PM SHRI योजना में शामिल हुई केरल सरकार

कभी संसद की चौखट पर खड़े होकर ‘शिक्षा का भगवाकरण’ चिल्लाने वाली केरल सरकार ने आखिरकार अपनी जिद तोड़ दी है। रविवार को ये खबर फटाफट फैली थी और मंगलवार (21 अक्टूबर 2025) तक शिक्षा मंत्री वी. सिवनकुट्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे पक्का कर दिया– राज्य प्रधानमंत्री उभरते भारत के लिए स्कूल (पीएम श्री) योजना के समझौते पर दस्तखत करेगा।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, डेढ़ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के केंद्रीय फंड्स अब केरल की ओर बहेंगे, जो टीचरों की बढ़ती बकाया तनख्वाहें चुकाने, स्टूडेंट्स को ग्रांट्स पहुँचाने और शिक्षा विभाग के चरमराते बजट को साँस देने के लिए बेहद जरूरी हो चुके हैं। लेकिन ये यू-टर्न केरल की राजनीति में भूचाल ला चुका है। सहयोगी दल सीपीआई के नेता कैबिनेट में चर्चा न होने का रोना रो रहे हैं, कॉन्ग्रेस वाले ‘सीपीएम-बीजेपी का सीक्रेट गठजोड़’ चिल्ला रहे हैं, जबकि एबीवीपी जैसे संगठन अपनी सड़क-प्रदर्शनों की जीत का बिगुल बजा रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो बहस का सैलाब उमड़ पड़ा है – कोई इसे ‘आर्म-ट्विस्टिंग की जीत’ बता रहा है, तो कोई ‘बेहतर लेट देन नेवर’ कहकर ताली बजा रहा।

आखिर ये पीएम श्री योजना है क्या, जो इतने बड़े विवाद का केंद्र बनी हुई है? केरल ने इसे इतने जोर-शोर से क्यों ठुकराया था और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का ये पुराना झगड़ा अब कहाँ खड़ा है? चलिए इस पूरी घटना को धीरे-धीरे खोलते हैं। हम योजना की बारीकियों से शुरू करेंगे, फिर विरोध की जड़ों तक जाएँगे, फंडिंग के खेल को समझेंगे और आखिर में एनईपी के उस बड़े कैनवास को देखेंगे जो इस सबका बैकग्राउंड है।

क्या है पीएम श्री योजना?

पीएम श्री (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) केंद्र सरकार की एक मेगा पहल है, जो 2022 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषित की थी। इसका मकसद देशभर के मौजूदा सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों को ‘मॉडल स्कूल’ में बदलना है। कुल 14,500 स्कूलों को टारगेट किया गया है – हर जिले के हर ब्लॉक में कम से कम दो स्कूल। ये स्कूल बाकी सरकारी स्कूलों के लिए लीडरशिप रोल निभाएंगे, यानी ये मिसाल बनेंगे कि अच्छी शिक्षा कैसे दी जा सकती है।

योजना का कोर कनेक्शन है राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 से। पीएम श्री स्कूल्स एनईपी के हर लक्ष्य को शोकेस करेंगे। एनईपी क्या है, वो थोड़ी देर में डिटेल में बताएँगे। अभी योजना की बात करें। फंडिंग का मॉडल साफ है: केंद्र 60% पैसा देगा, राज्य 40%। हर चुने गए स्कूल को 5 साल के लिए औसतन 1 करोड़ रुपये सालाना मिलेंगे। कुल बजट? करीब 27,000 करोड़ रुपये का आउटले। ये पैसा कहाँ जाएगा?

अब सवाल ये कि ये पैसा कहाँ-कहाँ लगेगा?

इंफ्रास्ट्रक्चर: स्मार्ट क्लासरूम जहाँ ब्लैकबोर्ड की जगह टचस्क्रीन और प्रोजेक्टर होंगे, डिजिटल लैब जहाँ बच्चे कोडिंग और साइंस एक्सपेरिमेंट्स करेंगे, लाइब्रेरी जहाँ किताबों का पूरा समंदर होगा और स्पोर्ट्स ग्राउंड जहाँ फिजिकल फिटनेस को बढ़ावा मिलेगा। खासकर केरल जैसे तटीय राज्य में ये सुविधाएँ और भी उपयोगी साबित होंगी – पानी से बचाव वाली मजबूत इमारतें, मछली पालन और पर्यावरण से जुड़े लोकल वोकेशनल कोर्स।

