CEC ज्ञानेश कुमार

भारत निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि अगले चरण में 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन कराया जाएगा। आयोग ने एसआईआर अभियान का शेड्यूल घोषित कर दिया है। आने वाले एसआईआर में पश्चिम बंगाल जैसे चुनावी राज्यों को शामिल किया गया है लेकिन 2026 में चुनाव होने वाले असम को इन 12 राज्यों में शामिल नहीं किया गया है।

बिहार और पश्चिम बंगाल में एसआईआर से लेफ्टिस्ट्स और उसके साथी एंटी-बीजेपी इकोसिस्टम को जलन हुई थी, वही लोग अब आयोग के असम में एसआईआर न कराने के फैसले से बौखला गए हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सोमवार (27 अक्टूबर 2025) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को बताया कि असम के लिए नागरिकता का नियम ‘देश के बाकी हिस्सों से अलग’ है, इसलिए असम में एसआईआर के लिए अलग आदेश जारी किया जाएगा।

असम को अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरह एसआईआर न कराने की वजह बताते हुए सीईसी कुमार ने कहा, “चुनाव आयोग असम में एसआईआर कराने के लिए अलग आदेश जारी करेगा। नागरिकता अधिनियम के तहत असम में नागरिकता के लिए अलग प्रावधान हैं। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता जाँच का काम लगभग पूरा होने वाला है। 24 जून का एसआईआर आदेश पूरे देश के लिए था। ऐसी स्थिति में यह असम पर लागू नहीं होता।”

उन्होंने आगे जोड़ा, “असम के लिए अलग संशोधन आदेश जारी किए जाएँगे और अलग एसआईआर तारीख घोषित की जाएगी।”

यह ध्यान रखना जरूरी है कि असम 1955 के नागरिकता अधिनियम और 1985 के असम समझौते की अलग प्रावधानों के कारण अलग नियमों पर चलता है। साल 1985 के असम समझौते के बाद जोड़ी गई नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए कहती है कि 1 जनवरी 1966 से पहले बांग्लादेश से असम में घुसे प्रवासियों को भारतीय नागरिक माना जाएगा, जबकि 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच घुसे लोगों को नागरिकता के लिए योग्य माने जाने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी।

असम का विशेष नागरिकता कानून विदेशियों को वोटिंग या नागरिकता अधिकारों से रोकता है। ऐसे में आयोग एक समान एसआईआर लागू नहीं कर सकता, खासकर बिना असम के विशेष प्रावधानों से टकराए। क्योंकि 2003 की कटऑफ वाली एसआईआर सत्यापन अनजाने में उससे ओवरलैप या कमजोर कर सकती है।

इसके अलावा साल 2013 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश और निगरानी वाला असम एनआरसी लगभग पूरा होने वाला है। हालाँकि अंतिम अपीलें और पुन:सत्यापन बाकी हैं। असम एनआरसी ने पहले ही 19 लाख से ज्यादा लोगों को ‘संदिग्ध नागरिक’ के रूप में बाहर कर दिया है, जिससे विपक्ष भड़का है। इसलिए अब एसआईआर कराना दोहरी हटाने, डुप्लिकेट मेहनत का जोखिम और सुप्रीम कोर्ट के एनआरसी टाइमलाइन में हस्तक्षेप का मतलब होगा। चूँकि असम में नागरिकता का फैसला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है, इसलिए एसआईआर से समानांतर संशोधन करना अव्यवहारिक होगा।

‘बिहार और बंगाल में SIR बुरा तो रोके सुप्रीम कोर्ट और असम में SIR अच्छा, इसलिए चुनाव आओग NRC को नजरअंदाज कर कराए SIR: वापमंथियों का पाखंड अलग ही स्तर का

लेफ्टिस्ट्स को किसी चीज पर गुस्सा होना और अपनी सुविधा के हिसाब से उसे गले लगाना पसंद है। बिहार में वे चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) को या तो न कराने या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने चाहते थे। लेकिन असम में वही लेफ्टिस्ट्स गुट चाहता है कि आयोग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करके एसआईआर करे, सिर्फ इसलिए क्योंकि लेफ्टिस्ट्स ऐसा चाहते हैं।

