प्रिंस MBS, शहबाज शरीफ

सऊदी अरब और पाकिस्तान ने बुधवार (17 सितंबर 2025) को एक ऐसा समझौता साइन कर लिया, जिसे सुनकर लगता है जैसे दोनों देश अब एक-दूसरे के लिए जान देने को तैयार हैं। नाम है इसका ‘स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट’। सुनने में तो बड़ा शानदार लगता है कि अगर एक देश पर हमला हो गया, तो इसे दोनों पर हमला माना जाएगा। मतलब सऊदी पर कोई संकट आया, तो पाकिस्तान की फौज दौड़ेगी। और पाकिस्तान पर कुछ हुआ, तो सऊदी भी कूद पड़ेगा।

अब सोचिए, पाकिस्तान जैसा देश, जो खुद भारत से चार दिन की जंग लड़कर थक गया, वो सऊदी की रक्षा कैसे करेगा? सऊदी तो तेल के धन कुबेर है, उसकी आर्मी मॉडर्न हथियारों से लैस, लेकिन लड़ाई के नाम पर बेचारी काँपने लगती है। इसलिए पाकिस्तान को बुलाया जाता है – सस्ते में सिपाही मिल जाते हैं। और अगर कभी पाकिस्तान मुसीबत में फँसता है, जैसे इकोनॉमी डूब रही हो, तो सऊदी बैलआउट पैकेज भेज देता है।

ये रिश्ता इस्लामिक भाईचारे का नाम तो लेता है, लेकिन अंदर से ये बिजनेस डील है। भारत को इससे कोई फिक्र नहीं, क्योंकि सऊदी हमेशा भारत-पाक तनाव में न्यूट्रल रहता है या फिर भारत का साथ देता है। आइए, आपको बताते हैं इस डील से जुड़ी हर एक बात, जो आपको जानना चाहिए।

पाकिस्तान-सऊदी का ये नया समझौता: दिखावा या सच्ची दोस्ती?

रियाद में हुई इस मीटिंग में शरीफ को सऊदी ने खूब तवज्जो दी। एमबीएस ने कहा, “हमारे दोस्त पाकिस्तान के साथ ये समझौता हमारी सुरक्षा को मजबूत करेगा।” समझौते में साफ लिखा है कि बाहरी हमले पर दोनों देश एक साथ जवाब देंगे। इसमें ट्रेनिंग, हथियार शेयरिंग और यहाँ तक कि न्यूक्लियर मदद का जिक्र भी है।

लेकिन सवाल ये है – क्या पाकिस्तान सऊदी की इतनी मजबूत ढाल बन पाएगा? सऊदी की सेना तो दुनिया की सबसे महँगी है, टैंक-असली हथियारों से लैस। पाकिस्तान की फौज? वो तो ज्यादातर बॉर्डर पर भारत को घूरती रहती है और आर्थिक तंगी में डूबी हुई।

असल में ये समझौता इजरायल के हाल के कतर हमले के बाद आया है। कुछ दिन पहले इजरायल ने दोहा में हवाई हमला किया, जिसमें हमास के लीडर्स मारे गए। कतर ने इसे ‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद’ कहा। अमेरिका ने भी इजरायल का साथ नहीं दिया।

सऊदी को लगा कि अमेरिका पर भरोसा मत करो, अपने इस्लामी भाइयों की तरफ देखो। बस, पाकिस्तान को बुला लिया। पाकिस्तान ने कहा, “हम आपके साथ हैं।” लेकिन ये साथ कागजों पर ज्यादा है। सऊदी के पास 2 लाख सैनिक हैं, लेकिन लड़ाई में उनकी ट्रेनिंग कमजोर। पाकिस्तान के सिपाही सस्ते और तैयार-बस भाड़ा मिले और काम पर लग जाएँ।

पश्चिम एशिया के एक्सपर्ट जहाक तनवीर कहते हैं, “ये कोई नई बात नहीं। सऊदी हमेशा पाकिस्तान को ‘इस्लामिक न्यूक्लियर बम’ मानता रहा है। बदले में पाकिस्तान सैन्य ट्रेनिंग देता है। लेकिन अगर सऊदी पर असली खतरा आया, तो पाकिस्तान की औकात क्या?”

पाकिस्तान क्यों इतना खुश? पैसे की आस में तो नाच रहा है!

