बिहार में विधानसभा चुनाव इस बार दो चरणों में हो रहे है। पहला चरण 6 नवंबर 2025 को इसके 5 दिनों बाद 11 नवंबर को दूसरे चरण के लिए वोट डाले जाएँगे। एक वक्त था जब 5-7 चरणों में भी मतदान होते थे। बिहार की चुनावी हिंसा सुर्खियाँ बटोरती थी। लेकिन अब शांतिपूर्वक चुनाव संपन्न हो रहे हैं। ये भी राज्य की कानून व्यवस्था में सुधार की गवाही देता है। इस बार बिहार चुनाव और भी खास है, क्योंकि 22 साल बाद हुए एसआईआर के माध्यम से वोटर लिस्ट अपडेट किया गया है।

लालू राज में निकलते थे बैलेट बॉक्स से ‘जिन्न’

लालू राज में चुनाव के दौरान बैलेट बॉक्स खुलते ही जिन्न निकलता था। यानी वोट से पहले के माहौल कुछ और बयां करते थे और जीत का सेहरा किसी और के सिर सजता था। बूथ लूट तो आम बात थी। हत्या, अपहरण की खबरों से पेपर पटे रहते थे। ये वह दौर था, जब चुनाव लोकतंत्र का उत्सव नहीं बल्कि डर और दहशत बन चुका था।। खुलेआम वोटरों को डराया धमकाया जाता था। मतदाताओं के वोट पहले ही पड़ चुके होते थे, उन्हें वापस भेज दिया जाता था।

90 का दशक तो खास तौर पर बूथ कैप्टरिंग के लिए कुख्यात रहा। 2004 तक चुनाव में हिंसा, हत्या, लूट, अपहरण, डराना-धमकाना आम था। अपराधियों की दबंगई से लोगों में निराशा और हताशा घर कर गई थी। अपराधियों को खुलेआम राजनीतिक संरक्षण मिल रहे थे। चुनाव का प्रभावित करने और मतदान अपने पक्ष में कराने के लिए इनका खूब इस्तेमाल किया जाता था। दरअसल दबंगों को कानून का कोई खौफ नहीं था। खुलेआम हत्याएँ होती थी। बारा नरसंहार, शंकर बिगहा नरसंहार जैसे कई सामूहिक नरसंहारों ने राज्य को हिला कर रख दिया था।

दबंगों के डर से वोट डालने के लिए विवश हुई जनता

ऐसे में आम आदमी दबंगों के डर से वहीं वोट डालते थे, जिसकी तरफ इनका इशारा होता था। मतदाताओं के लिए यह दशक हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा। उम्मीदवारों के लिए भी यह कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। ऐसे में मतदान निष्पक्ष हो पाएगा कि नहीं, इसकी आशंका हमेशा बनी रहती थी। चुनाव में चाहे कोई उम्मीदवार जीते, लेकिन मतदाता हमेशा हारता था। चुनावी गड़बड़ियों पर पार पाने के लिए चुनाव आयोग कई चरणों में यहाँ चुनाव कराता था, लेकिन हिंसा और हत्या पर काबू पाना काफी मुश्किल रहा।

‘जंगल राज’ में सैकड़ों जानें चुनावी हिंसा में गई

1990 के चुनाव में 520 हिंसा की घटनाएँ हुई, जबकि 87 लोगों की जान गई। बिहार में लालू राज की शुरुआत हुई। साल 1995 में 1270 हिंसा की घटनाएं घटी और 54 लोगों की मौत हुई। 2000 के चुनाव में 61 लोग मारे गए। कुल मिलाकर 1990 से 2004 के बीच बिहार में 9 चुनाव हुए। इनमें करीब 641 लोगों की जान गई।

सबसे ज्यादा रक्तपात तो 2001 के पंचायत चुनाव में हुआ। राज्य में 23 साल के बाद पंचायत चुनाव हो रहा था। इसलिए पार्टियों ने पूरा जोर लगाया। नतीजा रहा 196 लोगों की मौत। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी 28 लोगों की मौत हुई। बिहार में 1990 में एक चरण में चुनाव हुए थे। इसके बाद 1985 में 2 चरणों में वोटिंग हुई। 2000 और 2005 में तीन चरणों में चुनाव हुए जबकि 1995, 2005 में 5 चरणों में चुनाव हुए।

देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग बिहार में हुआ

देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की खास घटना 1957 में बिहार के बेगूसराय के रचियाही में हुआ था। घटना की जानकारी दूसरे दिन लोगों को अखबार से पता चला। 1957 की इस घटना ने बिहार में राजनीति की दिशा ही बदल दी। राज्य के चुनाव पर माफिया हावी होने लगे। राजनीतिज्ञों और माफियाओं के साँठगाँठ की शुरुआत भी हो गई। 1980 तक आते-आते चुनाव में बाहुबलियों का बोलबाला देखा जाने लगा। हालाँकि देश में चुनाव सुधारों की चर्चा भी होने लगी। 1957 की घटना के बाद चुनाव आयोग ने सुरक्षाबलों की तैनाती पर जोर देना शुरू किया। धीरे-धीरे केंद्रीय बलों की मौजूदगी जरूरी हो गई।

‘बूथ लूट’ पर शेषन-राव की जोड़ी ने लगाया लगाम

बिहार में चुनावी हिंसा और बूथ लूट की घटनाओं पर लगाम लगाने का श्रेय जाता है मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन और के जे राव को। केजे राव बिहार विधानसभा चुनाव के विशेष पर्यवेक्षक बनाए गए थे। 2005 में दोनों की सख्ती से बिहार के चुनाव हिंसा पर काफी हद तक लगाम लगा। हालाँकि इसके बाद 2010 में 5 लोगों की चुनावी हिंसा में मौत हुई।

बैलेट पेपर की जगह 2006 में ईवीएम ने ले ली। इसके साथ ही बूथ कैप्चरिंग और बैलेट पेपर लूटने जैसी घटनाओं पर विराम लगा। EVM से वोट कराने के तरीके में भी काफी बदलाव आया है। वोटरों की विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए EVM के साथ VVPAT को जोड़ा गया। पोलिंग स्टेशन के आसपास सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। फ्लाइंग स्क्वॉड जैसे तकनीकी उपायों का प्रयोग शुरू हो गया।

बिहार विधानसभा चुनाव में तो उम्मीदवारों की रंगीन फोटो और बड़े अक्षरों में नाम दिखेगी, ताकि वोटरों को पहचाने में कोई दिक्कत न हो। हर पोलिंग स्टेशन की 100 फीसदी वेबकास्टिंग की जाएगी ताकि आँकड़ों में कोई गड़बड़ी न हो और तेजी से जुटाया जा सके। यहाँ तक कि पोस्टल बैलेट को गिनती पूरी होने से 2 राउंड पहले गिन लिया जाए, ताकि नतीजों पर किसी तरह की दुविधा न रहे। हर बूथ पर 1200 से कम वोटर होंगे। सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा बल तो रहेंगे ही।

चुनाव प्रक्रिया में लगातार हो रहे बदलाव के बावजूद विपक्ष चुनाव आयोग को कटघरे में खड़े कर रहा है। सरकार पर ‘वोट चोरी’ का इल्जाम लगाया जा रहा है। जबकि 2004 से पहले बिहार में ‘वोट चोरी’ नहीं बल्कि ‘वोट लूट’ होती थी। इसके प्रमाण सोशल मीडिया में तैर रहे हैं।

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