टीचर ट्रेनिंग पर फोकस: जहाँ टीचरों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं सिखाने की ट्रेनिंग दी जाएगी, बल्कि क्रिटिकल थिंकिंग, इमोशनल इंटेलिजेंस और लाइफ स्किल्स पर जोर होगा।

एनईपी की यही खूबी है कि ये टीचिंग को रटने से आगे ले जाती है। बच्चों के लिए तो जैसे स्वर्णिम अवसर खुले पड़े हैं – वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स जहाँ कारपेंटरी से लेकर डिजिटल मार्केटिंग तक सिखाया जाएगा, कल्चरल एक्टिविटीज जहाँ लोकल फेस्टिवल्स और आर्ट्स को जगह मिलेगी, योगा और स्पोर्ट्स क्लासेस जहाँ बॉडी और माइंड दोनों मजबूत होंगे। और इंक्लूजन का ख्याल रखते हुए एससी-एसटी, लड़कियों और डिसेबल्ड बच्चों के लिए स्पेशल छात्रवृत्तियाँ, हॉस्टल फैसिलिटी, फ्री मील्स और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था।

तकनीक का चलेगा जादू: आईसीटी टूल्स से ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन क्लासेस जहाँ गाँव का बच्चा शहर के लेवल पर पढ़ सके। हर स्कूल पर ‘पीएम श्री स्कूल’ का बोर्ड लगेगा, जो ब्रांडिंग से ज्यादा गर्व की बात बनेगा।

निगरानी का सिस्टम भी सख्त: केंद्र की टीमें रेगुलर विजिट करेंगी, रिपोर्ट्स चेक करेंगी कि एनईपी के 100 फीसदी गोल्स पूरे हो रहे हैं या नहीं। केरल के संदर्भ में देखें तो ये योजना 260 से ज्यादा स्कूलों पर लागू होगी।

केरल में ये योजना 260 से ज्यादा स्कूलों में रोलआउट होगी। मिनिस्टर सिवनकुट्टी के मुताबिक, ये फंड्स टेक्स्टबुक प्रिंटिंग, क्वेश्चन पेपर सेटिंग, कोस्टल रीजन की जरूरतों और एससी-एसटी स्टूडेंट्स की सुविधाओं पर खर्च होंगे। राज्य में 7,000 से ज्यादा टीचर्स की सैलरी राज्य खुद देता है, लेकिन बकाये चढ़ रहे थे। समग्र शिक्षा केरल (एसएसके) प्रोग्राम रुका पड़ा था – डिसेबल्ड बच्चों को एड इक्विपमेंट नहीं मिला। साफ है, ये योजना सिर्फ एक स्कीम नहीं, बल्कि शिक्षा के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने वाली क्रांति है। लेकिन राजनीतिक चश्मे ने इसे विवाद की भेंट चढ़ा दिया।

केरल में क्यों हो रहा था पीएम श्री का विरोध?

अब बात करते हैं केरल के उस लंबे विरोध की, जो 2022 से ही एक नाटकीय धारावाहिक की तरह चल रहा था। केरल की सीपीआई(एम)-नीत सरकार ने शुरू से ही पीएम श्री को एनईपी का ‘हथियार’ बताया, और इसका विरोध एक आइडियोलॉजिकल स्टैंड की तरह पेश किया। मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने कई बार अपनी आवाज बुलंद करते हुए कहा कि ‘एनईपी राष्ट्र के लिए खतरा है’। उन्होंने इसे ‘कम्युनल एजेंडा’ का हिस्सा ठहराया, जहाँ शिक्षा को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है।

शिक्षा मंत्री वी. सिवनकुट्टी ने मार्च 2025 में एक प्रेस रिलीज में साफ-साफ कहा था कि सरकार एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर दस्तखत नहीं करेगी, क्योंकि ये योजना राज्य की शिक्षा परंपराओं और वैल्यूज को कुचल देगी। उनका मुख्य इल्जाम था ‘साफ्रनाइजेशन ऑफ एजुकेशन’ का। सिवनकुट्टी ने कहा, ‘जब केंद्र सरकार ने टेक्स्टबुक्स से महात्मा गाँधी की हत्या जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों को मिटा दिया, तो केरल ने वैकल्पिक अध्याय इंट्रोड्यूस किए। पीएम श्री साइन करने से राज्य के स्कूलों में दोहरी सिलेबस हो जाएँगे – एक एनईपी वाली, जो भगवा रंग से रंगी लगती है और दूसरी राज्य की अपनी। इससे बच्चे कन्फ्यूजन में पड़ जाएँगे और हमारी इंक्लूसिव, सेकुलर वैल्यूज खतरे में पड़ेंगी।’

