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इंदिरा-इंदिरा का भोंपू बजाने वाले क्या बाबू जगजीवन राम को दलित होने की देते हैं सजा? बांग्लादेश ने मुक्ति के लिए दिया सम्मान, पर कॉन्ग्रेस की कब मिटेगी नफरत


इंदिरा गाँधी, जगजीवन राम

संसद के मानसून सत्र में लगातार ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हो रही है। लोकसभा में इस चर्चा के दौरान राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी.. अपनी दादी इंदिरा गाँधी को ‘आयरन लेडी’ बताते रहे। लेकिन सच्चाई क्या है? सच्चाई यह है कि कॉन्ग्रेस द्वारा बाबू जगजीवन राम का क्रेडिट छीन लिया गया। आज बहुत कम लोग उनका नाम जानते हैं।

कॉन्ग्रेस ने दलित नेता जगजीवन राम को उनका हकदार क्रेडिट नहीं दिया। सारा क्रेडिट इंदिरा गाँधी को दिया जाता है। जबकि क्रेडिट सेना को मिलना चाहिए था, और उस समय के रक्षा मंत्री जगजीवन राम को भी। एलजेपी सांसद शांभवी चौधरी ने लोकसभा में इस बात का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस दलितों की मसीहा बनती है, लेकिन अपने ही दलित नेता के योगदान को छिपाती है।

बाबू जगजीवन राम और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भारतीय सेना की बहादुरी, अटूट हौसले और सफलता का सबसे अच्छा उदाहरण है। 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है, जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश को पाकिस्तान की जुल्मों से आजाद कराया और इतिहास व भूगोल दोनों बदल दिए। बांग्लादेश का जन्म हुआ। कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रमुख दलित चेहरे और पूर्व उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम को इस युद्ध के नायकों में से एक माना जाता है। लेकिन कॉन्ग्रेस ने गाँधी परिवार को महान बनाने के चक्कर में उन्हें बहुत कम सम्मान दिया।

1971 में पाकिस्तान के तानाशाह जनरल याह्या खान की जुल्म और अत्याचार से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) टूट रहा था। भारत भी प्रभावित हुआ। करीब एक करोड़ शरणार्थी बांग्लादेश से भारत आए। जैसे-जैसे संकट बढ़ा, भारत ने पाकिस्तान के उस हिस्से की मदद करने का फैसला किया। देश की तीनों सेनाओं ने रक्षा मंत्रालय और रक्षा मंत्री के नेतृत्व में अटूट बहादुरी दिखाई।

बाबू जगजीवन राम ने फ्रंट से किया नेतृत्व

बाबू जगजीवन राम की 1971 युद्ध में भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। बांग्लादेश ने कॉन्ग्रेस नेता और तत्कालीन रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम को इस युद्ध का नायक माना। भारतीय सेना में सिर्फ देशभक्ति का जोश नहीं था, बल्कि यह युद्ध भारत की बजाय दूसरे देश के लिए लड़ा गया। जगजीवन राम ने सेना के जवानों का मनोबल बढ़ाने और उनमें विश्वास जगाने में बड़ी भूमिका निभाई। 1970 में रक्षा मंत्री बनने के बाद से ही भारत-पाकिस्तान युद्ध का खतरा बढ़ रहा था।

इस दौरान पश्चिम पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) पूर्वी पाकिस्तान पर बड़े-बड़े अत्याचार कर रहा था। जगजीवन राम की बेटी और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने 16 दिसंबर 2016 को ‘1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध: बांग्लादेश की मुक्ति’ नामक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम इंडियन वॉर वेटरन्स एसोसिएशन, इंडिया फाउंडेशन और नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के साथ मिलकर आयोजित हुआ था। मीरा कुमार ने अपने भाषण में बताया कि उनके पिता के नेतृत्व में की गई तैयारियाँ कितनी महत्वपूर्ण थीं।

मीरा कुमार ने कहा कि जगजीवन राम रक्षा मंत्री बनने के बाद पूरे देश में घूमे और सेना से मिले। उन्होंने कहा, “हमारी इतिहास, परंपरा या जड़ों में पहले हमला करने की आदत नहीं है। लेकिन अगर युद्ध थोपा गया, तो यह भारत की जमीन पर नहीं होगा। हम दुश्मन को पीछे धकेलेंगे और उनके क्षेत्र पर लड़ेंगे।” उन्होंने हर दो-तीन दिन में संसद में स्थिति और युद्ध तैयारियों पर ब्रीफिंग दी।

