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असम सरकार ने गोलपाड़ा में 1000 बीघा+ जमीन पर से हटाया अतिक्रमण, ज्यादातर ‘मुस्लिमों’ का था कब्जा: 4 साल में खाली करवाई 25 हजार एकड़ भूमि, CM हिमंता ने कहा- जारी रहेगा अभियान


असम में अवैध अतिक्रमण को लेकर एक्शन में हिमंता सरकार

असम में इन दिनों हर तरफ बुलडोजर की आवाज सुनाई दे रही है। सरकार वन भूमि, सरकारी जमीन और आरक्षित इलाकों से अवैध कब्जा हटाने का जोरदार अभियान चला रही है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कि ये बंगाली लोग हैं, जो बांग्लादेश से आकर यहाँ बस गए और असम की डेमोग्राफी बदलने की साजिश कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष इसे गरीबों और मुसलमानों को निशाना बनाने का तरीका बता रहा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 12 जुलाई 2025 को असम के गोलपाड़ा जिले में पैकन रिजर्व फॉरेस्ट में बड़ा बेदखली अभियान चला। यहाँ 140 हेक्टेयर (करीब 1,038 से 1,040 बीघा) वन भूमि पर अवैध कब्जा था।

गोलपाड़ा के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर तेजस मारिस्वामी ने बताया कि 1,080 परिवारों ने यहाँ घर बना रखे थे। इनमें से ज्यादातर बंगाली मूल के मुसलमान थे, जो पड़ोसी इलाकों या बांग्लादेश से आकर बसे हुए थे। अभियान में 36 बुलडोजर लगाए गए, इलाके को 6 ब्लॉकों में बाँटा गया। करीब 2,500 से 2,700 संरचनाएँ (घर, दुकानें) ढहाई गईं। सुरक्षा के लिए 1,000 से ज्यादा पुलिस और फॉरेस्ट गार्ड तैनात थे।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक दिन पहले ही 95% लोग खुद इलाका छोड़ चुके थे, अपना सामान रिश्तेदारों के यहाँ रख दिया। लेकिन अभियान के दौरान एक व्यक्ति फौजौल होक ने घर गिराने से पहले खुदकुशी की कोशिश की, उसे अस्पताल ले गए। लोग रोते-बिलखते रहे, लेकिन कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ क्योंकि डर था। एक प्रभावित रोकीबुल हुसैन (28) ने कहा, “हमारा घर चंद मिनटों में मिट्टी हो गया। अब टारपॉलिन शीट तानकर सड़क पर सोएँगे, पानी-बिजली सब काट दिया। बच्चों का क्या होगा?”

शेख राजू अहमद ने बताया कि 18 जून से रोज लाउडस्पीकर पर ऐलान हो रहा था- 27 जून तक खाली करो। पिछले साल नवंबर-दिसंबर से नोटिस मिले थे, आखिरी वॉर्निंग 10 जुलाई की थी। शुक्रवार को जुमे की नमाज की वजह से अभियान टाला गया। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने वन भूमि खाली करने का ऑर्डर दिया था, ताकि हाथी-मानव संघर्ष कम हो।

इससे ठीक पहले, 8-9 जुलाई 2025 को धुबरी जिले में चरुवा बकरा, चिरकुटा और संतोषपुर गांवों से 3,500 बीघा (करीब 1,160 एकड़) जमीन खाली कराई गई। यहाँ 1,100 से 1,600 परिवार रहते थे, ज्यादातर बंगाली मूल के मुसलमान घुसपैठिए। ये जमीन 3,400 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट के लिए दी जानी है। सीएम हिमंता ने पिछले महीने साइट का दौरा किया था। अभियान में हिंसा हुई- लोगों ने एक्सकेवेटर मशीनों को नुकसान पहुँचाया, पुलिस पर हमला किया। पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 11 जुलाई 2025 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मई 2021 से अब तक 25,000 एकड़ (करीब 10,000 हेक्टेयर) से ज्यादा जमीन अतिक्रमण से मुक्त कराई गई है। अगले हफ्ते पूरा डेटा जारी करेंगे।

सरमा ने कहा, “अभियान जारी रहेगा। हाईकोर्ट ने वन भूमि खाली करने को कहा है, सिर्फ बेदखल लोगों को पानी और जरूरी सामान दें। ये घुसपैठिए बंगाली हैं, जो 200-300 किमी दूर से आकर हिंदू या असमिया मुसलमान बहुल इलाकों में बस रहे। साजिश है असम की डेमोग्राफी बदलने की। अगर बीजेपी न होती, तो भूगोल बदल जाता।”

हिमंता ने अपनी बात को उदाहरण देते हुए समझाया कि लखीमपुर में साउथ सलमारा, करीमगंज से लोग आए। ग्वालपाड़ा, बारपेटा, धुबरी में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए, 10-12 हजार परिवार आकर स्थानीयों को विस्थापित कर रहे। पुनर्वास पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “सिर्फ भूमिहीन भारतीय नागरिकों को जमीन मिलेगी, अपने जिले में अप्लाई करके। घुसपैठियों के लिए कुछ नहीं।” सरमा ने कहा, “स्वदेशी लोगों की जमीन बचानी है। मैं असमिया बहुमत बनाए रखने के लिए लड़ूँगा, वरना हट जाऊँगा।”

कई बार अतिक्रमण विरोधी अभियान चला चुकी है बीजेपी सरकार

राज्य में कुल कितना अतिक्रमण?

इस अभियान से सरकार को असमिया वोटरों में समर्थन मिल रहा है, जो मानते हैं कि बंगाली मुस्लिमों ने उनकी ज़मीन और पहचान छीनी है। लेकिन दूसरी ओर विपक्ष इस पर सरकार को ‘क्रूर’ और ‘एकतरफा’ बता रहा है। अगले साल 2026 में चुनाव हैं। उससे पहले यह कार्रवाई राजनीतिक रूप से और ज़्यादा चर्चा में आ सकती है।



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