प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 9 सितंबर को एक-दूसरे को संदेश भेजे, जो बाहर से देखने में पुरानी दोस्ती को फिर से ताजा करने जैसे लगे। पीएम मोदी ने भारत और अमेरिका को ‘गहरे दोस्त और स्वाभाविक साझेदार’ बताया और कहा कि व्यापार वार्ता से इस साझेदारी में ‘असीमित संभावनाएँ’ खुल सकती हैं। उनका ये संदेश ट्रम्प के ट्रुथ सोशल पोस्ट के जवाब में था, जिसमें ट्रम्प ने कहा कि वो व्यापार बाधाओं को हल करने की बातचीत से ‘खुश’ हैं और पीएम मोदी को अपना ‘बहुत अच्छा दोस्त’ बताया। ट्रम्प ने ये भी भविष्यवाणी की कि बातचीत को सफलतापूर्वक पूरा करने में ‘कोई दिक्कत’ नहीं होगी।
India and the US are close friends and natural partners. I am confident that our trade negotiations will pave the way for unlocking the limitless potential of the India-US partnership. Our teams are working to conclude these discussions at the earliest. I am also looking forward… pic.twitter.com/3K9hlJxWcl
— Narendra Modi (@narendramodi) September 10, 2025
डोनाल्ड ट्रम्प की ये दोस्ती भरी बातें तब आईं, जब वॉशिंगटन ने भारतीय सामान पर टैरिफ को दोगुना कर दिया और आगे और बढ़ाने की धमकी दी। मजेदार बात ये है कि ट्रम्प ने नई दिल्ली को लुभाने की कोशिश में संदेश पोस्ट किए, लेकिन खबरों के मुताबिक उन्होंने यूरोपीय संघ को भी भारत और चीन से आयात पर 100% तक टैरिफ लगाने के लिए उकसाया, ये कहते हुए कि इससे रूस कमजोर होगा। तो एक तरफ ट्रम्प दोस्ती की बात करते हैं, लेकिन उनकी नीतियाँ कुछ और ही कहानी कहती हैं।
नवारो की सोशल मीडिया पर निकल रही भड़ास
ट्रम्प के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने अपने सोशल मीडिया को भारत के खिलाफ भड़काऊ बातों का अड्डा बना लिया है। उन्होंने हाल ही में भारत को ‘टैरिफ का महाराजा’ कहा। उन्होंने भारत पर रूस के युद्ध को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, क्योंकि भारत सस्ता रूसी तेल खरीद रहा है। उन्होंने भारतीय छात्रों पर अमेरिकी स्कूलों को ‘भरने’ का तंज कसा और दावा किया कि भारतीय यूजर्स X के कम्युनिटी नोट्स फीचर को हाइजैक कर रहे हैं ताकि तथ्यों को दबाया जा सके, जो कि बिना किसी सबूत के एक साजिश की थ्योरी है।
India’s keyboard minions are hijacking X’s Community Notes to bury the facts.