बाबू जगजीवन राम हर दो-तीन दिन में सार्वजनिक भाषण देते, लोगों को राष्ट्रीय घटनाओं और युद्ध योजनाओं की जानकारी देते। शहरों और गाँवों में सबको कहते, “डरने की कोई बात नहीं। हम इस युद्ध को ऐतिहासिक बना देंगे।” उन्होंने देश में जरूरी माहौल बनाया। मीरा कुमार ने बताया कि जगजीवन राम कहते थे, “आप किसी व्यक्ति का सम्मान करें या न करें, लेकिन सैनिक को देखकर सम्मान जरूर करें, क्योंकि अमूर्त चीज के लिए जान देना आम बात नहीं है।”

देश की रक्षा सिर्फ सीमा पर सेना का लड़ना नहीं है। रक्षा का मतलब है कि हर व्यक्ति देश और उसके सम्मान की रक्षा करे। जगजीवन राम को बांग्लादेश की मुक्ति बहिनी पर भी भरोसा था। उन्होंने भारतीय सेना को निर्देश दिया कि दुश्मन क्षेत्र में घुसते समय घनी आबादी वाली जगहों से दूर रहें, ताकि लोगों को असुविधा न हो।

मीरा कुमार ने कहा कि पाकिस्तानी सेना की क्रूरता इतिहास में दर्ज है, लेकिन भारतीय सेना पर ऐसी कोई शिकायत नहीं आई। उन्होंने इस युद्ध को सम्मानजनक बताया। यह युद्ध इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे बांग्लादेश बना और इतिहास-भूगोल बदल गया।

93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। पहली बार भारतीय नौसेना ने किसी युद्ध में हिस्सा लिया। पहले युद्धों में सिर्फ थलसेना और वायुसेना शामिल हुई थीं। ऑपरेशन ट्राइडेंट भारतीय नौसेना का पहला और सबसे सफल अभियान था। इसमें पाकिस्तान की रीढ़ कराची को नुकसान पहुँचाया गया, जिससे उनका मनोबल टूट गया। इसी युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण किया।

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़े इन महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में देश को पता न चलने की वजह कॉन्ग्रेस का परिवारवाद है। पार्टी ने ऐतिहासिक घटनाओं का क्रेडिट सिर्फ नेहरू-गाँधी परिवार को दिया। इसी वजह से जगजीवन राम का नाम युद्ध के रिकॉर्ड से गायब हो गया। दलितों की ‘मसीहा’ बनने वाली कॉन्ग्रेस ने अपने दलित नेता की उपलब्धि पर ध्यान नहीं दिया। अगर बांग्लादेश ने जगजीवन राम को युद्ध नायक न बताया होता, तो यह सच्चाई कभी सामने न आती।

बांग्लादेश ने जगजीवन राम के योगदान को उजागर किया। अगर बांग्लादेश ने ध्यान न दिलाया होता, तो जगजीवन राम का योगदान कभी पता न चलता। 2012 में बांग्लादेश की आजादी के 41 साल बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना के समय में उनकी भूमिका सामने आई। बांग्लादेश ने 1971 के पाकिस्तान युद्ध में तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम को ‘महत्वपूर्ण’ माना। उन्होंने प्रशंसा पत्र लिखा।

बांग्लादेश की ओर से जारी प्रशंसा में कहा गया, “उन्होंने बांग्लादेश और भारतीय सेनाओं की ‘संयुक्त कमान’ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे अंतिम हमले में जीत मिली।” इसमें आगे लिखा गया, “उन्होंने बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों को प्रशिक्षण, हथियार और आपूर्ति देकर युद्ध रणनीति को मजबूत किया। लेकिन राजनीतिक इतिहास उन्हें 16 दिसंबर 1971 के संसद भाषण के लिए ज्यादा याद रखेगा, जिसमें उन्होंने स्वतंत्र बांग्लादेश के उदय की घोषणा की।”

