सिद्दारमैया कर्नाटक डीके शिवकुमार

कर्नाटक की सिद्दारमैया सरकार ने गुरुवार (04 सितंबर 2025) को कैबिनेट की बैठक में राजनीतिक कार्यकर्ताओं, एक्टिविस्ट और आम जनता के खिलाफ दर्ज 60 आपराधिक मामलों को वापस लेने का फैसला लिया। इनमें 11 मामले उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार से जुड़े हैं।

साल 2019 में चित्तपुर में हुए पथराव की घटना के बाद डीके शिवकुमार और उनके समर्थकों के खिलाफ यह मुकदमे किए गए थे, जिसमें हिंदू कार्यकर्ताओं की सूचना पर मवेशियों को जब्त करने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की थी।

इसके अलावा एक हाई प्रोफाइल मामला साल 2019 का है, जिसमें उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के समर्थकों के खिलाफ दर्ज केस वापस लिया गया है। इन पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की गिरफ्तारी के बाद कनकपुरा में बसों और सरकारी दफ्तरों पर पथराव करने का मामला दर्ज किया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये मामले कर्नाटक के गृह मंत्री डॉ. जी परमेश्वर और विधानसभा में सरकार के मुख्य सचेतक अशोक पट्टन द्वारा प्रस्तुत याचिकाओं के आधार पर वापस लिए गए थे।

डीके शिवकुमार के भाई के समर्थकों के खिलाफ मामले भी लिए वापस

इसमें शिवकुमार के भाई, बेंगलुरु ग्रामीण के पूर्व सांसद डीके सुरेश के समर्थक के खिलाफ मुकदमे भी वापस लिए गए हैं। इन्होंने साल 2012 में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण समारोह से सुरेश को बाहर रखे जाने के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री का घेराव किया था।

ये मामले कर्नाटक के गृह मंत्री डॉ. जी परमेश्वर और विधानसभा में सरकार के मुख्य सचेतक अशोक पट्टन द्वारा प्रस्तुत याचिकाओं के आधार पर वापस लिए गए थे।

पूर्व मुख्यमंत्री के आवास के बाहर पथराव मामले में 4 मुकदमे वापस

वापस लिए गए चार मामले 2023 में शिवमोग्गा ज़िले के शिकारीपुरा में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार द्वारा घोषित अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए आंतरिक आरक्षण के विरोध में हुए विरोध प्रदर्शनों से संबंधित थे।

प्रदर्शनकारियों पर पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के कस्बे स्थित आवास की घेराबंदी करने की कोशिश के दौरान पथराव और अधिकारियों पर हमला करने का आरोप था।

गैर-कानूनी तरीके से वापस लिए गए फैसले

कर्नाटक सरकार ने 60 मामलों को वापस लेने का फैसला राजनीतिक प्रभाव के कारण लिया है। यह फैसला राज्य के गृह मंत्रालय, DGP और IGP, अभियोजन एवं सरकारी मुकदमेबाजी निदेशक (Director of Prosecutions and Government Litigation) और विधि विभाग (Law Department) सहित प्रमुख विभागों की सलाह के विरुद्ध लिया गया है।

Deccan Herald की रिपोर्ट के मुताबिक, तीनों ऑथरिटी की राय के अनुसार, ये 60 मामले वापसी के लिए उपयुक्त नहीं थे और इसमें कोई सार्वजनिक हित भी शामिल नहीं था। यह फैसला कानूनी और प्रशासनिक रूप से अस्वीकार्य है।

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