भोपाल PWD इंजीनियर रेड

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। लोकायुक्त पुलिस ने लोक निर्माण विभाग (PWD) के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर जीपी मेहरा के ठिकानों पर छापा मारा। यह छापा आय से अधिक संपत्ति के मामले में मारा गया।

भोपाल और नर्मदापुरम जिले के चार ठिकानों पर एक साथ यह कार्रवाई हुई। छापे में करोड़ों रुपए की नकदी, सोना, लग्जरी गाड़ियाँ मिली हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उनके फार्महाउस से 17 टन शहद का विशाल भंडार मिला।

क्या-क्या मिला?

छापेमारी के दौरान मेहरा के ठिकानों से करोड़ों का खजाना जब्त किया गया। इसमें कुल ₹36.04 लाख कैश, लगभग ₹3.05 करोड़ का 2.6 किलो सोना, और 5.5 किलो चाँदी शामिल है। मेहरा के परिवार के नाम पर फोर्ड एंडेवर, स्कोडा स्लाविया समेत चार लग्जरी कारें भी मिली हैं। इसके अलावा, ₹56 लाख की एफडी, शेयर और इंश्योरेंस पॉलिसी के महत्वपूर्ण दस्तावेज भी जब्त किए गए।

मेहरा की सबसे बड़ी संपत्ति नर्मदापुरम में स्थित उनका विशाल फार्महाउस है, जहाँ 17 टन शहद का भंडार, 6 ट्रैक्टर, और 39 कॉटेज (7 तैयार और 32 निर्माणाधीन) मिले हैं। गोविंदपुरा स्थित एक फैक्ट्री को उनका बिजनेस फ्रंट माना जा रहा है। जाँच एजेंसियों का अनुमान है कि अंतिम मूल्यांकन के बाद अवैध संपत्ति की कुल कीमत कई

जब्त की गई संपत्ति का क्या होता है?

भ्रष्टाचार से जुड़ी करोड़ों की संपत्ति जब्त होने के बाद यह सवाल उठता है कि कानून के तहत इन संपत्तियों का आखिर क्या होता है। देश में ऐसी कार्रवाई मुख्य रूप से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत की जाती है।

जाँच के दौरान, संदेह होने पर संपत्ति को CRPC की धारा 102 या PMLA की धारा 5 के तहत जब्त किया जाता है। जब्त किया गया कैश, सोना और जेवर को बैंकों या सरकारी एजेंसियों के गोदाम में सुरक्षित रखा जाता है। जब तक यह मामला कोर्ट में चल रहा होता है, तब तक इन संपत्तियों को बेचा या निपटाया नहीं जाता है।

कोर्ट का फैसला आने के बाद

अगर कोर्ट में आरोपित पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित हो जाते हैं, तो जब्त की गई संपत्ति पूरी तरह सरकार की हो जाती है। इसके बाद सरकार कानूनी प्रक्रिया के तहत इन संपत्तियों को नीलामी के जरिए बेच सकती है। नीलामी से जो पैसा मिलता है, वह सीधे सरकारी खजाने में जमा होता है। इस राशि का उपयोग सरकारी योजनाओं और जनकल्याण के कामों में किया जाता है। कई बार जब्त किए गए वाहन या अन्य सामानों को सरकारी उपयोग में भी लिया जा सकता है।

लेकिन अगर अदालत में आरोप साबित नहीं होते, तो जब्त की गई संपत्ति आरोपित को वापस कर दी जाती है। हालाँकि, इसके लिए आरोपित को यह साफ करना होता है कि उसने वह संपत्ति कैसे और किस स्रोत से कमाई थी।

कुल मिलाकर, जब्त की गई संपत्ति कोर्ट की निगरानी में रहती है। फैसला आने तक न तो उसे बेचा जा सकता है और न ही उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार की यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह जब्त किए गए हर सामान का पूरा लेखा-जोखा अदालत के सामने पेश करे। आरोप सिद्ध होने पर ही वह संपत्ति हमेशा के लिए सरकारी हो पाती है।

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