They’re furious about losing unfettered access to U.S. markets—even as India, the Maharaja of Tariffs, keeps some of the world’s highest trade barriers. pic.twitter.com/d72WoebqIa— Peter Navarro (@RealPNavarro) September 9, 2025
नवारो के हमले सिर्फ अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं हैं। उनकी बातों में वही तेवर दिखता है, जो भारत के कुछ विपक्षी दलों की बयानबाजी में दिखता है। नवारो ने तो जाति की सियासत में भी हाथ आजमाया और ब्राह्मणों के मुनाफा कमाने जैसे पुराने जुमलों को दोहराया, जो व्यापार नीति से कम और नाराजगी से ज्यादा जुड़ा है। संक्षेप में, ट्रम्प जहाँ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं, वहीं नवारो भारत पर हमला बोल रहा है, जो नीति से ज्यादा प्रचार जैसा लगता है।
भारत ने मुख्य मुद्दों पर झुकने से इनकार किया
ये गुस्सा क्यों? जवाब है नई दिल्ली का उन मुद्दों पर समझौता न करना, जो सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा को वॉशिंगटन के प्रतिबंधों से नहीं चलाया जा सकता। 2021 से रूसी कच्चे तेल का आयात बढ़ा है और 2024 में ये 67 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया, जिसमें करीब 53 अरब डॉलर तेल का है। नवारो इसे मुनाफाखोरी का सबूत मानते हैं। लेकिन भारत बार-बार कहता रहा है कि पश्चिमी देश खुद रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं और भारत से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो किसी और के युद्ध की वजह से अपनी विकास की राह छोड़ दे।
टैरिफ पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। भारत हमेशा कहता रहा है कि व्यापार संतुलित होना चाहिए, एकतरफा नहीं। कृषि आयात, डेयरी और डिजिटल सर्विस टैक्स को अमेरिकी दबाव में छोड़ने की चीजें नहीं हैं। नई दिल्ली ने अपनी घरेलू इंडस्ट्री को बचाने पर जोर दिया है, जिसे वॉशिंगटन ने संरक्षणवाद कहा। लेकिन भारत इसे सामान्य समझदारी मानता है। और ये सामान्य समझदारी इतनी सामान्य नहीं है, जो पिछले कुछ महीनों में वॉशिंगटन की भारत के प्रति नाराजगी में दिखती है।
अमेरिकी नेतृत्व की दोहरी बातें
फर्क साफ है। ट्रम्प की दोस्ती भरी पोस्ट दोस्ती और बेहतर भविष्य की बात करती हैं, लेकिन उनकी सरकार की कार्रवाइयाँ और नवारो की भड़काऊ बातें धमकी, दबाव और तिरस्कार की कहानी कहती हैं। साफ है कि अमेरिका चाहता है कि भारत टैरिफ कम करे और अपने बाजार को और खोले, लेकिन साथ ही वो खुद दंडात्मक टैरिफ लगाता है।
वो चाहता है कि भारत रूसी तेल का आयात कम करे, लेकिन उसके यूरोपीय सहयोगी चुपके से रूसी ऊर्जा खरीदते रहते हैं। वो व्यापार घाटे की शिकायत करता है, लेकिन अमेरिका में भारतीय छात्रों और पर्यटकों से हर साल कमाए अरबों डॉलर को नजरअंदाज करता है। वो चाहता है कि भारत ब्रिक्स छोड़ दे, ये कहकर कि ये अमेरिका विरोधी है, लेकिन भारत ने इसे साफ तौर पर ठुकरा दिया।
ये कूटनीति नहीं, दोहरी बातें हैं। एक तरफ ट्रम्प राजनेता बनकर व्यापार विवादों को दोस्ताना तरीके से सुलझाने की कोशिश करते दिखना चाहते हैं। दूसरी तरफ, उनके सहयोगी और नीतिगत ऐलान दबाव बनाए रखते हैं, ये उम्मीद करते हुए कि भारत पहले झुकेगा, जो ट्रम्प प्रशासन के भारी दबाव के बावजूद नहीं हुआ।
भारत की जवाबी रणनीति
