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अमेरिका का उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नी उषा को बनाना चाहता है हिंदू से ईसाई

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेम्स डेविड (JD Vance) वेंस ने बुधवार (29 अक्टूबर 2025) को कहा वो अपनी हिंदू पत्नी उषा को ईसाई बनते देखना चाहेंगे। वेंस की पत्नी उषा बाला चिलुकुरी तेलुगु मूल के हिंदू परिवार से आती हैं, जो अब भी हिंदू धर्म का पालन करती हैं। वेंस ने कहा कि वो चाहेंगे कि पत्नी (उषा) भविष्य में स्वेच्छा (Free Will) और आपसी सम्मान (Mutual Respect) के साथ ईसाई मजहब अपना लें। उन्होंने यह बयान मिसिसिपी में आयोजित टर्निंग पॉइंट यूएसए (Turning Point USA) के एक कार्यक्रम में दिया।

वेंस ने कहा, “ज्यादातर रविवार को उषा मेरे साथ चर्च जाती हैं। मैंने उनसे हमेशा कहा है और आज भी 10,000 लोगों के सामने दोहरा रहा हूँ कि क्या मैं चाहता हूँ कि एक दिन वे भी चर्च में वही अनुभव करें जो मैंने किया? हाँ, मैं सच में ऐसा चाहता हूँ, क्योंकि मैं ईसाई उपदेशों में विश्वास करता हूँ और आशा करता हूँ कि एक दिन मेरी पत्नी भी इसे उसी दृष्टि से देखें।”

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने हाल ही में एक कार्यक्रम में अपनी पत्नी उषा बाला चिलुकुरी के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में उनकी पत्नी ‘स्वेच्छा से’ ईसाई मजहब अपना सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह उनकी पत्नी की अपनी इच्छा पर निर्भर है, क्योंकि ईश्वर ने हर व्यक्ति को स्वतंत्र इच्छा (free will) दी है।

वेंस ने बताया कि उनके घर में दोनों धर्मों (ईसाई और हिंदू) के बीच एक समझौता और संतुलन है। उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी ईसाई नहीं हैं, वे एक हिंदू परिवार में पली-बढ़ी हैं, लेकिन उनका परिवार बहुत धार्मिक नहीं रहा। हमारे घर में धर्म को लेकर कभी कोई समस्या नहीं होती क्योंकि हम दोनों एक-दूसरे की मान्यताओं का सम्मान करते हैं।”

वेंस ने बताया कि उन्होंने और उषा ने मिलकर तय किया है कि उनके बच्चों की परवरिश ईसाई मजहब के अनुसार होगी। उन्होंने कहा, “हमारे दो बड़े बच्चे एक ईसाई स्कूल में पढ़ते हैं और हमारा 8 साल का बेटा पिछले साल अपनी पहली कम्यूनियन (First Communion) कर चुका है।”

वेंस ने यह भी मजाक में बताया कि उनकी पत्नी उषा उस पादरी (priest) को उनसे ज्यादा जानती हैं, जिन्होंने उनका बपतिस्मा (baptism) करवाया था।

धर्म और राजनीति के एकीकरण के पक्षधर हैं वेंस

रिपब्लिकन नेता जेडी वेंस ने यह कहते हुए असहमति जताई कि धर्म को राजनीति और सार्वजनिक जीवन से अलग रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जो कोई भी कहता है कि संविधान ऐसा करने को कहता है, वह झूठ बोल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘कॉन्ग्रेस किसी धर्म की स्थापना से संबंधित कोई कानून नहीं बनाएगी’ वाली बात का गलत अर्थ निकाला और धर्म को सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया। यह एक बड़ी गलती थी, जिसके नतीजे आज भी हम भुगत रहे हैं।”

