बच्चों के खिलाफ अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों में पिछले वर्षों की तुलना में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2022 की तुलना में 2023 में ऐसे मामलों में 9.2% की वृद्धि हुई और कुल 1,77,335 मामले सामने आए, जबकि 2022 में यह संख्या 1,62,449 और 2021 में 1,49,404 थी।

2005 की तुलना में यह आंकड़ा करीब दस गुना ज्यादा है, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। राज्यों के आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 22,393 मामले दर्ज हुए, इसके ठीक बाद महाराष्ट्र में 22,390 मामले सामने आए।

उत्तर प्रदेश ने 18,852, राजस्थान ने 10,577 और असम ने 10,174 मामलों की रिपोर्ट की। यह आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और कुछ राज्यों में स्थिति बेहद चिंताजनक है।

बच्चों के विरुद्ध अधिकतम अपराध वाले राज्यों पर एनसीआरबी डेटा।

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ हत्या के प्रयास से जुड़े कुल 290 मामले दर्ज किए गए, जिनमें पीड़ितों की संख्या 337 रही। इस आधार पर अपराध दर 0.1 प्रति लाख आबादी रही।

इसी तरह, उजागर करने और परित्याग (exposure and abandonment) से जुड़े मामलों की संख्या 653 रही, जिनमें 664 बच्चे पीड़ित बने। इन मामलों की भी अपराध दर 0.1 प्रति लाख आबादी दर्ज की गई।

2023 में अपहृत और बलात्कार किए गए बच्चों की संख्या

साल 2023 में बच्चों के अपहरण और किडनैपिंग से जुड़े कुल 79,884 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 82,106 बच्चे पीड़ित बने। इन अपराधों की दर 18.0 प्रति लाख आबादी रही। ये सभी मामले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 363A, 364, 364A, 365, 366, 366A, 367, 368 और 369 के तहत दर्ज हुए।

राज्यवार आँकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र इस सूची में सबसे आगे रहा, जहाँ 12,089 मामले और 12,971 पीड़ित सामने आए। इसके बाद मध्य प्रदेश में 9,833 मामले और 9,900 पीड़ित, ओडिशा में 5,905 मामले और 5,906 पीड़ित, राजस्थान में 4,441 मामले और 4,465 पीड़ित तथा कर्नाटक में 3,228 मामले और 3,292 पीड़ित दर्ज किए गए।

एनसीआरबी के आंकड़े उन राज्यों को दर्शाते हैं जहां बाल अपहरण और व्यपहरण के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं।

साल 2023 में बच्चों से जुड़े गंभीर अपराधों के आँकड़े भी सामने आए। बाल तस्करी के कुल 397 मामले दर्ज हुए, जिनमें 1,425 बच्चे पीड़ित थे। वहीं, बच्चों से बलात्कार के 849 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 852 पीड़ित शामिल थे।

अगर भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज सभी अपराधों को देखें तो साल 2023 में बच्चों के खिलाफ कुल 98,399 मामले और 1,05,094 पीड़ित दर्ज किए गए।

एनसीआरबी के आंकड़े बाल तस्करी के सर्वाधिक शिकार वाले राज्यों को दर्शाते हैं।

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले सबसे ज्यादा कुछ चुनिंदा राज्यों में दर्ज हुए। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 15,840 मामले दर्ज हुए और 16,546 बच्चे पीड़ित बने।

इसके बाद महाराष्ट्र में 13,461 मामले और 14,473 पीड़ित, उत्तर प्रदेश में 10,089 मामले और 10,335 पीड़ित, बिहार में 7,018 मामले और 7,397 पीड़ित, जबकि राजस्थान में 6,180 मामले और 6,237 पीड़ित सामने आए। ये आँकड़े बताते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में सबसे आगे ये पाँच राज्य रहे।

POCSO अधिनियम के तहत 2023 में दर्ज अपराध

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में, जो POCSO एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) के तहत दर्ज हुए, कुल 67,694 मामले और 68,636 पीड़ित सामने आए। इनमें सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए, जहाँ 8,706 घटनाएँ और 8,966 पीड़ित थे।

इसके बाद महाराष्ट्र में 8,639 मामले और 8,761 पीड़ित, मध्य प्रदेश में 6,517 मामले और 6,559 पीड़ित, तमिलनाडु में 4,581 मामले और 4,728 पीड़ित, जबकि कर्नाटक में 3,878 मामले और 3,992 पीड़ित दर्ज किए गए। ये पाँच राज्य POCSO एक्ट के तहत दर्ज अपराधों में सबसे ऊपर रहे।

पॉक्सो अधिनियम के तहत सर्वाधिक मामले वाले राज्यों पर एनसीआरबी का डेटा।

साल 2023 में POCSO एक्ट की धारा 4 और 6 को IPC की धारा 376 के साथ मिलाकर देखे तो कुल 40,434 मामले दर्ज हुए, जिनमें 40,846 पीड़ित थे। इनमें से ज्यादातर मामले लड़कियों से जुड़े थे। 40,046 मामले और 40,423 पीड़ित। वहीं, लड़कों से जुड़े 388 मामले दर्ज हुए, जिनमें 423 पीड़ित शामिल थे।

