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ऑक्सफोर्ड पेरियार सम्मेलन में भारत विरोधी नैरेटिव सेट करने की कोशिश

मेरे एक प्रोफेसर ने एक दिन मुझे एक गहरी दर्शनात्मक शिक्षा दी। उन्होंने एक लकड़ी का छोटा टुकड़ा और एक लोहे का छोटा टुकड़ा लिया। फिर उन्होंने बारी-बारी से दोनों को पानी से भरी बाल्टी में डाला। स्वाभाविक रूप से लोहे का टुकड़ा पानी में डूब गया, जबकि लकड़ी का टुकड़ा पानी की सतह पर तैरने लगा।

इसके बाद प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कि लोहा क्यों डूबा और लकड़ी क्यों नहीं डूबी। मेरे तर्कसंगत दिमाग ने तुरंत जवाब दिया कि लकड़ी का घनत्व पानी से कम है, इसलिए वह तैर रही है, जबकि लोहे की घनत्व पानी से अधिक है, इसलिए वह डूब गया।

फिर उन्होंने एक और प्रश्न पूछा, लोहे को ऐसा क्या करना चाहिए कि वह पानी में न डूबे। मैंने काफी देर तक सोचा, लेकिन कोई उत्तर नहीं दे पाया। तब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि लोहे को डूबने से बचने के लिए लकड़ी के साथ जुड़ जाना चाहिए। जब लोहा लकड़ी के साथ जुड़ जाएगा, तो लकड़ी अपने कम घनत्व के कारण उसे अपनी पहचान देगी और वह लोहा भी पानी में नहीं डूबेगा।

आज ठीक यही दृश्य हमें भारत की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देखने को मिल रहा है। एक लोहे का टुकड़ा, एक लकड़ी के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा है ताकि वह तैर सके।

ऑक्सफोर्ड में पेरियार सम्मेलन – मकसद और सच्चाई

4 सितंबर 2025 को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सेंट एंटनी कॉलेज में पेरियार के ‘सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट’ पर एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थान में आए दिन कई कार्यक्रम होते रहते हैं। ठीक उसी तरह यह भी एक छोटा कार्यक्रम था जिसमें मुश्किल से 100-200 लोग मौजूद थे।

लेकिन इस सम्मेलन का असली मकसद इसकी भव्यता नहीं, बल्कि इसका स्थान था। ऑक्सफोर्ड का नाम इस कार्यक्रम को वैधता प्रदान करता है। इस सम्मेलन के पीछे की चालाकी यही है कि पेरियार के विचारों और यहाँ मौजूद वक्ताओं के विचारों पर ऑक्सफोर्ड की मुहर लग सके। यह आयोजन ऑक्सफोर्ड की प्रतिष्ठा का इस्तेमाल कर अपने एजेंडे को सही साबित करने का प्रयास थी।

आयोजक और उनकी सोच

इस कार्यक्रम का आयोजन फैजल देवजी ने किया। फैजल देवजी के विचार न केवल भारत के प्रति, बल्कि भारत के राष्ट्रनायकों के प्रति भी अपमानजनक रहे हैं। उनकी एक पुस्तक The Impossible Indian है, जिसमें उन्होंने महात्मा गाँधी के विचारों का विच्छेदन करने की कोशिश की है।

इस पुस्तक में उन्होंने गाँधी के बारे में यह तक लिखा है कि गाँधी किसी भी मामले में अपने समकालीन लेनिन, हिटलर और माओ से कम हिंसक नहीं थे। गाँधी, जिन्हें पूरी दुनिया अहिंसा का प्रतीक मानती है, उन्हें हिंसक बताना फैजल देवजी की उसी सोच को उजागर करता है।

फैजल देवजी स्वयं को एक अकादमिक विद्वान बताते हैं, लेकिन वे उसी इकोसिस्टम का हिस्सा हैं जिसकी पूरी ऊर्जा इस बात को साबित करने में लगी रहती है कि प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में भारत का लोकतंत्र खत्म हो रहा है। उनके कई लेख इस सोच को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

