राहुल गाँधी चुनाव आयोग

कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी और उनकी INDI गठबंधन ने हाल में चुनाव प्रक्रिया और भारतीय चुनाव आयोग (ECI) पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने ‘वोट चोरी’, ‘जनता को वोट देने से वंचित करना’, और ‘चुनाव आयोग और भाजपा की मिलीभगत’ जैसे नारे और बयान दिए। उन्होंने यहाँ तक कहा, ‘बच्चे तक मुझसे कह रहे हैं – वोट चोर, गद्दी छोड़।’

इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग ने 17 अगस्त 2025 को राहुल गाँधी से एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर अपने दावों के सबूत पेश करने या फिर पूरे देश से माफी माँगने को कहा था। यह समय सीमा 25 अगस्त 2025 को समाप्त हो गई।

अब तक राहुल गाँधी ने न तो कोई सबूत दिए और न ही माफी माँगी। इसके बाद चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा, “राहुल के वोट चोरी के आरोपों को अब अमान्य मानते हुए आगे कोई कार्यवाही की आवश्यकता नहीं है।”

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी को सख्त लहजे में कहा था कि या तो वो अपने आरोपों को साबित करने के लिए हलफनामा दें या फिर देश से माफी माँगें। उन्होंने साफ कहा कि अगर सात दिनों में हलफनामा नहीं मिला, तो इसका मतलब है कि ये सारे आरोप बेबुनियाद हैं।

ज्ञानेश कुमार ने यह भी बताया था कि अगर किसी को चुनाव परिणाम पर आपत्ति है, तो वह 45 दिनों के भीतर संबंधित हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दायर कर सकता है, लेकिन किसी भी विपक्षी नेता या उम्मीदवार ने उस समय कोई आपत्ति नहीं उठाई।

SIR अभियान और विपक्ष की राजनीति

बता दें कि बिहार में चल रहे विशेष पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) के जरिए चुनाव आयोग मतदाता सूची की गड़बड़ियों को सुधार रहा है। इसमें मतदाता, राजनीतिक दल और बूथ लेवल अधिकारी साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

बिहार में कॉन्ग्रेस और राजद की महागठबंधन सरकार इस प्रक्रिया का विरोध कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि यह अभियान फर्जी वोटरों को हटाकर असली वोटरों का अधिकार सुरक्षित करने का काम कर रहा है। इसमें कई विदेशी नागरिकों का भी पता चला है जो आधार कार्ड और अन्य भारतीय दस्तावेजों के सहारे वोटर बने हुए थे।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने हाल ही में आरोप लगाया था कि उनके दल द्वारा की गई रिसर्च में आपराधिक सबूत मिले हैं, जिससे साफ होता है कि भारत में चुनाव आयोग (ECI) लोकतंत्र को नुकसान पहुँचा रहा है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग की कार्रवाई देशभर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रही है।

इसके जवाब में महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) ने राहुल गाँधी से एक हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र, शपथपत्र या हलफनामा माँगा, जिसमें वह उन वैध वोटरों के नाम दें जिन्हें सूची से बाहर कर दिया गया हो, और ऐसे लोगों के नाम भी दें जो अपात्र होते हुए भी वोटर लिस्ट में शामिल हैं।

राहुल गाँधी लगातार चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते आ रहे हैं। वे दावा करते हैं कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी हो रही है और इससे जनता का लोकतंत्र से भरोसा उठ रहा है। लेकिन उनके ज्यादातर दावे अब तक झूठे और बेबुनियाद साबित हुए हैं। ऐसा लगता है कि ये एक सोची-समझी रणनीति है, जिससे लोगों को भड़काकर कुछ वोट हासिल किए जा सकें।

SIR  के दौरान विपक्षी दलों के बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) ने भी इस प्रक्रिया पर भरोसा जताया था। इसके बावजूद कॉन्ग्रस और राहुल गाँधी आरोप लगाते रहे, लेकिन कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं कर सके। अब चुनाव आयोग ने साफ किया है कि कॉन्ग्रस की ओर से SIR को लेकर कोई लिखित शिकायत नहीं आई है।

राहुल गाँधी ने यह भी दावा किया कि कई फर्जी वोटर लिस्ट में ‘हाउस नंबर 0’ लिखा है, जो संदिग्ध है। जबकि चुनाव आयोग ने बताया कि यह उन लोगों के लिए किया जाता है जिनके पास स्थायी या स्पष्ट पता नहीं होता, जैसे बेघर, किराएदार, या जिनके मकान का नंबर नहीं है। ये प्रावधान पहले से हैं और कानूनन मान्य हैं।

राहुल गाँधी के आरोप बार-बार चुनाव आयोग और सत्तारूढ़ दल को बदनाम करने के लिए लगाए जा रहे हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में कोई ठोस सबूत नहीं मिलते। आयोग ने हर बार तथ्यों और रिकॉर्ड के साथ जवाब दिया है, जबकि कॉन्ग्रेस ने ज्यादातर मामलों में औपचारिक शिकायत तक नहीं की। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये आरोप ज्यादातर राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं, न कि किसी सच्ची समस्या का समाधान खोजने की कोशिश।

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