भारत के चीफ जस्टिस (CJI) ने एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लिया है। अब सुप्रीम कोर्ट अपने स्टाफ की भर्ती में SC\ST के अलावा OBC, दिव्यांजनों, पूर्व सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को आरक्षण का फायदा देगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह फैसला 64 साल बाद आया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। यह बदलाव इसलिए किया गया है ताकि सुप्रीम कोर्ट में भी समाज के सभी वर्गों के लोगों को नौकरी के बराबर मौके मिलें। इससे पहले कोर्ट में इस तरह का आरक्षण नहीं था।
क्या है नया फैसला?
यह फैसला चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में लिया गया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ऑफिसर्स एंड सर्वेंट्स (कंडीशन्स ऑफ सर्विस एंड कंडक्ट) रूल्स, 1961 के नियम 4A में बदलाव किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 146(2) के तहत अपने कर्मचारियों की भर्ती के नियम खुद तय करता है। अब इन सभी आरक्षित वर्गों को केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए आरक्षण के अनुसार फायदा मिलेगा।
किसे कितना मिलेगा आरक्षण?
इस नए नियम के तहत OBC को 27%, SC को 15% और ST को 7.5% आरक्षण मिलेगा। यह आरक्षण सीनियर पर्सनल असिस्टेंट, असिस्टेंट लाइब्रेरियन, जूनियर कोर्ट असिस्टेंट, चैंबर अटेंडेंट जैसे पदों के लिए होगा।
OBC के लिए यह फैसला 33 साल बाद आया है। 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने OBC को 27% आरक्षण को सही ठहराया था। लेकिन अब तक सुप्रीम कोर्ट की अपनी भर्तियों में OBC को यह फायदा नहीं मिला था।
व्यवस्था होगी और पारदर्शी
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील पी विल्सन ने इसे एक ‘ऐतिहासिक सुधार’ बताया है। विल्सन ने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट की भर्तियाँ राष्ट्रीय आरक्षण नीति के हिसाब से होंगी।
चीफ जस्टिस गवई ने SC\ST के लिए 200 पॉइंट रोस्टर सिस्टम भी लागू करने की पहल की है। यह सिस्टम आरके सबरवाल बनाम हरियाणा राज्य केस (1995) में सुझाया गया था। इससे आरक्षण व्यवस्था और भी साफ और न्यायसंगत बनेगी।