कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे और एमएलसी यतींद्र सिद्धारमैया के एक बयान ने पूरे राज्य में सियासी तापमान बढ़ा दिया है। यतींद्र ने कहा कि उनके पिता अब राजनीति के आखिरी दौर में हैं और 2028 का चुनाव नहीं लड़ेंगे। इतना ही नहीं, यतींद्र ने यह भी कहा कि सिद्धारमैया की विरासत आगे लोक निर्माण मंत्री सतीश जारकीहोली को संभालनी चाहिए। इस बयान ने कॉन्ग्रेस में नए समीकरणों की चर्चा तेज कर दी है, खासकर तब जब डीके शिवकुमार पहले से ही सिद्धारमैया के बाद मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार माने जाते हैं।
ढाई-ढाई साल की सीएम राजनीति और नई हलचल
कर्नाटक में कॉन्ग्रेस सरकार बनने के बाद से ही सत्ता में ‘ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री’ फॉर्मूले की चर्चा चल रही है। माना जाता है कि सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच समझौता हुआ था कि दोनों आधा-आधा कार्यकाल संभालेंगे। लेकिन अब यतींद्र का बयान इस राजनीतिक समझौते पर नए सवाल खड़े कर रहा है।
राज्य की राजनीति पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दो खेमों में बँटी हुई थी। एक तरफ सिद्धारमैया का ‘आहिंदा गुट’ और दूसरी तरफ शिवकुमार का ‘वोक्कालिगा गुट’। यतींद्र के बयान ने इन दोनों गुटों के बीच तनाव और गहराने का संकेत दे दिया है।
सिद्धारमैया के बेटे ने क्या कहा?
यतींद्र सिद्धारमैया ने एक कार्यक्रम में कहा कि उनके पिता अब अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी पड़ाव पर हैं और 2028 का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यतींद्र ने कहा, “मेरे पिता को अब सतीश जारकीहोली जैसे नेताओं का मार्गदर्शन करना चाहिए। वे मजबूत विचारधारा और सामाजिक न्याय की राजनीति में यकीन रखते हैं।”
यतींद्र ने आगे कहा, “सतीश जारकीहोली में निश्चित रूप से मेरे पिता की जगह लेने की क्षमता है। वे अगले मुख्यमंत्री बन सकते हैं।” इस बयान ने ऐसा माहौल बना दिया जैसे सिद्धारमैया अपने उत्तराधिकारी का नाम खुद तय कर चुके हों, जिससे डीके शिवकुमार की दावेदारी पर सीधा असर पड़ सकता है।
कौन हैं सतीश जारकीहोली?
जानकारी के अनुसार, सतीश जारकीहोली इस समय कर्नाटक के लोक निर्माण मंत्री (PWD Minister) हैं। वे उत्तर कर्नाटक के बेलगावी जिले के यमकनमर्दी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। 63 वर्षीय जारकीहोली अनुसूचित जाति के वाल्मीकि समुदाय से आते हैं और लंबे समय से सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। वे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के ‘आहिंदा’ (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) गठबंधन के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। इस गठबंधन की राजनीति ही सिद्धारमैया की सबसे बड़ी ताकत रही है।
जारकीहोली राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली परिवार से हैं। उनके भाई रमेश जारकीहोली पहले कॉन्ग्रेस में थे, लेकिन 2018 में बीजेपी में चले गए और मंत्री बने। वहीं, उनकी बेटी प्रियंका जारकीहोली कॉन्ग्रेस की सांसद हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिद्धारमैया गुट किसी ऐसे नेता को आगे बढ़ाना चाहता है जो उनकी विचारधारा और सामाजिक एजेंडे को आगे ले जा सके। जारकीहोली इस प्रोफाइल में पूरी तरह फिट बैठते हैं।
डीके शिवकुमार ने क्या कहा?
