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अल-जजीरा ने इस्लामी कट्टरपंथियों की हिंसा को छिपा भारत को बना दिया विलेन

भारत और हिंदू विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए कुख्यात कतर की सरकार के पैसे पर चलने वाले ‘अल-जजीरा’ का एक बार फिर भारत विरोध चेहरा सामने आया है। भारत में ‘I Love Muhammad’ से जुड़े विरोध प्रदर्शनों को लेकर ‘अल जजीरा’ ने एक लंबा-चौड़ा लेख लिखा है। हालाँकि, इसमें ‘अल-जजीरा’ ने तथ्यों को छिपाते हुए मुस्लिमों को प्रताड़ना का शिकार दिखाने की कोशिश की है।

अल जजीरा की खबर की हेडलाइन

‘अल-जजीरा’ के इस भारत विरोधी प्रोपेगेंडा की शुरुआत उसकी हेडलाइन से ही हो गई। ‘अल-जजीरा’ ने लिखा “Why is India prosecuting Muslims who said ‘I love Muhammad’?” यानी “भारत उन मुसलमानों पर मुकदमा क्यों चला रहा है जिन्होंने ‘I Love Muhammad’ कहा था?” जाहिर है कि ‘अल-जजीरा’ ने पहले ही फैसला सुना दिया है कि ‘किन मुसलमानों पर मुकदमा चलाया जा रहा है’ और वो सब ये बता रहा है कि मुकदमा क्यों चलाया जा रहा है।

विवाद की शुरुआत को लेकर ‘अल-जजीरा’ का झूठ?

‘अल-जजीरा’ ने इस विवाद की शुरुआत को लेकर भी सच्चाई छिपा ली। ‘अल-जजीरा’ ने लिखा की 4 सितंबर को कानपुर में मुस्लिमों द्वारा ‘I Love Muhammad’ का बोर्ड लगाने को लेकर विवाद हुआ और इसकी शिकायत पर FIR दर्ज कर ली गई। ‘अल-जजीरा’ की रिपोर्ट में दी गई जानकारी आधी-अधूरी है।

अल-जजीरा के लेख के अंश

यह बात सही है कि ‘I Love Muhammad’ के बैनर लगाने को लेकर विवाद हुआ था लेकिन असली कहानी इसके बाद की है। इस बोर्ड को दूसरी जगह लगवाए जाने के बाद यह मामला शांत हो गया था और यह दोनों पक्षों की जानकारी में हुआ था। लेकिन असली विवाद इसके अगले दिन यानी 5 सितंबर को हुआ।

5 सितंबर के दिन बारावफात का जुलूस निकाला जाना था और इस दिन मुस्लिम युवकों ने हिंदू समुदाय के पोस्टर को जानबूझकर फाड़ दिया था। FIR के मुताबिक, “जुलूस निकाले जाने पर रावतपुर गाँव में हिंदू बस्ती से जुलूस निकाल रहे मुस्लिम समुदाय के कुछ अज्ञात मुस्लिम युवकों के द्वारा रास्ते में लगे हिंदू समुदाय के धार्मिक पोस्टर को जानबूझकर जुलूस में शामिल गाड़ी…में सवार मुस्लिम युवको द्वारा डंडों की मदद से फाड़ दिया गया।”

पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR का एक हिस्सा

आप इन शब्दों पर भी ध्यान दें तो स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला केवल ‘I Love Muhammad’ के बैनर से जुड़ा हुआ नहीं है। यानी ‘अल-जजीरा’ जो कहानी बेचने की कोशिश कर रहा है वो दरअसल एक आध-अधूरा और अपने मन से चुना गया ‘सच’ है जो कई मायनों में झूठ से भी खतरनाक होता है। ‘अल-जजीरा’ का प्रोपेगेंडा सिर्फ इतना भर नहीं है।

बरेली और गुजरात को लेकर भी अल-जजीरा ने फैलाया झूठ

यूँ तो कई राज्यों में इसे लेकर बवाल हुआ था लेकिन इसकी सबसे अधिक तीव्रता बरेली और गुजरात में नजर आई। अल-जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में इन दोनों घटनाओं का जिक्र किया है लेकिन यहाँ भी उसने सच को छिपाया ही है। अल-जजीरा ने कहा कि बरेली में प्रदर्शनकारियों की पुलिस से हिंसक झड़प हुई।

बरेली के दंगे पर अल-जजीरा

मीडिया आउटलेट ने यह नहीं बताया कि बरेली में प्रदर्शनकारियों की बस हिंसक झड़प नहीं हुई थी बल्कि पुलिस पर हमले की प्लानिंग के साथ कथित प्रदर्शनकारी वहाँ पहुँचे थे। जाँच में ये तक सामने आया कि तौकीर रजा ने पुलिसकर्मियों की हत्या तक की साजिश रची थी।

