हालाँकि, इनके लिए अभी कोई आधिकारिक बातचीत शुरू नहीं हुई है।

सरकार को ये डिमांड कब तक पूरी करनी होगी?

वायुसेना चाहती है कि MRFA प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। इसके लिए पहला कदम, यानी AoN, अगले एक-दो महीनों में DAC से माँगा जाएगा। अगर मंजूरी मिल जाती है, तो फ्रांस के साथ सरकारी स्तर पर डील जल्द हो सकती है। वायुसेना का कहना है कि सरकारी डील से प्रक्रिया तेज होगी, क्योंकि वैश्विक टेंडर में समय लगता है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो अगले कुछ सालों में नए राफेल भारत में आ सकते हैं। नौसेना को भी 2028-2030 तक 26 राफेल-मरीन विमान मिलने वाले हैं, जो INS विक्रांत विमानवाहक पोत से ऑपरेट करेंगे।

भारत सरकार के सामने क्या है चुनौती

सबसे बड़ी चुनौती है पैसा और समय। MRFA प्रोजेक्ट का अनुमानित खर्च 1.2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है, और इतनी बड़ी रकम जुटाना आसान नहीं है। इसके अलावा भारत चाहता है कि ज्यादातर विमान देश में ही बनें, ताकि ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा मिले। लेकिन इसके लिए विदेशी कंपनियों के साथ तकनीकी साझेदारी और स्थानीय उत्पादन की व्यवस्था करनी होगी, जो समय लेने वाली प्रक्रिया है।

दूसरी चुनौती है पड़ोसियों की बढ़ती ताकत। पाकिस्तान के पास पहले से ही चीनी J-10 विमान हैं, और जल्द ही J-35A जैसे स्टील्थ जेट्स भी आ जाएँगे। चीन की वायुसेना भी तेजी से आधुनिक हो रही है। ऐसे में भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को तेज करना होगा। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने दावा किया कि उसने पाकिस्तान के 5 फाइटर जेट्स और एक बड़े विमान को मार गिराया।

इस प्रोजेक्ट पर कितना खर्च आएगा?

MRFA प्रोजेक्ट का शुरुआती अनुमान 1.2 लाख करोड़ रुपए था, लेकिन अब यह रकम और बढ़ सकती है। पहले से ही भारत ने 36 राफेल विमानों के लिए 2016 में 59,000 करोड़ रुपए की डील की थी। इसके अलावा नौसेना के लिए 26 राफेल-मरीन विमानों की डील 63,887 करोड़ रुपए (लगभग 7 बिलियन यूरो) में हुई है। नए विमानों की खरीद में भी इतना ही या इससे ज्यादा खर्च हो सकता है। हालाँकि अगर विमान भारत में बनते हैं, तो लागत कुछ कम हो सकती है और स्थानीय उद्योग को फायदा होगा।

राफेल ही क्यों?

वायुसेना का कहना है कि और राफेल खरीदना ज्यादा फायदेमंद है। पहला – भारत के पास पहले से 36 राफेल हैं, जो अंबाला और हासिमारा एयरबेस पर तैनात हैं। इन बेस पर और स्क्वाड्रन रखने की जगह और बुनियादी ढांचा पहले से तैयार है। दूसरा – अगर नौसेना और वायुसेना दोनों राफेल का इस्तेमाल करें, तो रखरखाव और उपकरणों में समानता रहेगी, जिससे लागत और समय बचेगा। तीसरा – सरकारी डील से प्रक्रिया तेज होगी, जबकि वैश्विक टेंडर में सालों लग सकते हैं।

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत को यह एहसास दिलाया कि आधुनिक युद्ध में मजबूत वायुसेना कितनी जरूरी है। राफेल विमानों ने इस ऑपरेशन में अपनी ताकत दिखाई, लेकिन स्क्वाड्रनों की कमी और पड़ोसियों की बढ़ती ताकत भारत के लिए चिंता का सबब है। MRFA प्रोजेक्ट के जरिए और राफेल खरीदने की माँग इस दिशा में एक बड़ा कदम है। लेकिन इसके लिए पैसा, समय और सही रणनीति की जरूरत है। अगर भारत इस दिशा में तेजी से कदम उठाता है, तो वह अपनी रक्षा को और मजबूत कर सकता है।

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