यतींद्र के बयान के बाद पत्रकारों ने जब डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार से सवाल किया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुख्यमंत्री बदलने का कोई सवाल ही नहीं है। शिवकुमार ने कहा, “सिद्धारमैया हमारे नेता हैं। वे पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री रहेंगे। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। जो भी फैसला होगा, वह हाईकमान लेगा।”
शिवकुमार का यह बयान यह दिखाने की कोशिश थी कि वे आलाकमान के प्रति वफादार हैं और जल्दबाजी में कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते। हालाँकि, कॉन्ग्रेस के अंदर यह माना जा रहा है कि यतींद्र का बयान कहीं न कहीं शिवकुमार गुट के लिए ‘राजनीतिक चेतावनी’ की तरह है।
यतींद्र का बयान और फिर सफाई
बयान पर विवाद बढ़ने के बाद यतींद्र सिद्धारमैया ने सफाई दी। यतींद्र ने कहा कि उनका मतलब मुख्यमंत्री बदलने या किसी को हटाने से नहीं था। उन्होंने कहा, “नेतृत्व परिवर्तन की बात गलत है। मैंने सिर्फ इतना कहा था कि कॉन्ग्रेस को विचारधारा वाले नेताओं को आगे बढ़ाना चाहिए। मेरे पिता 2028 तक एक्टिव रहेंगे और पूरा कार्यकाल पूरा करेंगे।”
यतींद्र ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री बदलने पर कोई चर्चा नहीं हुई है। अगर कभी बदलाव होता है तो वह फैसला पार्टी आलाकमान और विधायक मिलकर लेंगे। यतींद्र की यह सफाई तो आई, लेकिन तब तक राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो चुकी थी कि सिद्धारमैया गुट भविष्य की तैयारी कर रहा है।
क्यों बढ़ी डीके शिवकुमार की चिंता
डीके शिवकुमार लंबे समय से मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं। वे कर्नाटक के शक्तिशाली वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं और दक्षिण कर्नाटक में उनका मजबूत जनाधार है। कॉन्ग्रेस की सरकार बनने से पहले भी उन्होंने सिद्धारमैया को समर्थन देने में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन अब वे उम्मीद कर रहे थे कि 2025 के बाद उन्हें मौका मिलेगा। यतींद्र का यह बयान इस उम्मीद पर पानी फेरने जैसा है। सिद्धारमैया गुट का झुकाव किसी दलित नेता की ओर दिखाना यह संकेत है कि सत्ता का संतुलन बदल सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर सिद्धारमैया जारकीहोली को आगे बढ़ाते हैं, तो वे अपने ‘आहिंदा वोट बैंक’ को मजबूत रखना चाहेंगे, जबकि शिवकुमार का आधार मुख्य रूप से दक्षिणी जिलों में सीमित है।
‘आहिंदा’ राजनीति और सिद्धारमैया की सोच
‘आहिंदा’ शब्द कन्नड़ के तीन शब्दों से बना है- अल्पसंख्यक (A), हिंदू पिछड़ा वर्ग (HI), और दलित (DA)। इस मॉडल की सोच सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने दी थी, लेकिन इसे आधुनिक दौर में सिद्धारमैया ने मजबूत किया। उनकी राजनीति का फोकस सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता रहा है। सतीश जारकीहोली उसी राजनीतिक विचारधारा से आते हैं। वे लगातार सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रहते हैं और सिद्धारमैया के करीबी नेताओं में शामिल हैं। इसलिए जब यतींद्र ने उन्हें ‘अगला मुख्यमंत्री’ बताया, तो इसे सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत माना गया।
यतींद्र सिद्धारमैया का बयान भले ही ‘गलतफहमी’ के रूप में पेश किया गया हो, लेकिन इसने कॉन्ग्रेस के भीतर के समीकरणों को उजागर कर दिया है। कर्नाटक की सत्ता अब दो रास्तों पर खड़ी है- एक तरफ ‘आहिंदा राजनीति’ का चेहरा सतीश जारकीहोली और दूसरी तरफ ‘वोक्कालिगा शक्ति’ के प्रतीक डीके शिवकुमार। तय है कि आने वाले महीनों में कर्नाटक की राजनीति और भी दिलचस्प मोड़ लेने वाली है।