क्या श्रीलंका और बांग्लादेश की चुनी हुई सरकार को जिस तरह से साजिश के तहत गिराया गया था, क्या वही नेपाल के साथ हो रहा है? श्रीलंका और बांग्लादेश में जिस तरह संसद पर कब्जा किया गया और अराजकता फैलाया गया, नेपाल में भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है।
नेपाल की संसद में घुसे प्रदर्शनकारी
नेपाल में सोशल मीडिया इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, फेसबुक आदि पर बैन लगाए जाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जेन जी यानी 18 से 30 साल के युवा सोमवार (8 सितंबर 2025) को संसद में घुस गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए आँसू गैस के गोले दागे और पानी का बौछार किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ भी चलाई गईं। इसमें अब तक 14 प्रदर्शनकारियों की मौत की खबर है।
Nepal: Death toll rises to 14 in Gen Z protests in Kathmandu
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नेपाल पुलिस के मुताबिक, प्रदर्शन में 12 हजार से ज्यादा युवा शामिल हैं। संसद के गेट नंबर1 और गेट नंबर 2 पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया। इसके बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत तमाम वीवीआईपी के घरों के आसपास के इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया।
#UPDATE | Nepal Police says, "Nine people have lost their lives as Protest turned violent in Kathmandu as people staged a massive protest against the ban on Facebook, Instagram, WhatsApp and other social media sites, leading to clashes between police and protesters" https://t.co/2gM8GGjJdx
— ANI (@ANI) September 8, 2025
‘नेपो किड’ और ‘नेपो बेबीज’ जैसे हैशटैग हिट हुए
भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले के खिलाफ जेन जेड के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन डिजिटल स्पेस पर भी हो रहा है।
हाल के दिनों में, ‘नेपो किड’ और ‘नेपो बेबीज़’ जैसे हैशटैग ऑनलाइन ट्रेंड कर रहे हैं, और सरकार द्वारा अपंजीकृत प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करने के फैसले के बाद इसमें और तेजी आई है।
काठमांडू जिला प्रशासन कार्यालय के अनुसार, ‘हामी नेपाल’ ने राजधानी में रैली का आयोजन किया था, जिसके लिए पूर्व अनुमति ली गई थी। समूह के अध्यक्ष सुधन गुरुंग ने कहा कि यह विरोध प्रदर्शन सरकारी कार्रवाइयों और भ्रष्टाचार के विरोध में था और देश भर में इसी तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं।
आयोजक विरोध प्रदर्शन के मार्गों और सुरक्षा सुझावों की जानकारी साझा करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने छात्रों से भी अपनी वर्दी पहनकर और किताबें लेकर प्रदर्शन में शामिल होने का आग्रह किया।
नेपाल सरकार ने क्यों लगाया था सोशल मीडिया पर बैन
नेपाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सोशल मीडिया पर बैन लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने ही सोशल मीडिया साइट्स को रजिस्ट्रेशन कराने के आदेश दिए थे। इसके लिए 7 दिन का समय दिया था। लेकिन इन साइट्स ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया। इसके बाद ओली सरकार ने 3 सितंबर को फेसबुक, व्हाट्सएप यूट्यूब समेत कई सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगा दिया था। इन प्लेटफॉर्म को नेपाल की सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय में रजिस्ट्रेशन करना था। मंत्रालय ने 28 अगस्त को आदेश जारी किया था। इसके लिए 7 दिन का समय दिया गया था। ये समय 2 सितंबर को खत्म हो गया।
क्यों नहीं हो पाया 26 कंपनियों का रजिस्ट्रेशन
दरअसल हर कंपनी को नेपाल में लोकल ऑफिस रखना और कंटेंट को लेकर लोकल अधिकारी नियुक्त करना जरूरी था, ताकि जरूरत पड़ने पर कंटेंट में तुरंत सुधार कराया जा सके। इसके अलावा यूजर्स का डेटा शेयर करना भी जरूरी कर दिया गया था। कंपनियों को ये नियम सख्त लग रहे थे और इसमें खर्च भी ज्यादा था। हालाँकि भारत और यूरोपीय देशों में ये नियम लागू हैं।
अमेरिका के हस्तक्षेप का नेपाल में दिख रहा असर
ये सब तब हो रहा है जब अमेरिका का हस्तक्षेप वहाँ बढ़ा है। दरअसल सोशल मीडिया पर बैन हटाने से ज्यादा अब प्रदर्शनकारियों की माँग प्रधानमंत्री ओली को हटाने पर केन्द्रित हो गई है। ओली चीन के करीबी माने जाते हैं। लेकिन हाल के दिनों में अमेरिका का नेपाल में जिस तरह से हस्तक्षेप बढ़ा, उसका एहसास लिपुलेख मामले में भी हुआ है। नेपाल ने भारत और चीन के बीच व्यापारिक रास्ते के रूप में लिपुलेख दर्रे के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे ‘अपना क्षेत्र’ कहा। जबकि लिपुलेख पर दावा करने के पीछे न तो नेपाल के पास कोई आधार है और न ही औचित्य है।
अमेरिकी मदद से चल रही करोड़ों की परियोजनाएँ
इनदिनों नेपाल में अमेरिकी वित्तीय और राजनयिक सहायता बढ़ गई है। अमेरिका ने नेपाल में USAID की मदद से चल रही प्रमुख विकास कार्यों को कुछ दिनों के लिए निलंबित कर प्रेशर बनाया। इस दौरान मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) की करोड़ों डॉलर की परियोजनाएँ वैसे ही जारी रही। इस मदद को भी अमेरिका ने शर्तें लगा कर कूटनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया।
एनएमबी बैंक के साथ मिलकर, नेपाल ने अप्रैल 2025 में अमेरिका से संबद्ध संगठनों इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (आईएफसी), ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट (बीआईआई) और मेटलाइफ के साथ 60 मिलियन डॉलर का ऐतिहासिक ग्रीन बॉन्ड समझौता किया। इस समझौते से नेपाल में निजी क्षेत्र का विकास होगा। साथ ही ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा मिलेगा।
नेपाल में अमेरिका की दिलचस्पी ये बताता है कि अपने हित में ‘क्षेत्रीय संतुलन’ को बनाने के लिए अमेरिका लगातार नेपाल में अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है। लिपुलेख पर नेपाल के किए दावों को अमेरिका की शह मिली है। उसे आर्थिक मदद देकर लुभाया जा रहा है। नेपाली पीएमओली चीन समर्थक माने जाते रहे हैं, ऐसे में उन्हें हटाने की तैयारी चल रही है, ऐसा लगता है।