रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर हैं। इस दौरे पर अमेरिका से लेकर चीन तक सबकी नजरें हैं। एक और दो पुराने सहयोगियों का यह मिलन कई लोगों की आँखों में खटक रहा है तो दूसरी तरफ भारत में इसे लेकर उत्साह है। पुतिन के दौरे के साथ-साथ उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए गिफ्ट पर भी खूब चर्चा हो रही है।
दरअसल, पीएम मोदी ने पुतिन को रूसी भाषा में लिखी ‘भगवद्गीता’ गिफ्ट की है। दुनिया की सबसे अधिक भाषाओं में अनुवादित ग्रंथों में शामिल ‘भगवद्गीता’ भारतीय सांस्कृतिक विरासत का आधार मानी जाती रही है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युद्धक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया यह दिव्य ज्ञान हजारों वर्षों बाद भी लोगों को जीवन की प्रेरणा देता है।
2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत की विदेश नीति को भी सांस्कृतिक मोड़ दिया है और ‘भगवद्गीता’ इसके केंद्र में रही है। यह केवल धार्मिक ग्रंथ के रूप में ही नहीं बल्कि भारत की सभ्यता-परंपरा के प्रतीक के रूप में विदेश नीति का हिस्सा बन गई है। पिछले एक दशक में यह साफ दिखा है कि मोदी सरकार ने गीता को सॉफ्ट-डिप्लोमेसी के जरिए के तौर पर इस्तेमाल किया है।
सितंबर 2014 में पीएम मोदी जापान के दौरे पर गए थे और वहाँ उन्होंने सम्राट अकीहितो को ‘भगवद्गीता’ की एक प्रति भेंट की थी। साथ ही, उन्होंने इसे सबसे शानदार उपहार बताया था और उन्होंने वहीं साफ कर दिया था कि इस पर बेशक बहस होती रहे लेकिन वह आगे भी ‘भगवद्गीता’ भेंट करते रहेंगे। इसके कुछ ही दिनों बाद वह अमेरिकी दौरे पर गए और वहाँ तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी ‘भगवद्गीता’ भेंट की थी और तब से अब तक यह सिलसिला लगातार जारी है।

जब मोदी किसी विदेशी नेता को गीता भेंट करते हैं तो वह सिर्फ एक किताब देने भर का काम नहीं करते बल्कि यह संदेश भी देते हैं कि भारत की पहचान उसकी जड़ों, उसकी आध्यात्मिक विरासत से ही आती है। भारत सिर्फ एक राजनीति शक्ति नहीं बल्कि हजारों वर्षों से सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रहा है और गीता जैसा ज्ञान-दर्शन ही उसकी जड़े हैं।
PM मोदी यह मानते हैं कि यह पुस्तक किसी धर्म तक सीमित नहीं बल्कि जीवन को समझने और सही निर्णय लेने का मार्ग दिखाती है। यही वजह है कि जब वे जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे हों या चीन, अमेरिका और रूस के राष्ट्रपति किसी भी बड़े नेता को ‘भगवद्गीता’ देते हैं, तो वह भारत की सांस्कृतिक सोच को उस देश या व्यक्ति से जोड़ने का एक तरीका बन जाता है। इसे वे एक तरह का ‘सांस्कृतिक संवाद’ मानते हैं।
इस पूरे दृष्टिकोण को भारत की प्राचीन सभ्यता पर आधारित कूटनीति कहा जा सकता है। भारत की सदियों से योग, आयुर्वेद, अध्यात्म और लोकतांत्रिक मूल्यों की वजह से दुनिया में एक प्रतिष्ठा रही है। जैसे योग आज पूरे विश्व में एक स्वीकार्य प्रतीक बन चुका है, उसी तरह गीता को भी एक वैश्विक नैतिक और दार्शनिक ग्रंथ के रूप में पेश करने का प्रयास पीएम मोदी द्वारा नजर आता है।
इन प्रयासों के नतीजे भी दिखते हैं। अब गीता सिर्फ पूजा में रखी जाने वाली किताब नहीं रह गई बल्कि भारत की सॉफ्ट पावर का एक सरल और सम्मानित प्रतीक बन गई है। PM मोदी की इस पहले के समर्थकों का तर्क है कि भारत को अपने प्रतीकों और परंपराओं को छिपाकर नहीं रखना चाहिए बल्कि आत्मविश्वास के साथ दुनिया के सामने रखना चाहिए।
कुल मिलाकर पीएम मोदी के दौर में गीता एक धार्मिक ग्रंथ से आगे बढ़कर भारत की विदेश नीति की एक सांस्कृतिक पहचान बन गई। यह बताती है कि भारत अपनी जड़ों और अपनी आधुनिक सोच को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता है।
ऐसी बैठकों में या उनके पहले-बाद में जहाँ डिफेंस से लेकर टेक्नोलॉजी तक की डील होती हैं, 21वीं सदी के विज्ञान पर चर्चा होती है। वहाँ गीता का उपहार देना सिर्फ सांस्कृतिक कदम नहीं है बल्कि इसके पीछे एक राजनीतिक संदेश भी नजर आता है।
पीएम मोदी यह दिखाना चाहते हैं कि भारत सिर्फ तकनीक, विकास और सैन्य शक्ति से नहीं बल्कि अपने मूल्यों और दर्शन से भी मजबूत है। यह एक तरह का ब्रांड इंडिया है, जो बताता है कि भारत अपनी आधुनिक उपलब्धियों और प्राचीन ज्ञान, दोनों को साथ लेकर चलता है।