याद रखना चाहिए कि इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में कई विपक्षी नेताओं जैसे टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, AAP के पूर्व सह-संस्थापक योगेंद्र यादव, आरजेडी सांसद मनोज झा और संगठनों जैसे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा चुनाव आयोग के बिहार में एसआईआर कराने के बारे में याचिकाओं का एक बैच दायर किया गया था।

इन लोगों ने सुप्रीम कोर्च से SIR पर रोक लगाने की अपील की थी, दावा किया कि यह बड़ी संख्या में मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की साजिश है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनका तर्क खारिज कर दिया और एसआईआर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, मान लिया कि यह नकली मतदाताओं को हटाकर मतदाता सूची अपडेट करने का रूटीन अभ्यास है और आयोग को संवैधानिक रूप से ऐसा करने का अधिकार है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं के सामूहिक मताधिकार चुराने के आरोपों को ‘विश्वास की कमी’ का मामला बताया।

अब वही इच्छाधारी प्रदर्शनकारी योगेंद्र यादव असम में एसआईआर न होने से नाराज है। 27 अक्टूबर को एक एक्स पोस्ट में योगेंद्र यादव ने लिखा, “असम इकलौता चुनावी राज्य है जहाँ एसआईआर नहीं होगा। सोचता हूँ क्यों।”

इसी तरह, डीएमके प्रवक्ता सरवनन अन्नादुरई ने भी पूछा कि असम में एसआईआर क्यों नहीं हो रहा। उन्होंने आयोग की ईमानदारी पर भी शक जताया और कहा, ‘…आयोग ने बिहार के अनुभव से क्या सीखा और इन 12 राज्यों में कैसे लागू करेगा? असम को इस एसआईआर से क्यों बाहर रखा गया? एसआईआर कब नागरिकता अभ्यास बन गया? आयोग नागरिकता के मानदंड क्यों लाने की कोशिश कर रहा है? क्या आयोग नागरिकता ढूँढने वाली यूनिट है?’

इस बीच, कॉन्ग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने भी आयोग की सफाई को खारिज कर दिया कि एससी-आदेशित एनआरसी प्रक्रिया चल रही है इसलिए एसआईआर उचित नहीं। उन्होंने इसे महज ‘बहाना’ बताया।

मोहम्मद ने कहा, “अगले साल चार राज्य चुनाव लड़ेंगे-केरल, तमिलनाडु, और पश्चिम बंगाल को एसआईआर में शामिल किया गया, लेकिन असम को नहीं। क्यों? असम बांग्लादेश से सीमा साझा करता है और इसमें संदिग्ध घुसपैठियों की बड़ी संख्या है। सीईसी ने एनआरसी का बहाना दिया लेकिन एनआरसी में क्या हुआ? 19 लाख बाहर हुए लोगों में से सिर्फ 7 लाख मुसलमान थे, और 12 लाख गैर-मुस्लिम। 1600 करोड़ से ज्यादा टैक्सपेयर्स का पैसा बर्बाद करने के बाद एनआरसी को चुपचाप ड्रॉप कर दिया गया। आयोग बिहार में मिले घुसपैठियों की संख्या क्यों नहीं बता रहा? और 47 लाख डिलीट वोटर्स की लिस्ट क्यों जारी नहीं की? लोग कैसे जानेंगे कि उनके नाम डिलीट हुए हैं और तभी तो आपत्ति उठा सकेंगे?”

द प्रिंट ने भी आयोग के असम को मतदाता सूची के दूसरे दौर के एसआईआर से बाहर रखने पर अपना ’50 वर्ड एडिट’ निकाला। उसने लिखा, “चुनाव आयोग का असम को मतदाता सूची के दूसरे दौर के एसआईआर से बाहर रखने की सफाई उलझी हुई और तर्कहीन है। इसे एनआरसी से जोड़कर मौजूदा वोटर्स लिस्ट को संदिग्ध बना दिया। इससे नई उलझन और साजिश सिद्धांतों का मैदान तैयार हो गया। आयोग एसआईआर पर खुद को उलझा लिया है।”