शहबाज शरीफ रियाद से लौटे तो चेहरे पर मुस्कान थी। क्यों न हो? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो आईएमएफ के चक्कर काट रही है। महँगाई आसमान छू रही, बिजली-पानी की किल्लत। ऐसे में सऊदी से मदद मिलेगी – निवेश, कर्ज, डिपॉजिट।

इस समझौते से पाकिस्तान को $38 बिलियन का रक्षा निवेश मिलने का वादा है। मतलब, सऊदी पाकिस्तान में हथियार फैक्टरियाँ लगाएगा, जॉब्स आएँगी। लेकिन असल फायदा? पाकिस्तानी सैनिकों को सऊदी में भाड़े पर भेजना। एक सिपाही को $500-1000 महीना मिलता है – ये रकम पाकिस्तान सरकार को जाती है, सिपाही को थोड़ा-सा।

पाकिस्तान खुश इसलिए भी है क्योंकि सऊदी उसे ‘इस्लामी दुनिया का बड़ा भाई’ मानता है। लेकिन हकीकत में, पाकिस्तान सऊदी का सस्ता सिक्योरिटी गार्ड है। जब भी सऊदी को जरूरत पड़ी, पाकिस्तान ने फौज भेजी। बदले में पैसे।

तनवीर कहते हैं, “पाकिस्तान को लगता है कि न्यूक्लियर बम दिखाकर वो सऊदी को लुभा लेगा। लेकिन सऊदी तो जानता है, पाकिस्तान की बम की औकात क्या? फिर भी भाड़े के सिपाही सस्ते पड़ते हैं।” इस डील से पाकिस्तान को तुरंत $1-2 बिलियन का पैकेज मिल सकता है। शरीफ सरकार इसे ‘बड़ी जीत’ बता रही है। लेकिन ये जीत कितनी टिकाऊ होगी, इस पर सवाल हमेशा खड़े होते रहेंगे। हाँ, ये जरूर होगा कि जब सऊदी बोलेगा ‘आओ लड़ो’ तो पाकिस्तान के सिपाही मरेंगे और पाकिस्तान की सरकार-फौजी आका पैसे गिनते रहेंगे।

पहले भी हुए समझौते, लेकिन फायदा तो सऊदी का ही निकला

ये रिश्ता नया नहीं। 1960 के दशक से चला आ रहा है। 1969 में ही देख लो – सऊदी के साउथ बॉर्डर पर साउथ यमन ने हमला किया। सऊदी की एयर फोर्स कमजोर थी, तो पाकिस्तानी पायलट्स को बुलाया। उन्होंने सऊदी के लाइटनिंग जेट्स उड़ाए और हमलावरों को भगाया। ये पहला मौका था जब पाकिस्तान ने सऊदी की हवाई रक्षा की।

फिर 1979 में मक्का की ग्रैंड मस्जिद पर कट्टरपंथियों ने कब्जा कर लिया। सऊदी की फौज अकेले नहीं संभाल पाई। पाकिस्तानी कमांडो भेजे गए। दर्जनों पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। सऊदी ने चुपचाप पैसे दे दिए।

साल 1980 में ईरान-इराक वॉर चला। सऊदी डर गया कि ईरान उस पर भी टूट पड़े। 20 हजार पाकिस्तानी सैनिक भेजे गए सऊदी में। नाम था ‘सिक्योरिटी फोर्स’, लेकिन असल में भी मजदूरी। सऊदी ने कहा, “हम पर हमला मत समझो, पाकिस्तान पर।” लेकिन ये बाध्यकारी नहीं था, बस वादा।

1980-88 के ईरान-इराक वॉर में पाकिस्तान ने सऊदी को लिखित आश्वासन दिया – “तुम पर हमला, हमारे पर।” लेकिन कभी टेस्ट नहीं हुआ। 2014-15 में सऊदी ने यमन पर बमबारी की (ऑपरेशन असिफत अल-हज्म)। पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी चीफ राहील शरीफ को इस्लामिक कोलिशन का लीडर बनाया। पाकिस्तानी सैनिक फिर भेजे गए। लेकिन फायदा? सऊदी ने यमन को कुचला, पाकिस्तान को पैसे मिले। तनवीर कहते हैं, “हर समझौता सऊदी-सेंट्रिक रहा। पाकिस्तान की सुरक्षा का क्या? कभी सऊदी ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद की?”

साल 2020 से देखिए- कोविड में सऊदी ने $3 बिलियन का तेल कर्ज दिया। बदले में पाकिस्तानी फौज ने सऊदी नेशनल गार्ड को ट्रेनिंग दी। 2022 में रूस-यूक्रेन वॉर पर सऊदी ने जेएफ-17 जेट्स माँगे। एमबीएस की पाकिस्तान यात्रा पर एमओयू साइन हुए। 2023 में इजरायल-हमास वॉर के बाद $2 बिलियन पैकेज। अल-सम्साम एक्सरसाइज में 5,000 पाकिस्तानी सैनिक। 2024 में $3 बिलियन डिपॉजिट रिन्यू। आसिम मुनीर की यात्रा पर हॉक मिसाइल डील। हर बार वही – पाकिस्तान ट्रेनिंग दे, सऊदी पैसे। अब ये नया समझौता? वही पुरानी कहानी का नया चैप्टर।

पाकिस्तान को कब-कब मिली ‘भीख’?

