भारत में पत्रकारों पर कानूनी कार्रवाई को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। NDTV के पत्रकार शिव अरूर ने राहुल गाँधी के ‘वोट चोरी’ वाले आरोपों का पर्दाफाश किया था। ये बदनामी कॉन्ग्रेस को हजम नहीं हुई और उन्होंने पत्रकार पर पार्टी को बदनाम करने के लिए पत्रकार शिव पर आपराधिक केस दर्ज करा दिया। सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि इस मामले पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) ने चुप्पी साध रखी है। ये ही एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया उस समय तुरंत सामने आया था, जब करन थापर और सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ असम में गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ था।

शिव अरूर पर क्या है आरोप?

हाल ही में, NDTV पर प्रसारित होने वाले शो ‘इंडिया मैटर्स’ में पत्रकार शिव अरूर ने 19 अगस्त 2025 को एक रिपोर्ट दिखाई थी। इस रिपोर्ट में कथित तौर पर राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस पर ‘वोट चोरी’ का पर्दाफाश किया गया था। शिव अरूर ने शो में जिस डेटा का जिक्र किया था वो डेटा एक सर्वे कंपनी CSDS के संजय कुमार ने दिया था। संजय कुमार ने कहा था कि महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट में गड़बड़ी है। राहुल गाँधी ने इस डेटा का इस्तेमाल किया और चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ का आरोप मड़ दिया।

लेकिन बाद में, संजय कुमार ने माना कि उनसे गलती हुई है और उन्होंने अपना पुराना पोस्ट हटाकर सोशल मीडिया पर माफी माँगी। NDTV के पत्रकार शिव अरूर ने भी अपने शो में यही बताया कि राहुल गाँधी का ‘वोट चोरी’ वाला आरोप गलत था और उन्होंने अपनी बात साबित नहीं की।

लेकिन इस बेज्जती को कॉन्ग्रेसी नेता सहन कर पाए और इसे राहुल गाँधी की छवि खराब करने की बात कह दी। पवन खेड़ा ने तो यहाँ तक कह दिया कि इस मामले में शिव अरूर के खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा। कॉन्ग्रेस की वकील ईशा बख्शी ने भी कानूनी कार्रवाई करने की बात कही।

आनंद रंगनाथन ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि कॉन्ग्रेस ने पत्रकार शिव अरूर के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई है। यह शिकायत उनके उस कार्यक्रम के लिए है, जिसमें उन्होंने राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के दावे का पर्दाफाश किया था।

रंगनाथन ने इस कार्रवाई को गलत बताया है। उन्होंने चिंता जताई कि कॉन्ग्रेस शासित राज्यों में ऐसे और मामले दर्ज हो सकते हैं। उन्होंने पूछा कि इस पर एडिटर्स गिल्ड (EGI) और अभिव्यक्ति की आजादी के तथाकथित योद्धा चुप क्यों हैं। अंत में, उन्होंने कहा कि वह शिव अरूर के साथ खड़े हैं।

करण थापर के मामले में EGI का रुख

दूसरी तरफ, पत्रकार करण थापर और सिद्धार्थ वरदराजन पर भी कानूनी शिकंजा कसा था। असम पुलिस ने उन पर एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 लगाई गई थी। यह धारा पुराने राजद्रोह कानून का ही नया रूप है। यह एफआईआर ‘द वायर’ पर छपी एक रिपोर्ट को लेकर थी, जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जुड़ी जानकारी थी।

जब ये पत्रकार मुश्किल में आए तो एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) तुरंत उनके समर्थन में सामने आया। गिल्ड ने एक बयान जारी कर असम पुलिस की कार्रवाई की आलोचना की और इसे प्रेस की आजादी पर हमला बताया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भी करण थापर और सिद्धार्थ वरदराजन को गिरफ्तारी से सुरक्षा दी।

ये दोनों मामले एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। जब करण थापर जैसे पत्रकार पर केस होता है तो एडिटर्स गिल्ड (EGI) तुरंत उनके साथ खड़ा हो जाता है। लेकिन शिव अरूर के मामले में गिल्ड पूरी तरह से चुप रहता है। क्या इसका मतलब यह है कि पत्रकारों के लिए न्याय के नियम अलग-अलग हैं? या फिर यह दिखाता है कि पत्रकारिता की संस्थाएँ भी राजनीतिक विचारधारा के हिसाब से काम करती हैं?



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