एजुकेशन एक्टिविस्ट और ऑल इंडिया सेव एजुकेशन कमिटी के स्टेट वाइस प्रेसिडेंट एम. शजार खान ने चेतावनी भरी आवाज में कहा, ‘अगर योजना को हरी झंडी मिल गई, तो केंद्र राज्य के स्कूलों पर पूरा कंट्रोल हथिया लेगा। सिलेबस और टीचिंग मेथड्स पर राज्य का कोई असर नहीं बचेगा। ये कोऑपरेटिव फेडरलिज्म का उल्लंघन है।’

केरल स्टूडेंट्स यूनियन (केएसयू) के स्टेट प्रेसिडेंट अलोशियस जेवियर ने तो एक प्रेस स्टेटमेंट में तंज कसते हुए कहा, ‘ये मुद्दा सीपीएम और बीजेपी के अंदरूनी कनेक्शंस को उजागर करता है। लंबे विरोध के बाद यू-टर्न – ये सब संयोग नहीं लगता।’ विरोध सिर्फ बयानों तक सीमित न रहा, बल्कि प्रैक्टिकल चिंताओं पर भी टिका।

केरल का शिक्षा तंत्र तो पहले से ही दुनिया का एक मॉडल है – साक्षरता दर 94 फीसदी से ऊपर, ASER और अन्य रिपोर्ट्स में टॉप रैंकिंग। राज्य का सिलेबस मल्टीलिंगुअल है, लोकल कल्चर और भाषा पर फोकस्ड। एनईपी का 5+3+3+4 स्ट्रक्चर राज्य के मौजूदा बोर्ड सिस्टम को बिगाड़ सकता था, तीन भाषाओं का फॉर्मूला मलयालम को नेगलेक्ट कर सकता था। वोकेशनल एजुकेशन को प्राइवेटाइजेशन का रास्ता खुलने का डर। और सबसे बड़ा मुद्दा ‘पीएम’ प्रिफिक्स वाले बोर्ड का – इसे राज्य ‘केंद्रीय ब्रांडिंग’ और दखलअंदाजी मानता था। ये सब मिलाकर विरोध एक मजबूत दीवार की तरह खड़ा था, लेकिन फंडिंग की दीवार ने उसे तोड़ दिया।

शतरंज के खेल में जीती केंद्र सरकार

फंडिंग का ये खेल तो जैसे एक चालाकी भरा शतरंज का मैच था, जहाँ केंद्र सरकार ने हर मोहरे को सही जगह रखा। केंद्र ने साफ शर्त रख दी- पीएम श्री का एमओयू साइन करो, वरना समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के फंड्स नहीं मिलेंगे। एसएसए क्या है? ये 2018 में शुरू हुआ वो व्यापक प्रोग्राम है, जो बच्चों के शिक्षा के अधिकार (आरटीई) 2009 को जमीनी स्तर पर लागू करता है। इसमें टीचरों की सैलरी, स्कूलों की बुनियादी सुविधाएँ, आईसीटी इंटरवेंशंस, टीचर ट्रेनिंग – सब कुछ शामिल। फंडिंग का रेशियो 60:40 – केंद्र 60 फीसदी, राज्य 40। लेकिन 2021 में इसे एनईपी से अलाइन कर दिया गया, और 2022 में पीएम श्री को इसमें शामिल कर लिया।

केरल के लिए ये झटका था। 2023-24 में एसएसए के तहत राज्य को 141.66 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन 2024-25 में शून्य। कुल अटके फंड्स 1,466 करोड़ रुपए (कुछ रिपोर्ट्स में इसे 1,500 करोड़ बताया गया)। संसद में 21 जुलाई 2025 को लोकसभा के स्टार्ड क्वेश्चन नंबर 9 के लिखित जवाब में शिक्षा मंत्रालय ने कन्फर्म किया कि तमिलनाडु और केरल को 2024-25 में एसएसए या पीएम श्री के तहत कोई फंड नहीं दिया गया।

क्योंकि दोनों राज्यों ने एनईपी 2020 को एंडोर्स करने वाला एमओयू साइन नहीं किया। तमिलनाडु को 2023-24 में 1,876.16 करोड़ मिले थे, लेकिन अब जीरो। जबकि उत्तरी राज्य फायदा उठा रहे थे – उत्तर प्रदेश को 6,264.79 करोड़ एसएसए + 246.86 करोड़ पीएम श्री, मध्य प्रदेश को 3,434.71 करोड़ एसएसए + 145.32 करोड़ पीएम श्री।