हालाँकि कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके समर्थक इकोसिस्टम सुविधाजनक रूप से भूल जाते हैं कि चुनाव आयोग का काम अयोग्य मतदाताओं की पहचान करना और उनकी मतदाता सूची से नाम हटाना है। चुनाव आयोग का काम अवैध प्रवासियों को पकड़ना-निकालना, नागरिकता जारी करना या नागरिकताओं की वैधता और कानूनी स्थिति जाँचना नहीं है। बिहार एसआईआर में लगभग 6.5 मिलियन वोटर्स की लिस्ट से हटाए गए। लेकिन सभी हटाए नाम अवैध प्रवासी नहीं थे। हटाए गए में मृत वोटर्स, भारत के नागरिक साबित न करने वाले, स्थाई रूप से अन्य जगह चले गए और एक से ज्यादा लिस्ट में मौजूद वोटर्स शामिल थे।

इसके बावजूद विपक्षी दल और लेफ्टिस्ट्स अन्य राज्यों में एसआईआर का विरोध करने से असम में ‘यहाँ क्यों नहीं?’ पूछने लगे। यह साफ पाखंड इस तथ्य से उपजता है कि बिहार में कॉन्ग्रेस और अन्य एंटी-बीजेपी पार्टियाँ डर रही थीं कि उनकी वोट बैंक में अवैध, खासकर बांग्लादेशी मुस्लिम प्रवासी, मतदाता सूची से साफ हो जाएँगे।

असम में विपक्ष चाहता है कि आयोग सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर एसआईआर करे ताकि वे अपना एजेंडा चला सकें कि आयोग बीजेपी के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी कर रहा है सिर्फ मुसलमानों और बीजेपी-विरोधी परंपरागत लोगों को निशाना बनाने और मताधिकार से वंचित करने के लिए। वे जानते हैं कि एसआईआर उनके अवैध मुस्लिम वोटर-बेस को साफ कर सकता है लेकिन बीजेपी के एंटी-घुसपैठिया प्लैंक को भी वैध बना सकता है।

मोटे तौर पर अगर एसआईआर होता तो कॉन्ग्रेस और लेफ्टिस्ट्स चिल्लाते कि आयोग-बीजेपी मिलकर मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश रच रहे, लेकिन चूँकि इस साल नहीं हो रहा, वे चिल्ला रहे कि चुनाव से पहले एसआईआर क्यों नहीं। विपक्षी दल सुझा रहे हैं कि आयोग असम में एसआईआर टाल रहा क्योंकि 2019 एनआरसी में 19 लाख बाहर हुए में 7 लाख मुसलमान और 12 लाख गैर-मुस्लिम (यानी हिंदू, भारतीय और बांग्लादेशी दोनों) थे, बीजेपी उन हिंदुओं को मतदाता सूची से हटने से बचाने की कोशिश कर रही जो एनआरसी में छूट गए।

लंबे समय से NRC का लटके रहना सिर्फ इसलिए है क्योंकि लिस्ट में कथित शामिल और बाहर करने पर व्यापक चिंताएँ उठीं। सीएम सरमा ने पहले इस पर चिंता जताई थी। असम सरकार का कहना है कि मौजूदा रूप में एनआरसी में कई विदेशी शामिल हैं और कई स्वदेशी लोग बाहर। इसके अलावा एनआरसी की कटऑफ डेट 24 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से घुसे लोगों की संख्या 19 लाख से कहीं ज्यादा है।

चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और निगरानी वाली नागरिकता जाँच का काम लगभग पूरा होने वाला है, इसलिए असम के लिए अलग एसआईआर घोषित किया जाएगा। फिर भी विपक्ष फर्जी नैरेटिव फैलाना चाहता है कि आयोग बीजेपी के इशारे पर असम में एसआईआर टाल रहा है।

यह विपक्ष की सुविधा की राजनीति है, वही एसआईआर जो बिहार और बंगाल में लोकतंत्र के लिए ‘खतरा’ था, वो असम में लोकतंत्र और चुनावी पवित्रता का ‘रक्षक’ बन जाता है।

यह दिलचस्प है कि आयोग ने कहा है कि असम के लिए अलग तारीख घोषित की जाएगी। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार आयोग के साथ सहयोग करने को तैयार है जब भी चुनाव आयोग एसआईआर कराने का फैसला करे।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें



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