बिहार विधानसभा चुनाव जन सुराज पार्टी प्रशांत किशोर पैसा सीट बाँटना

भोजपुरी के एक गायक अभिनेता हैं- रितेश पांडे। जन सुराज ने इन्हें अपने नेता प्रशांत किशोर की जन्मभूमि करगहर से उम्मीदवार बनाया है। रितेश पांडे का एक चर्चित गाना रहा है- पियवा से पहिले हमार रहलू। पर ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर अपनी बातों के भी नहीं हैं।

बिहार में जन सुराज की राजनीति शुरू करने के बाद से ही वे नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कहते रहे हैं। नीतीश कुमार चुनाव लड़ते नहीं हैं, इसलिए बाद में प्रशांत किशोर भी जन्मभूमि या कर्मभूमि से लड़ने की बात करने लगे। कर्मभूमि से उनका तात्पर्य तेजस्वी यादव की सीट राघोपुर से था।

लेकिन अब जन सुराज ने राघोपुर से चंचल सिंह को मैदान में उतारा है। यानी प्रशांत किशोर कर्मभूमि या जन्मभूमि से चुनाव नहीं लड़ेंगे। इतना ही नहीं उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में वे राज्य की किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे।

प्रशांत किशोर का कहना है कि चुनाव के दौरान वे प्रचार और संगठन के काम पर ध्यान केंद्रित करेंगे। उनका यह भी कहना है कि पार्टी ने उन्हें इसी भूमिका का आदेश दिया है।

प्रशांत किशोर और जन सुराज की राजनीतिक शैली की तुलना अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी से होती रही है। यह दूसरी बात है कि प्रशांत किशोर इस टैग से खुद को बचाने की कोशिश करते रहे हैं, क्योंकि दिल्ली में करीब एक दशक तक AAP की सरकार रहने के बाद केजरीवाल की छवि ‘राजनीतिक धूर्त’ की बन चुकी है। पर इस मामले में केजरीवाल का साहस प्रशांत किशोर से कहीं अधिक था। उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सीधे मैदान में उतरकर चुनौती दी थी।

यह बात सत्य है कि सीटों, जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से दिल्ली और बिहार में काफी अंतर है। लेकिन राजनीति में ‘ज्वाइंट किलर’ का हमेशा से काफी महत्व रहा है। चुनाव लड़ने से पीछे हटकर प्रशांत किशोर ने यह मौका गँवा दिया है।

चुनाव से पीछे हटने की कई सारी वजह

प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में खुद उम्मीदवार न बनने का जो फैसला लिया है, उसके पीछे कई गहरी रणनीतिक और व्यक्तिगत वजहें हैं। ये वजहें सिर्फ एक सीट पर हार-जीत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनके पूरे राजनीतिक भविष्य और उनकी पार्टी ‘जन सुराज’ की छवि से जुड़ी हुई हैं।

प्रशांत किशोर को देश के सबसे सफल चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है। उनकी यही ब्रांड वैल्यू उनकी सबसे बड़ी ताकत है। अगर वह राघोपुर या करगहर जैसी किसी भी सीट से चुनाव लड़ते और हार जाते, तो उनकी यह पूरी छवि खत्म हो जाती।

राघोपुर सीट RJD का एक मजबूत गढ़ है, जहाँ से तेजस्वी यादव प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर प्रशांत किशोर यहाँ हारते, तो जनता के बीच यह संदेश जाता कि जो व्यक्ति दूसरों को चुनाव जिताता है, वह खुद अपनी ‘जन्मभूमि’ पर भी नहीं जीत सका। यह हार एक रणनीतिकार के रूप में पीके की काबिलियत पर हमेशा के लिए सवाल खड़ा कर देती।

अगर प्रशांत किशोर खुद किसी एक सीट से लड़ते, तो पूरे चुनाव प्रचार का फोकस उन्हीं की सीट पर सिमट जाता। इससे ‘जन सुराज’ का मुख्य उद्देश्य– सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ना और 150 से अधिक सीटें जीतना कमजोर हो जाता। खुद को उम्मीदवार न बनाकर, प्रशांत किशोर ने पार्टी को एक सामूहिक नेतृत्व और संगठनात्मक ताकत देने की कोशिश की है। इसके अलावा, अगर प्रशांत किशोर खुद की सीट पर फँसे रहते, तो वे पूरे राज्य में प्रचार नहीं कर पाते और नए लोगों को पार्टी की तरफ खींचने का उनका सपना अधूरा रह जाता।

पैसे लेकर भी नहीं दिया टिकट, जलाए लाभ कार्ड और झंडे

प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जन सुराज’ में टिकट बँटवारे को लेकर मची कलह अब सरेआम आ गई है। बिहार विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिलने से नाराज एक संभावित प्रत्याशी ने विरोध जताते हुए पार्टी के हजारों ‘जन सुराज लाभ कार्ड’ और झंडे जला दिए।

नाराज नेता ने प्रशांत किशोर पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया कि पीके ने उनसे टिकट देने का वादा किया था। इसी वादे के भरोसे पर उन्होंने चुनाव क्षेत्र में लगभग 50 लाख रुपए खर्च कर दिए थे। हालाँकि, अंतिम समय में उन्हें टिकट नहीं दिया गया और वह टिकट किसी और उम्मीदवार को दे दिया गया।

इसके अलावा, उजियारपुर में टिकट बँटवारे के बाद राजू सहनी और जनसुराज के प्रदेश अध्यक्ष के बीच हुई बातचीत का ऑडियो क्लिप वायरल हो रहा है, जिसमें राजू सहनी कह रहे हैं कि काम हमसे करवाया और टिकट किसी और को मिला।

ऑपइंडिया का दावा- जन सुराज में होगी ‘कलह’

‘ऑपइंडिया’ प्रशांत किशोर की राजनीतिक शैली और पार्टी के अंदर होने वाली बगावत पर चर्चा पहले ही कर चुकी है। बिहार के वोटकटुआ कहे जा रहे ‘प्रशांत किशोर का मायाजाल’ अब खुलकर सामने आ रहा है और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी पैसों के बदले सीटें बाँटने का आरोप लगा दिया है। इसका वीडियो आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

प्रशांत किशोर पहले भी कह चुके है कि कॉन्ग्रेस के बैनर तले उन्होंने काम किया है। फिर बाद में प्रशांत किशोर ने खुद की पार्टी ‘जन सुराज’ बनाई। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रशांत किशोर महागठबंधन की ‘बी टीम’ की तरह काम करना चाह रहे। इसलिए तो उन्होंने राघोपुर में चुनाव ना लड़ने से तेजस्वी यादव का रास्ता साफ कर दिया है और इन अटकलों को हवा दे दी है।

प्रशांत किशोर का ‘जनधन पार्टी’

प्रशांत किशोर ने जन सुराज की शुरुआत ‘बदलाव’ के नारे के साथ की थी। कहा था कि ये पार्टी आम लोगों की होगी, पारदर्शिता से चलेगी। लेकिन टिकट बँटवारे को लेकर जो हालात दिखे, उससे यही लग रहा है कि राजनीति का वही पुराना खेल यहाँ भी दोहराया जा रहा है। जहाँ पैसे वालों को टिकट मिलता है, जमीन से जुड़े लोग सिर्फ ताली बजाते रह जाते हैं। अब ये तो जनता के हाथ में है कि जन सुराज की असली पहचान क्या है, जनता की पार्टी या जनधन पार्टी?



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