ये डिस्पैरिटी देखकर दक्षिणी राज्यों ने ‘पॉलिटिकल बायस’ का आरोप लगाया। एक सीनियर तमिलनाडु एजुकेशन ऑफिशियल ने कहा, ‘ये कुछ नहीं बल्कि पनिटिव फेडरलिज्म है। हमारे बच्चे सजा भुगत रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार केंद्र की आइडियोलॉजिकल लाइन पर नहीं चली।’

साउथ फर्स्ट की 22 जुलाई 2025 की रिपोर्ट ने इसे ‘साइन ऑर स्टार्व’ की नीति बताया – मतलब दस्तखत करो वरना भूखे मरो। 36 स्टेट्स और यूटी में से 33 ने एमओयू साइन कर लिया, सिर्फ पश्चिम बंगाल, केरल और एक अन्य ने नहीं। दिल्ली और पंजाब ने फंड क्रंच से दबाव में मान लिया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने आउटराइट रिजेक्ट कर दिया, जिससे 1,500 करोड़ अटक गए।

मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर एजुकेशन सुकांता मजूमदार ने संसद में 10 मार्च 2025 को लिखित जवाब में कहा, ‘कई रिमाइंडर्स के बावजूद – 15 सितंबर 2022, 6 फरवरी 2023, 13 मार्च 2023, 9 अक्टूबर 2023, 23 फरवरी 2024 और 7 मार्च 2024 – टीएमसी सरकार ने एक भी एमओयू साइन नहीं किया।’

और फिर आया वो मोमेंट जब यू-टर्न का ऐलान हुआ। रविवार को सिवनकुट्टी ने प्रेस मीट में कहा, ‘फंड्स वर्थ 1,466 करोड़ रुपए, जो सही मायने में राज्य के बच्चों के हैं, केंद्र द्वारा रिलीज नहीं किए गए। हम इस स्थिति को क्यों स्वीकार करें? ये पैसे बीजेपी सरकारों के नहीं, बच्चों के हैं।’ उन्होंने फेस-सेविंग के लिए जोड़ा, ‘योजना राज्य की एजुकेशनल वैल्यूज और ट्रेडिशन्स को नुकसान नहीं पहुँचाएगी। हमने कंसल्टेशंस किए हैं, और ये फैसला बच्चों के हित में है।’

एनईपी 2020 का विवाद तो इस सारे ड्रामे का मूल है। 2020 में लॉन्च हुई ये पॉलिसी 34 साल पुरानी 1986 वाली नीति को बदलने का दावा करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का पूरा झगड़ा

स्कूल का ढाँचा: 10+2 से 5+3+3+4। 3-8 साल आधारभूत (खेल+प्राथमिक), 8-11 तैयारी, 11-14 मध्य, 14-18 उच्च।

भाषा: तीन भाषाओं का फॉर्मूला – स्थानीय+हिंदी+अंग्रेजी। लेकिन दक्षिण में हिंदी थोपने का डर।

मूल्यांकन: बोर्ड परीक्षाएँ कम, लगातार जाँच। ग्रेड सिस्टम।

उच्च शिक्षा: बहु-विषयी विश्वविद्यालय, 50 फीसदी नामांकन लक्ष्य।

समावेश: नामांकन 100 फीसदी, लड़कियाँ/अल्पसंख्यक पर जोर।

बहरहाल, केरल का पीएम श्री योजना में शामिल होना केंद्र सरकार की दूरदर्शी नीति की जीत है। पहले ‘साफ्रनाइजेशन’ का शोर मचाने वाली सरकार ने समझ लिया कि बच्चों का भविष्य राजनीति से बड़ा है। 1,466 करोड़ के फंड्स से 260 स्कूल मॉडल बनेंगे, शिक्षकों की तनख्वाहें चुकेंगी, और स्मार्ट क्लासरूम व हुनरमंद कोर्स बच्चों को नई उड़ान देंगे। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को भी केरल से सीख लेनी चाहिए। एनईपी 2020 और पीएम श्री भारत की शिक्षा को वैश्विक स्तर पर ले जाएँगे। ये यू-टर्न बच्चों की जीत है, जिसका फायदा भविष्य में मिलेगा।

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