कथित प्रदर्शनकारियों ने इस बात की पुरी तैयारी की थी कि किसी तरह बरेली में दंगा भड़काया जा सके। बाहर से सैकड़ों लोगों को बुलाया गया, उन्हें अलग-अलग मस्जिदों में ठहराया गया था। कथित प्रदर्शन के दिन पुलिस पर दंगाइयों ने पेट्रोल बम से हमला किया, पुलिस पर फायरिंग की और पथराव किया गया। इस्लामी कट्टरपंथियों की इस पूरी साजिश को ‘अल-जजीरा’ ने सिर्फ ‘हिंसक झड़प’ कहकर टाल दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात भी इसे लेकर हुई हिंसा पर भी ‘अल-जजीरा’ ने सच नहीं बताया। ‘अल-जजीरा’ ने लिखा, “गुजरात समेत कई राज्यों में सोशल मीडिया पोस्ट और वीडियोज़ के लिए मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें ‘I Love Muhammad’ के नारे थे।”

गुजरात में एक्शन पर अल-जजीरा

गुजरात के गोधरा में इस्लामी कट्टरपंथियों ने पुलिस पर पथराव किया था। गुजरात के गाँधीनगर में ‘I Love Mahadev’ के पोस्ट को लेकर खूब हंगामा हुआ। इस्लामी कट्टरपंथियों ने चुन-चुनकर हिंदुओं के घरों-दुकानों को निशाना बनाया गया। गरबा पंडाल और आस-पास पत्थरबाजी तक की गई लेकिन इस्लामी कट्टरपंथियों से मोहब्बत का चश्मे पहने ‘अल-जजीरा’ को ये सब नहीं दिख रहा है।

‘अल-जजीरा’ ने इस खबर में आगे भी एमनेस्टी जैसे संस्थानों से जुड़ों लोगों के बयानों के जरिए पूरा प्रोपेगेंडा खड़ा करने की कोशिश की है लेकिन इसमें कहीं भी तथ्य नहीं है। नालों-तालाबों और अन्य सरकारी जमीनों पर कब्जा कर किए गए अवैध अतिक्रमण पर कार्रवाई को भी मुस्लिमों के घर तोड़ने की तरह दिखाया गया है। लेकिन यह नहीं बताया कि ये घर अवैध अतिक्रमण कर बनाए गए थे।

बम-बंदूक नहीं नैरेटिव की लड़ाई

अल-जजीरा, बीबीसी, वॉशिंगटन पोस्ट जैसी संस्थाएँ बार-बार भारत की हर आंतरिक घटना को ‘मुस्लिम बनाम राज्य’ के चश्मे से दिखाने की कोशिश करती हैं। वे सिर्फ खबर नहीं देते बल्कि नैरेटिव बनाने की कोशिश करते हैं कि भारत को एक हिंदू बहुल और मुस्लिम विरोधी देश के रूप में किस तरह दिखाया जाए। जाहिर है इसके जरिए वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की साख को चोट पहुँचाने की कोशिश करते हैं।

किसी भी धर्म में अपने पैगंबर के लिए प्रेम होना स्वाभाविक है। लेकिन जब ऐसे भावनात्मक नारों का इस्तेमाल भीड़ को भड़काने, राजनीति करने या किसी समुदाय के खिलाफ लामबंदी के लिए किया जाता है, तो वह धार्मिक प्रेम नहीं बल्कि ‘धार्मिक हथियार’ बन जाता है।

ऐसे में इस हथियार का इस्तेमाल कट्टरपंथी करते हैं और उनके खिलाफ जब जब पुलिस कानून के तहत कार्रवाई करती है, विदेशी मीडिया इसे मुस्लिमों के खिलाफ षड्यंत्र बताते हैं। ये संस्थान कभी ये सवाल नहीं उठाते हैं कि क्या पत्थरबाज़ी, दंगे या हिंसा की योजना बनाना किसी मजहब का हिस्सा है? क्या पुलिस को केवल इसलिए हाथ बाँध लेना चाहिए कि आरोपी एक विशेष समुदाय से आते हैं?

आज का दौर सिर्फ बम और बंदूक का नहीं नैरेटिव की लड़ाई का है। भारत जब अपने कानून-व्यवस्था के कदमों को मजबूती से लागू करता है तो वैश्विक मीडिया उसका इस्तेमाल अपनी सुविधा के हिसाब से भारत के खिलाफ ही करना चाहता है। ऐसे संस्थानों की कोशिश रहती है कि किसी भी तरह मुस्लिमों को पीड़ित दिखाकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाया जा सके।

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