जगजीवन राम के संसद भाषण का जिक्र भी पत्र में है। उन्होंने कहा, “मुझे एक घोषणा करनी है। पश्चिम पाकिस्तान की सेना ने बांग्लादेश के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। ढाका अब स्वतंत्र देश की राजधानी है।” पाकिस्तान के संयुक्त भारत-बांग्लादेश बलों के सामने आत्मसमर्पण के कुछ मिनट बाद ही जगजीवन राम ने संसद में भाषण दिया।

बांग्लादेश ने किया बाबू जगजीवन राम का सम्मान

साल 2012 में बांग्लादेश ने उन्हें सम्मानित किया। मीरा कुमार के बेटे और जगजीवन राम के पोते अंशुल कुमार वहाँ मौजूद थे। 20 अक्टूबर 2012 को बंगबंधु इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस हॉल में राष्ट्रपति मोहम्मद जिल्लुर रहमान और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सम्मान दिया। अंशुल ने कहा, “उल्लेखनीय बात है कि वे (जगजीवन राम) कभी युद्ध नहीं चाहते थे, सिर्फ न्याय चाहते थे, क्योंकि पाकिस्तानी सैनिकों ने बांग्लादेश में नरसंहार किया और भारत पर हमला किया।” सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी जगजीवन राम के नेतृत्व की सराहना की।

इस समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल, जगजीवन राम और कर्नल (रिटायर्ड) अशोक तारा समेत 61 ‘विदेशी मित्रों’ को सम्मानित किया गया। अशोक तारा ने शेख हसीना और उनके परिवार को पाकिस्तानी सेना की कैद से बचाया था। कई बुजुर्ग व्हीलचेयर पर आए। कुछ को मरणोपरांत सम्मान मिला। गुजराल और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला को ‘बांग्लादेश लिबरेशन वॉर ऑनर’ दिया गया। बाकी को ‘फ्रेंड्स ऑफ लिबरेशन वॉर’ सम्मान। 61 में 51 भारतीय थे, जिनमें सेना के वेटरन्स, सहायता कार्यकर्ता, राजनेता, पत्रकार, कलाकार और राजनयिक शामिल थे।

स्वतंत्रता सेनानी से बांग्लादेश के जनक तक का सफर

जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को हुआ। वे दलित समुदाय से थे और सामाजिक न्याय के योद्धा थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे, जैसे रक्षा मंत्री (1970-74), कृषि मंत्री (1974-77)। 1971 युद्ध में उनकी भूमिका भारत की जीत में निर्णायक थी। वे सबसे लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री रहे। लेकिन कॉन्ग्रेस ने उनका योगदान छिपाया, क्योंकि परिवारवाद हावी था। आज भी दलित नेता होने के बावजूद उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता।

मीरा कुमार ने अपने भाषण में बताया कि जगजीवन राम ने युद्ध के बाद दो साल तक रक्षा मंत्री बने रहकर जवानों की देखभाल की। वे प्रत्येक जवान की तरह परिवार की तरह देखते थे। उन्होंने जिनेवा कन्वेंशन का पालन किया और PoW को अच्छा व्यवहार दिया। अमेरिकी सातवें फ्लीट के आने पर भी वे आश्वस्त रहे।

सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि जगजीवन राम का नेतृत्व बेजोड़ था। उन्होंने मुक्ति बहिनी से संपर्क रखा, हथियार दिए। युद्ध में समन्वय, लॉजिस्टिक्स और कमांड चेन को संभाला। जनरल नियाजी का मनोबल टूटा, जिससे आत्मसमर्पण हुआ।

कॉन्ग्रेस को दलित नेताओं के क्रेडिट को खाने का इतिहास

कॉन्ग्रेस का यह रवैया दिखाता है कि वे दलितों के नाम पर वोट लेते हैं, लेकिन उनके नेताओं को क्रेडिट नहीं देते। जगजीवन राम जैसे नायक को भुला दिया गया। आज नई पीढ़ी को उनकी कहानी पता होनी चाहिए। शांभवी चौधरी जैसे सांसदों ने इसे उठाया, ताकि सच्चाई सामने आए। 1971 युद्ध सिर्फ सैन्य जीत नहीं, बल्कि मानवता की जीत था, जिसमें जगजीवन राम का बड़ा हाथ था।

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