पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव होने हैं और इसी बीच चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जैसे ही यह काम शुरू हुआ, बांग्लादेश सीमा से सटे मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में अफरातफरी मच गई।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ मुस्लिम बहुल इलाकों में हजारों लोग जन्म प्रमाण पत्र सुधारने, डिजिटलीकरण करवाने और नए सिरे से बनवाने के लिए नगर पालिकाओं, पंचायतों और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।
लोग खुलेआम दोगुनी कीमत पर स्टाम्प पेपर खरीद रहे हैं और वकीलों को भारी-भरकम फीस चुका रहे हैं। लोगों में इस बात का डर साफ है कि कहीं NRC या विशेष गहन संशोधन (SIR) लागू हुआ तो भारतीय होने का सबूत सिर्फ यही कागज देगा।
बरहामपुर और मुर्शिदाबाद में कतारों का सैलाब
बरहामपुर नगर पालिका का हाल ऐसा है की यहाँ रोजाना 10-12 आवेदन आते थे, अब अचानक यह संख्या 500-600 तक पहुँच गई है। लोग सुबह 7 बजे से लंबी-लंबी लाइनों में खड़े रहते हैं। नगर पालिका अध्यक्ष नारुगोपाल मुखर्जी मानते हैं कि हालात काबू से बाहर हैं।
फॉर्म संग्रह, सुधार, विलंबित नए जन्म प्रमाण पत्र और डिजिटलीकरण के लिए अलग-अलग कियोस्क बनाए गए हैं। लेकिन भीड़ इतनी है कि अधिकारी भी परेशान हैं। 65 साल के अबुल कासिम शेख अपने गाँव से 45 किलोमीटर दूर सिर्फ इसलिए आए हैं कि उनकी बेटी का 20 साल पुराना जन्म रजिस्ट्रेशन ‘लाल कागज’ से बदलकर डिजिटल सफेद प्रिंटआउट हो जाए। शेख कहते हैं, “गाँव में हर कोई यही कह रहा है कि लाल वाले की कोई कीमत नहीं, सफेद चाहिए।”
नौदा से आई समीरुन बीबी अपने दोनों बेटों के जन्म प्रमाण पत्र अपडेट करवाने पहुँची हैं। वे साफ कहती हैं, “हमें डर है कि कल NRC आ जाएगा और पहले हमारा वोटिंग राइट छीना जाएगा, फिर हमें बाहर निकाल देंगे। इसीलिए यह काम अभी निपटाना जरूरी है।”
अदालतों और वकीलों का धंधा चमका
जन्म प्रमाण पत्र सुधारने की भीड़ का सीधा फायदा वकीलों और बिचौलियों को हो रहा है। मुर्शिदाबाद कोर्ट के बाहर वकीलों के टेंट लगे हैं जहाँ रोजाना सैकड़ों हलफनामे तैयार हो रहे हैं। वकील सैयद रामी बताते हैं, “आमतौर पर मुझे हफ्ते में 10-12 स्टाम्प पेपर की जरूरत होती थी। पिछले हफ्ते 500 लिए और इस हफ्ते 600 से ज्यादा। लोग मेरे घर तक आधी रात को पहुँच जाते हैं।”
स्टाम्प पेपर की कीमत 10 रुपए से बढ़कर 20 रुपए हो चुकी है। वकीलों की फीस भी 150 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक पहुँच गई है। जिनके नाम, जन्मतिथि या माता-पिता के नाम आधार, वोटर कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र में मेल नहीं खाते, उन्हें कोर्ट का हलफनामा बनवाना पड़ रहा है।
पंचायतों और साइबर कैफे तक फैला असर
गाँव-गाँव की पंचायतों में भीड़ संभालना मुश्किल हो रहा है। कंडी के महालंडी पंचायत की अधिकारी सुवर्णा मरजीत बताती हैं कि रोज 70-80 लोग डिजिटलीकरण के लिए आते हैं और 20-30 लोग नए प्रमाण पत्र के लिए। लेकिन यह काम SDO या BMO ही कर सकते हैं। प्रधान साहेबा खातून का कहना है, “लोगों को डर है कि जन्म प्रमाण पत्र सही नहीं हुआ तो उन्हें सीधे बांग्लादेश भेज देंगे।”
इसी बीच, बिचौलिए भी सक्रिय हो गए हैं। जन्म प्रमाण पत्र में छोटे-मोटे सुधार के लिए 1000-2000 रुपए, बड़े बदलाव और गजट नोटिफिकेशन के लिए 4000-5000 रुपए तक वसूले जा रहे हैं। साइबर कैफ़े वाले भी पीछे नहीं 20 रुपए लेकर फॉर्म भरने तक का काम कर रहे हैं।
गरमाई राजनीति, गहराय लोगों का डार
ममता बनर्जी सरकार आरोप लगा रही है कि भाजपा मुस्लिमों को टारगेट करने के लिए SIR और NRC का डर फैला रही है। इसलिए सरकारी तंत्र को जन्म प्रमाण पत्र सुधारने और डिजिटलीकरण में झोंक दिया गया है। बरहामपुर और मुर्शिदाबाद में दर्जनों अधिकारी फील्ड पर तैनात हैं।
#WATCH | Patna, Bihar: TMC MP Kalyan Banerjee says, "The special intensive revision that is being done is nonsense. The Election Commission wants to help the BJP, that's why the names of all voters are being removed. We will fight together. Vote theft is happening across the… pic.twitter.com/FCOwAc5zmH
— ANI (@ANI) August 30, 2025
टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “यह जो विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) किया जा रहा है, वह पूरी तरह बकवास है। चुनाव आयोग भाजपा की मदद करने के लिए मतदाताओं के नाम हटा रहा है। हम सब मिलकर इसका मुकाबला करेंगे। वोटों की चोरी पूरे देश में हो रही है और इसे रोकना जरूरी है। महाराष्ट्र और हरियाणा में उन्होंने यही किया, अब बिहार और बंगाल में भी वही चाल चल रहे हैं। लेकिन हम इसे हर हाल में रोकेंगे।”
वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य का दावा है, “बंगाल में बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज हैं। हम समय-समय पर चुनाव आयोग को सचेत करते रहे हैं। तृणमूल जानबूझकर दहशत फैला रही है।” लेकिन जमीनी हकीकत साफ है।
हजारों लोग जन्म प्रमाण पत्र के लिए लाइन में खड़े हैं, स्टाम्प पेपर और वकील की जेबें भर रही हैं और बिचौलिए पैकेज बेच रहे हैं। असली सवाल यह है कि क्या यह प्रक्रिया सच में नागरिकता साबित करने का आधार बनेगी या फिर आम जनता के खून-पसीने की कमाई लूटने का एक और जरिया?