अमेरिका भारत को झुकाने में नाकाम रहा। इसके बजाय, भारत ने निर्यातकों को राहत पैकेज देने, जीएसटी दरों को समायोजित कर माँग बढ़ाने और यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों की बातचीत को तेज करने जैसे कदम उठाए। संदेश साफ है कि भारत दबाव में नहीं आएगा और किसी एक साझेदार पर निर्भरता कम करने के लिए अपने बाजारों का विविधीकरण जारी रखेगा।
बाजारों को अल्पकालिक नुकसान हो सकता है, खासकर कपड़ा और कृषि जैसे क्षेत्रों को अमेरिकी टैरिफ से सबसे ज्यादा चोट पहुँची है, लेकिन भारत की रणनीति लंबे समय की है। रूसी आयात से ऊर्जा स्थिरता बनाए रखकर और नए व्यापार गलियारे बनाकर, भारत अमेरिकी दुश्मनी के बावजूद अपनी मजबूती सुनिश्चित कर रहा है।
टैरिफ और घाटे का जुनून
नवारो बार-बार टैरिफ से अमेरिकी नौकरियों को नुकसान और घाटे से अमेरिकी उद्योगों को खोखला होने की बात करते हैं, लेकिन एक साफ हकीकत को नजरअंदाज करते हैं। व्यापार घाटा शोषण का सबूत नहीं है। ये वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें उपभोक्ताओं को कम कीमत और व्यवसायों को विस्तारित बाजारों से फायदा होता है। फिर भी नवारो इसे इस तरह पेश करते हैं जैसे भारत का हर कमाया डॉलर अमेरिकी मजदूरों से चुराया गया हो। ये ऐसी बातें हैं जो सूचित करने के लिए नहीं, बल्कि भड़काने के लिए बनाई गई हैं।
उनके हमले और भी खोखले हो जाते हैं, क्योंकि ट्रम्प खुद कह चुके हैं कि भारत एक ‘कड़ा सौदेबाज’ है, भले ही दोस्त हो। अगर सौदेबाजी में कड़ाई अपराध है, तो हर वो देश दोषी है जो अपने हितों की रक्षा करता है।
रूस, टैरिफ और असली चिढ़
वॉशिंगटन को सबसे ज्यादा गुस्सा टैरिफ से नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता से है। नई दिल्ली ने साफ कर दिया है कि वो न तो किसी गुट में खींचा जाएगा और न ही उसकी विदेश नीति को निर्देशित किया जाएगा। भारत ने रूस पर पश्चिमी रुख का पालन करने से इनकार किया और अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के हिसाब से व्यापार नीति बनाने का अधिकार जताया। ऐसा करके भारत ने साफ संदेश दिया है कि वो साझेदार है, न कि कोई गुलाम देश।
यही बात नवारो को हजम नहीं होती और ट्रम्प इसे मीठी बातों से ढकने की कोशिश करते हैं। ये तथ्य कि दोस्ती और गुस्से के संदेश एक साथ दिए जा रहे हैं, ये दिखाता है कि अमेरिकी नेतृत्व भारत की अहमियत को मानने और उसकी स्वायत्तता से चिढ़ने के बीच फँसा है।
आज जो दिख रहा है, वो है अमेरिका का उलझा हुआ रवैया। एक हाथ दोस्ती का जैतून का पत्ता बढ़ाता है, दूसरा टैरिफ की छड़ी लहराता है। एक आवाज दोस्ती की बात करती है, दूसरी भारत की मुनाफाखोरी पर भड़कती है। इन सबके बीच भारत ने अपनी बात पर डटे रहना चुना अपनी संप्रभुता की रक्षा को, ऊर्जा जरूरतों को सुरक्षित करने को और डर से नहीं, ताकत से बातचीत करने।
वॉशिंगटन के लिए ये दोहरापन शायद अल्पकालिक सियासी फायदे दे, लेकिन भारत के लिए ये सिर्फ सिद्धांतों पर टिके रहने की अहमियत को और मजबूत करता है। अमेरिका घाटे और टैरिफ पर भड़क सकता है, लेकिन नई दिल्ली अपनी स्वायत्तता को सौदेबाजी में नहीं देगा। ट्रम्प की दोस्ती भरी बातें माहौल को नरम कर सकती हैं, नवारो की भड़काऊ बातें इसे तीखा कर सकती हैं, लेकिन ये साधारण हकीकत नहीं बदलती कि भारत अपनी राह खुद बनाएगा, अपने तरीके से, चाहे अमेरिका का संदेश कितना भी उलझन भरा हो।
यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।