वेंस ने आगे कहा, “मुझे इस बात पर कोई शर्म नहीं है कि मैं मानता हूँ कि ईसाई मूल्य (Christian values) इस देश की नींव हैं। जो लोग खुद को ‘तटस्थ’ बताते हैं, वे अक्सर अपने छिपे एजेंडे के साथ आते हैं। मैं कम से कम ईमानदारी से कहता हूँ कि अमेरिका की ईसाई नींव एक अच्छी बात है।”

यह बयान वेंस ने मिसिसिपी में आयोजित एक कार्यक्रम में कॉलेज छात्रों के बीच बातचीत के दौरान दिया। इस मौके पर मौजूद रूढ़िवादी भीड़ ने उनके विचारों पर जोरदार तालियाँ बजाईं। यह कार्यक्रम उनके दिवंगत मित्र और कंजरवेटिव नेता चार्ली किर्क की जगह आयोजित किया गया था, जिनकी पिछले महीने यूटा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

उषा ने ईसाई धर्म अपनाने में दिखाई अनिच्छा

अमेरिका की दूसरी महिला (Second Lady) उषा वेंस ने कुछ महीने पहले अपने परिवार के धार्मिक जीवन पर बात की थी। उन्होंने बताया कि वे हिंदू हैं, जबकि उनके पति जेडी वेंस कैथोलिक हैं और दोनों अपने बच्चों को एक Interfaith यानी दो धर्मों वाले घर में पाल रहे हैं।

मेगन मैककेन से बातचीत में उषा ने कहा, “कैथोलिक धर्म अपनाने पर कुछ जिम्मेदारियाँ आती हैं, जैसे बच्चों को उसी धर्म में बड़ा करना।” लेकिन उन्होंने साफ किया कि वे खुद कैथोलिक धर्म अपनाने की इच्छा नहीं रखतीं। उन्होंने कहा, “हमें इस पर कई गंभीर बातें करनी पड़ीं कि जब मैं कैथोलिक नहीं हूँ और धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहती, तब बच्चों की परवरिश कैसे करें।”

उषा ने बताया कि उन्होंने बच्चों को खुद अपना रास्ता चुनने की आजादी दी है। उनके बच्चे कैथोलिक स्कूल में पढ़ते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें हिंदू परंपराओं की भी जानकारी दी जाती है, जैसे घर पर धार्मिक किताबें, वीडियो, और हाल की भारत यात्रा, जहाँ उन्होंने बच्चों को कई धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव कराए।

उषा ने कहा, “बच्चों को पता है कि मैं कैथोलिक नहीं हूँ और वे दोनों परंपराओं को समझते हैं। चर्च जाना हमारे लिए परिवार के साथ समय बिताने का एक अनुभव है, न कि किसी धर्म परिवर्तन का हिस्सा।”

जानिए कैसे उषा की हिंदू जड़ों ने वेंस को उनके विश्वासों में दिया समर्थन

जेडी वेंस ने अपनी पत्नी उषा से येल लॉ स्कूल में पढ़ाई के दौरान मुलाकात की थी, जब वे अभी कैथोलिक धर्म में परिवर्तित नहीं हुए थे। वेंस का बचपन एक गैर-ईसाई परिवार में बीता और वे चर्च जाया नहीं करते थे। उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में बताया, “जब मैं उषा से मिला था, तब खुद को मैं नास्तिक या अज्ञेयवादी (agnostic) मानता था और वह भी खुद को ऐसा ही मानती थीं।”

दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंदू आस्था को वेंस अब चाहते हैं कि उनकी पत्नी ईसाई धर्म से बदल लें, उसी आस्था ने उनके जीवन में कई मुश्किलों को पार करने और उनके कैथोलिक विश्वास को मजबूत करने में मदद की है।

वेंस ने फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “मेरा कभी बपतिस्मा नहीं हुआ था। मैं ईसाई परिवार में पला-बढ़ा, लेकिन मेरा बपतिस्मा पहली बार 2018 में हुआ। उषा गैर-ईसाई परिवार में पली-बढ़ी हैं। जब मैंने दोबारा अपने धर्म से जुड़ना शुरू किया, तब उषा ने बहुत साथ दिया।”