मुख्य अतिथि – एम.के. स्टालिन

इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन थे। यह चुनाव बिल्कुल स्वाभाविक है क्योंकि स्टालिन के पिता करुणानिधि ने अपनी पूरी राजनीति पेरियार के विचारों पर आधारित की थी। स्टालिन स्वयं अपनी राजनीति में पेरियार का नाम और विचार लगातार इस्तेमाल करते रहे हैं। यहां तक कि स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने तो सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया के मच्छर से करते हुए इसे जड़ से मिटा देने की बात तक कही। इसलिए स्टालिन का इस कार्यक्रम में शामिल होना कोई नई बात नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक विरासत का ही विस्तार है।

एक और वक्ता – अर्जुन अप्पूदाराई

इस सम्मेलन में एक और वक्ता थे अर्जुन अप्पूदाराई। आमतौर पर उनका नाम आम जनता ने नहीं सुना होगा, लेकिन अकादमिक जगत में यह जाना-पहचाना नाम है।

अप्पूदाराई ने कई लेख लिखे हैं जिनमें उन्होंने भारत और उसकी नीतियों के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाया है। एक लेख में उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी के दौर में भारत का राष्ट्रवाद अब ‘एडवांस स्टेज जेनोसाइडलिज्म’ का रूप ले चुका है।

एक अन्य लेख में उन्होंने कश्मीर को लेकर कहा कि मोदी सरकार के कदम सनकी राजनीति और मुस्लिम विरोधी नीतियों के प्रतीक हैं। गूगल पर उनके और भी अनेक ऐसे लेख मिल जाएंगे जो भारत विरोधी विचारों को उजागर करते हैं।

भारत विरोधी जुगनुओं की जमात

विष्णु विराट का एक शेर है –
जुगनुओं ने शराब पी ली है,
अब ये सूरज को गालियाँ देंगे

इस सम्मेलन में भी ऐसे ही ‘जुगनू’ इकट्ठा हुए हैं। ये लोग भारत और उसकी संस्कृति को गालियाँ देंगे और उन गालियों को ऑक्सफोर्ड का नाम देकर वैधता प्रदान करेंगे।

विडंबना यह है कि ये सब लोग पेरियार का महिमामंडन कर रहे हैं। वही पेरियार जिसने यहूदियों और ब्राह्मणों को कीड़े-मकोड़े जैसा माना था।

पेरियार चाहता था कि ब्राह्मणों का नरसंहार भी उसी तरह किया जाए जैसे हिटलर ने यहूदियों का किया था। यदि पेरियार के इन विचारों के बारे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की यहूदी सोसाइटी को पता चल जाए, तो क्या वे इस कार्यक्रम को होने देती?

पेरियार के नकारात्मक विचार

पेरियार के अपमानजनक विचार सिर्फ यहूदियों तक सीमित नहीं थे। उन्होंने महात्मा गाँधी के बारे में भी वैसा ही दृष्टिकोण रखा जैसा फैजल देवजी रखते हैं।

पेरियार ने कहा था कि गाँधी की फोटो वाले सभी नोटों को जला देना चाहिए। इतना ही नहीं, पेरियार ने भारत का राष्ट्रीय ध्वज जलाया, हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ीं और ब्रिटिश शासन का समर्थन किया।

जो भी व्यक्ति भारत को थोड़ा-बहुत भी जानता हो, वह पेरियार और उसके विचारों को नकारात्मक ही मानेगा।

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी पेरियार को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने उस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री कामराज को पत्र लिखकर कहा था कि पेरियार जैसे पागल व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन से निकाल देना चाहिए और ऐसे लोगों की जगह पागलखाने में है।

नैरेटिव वॉर का एक हिस्सा

यह सम्मेलन पेरियार के विभाजनकारी और नकारात्मक विचारों को उभारने का प्रयास है। इसे एक अलग-थलग घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

यह एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत की छवि को विकृत करना और समाज को बांटना है। ऑक्सफोर्ड का मंच तो बस एक मुखौटा है। असली लड़ाई इससे कहीं बड़े स्तर पर लड़ी जा रही है।

आज का यह ‘नैरेटिव वॉर’ भारत के सामाजिक और राजनीतिक ढाँचे को तोड़ने की कोशिश है। इसलिए भारतीय समाज को इसे पहचानना होगा और इसका मुकाबला उसी मजबूती और आत्मविश्वास से करना होगा जैसे हमारे पूर्वजों ने बाहरी आक्रमणों का सामना किया था।

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