भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय जापान यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के साथ द्विपक्षीय वार्ता की है। दोनों नेता सांस्कृतिक रिश्तों, सभ्यतागत जुड़ाव और आर्थिक साझेदारी को और मजबूत कर रहे हैं।
मई 2025 में भारत नॉमिनल जीडीपी (GDP) के मामले में जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इसके बावजूद भारत को जापान से विनिर्माण, तकनीक, निवेश और मानव संसाधन सहयोग के क्षेत्र में बड़ा लाभ मिलता है। भारत-जापान की साझेदारी सिर्फ उद्योगों को नहीं बल्कि किसानों, छात्रों और उद्यमियों के जीवन को भी नई दिशा दे रही है।
भारत में लगातार बढ़ रहा है जापानी निवेश
पिछले दो वर्षों में भारत में जापान से लगातार निवेश बढ़ा है, जो हमारी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर जापान का भरोसा दिखाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत और जापान के बीच अब तक 170 से ज्यादा समझौते (MoUs) हुए हैं, जिनकी कुल कीमत 13 अरब डॉलर (1,07,900 करोड़ रुपए) से अधिक है।
उदाहरण के तौर पर, निप्पॉन स्टील गुजरात और आंध्र प्रदेश में बड़े प्रोजेक्ट शुरू कर रही है। इसमें 56 अरब रुपए की लागत से एक विशाल स्टील प्लांट शामिल है, जो भारत की निर्माण क्षमता को और मजबूत करेगा।
इसी तरह, जेएफई स्टील 445 अरब रुपए बिजली उत्पादन में काम आने वाले ‘इलेक्ट्रिकल स्टील’ बनाने पर खर्च करेगी, जो भारत के बढ़ते पावर सेक्टर के लिए बेहद जरूरी है। ये प्रोजेक्ट्स हजारों नए रोजगार भी देंगे।
जापानी ऑटोमोबाइल कंपनियाँ भी भारत के विकास में बड़ा योगदान दे रही हैं। सुजुकी मोटर गुजरात में 350 अरब रुपए का नया प्लांट बना रही है और उत्पादन क्षमता बढ़ा रही है। वहीं टोयोटा किरलोस्कर कर्नाटक (33 अरब रुपए) और महाराष्ट्र (200 अरब रुपए) में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उत्पादन के लिए निवेश कर रही है। ये पहल भारत को भविष्य का ‘क्लीन मोबिलिटी हब’ बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
निर्माण के अलावा, जापानी कंपनियाँ रियल एस्टेट, नवीकरणीय ऊर्जा और एयरोस्पेस में भी उतर रही हैं। सुमितोमो रियल्टी 4.76 अरब डॉलर (39,508 करोड़ रुपए) शहरी विकास में लगाने जा रही है।
ओसाका गैस नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन पर ध्यान देगी। वहीं, एस्त्रोस्केल इसरो के साथ मिलकर भारत के PSLV के जरिए उपग्रह प्रक्षेपण करेगी। भारत-जापान की ये साझेदारी उद्योग, ऊर्जा, रोजगार और तकनीक हर क्षेत्र में देश के भविष्य को नई उड़ान दे रही है।
जापान के साथ साझेदारी के कारण भारतीय एसएमई वैश्विक वैल्यू चेन का बन रहे हिस्सा
भारत–जापान साझेदारी की एक बड़ी खासियत यह है कि इसका सीधा असर छोटे और मझले उद्योगों (SMEs) पर पड़ रहा है। कई दशकों से भारतीय SMEs सीमित बाजार और तकनीक की कमी जैसी चुनौतियों से जूझते रहे हैं।
जापानी कंपनियों के सहयोग से अब ये अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में शामिल हो रहे हैं। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में Tokyo Electron, Fujifilm और Tata Electronics के साथ साझेदारी से भारतीय सप्लायर्स वैश्विक चिप उद्योग का हिस्सा बन रहे हैं। इससे स्थानीय कंपनियाँ उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण में विश्वस्तरीय मानक अपनाने लगी हैं।
ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी SMEs की तेजी से भागीदारी बढ़ रही है। Toyota और Suzuki अपने सप्लायर नेटवर्क को भारत की टियर-2 और टियर-3 कंपनियों तक बढ़ा रहे हैं।
डिजिटल क्षेत्र में Fujitsu का ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर 9,000 भारतीय इंजीनियरों को नियुक्त कर रहा है, जिससे आईटी से जुड़े SMEs को भी कारोबार मिल रहा है। इन पहलों के कारण भारतीय SMEs को उन्नत तकनीक, आधुनिक कारोबारी तरीकों और वैश्विक बाजारों से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। यही भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को और मज़बूत बना रहा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए जापान और भारत सहयोग करेंगे
भारत–जापान की आर्थिक साझेदारी अब केवल शहरों तक सीमित नहीं है बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी गहराई से असर डाल रही है। सोजित्ज कॉर्पोरेशन इंडियन ऑयल के साथ मिलकर 30 प्लांट्स में 395 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है।
ये प्लांट कृषि अवशेषों से हर साल करीब 16 लाख टन बायोगैस बनाएँगे। इससे किसानों को फसल के अवशेष बेचकर अतिरिक्त आय होगी और वे स्वच्छ ऊर्जा मिशन में भी योगदान देंगे।
इसी तरह, सुज़ुकी मोटर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ मिलकर गाय के गोबर से बायोगैस बनाने और उसे सीएनजी वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की दिशा में काम कर रही है।