उषा ने गर्व से कहा, “मेरे माता-पिता हिंदू हैं और यही उनकी अच्छाई और पालन-पोषण की ताकत का कारण है। मैंने देखा है कि इस आस्था ने हमारे परिवार को कितना मजबूत बनाया। जब जेडी अपनी राह खोज रहे थे, तो यह निर्णय उन्हें सही लगा।”

दिलचस्प है कि वेंस, जो कभी डोनाल्ड ट्रंप के आलोचक रहे थे, उन्होंने पहले यह भी स्वीकार किया था कि अपनी हिंदू पत्नी को हर रविवार चर्च ले जाने पर उन्हें थोड़ा अपराधबोध होता था। हालाँकि उन्होंने बताया कि उषा को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, भले ही उन्होंने एक नियमित चर्च जाने वाले व्यक्ति से शादी करने की उम्मीद नहीं की थी।

अमेरिका में बढ़ती हिंदू दुश्मनी और भारत विरोधी बयानबाजी के बीच रुख में आश्चर्यजनक बदलाव

राजनीति में नेताओं का अपने बयान बदलना, वादे तोड़ना या स्वार्थ के लिए गलत तरीकों का सहारा लेना आम बात है। लेकिन वेंस के हालिया बयान ने अमेरिकी समाज में गहराई तक जड़ें जमा चुकी श्रेष्ठतावादी (Supremacist) सोच को उजागर कर दिया है।

यह कोई पहली बार नहीं है जब इस तरह की घृणित सोच सामने आई हो। भारत-विरोधी भावना और हिंदुओं के प्रति नफरत कई वर्षों से मौजूद है और इंटरनेट के युग में यह और खुलकर सामने आने लगी है। सोशल मीडिया पर यह नफरत अब केवल शब्दों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वास्तविक हिंसा और अपराधों में भी बदल गई है, खासकर भारतीय समुदाय के खिलाफ।

पिछले महीने डलास (Dallas) में एक बेहद दर्दनाक घटना हुई। कर्नाटक के रहने वाले होटल मैनेजर चंद्र मौली नागमल्लैया की बेरहमी से हत्या कर दी गई। उन्होंने एक मेहमान को खराब वॉशिंग मशीन इस्तेमाल न करने की सलाह दी थी, जिस पर 37 वर्षीय योर्डानिस कोबोस-मार्टिनेज (Yordanis Cobos-Martinez) नाराज हो गया।

उसने नागमल्लैया का सिर काट दिया, उसे पार्किंग में लात मारकर फेंक दिया और बाद में कूड़ेदान में डाल दिया। यह सब उनके परिवार के सामने हुआ, जिन्होंने रोकने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। एक मामूली बात पर इतना क्रूर अपराध इस बात का सबूत है कि भारतीयों के प्रति फैल रही नफरत कितनी खतरनाक रूप ले चुकी है।

इसी तरह, जनवरी 2023 में आंध्र प्रदेश की 23 वर्षीय छात्रा जाह्नवी कंदुला की मौत सिएटल (Seattle) में एक पुलिस अधिकारी केविन डेव (Kevin Dave) की गाड़ी से टकराने से हुई। बाद में सामने आए बॉडीकैम वीडियो में सिएटल पुलिस यूनियन के नेता डैनियल ऑडरर (Daniel Auderer) को इस घटना का मजाक उड़ाते हुए देखा गया।

वह हँसते हुए कह रहा था, “उसकी उम्र सिर्फ 26 साल थी, उसकी जिंदगी की कोई खास कीमत नहीं” और शहर को बस 11,000 डॉलर का चेक लिख देना चाहिए।

डलास में ही एक और घटना में 23 वर्षीय रिचर्ड फ्लोरेज (Richard Florez) ने हैदराबाद के छात्र चंद्रशेखर पोल (Chandrashekar Pole) को गोली मारकर हत्या कर दी। पोल 2023 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए थे और गैस स्टेशन पर काम कर रहे थे।