इसी तरह, POCSO एक्ट की धारा 8 और 10 को IPC की धारा 354 के साथ मिलाकर देखें तो कुल 22,444 मामले दर्ज हुए, जिनमें 22,868 पीड़ित थे। इनमें से 22,149 मामले लड़कियों से जुड़े थे, जिनमें 22,557 पीड़ित थीं, जबकि 295 मामले लड़कों से जुड़े थे, जिनमें 311 पीड़ित दर्ज किए गए।

साल 2023 में बच्चों से जुड़े कई गंभीर मामले POCSO एक्ट और IPC की धाराओं के तहत दर्ज किए गए। POCSO की धारा 12 और IPC की धारा 509 के तहत कुल 2,826 मामले दर्ज हुए, जिनमें 2,910 पीड़ित थे, जिनमें से 2,778 मामले लड़कियों और 48 मामले लड़कों से जुड़े थे।

वहीं, POCSO की धारा 14 और 15 को IPC की धारा 376, 354 और 509 के साथ मिलाकर देखें तो 722 मामले दर्ज हुए, जिनमें 727 पीड़ित थे, जिनमें से 698 मामले लड़कियों और 24 मामले लड़कों से जुड़े थे।

POCSO एक्ट और IPC की धारा 377 के तहत 734 मामले दर्ज हुए, जिनमें 745 पीड़ित थे, इसमें 48 मामले लड़कियों और 686 मामले लड़कों से जुड़े थे। इसके अलावा, POCSO की धारा 17 से 22 के तहत 534 मामले दर्ज हुए, जिनमें 540 पीड़ित थे, जिनमें से 513 मामले लड़कियों और 21 मामले लड़कों के थे।

साल 2023 में बाल विवाह प्रतिबंध कानून के तहत भी 6,038 मामले दर्ज हुए, जिनमें 6,051 बच्चे पीड़ित बने। ये आंकड़े बच्चों के खिलाफ अपराधों और बाल संरक्षण की गंभीरता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

2023 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध

साल 2023 में साइबर अपराध/सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (SSL Law) के तहत बच्चों से जुड़े 1,681 मामले दर्ज हुए, जिनमें 1,736 पीड़ित थे। इसमें 1,499 मामले और 1,536 पीड़ित ऐसे थे जो बच्चों को यौन कृत्यों में दिखाने वाले सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से जुड़े थे।

सभी अपराधों (IPC + SSL) को मिलाकर देखें तो बच्चों के खिलाफ कुल 1,77,335 मामले और 1,86,521 पीड़ित दर्ज किए गए। राज्यों की स्थिति देखें तो मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 22,393 मामले और 23,149 पीड़ित, महाराष्ट्र में 22,390 मामले और 23,555 पीड़ित, उत्तर प्रदेश में 18,852 मामले और 19,362 पीड़ित, राजस्थान में 10,577 मामले और 10,684 पीड़ित और असम में 10,174 मामले और 10,404 पीड़ित दर्ज किए गए। ये पाँच राज्य बच्चों के खिलाफ अपराधों में सबसे आगे रहे।

बच्चों के विरुद्ध अपराध के सर्वाधिक मामले दर्ज करने वाले राज्यों पर एनसीआरबी का डेटा।

2023 में ‘बच्चों के खिलाफ अपराध’ से संबंधित मामलों का निपटान

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों के निपटान की स्थिति भी सामने आई। पुलिस द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या साल के अंत तक कुल 1,74,667 रही। इसमें 158 मामले जाँच के दौरान रद्द किए गए, 65 मामले ठहराए गए और 82,930 मामले जाँच के लिए लंबित रहे।

अदालतों द्वारा निपटाए गए मामलों के अनुसार, कुल 57,424 ट्रायल पूरे किए गए, जबकि 63,335 मामले अदालतों द्वारा निपटाए गए और 5,90,755 मामले ट्रायल के लिए लंबित रहे।

अभियुक्तों के निपटान के आंकड़ों के मुताबिक, बच्चों के खिलाफ अपराधों में कुल 19,371 लोग दोषी पाए गए, जिनमें 19,135 पुरुष और 236 महिलाएँ शामिल थीं।

वहीं, 3,290 लोग बरी किए गए (3,227 पुरुष और 63 महिलाएँ) और 47,025 लोग (45,839 पुरुष और 1,186 महिलाएँ) आरोपमुक्त हुए।

पीड़ितों की आयु और अपराधी से उनका संबंध

साल 2023 में POCSO एक्ट के तहत बच्चों के पीड़ितों की उम्र और अपराधियों के संबंध से जुड़े आंकड़े सामने आए। 6 साल से कम उम्र के बच्चों में 28 लड़के और 734 लड़कियाँ शामिल थीं, कुल 762 पीड़ित बने।

6 से 12 साल के बच्चों में 141 लड़के और 3,088 लड़कियाँ, कुल 3,229 पीड़ित थे। 12 से 16 साल के समूह में 157 लड़के और 15,287 लड़कियाँ, कुल 15,444 पीड़ित बने।