भारत की लगभग 20% यात्री कारें सीएनजी पर चलती हैं, इसलिए यह परियोजना न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में नए रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी।
जापान-भारत साझेदारी से विनिर्माण और निर्यात में वृद्धि सुनिश्चित होगी
जापान के साथ साझेदारी भारत को खपत आधारित अर्थव्यवस्था से निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की ओर ले जा रही है और वैश्विक बाजारों में भारत की स्थिति मज़बूत बना रही है।
निप्पॉन स्टील की नई परियोजनाएँ भारत की खास स्टील (विशेषकर ऑटोमोबाइल और ऊर्जा उद्योगों के लिए) के निर्यात क्षमता को बढ़ाएँगी। वहीं फुजीफिल्म और टाटा मिलकर भारत की भूमिका को वैश्विक चिप सप्लाई चेन में और मजबूत कर रहे हैं।
टोयोटा और सुज़ुकी भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बना रहे हैं। इन गाड़ियों को अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य पूर्व में निर्यात करने की योजना है। यह भारत की ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ की सोच के अनुरूप है।
भारत और जापान के बीच मानव संसाधन और ज्ञान का आदान-प्रदान
भारत–जापान सहयोग का सबसे महत्वाकांक्षी पहलू मानव संसाधन है। इसके तहत इंडिया–जापान टैलेंट ब्रिज प्रोग्राम चलाया जा रहा है, जिसे जापान के METI मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है और जिसके लिए 15 अरब येन का बजट तय किया गया है।
इस कार्यक्रम का लक्ष्य अगले 5 साल में 5 लाख छात्रों और पेशेवरों को उच्च शिक्षा, इंटर्नशिप और रोजगार के अवसरों के जरिए जोड़ना है। भारत के प्रमुख संस्थान जैसे IIT खड़गपुर, IIT कानपुर, IIT गुवाहाटी, IISc बेंगलुरु और अन्ना यूनिवर्सिटी जापानी संस्थानों के साथ करियर फेयर और एक्सचेंज प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं, जिससे भारतीय छात्रों को जापानी शोध और तकनीकी कंपनियों से जुड़ने का अवसर मिल रहा है।
जापानी कंपनियाँ भी भारतीय प्रतिभा में तेजी से निवेश कर रही हैं। Nidec बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सेंटर स्थापित कर रही है, Musashi Seimitsu भारतीय ग्रेजुएट्स के साथ मिलकर इलेक्ट्रिक वाहनों के कंपोनेंट्स विकसित कर रही है और दाई-इची लाइफ तेचनों क्रॉस (Dai-ichi Life Techno Cross) द्विभाषी इंजीनियरों को भर्ती कर रही है।
इसके अलावा, मनी फॉरवर्ड जैसी फिनटेक कंपनियाँ भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स पर विशेष ध्यान दे रही हैं। केवल कॉर्पोरेट हायरिंग ही नहीं बल्कि जापानी वेंचर फर्म्स भारतीय स्टार्टअप्स में भी बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं, खासकर डीप-टेक क्षेत्र में। वे केवल पूंजी ही नहीं, बल्कि मेंटॉरशिप और शोध के अवसर भी प्रदान कर रही हैं।
इन पहलों के जरिए भारत और जापान मिलकर ऐसी नई पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो उन्नत कौशल और वैश्विक अनुभव से लैस होगी और आने वाले समय की चुनौतियों का आत्मविश्वास के साथ सामना कर सकेगी।
अन्य मोर्चों पर सहयोग
असम सरकार और ASEAN Holdings के बीच हाल ही में एक महत्वपूर्ण समझौता (MoU) हुआ है। यह भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को मजबूती देता है और औद्योगिक ढाँचा, लॉजिस्टिक्स और कृषि-आधारित उद्योगों पर केंद्रित है। इस साझेदारी से असम में रोजगार और विकास के नए अवसर मिलेंगे और राज्य का जुड़ाव ASEAN बाजारों से और मजबूत होगा।
भारत और जापान अपनी साझेदारी को वैश्विक प्राथमिकताओं से जोड़ रहे हैं। जापान–भारत–अफ्रीका फोरम और TICAD समिट में दोनों देशों ने खनिज सुरक्षा, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन और स्वच्छ ऊर्जा पर साझा एजेंडा तय किया।
यह साझेदारी न सिर्फ भारत–जापान के लिए बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और कनेक्टिविटी के लिए भी महत्वपूर्ण है। गुजरात के स्टील हब से लेकर बनासकांठा की डेयरी, बेंगलुरु के आईटी कॉरिडोर से लेकर असम के औद्योगिक गेटवे तक जापान का सहयोग हर जगह दिख रहा है। यह केवल निवेश और व्यापार की कहानी नहीं है, बल्कि आजीविका और भविष्य को नया रूप देने की यात्रा है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा टोक्यो में मिल रहे हैं, तब भारत–जापान आर्थिक साझेदारी 21वीं सदी की एक परिभाषित साझेदारी बनकर उभर रही है।
भारत अपनी जनसंख्या, बाजार और पैमाने के साथ योगदान दे रहा है जबकि जापान अपनी तकनीक, पूंजी और विशेषज्ञता से साथ निभा रहा है। दोनों मिलकर वैश्विक सप्लाई चेन बना रहे हैं, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दे रहे हैं, किसानों को सशक्त कर रहे हैं और नई पीढ़ी की टैलेंट को मौका दे रहे हैं। भारत की ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ की सोच 2025 में जमीनी हकीकत बनती दिखाई दे रही है।