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो सऊदी पर टिकी है। 1960 से अब तक $5 बिलियन से ज्यादा सैन्य-संबंधी मदद मिल चुकी। लेकिन ‘भीख’ कहें तो गलत नहीं। 1990 के दशक में सोवियत-अफगान वॉर के बाद पाकिस्तान कंगाल हो गया। सऊदी ने $1 बिलियन का डिपॉजिट दिया। 2008 के फाइनेंशियल क्राइसिस में फिर $500 मिलियन। 2019 में इमरान खान की सरकार गिरने की कगार पर सऊदी ने $1 बिलियन का तेल पैकेज दिया।

2020 में कोविड – $3 बिलियन। 2021 में बाढ़ – $500 मिलियन। 2022 में इकोनॉमिक क्राइसिस – $2 बिलियन। 2023 में इमरान के बाद शरीफ सरकार – $2 बिलियन। 2024 में चुनावों से पहले $3 बिलियन। हर बार बहाना? सैन्य मदद। सऊदी जानता है, पाकिस्तान बिना पैसे के डूब जाएगा। बदले में पाकिस्तान फौज भेजता है। तनवीर कहते हैं, “ये रिश्ता इस्लामी एकता का नहीं, आर्थिक निर्भरता का है। सऊदी पाकिस्तान को ‘रेंटल आर्मी’ की तरह यूज करता है।”

पाकिस्तान के सैनिक सऊदी में सिक्योरिटी जॉब्स करते हैं। हजारों रिटायर्ड अफसर ट्रेनर बने हैं। ये पैसे पाकिस्तान की आर्मी को मजबूत करते हैं, लेकिन देश की जनता का क्या? महँगाई, बेरोजगारी। फिर भी सरकार खुश – क्योंकि खजाना भरेगा।

भारत को कोई खतरा नहीं, सऊदी की अपनी चालाकी

भारत ने इस समझौते पर कहा, “हम अध्ययन करेंगे।” विदेश मंत्रालय के रणधीर जायसवाल ने बताया, “हमें पहले से जानकारी थी। प्रभाव देखेंगे।” लेकिन चिंता की कोई बात नहीं। क्यों? क्योंकि सऊदी कभी पाकिस्तान के लिए भारत के खिलाफ नहीं खड़ा हुआ। 1965, 1971, कारगिल… हर वॉर में सऊदी ने पाकिस्तान को पैसे दिए, लेकिन फौज नहीं। उल्टा भारत से ट्रेड बढ़ाया। आज सऊदी-भारत का टर्नओवर $50 बिलियन है। पाकिस्तान से? मुश्किल से $3 बिलियन।

बता दें कि 1980 के दशक से ये डील्स हैं, लेकिन भारत-पाक तनाव में सऊदी न्यूट्रल रहा। कभी पाक के आतंकी प्लान्स का साथ नहीं दिया। अभी हाल ही में अप्रैल 2025 में पहलगाम अटैक के बाद भारत की ऑपरेशन सिंदूर चली। चार दिन की झड़प। सऊदी ने पाक को सपोर्ट किया? नहीं। उल्टा खामोश रहा। सऊदी को भारत से सामान चाहिए होता है, बदले में वो तेल बेचता है। वहीं, पाकिस्तान को तो वो ‘भाई’ कहकर पुचकार लेता है, लेकिन बिजनेस भारत से करता है।

अगर सऊदी पर खतरा आया ईरान या इजरायल से तो पाकिस्तान भेजेगा सिपाही। लेकिन भारत-पाक वॉर में? सऊदी बोलेगा, “हमारे पास सैनिक नहीं।” पाकिस्तान मजबूर होगा उसकी तरफ से लड़ने के लिए, क्योंकि पैसे बंद हो जाएँगे, लेकिन सऊदी कभी अपने नागरिकों को लड़ने नहीं भेजेगा।

पुरानी बोतल में नया शराब?

ये समझौता सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच पुराने रिश्ते का एक नया अध्याय है। सऊदी को अपनी सुरक्षा के लिए भाड़े की सेना और न्यूक्लियर छतरी चाहिए, जबकि पाकिस्तान को पैसे चाहिए। लेकिन भारत के लिए ये समझौता कोई बड़ा खतरा नहीं है। सऊदी अरब भारत के साथ अपने रिश्ते खराब नहीं करेगा, और पाकिस्तान की औकात इतनी नहीं कि वो भारत के खिलाफ सऊदी की मदद से कोई बड़ा खेल खेले।

हाँ अगर सऊदी पर कोई बड़ा हमला होता है, तो पाकिस्तान को अपने वादे के मुताबिक सैनिक भेजने पड़ेंगे। सऊदी कह सकता है कि उसके पास लड़ने के लिए सैनिक नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान को जाना ही होगा, क्योंकि उसे पैसे चाहिए। ये रिश्ता सऊदी के लिए फायदे का सौदा है, और पाकिस्तान के लिए मजबूरी। भारत को बस सतर्क रहने की जरूरत है, लेकिन घबराने की नहीं।



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