इन घटनाओं से साफ है कि अमेरिका में भारतीयों, खासकर हिंदुओं के प्रति बढ़ती नफरत केवल ऑनलाइन नहीं, बल्कि सड़कों पर भी हिंसा का रूप ले रही है। उन्हें ‘कमतर इंसान’ समझा जाने लगा है, जिससे वे नस्लभेदी लोगों और अपराधियों दोनों के लिए आसान निशाना बन गए हैं।

नव-नाजी भारतीयों के प्रति प्रदर्शित करते हैं नरसंहारी घृणा और हिंदू देवताओं का करते हैं उपहास

जब भारतीयों पर हिंसा और हमले बढ़ रहे हैं, तब कुछ नस्लवादी लोग सोशल मीडिया पर सनातन धर्म और उसके देवी-देवताओं का मजाक उड़ाकर नफरत फैलाने में लगे हैं। वे इसे ‘ईसाई देशों’ से खत्म करने की बातें तक कर रहे हैं।

दिवाली के समय तो यह नफरत चरम पर पहुँच गई थी, जब हिंदुओं के उत्सव और खुशी उन्हें बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने जिहादियों की तरह घृणित हमले शुरू कर दिए।

इनमें से कई लोग हिंदुओं को ‘पैगन’ (असभ्य या मूर्तिपूजक) कहते हैं, देवी-देवताओं को ‘झूठा या शैतानी’ बताते हैं और दूसरों को ‘कर्स विष्णु’ लिखने के लिए उकसाते हैं ताकि वे दिखा सकें कि वे भारतीय नहीं हैं। ऐसा व्यवहार खास तौर पर अमेरिका के Make America Great Again (MAGA) समूह में देखा जा रहा है।

यह प्रवृत्ति केवल कुछ कट्टर समर्थकों तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिकी राजनीति तक पहुँच गई है।

टेक्सास के रिपब्लिकन सीनेट उम्मीदवार अलेक्जेंडर डंकन ने भगवान हनुमान को ‘झूठा देवता’ कहकर उनका विरोध किया और यह तक कहा कि यह एक ईसाई देश है। उन्होंने अपने बयान को सही ठहराने के लिए बाइबिल की लाइन्स भी उद्धृत किए और बाद में अपने हिंदू-विरोधी पोस्ट का बचाव किया।

यह गिरोह तो यहाँ तक चाहता है कि सभी भारतीयों को अमेरिका से निकाला जाए, यहाँ तक कि ट्रम्प प्रशासन में काम कर चुकी तुलसी गबार्ड जैसी नेता को भी, जो सामोन और गोरी मूल की हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह हिंदू हैं।

इनके अनुसार नागरिकता या राजनीतिक विचारधारा कोई मायने नहीं रखती, जब तक व्यक्ति उनकी नस्लवादी सोच के खिलाफ हो।

ये लोग उपनिवेशवाद और भारतीयों के नरसंहार का महिमामंडन करते हैं, भारत और हिंदुओं के बारे में अपमानजनक बातें करते हैं, झूठे आरोप लगाते हैं और भारतीय उपलब्धियों को कम करके दिखाते हैं ताकि अपने पूर्वजों के खूनी इतिहास को ढका जा सके।

वे खुले तौर पर भारत के खिलाफ ‘सामूहिक नरसंहार’ और ‘नए उपनिवेश’ की धमकियाँ देते हैं।

विडंबना यह है कि इन्हीं गोरे वर्चस्ववादियों ने कभी वर्तामान अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के परिवार को भी उनकी पत्नी के कारण निशाना बनाया था, क्योंकि उनकी पत्नी उषा हिंदू हैं। अब वही वेंस अगर खुद हिंदू धर्म पर टिप्पणी कर रहे हैं, तो यह बेहद चिंताजनक है।

अमेरिका, जो खुद को समानता और धार्मिक स्वतंत्रता का रक्षक बताता है, वहाँ के उपराष्ट्रपति द्वारा ऐसा कहना न केवल विरोधाभास दिखाता है बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि इससे पहले से ही नस्लवाद झेल रहे भारतीय और हिंदू समुदाय पर क्या असर पड़ेगा? क्या इससे ईसाई कट्टरपंथियों और नस्लवादियों को और ताकत नहीं मिलेगी?