16 से 18 साल की उम्र में 97 लड़के और 21,314 लड़कियाँ, कुल 21,411 पीड़ित थीं। सभी उम्र के बच्चों को मिलाकर कुल 423 लड़के और 40,423 लड़कियाँ, यानी 40,846 पीड़ित हुए। पीड़ितों के अपराधियों के संबंध की जानकारी देखें तो 39,076 मामले ऐसे थे जहाँ आरोपित पीड़ित को जानता था।

इसमें 3,224 मामले परिवार के सदस्य, 15,146 मामले परिवार के दोस्त, पड़ोसी, नियोक्ता या अन्य परिचित व्यक्ति और 20,706 मामले दोस्तों, ऑनलाइन दोस्तों या विवाह के बहाने रहने वाले साथी से जुड़े थे। इसके अलावा, 1,358 मामले ऐसे थे जिनमें अपराधी अज्ञात थे या पहचाने नहीं जा पाए। कुल मिलाकर 40,434 मामले दर्ज हुए।

महत्वपूर्ण: : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) बच्चों और अन्य अपराधों के मामलों को भारतीय दंड संहिता (IPC) और विशेष तथा स्थानीय कानून (SLL) के तहत वर्गीकृत करता है, ताकि जाँच में मदद मिल सके और नीतियों के निर्माण के लिए जानकारी उपलब्ध हो। भारत का मुख्य आपराधिक कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) है, जिसे पिछले साल भारतीय न्याय संहिता (BNS) द्वारा बदल दिया गया। यह कानून अपराधों और उनके जुर्मानों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। वहीं, SLL विशेष कानून हैं, जो भारतीय राज्यों और स्थानीय प्रशासन द्वारा बनाए जाते हैं और विशेष परिस्थितियों या अपराधों को कवर करते हैं।

निष्कर्ष

NCRB 2023 के आँकड़े यह साफ करते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराध भारत में अब भी गहरी और जड़ें जमाई समस्या बनी हुई है। अपहरण से लेकर साइबर शोषण तक सभी श्रेणियों में लगातार वृद्धि यह दर्शाती है कि मजबूत कानूनों के बावजूद बच्चे अब भी बेहद असुरक्षित हैं।

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य लगातार अपराधों की सूची में शीर्ष पर बने हुए हैं, जो प्रभावी कानून प्रवर्तन और जनता में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को उजागर करता है। नीतियों से आगे, असली चुनौती यह है कि मामलों की त्वरित सुनवाई हो और सबसे छोटे नागरिकों के लिए सार्थक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

आईपीसी और पोक्सो धाराओं में जानकारी

भारतीय दंड संहिता

धारा 354 – किसी महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।

धारा 363ए – भीख माँगने के उद्देश्य से नाबालिग का अपहरण करना या उसे अपंग बनाना।

धारा 364 – हत्या करने के लिए अपहरण या अपहरण करना।

धारा 364ए – फिरौती के लिए अपहरण आदि।

धारा 365 – किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से अपहरण करना।

धारा 366 – किसी महिला का अपहरण करना, उसे भगा ले जाना, या विवाह के लिए विवश करना आदि।

धारा 366ए – नाबालिग लड़की को भगाना (18 वर्ष से कम आयु की लड़की को किसी भी स्थान से इस आशय से ले जाना कि उसे अवैध संभोग के लिए मजबूर किया जा सके या बहकाया जा सके)।

धारा 367 – किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाने, गुलाम बनाने आदि के लिए अपहरण करना।

धारा 368 – अपहृत या अपहृत व्यक्ति को गलत तरीके से छिपाना या कैद में रखना।

धारा 369 – दस वर्ष से कम आयु के बच्चे का अपहरण या अपहरण, उसके शरीर से चोरी करने के इरादे से।

धारा 377 – अप्राकृतिक अपराध (प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध शारीरिक संबंध)।

धारा 509 – किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से कहे गए शब्द, हाव-भाव या कार्य।

पॉक्सो अधिनियम

धारा 4 – प्रवेशात्मक यौन हमले के लिए दंड।

धारा 6 – गंभीर प्रवेशात्मक यौन हमले के लिए दंड।

धारा 8 – यौन हमले के लिए दंड।

धारा 10 – गंभीर यौन हमले के लिए दंड।

धारा 12 – किसी बच्चे के यौन उत्पीड़न के लिए दंड।

धारा 14 – किसी बच्चे का अश्लील उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के लिए दंड।

धारा 15 – किसी बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री के भंडारण के लिए दंड।

धारा 17 – किसी अपराध के लिए उकसाने के लिए दंड।

धारा 18 – अपराध करने के प्रयास के लिए दंड।

धारा 19 – अपराध की रिपोर्ट करने का दायित्व।

धारा 20 – मामले की रिपोर्ट या रिकॉर्ड न करने पर दंड।

धारा 21 – झूठी शिकायत या झूठी सूचना के लिए दंड।

धारा 22 – मुकदमे की प्रक्रिया और बच्चे की पहचान की सुरक्षा।

(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में रुक्मा राठौर ने लिखी है। इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है)

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