इसके अलावा वेंस ने अपनी पत्नी के बारे में पूछे जाने पर ‘हिंदू’ की जगह ‘Agnostic’ जैसा शब्द इस्तेमाल किया, जो उनके निजी पूर्वाग्रहों को भी उजागर करता है। जब किसी हिंदू महिला से विवाह करना आसान था, तो उसके धर्म को स्वीकार करना इतना कठिन क्यों?

धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट जारी करने वाला वही देश अगर खुद इस दोहरे मापदंड पर चले, तो यह उसकी पाखंडपूर्ण नीतियों और दिखावटी लोकतंत्र का उदाहरण है।

इसके साथ ही, डोनाल्ड ट्रम्प की भारत-विरोधी टिप्पणियाँ, जो उन्होंने मोदी सरकार द्वारा उनकी कुछ माँगें (जैसे कि रूस से तेल न खरीदना, कश्मीर पर उनकी मध्यस्थता मानना  और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करना) न मानने पर दीं, उसने इस नफरत को और भड़काया है।

निष्कर्ष

अमेरिका, जो अक्सर दुनिया, खासकर भारत को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता, सहिष्णुता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर भाषण देता है, वास्तव में हमेशा से ईसाई मजहब को अन्य सभी धर्मों से ऊपर रखता आया है। यह देश खुद को ‘आदर्श लोकतंत्र’ या ‘वास्तविक यूटोपिया’ की तरह पेश करता है, जबकि सच्चाई यह है कि यह नस्लवाद और हिन्दू-द्वेष (Hindumisia) का केंद्र है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जब शपथ लेते हैं तो वे संविधान पर नहीं बल्कि बाइबिल पर हाथ रखते हैं, इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका का सर्वोच्च पद भी पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष नहीं है। अमेरिकी मीडिया ने भी बरसों से हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रह दिखाया है। 1910 के पुराने अमेरिकी अखबारों में ‘हिंदुओ’ के प्रति नफरत भरे लेख इसका प्रमाण हैं।

डोनाल्ड ट्रंप, जेडी वेंस या फिर आम कट्टर समर्थक, सभी में एक समान सोच दिखती है, वो है हिंदू धर्म का अपमान करना और भारत व भारतीयों को निशाना बनाना। मौजूदा प्रशासन भी यह जानते हुए कि इससे आम भारतीयों और हिंदुओं को नुकसान होता है, फिर भी अपने नस्लवादी वोटबैंक को खुश करने में लगा हुआ है।

इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने हमेशा अपने हितों और एजेंडे को ही प्राथमिकता दी है। माना जा रहा है कि ट्रंप के कार्यकाल के बाद जेडी वेंस रिपब्लिकन पार्टी (GOP) के संभावित राष्ट्रपति उम्मीदवार होंगे। लेकिन यह भी तय है कि उन्हें गैर-ईसाई पत्नी होने के कारण अपने ही रूढ़िवादी समर्थकों से आलोचना झेलनी पड़ सकती है।

अमेरिका, जो खुद को लोकतंत्र का रक्षक कहता है, वहाँ अब तक हर राष्ट्रपति ईसाई पुरुष ही रहा है और निकट भविष्य में इसके बदलने की संभावना भी नहीं दिखती। इसलिए यह पूरी तरह संभव है कि वेंस आगामी चुनाव से पहले अपनी पत्नी को ईसाई धर्म अपनाने के लिए राजी करने की कोशिश करें।

मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में रुक्मा राठौर ने लिखी है। इसका अनुवाद सौम्या सिंह ने किया है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।



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