मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले से एक दर्दनाक घटना सामने आई है। यहाँ 15 महीने की एक मासूम बच्ची दिव्यांशी की शनिवार (16 अगस्त 2025) को जिला अस्पताल में कुपोषण की वजह से मौत हो गई। बच्ची का वजन सिर्फ 3.7 किलोग्राम था, जो उसकी उम्र के मुताबिक बेहद कम है। बच्ची की माँ का कहना है कि लड़की होने की वजह से ससुरालवाले इलाज नहीं कराने देते थे।

रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टरों ने बताया कि उसका हीमोग्लोबिन स्तर केवल 7.4 ग्राम/डीएल था, जो जीवित रहने के लिए बेहद कम है। दिव्यांशी को पहले ही राज्य की ‘दस्तक अभियान’ योजना में कुपोषित के रूप में पहचाना गया था। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने उसके परिवार को पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में इलाज के लिए राजी भी किया था।

दुखद बात यह है कि दिव्यांशी की माँ ने बताया कि उसके ससुराल वाले इलाज नहीं करवाने दे रहे थे, सिर्फ इसलिए क्योंकि बच्ची एक लड़की थी। उन्होंने कहा, “जब भी वह बीमार होती थी, वे कहते थे – मरने दो, लड़की ही तो है।”

इस घटना के दो दिन पहले ही, श्योपुर जिले में एक और बच्ची राधिका की मौत हुई थी। वह भी डेढ़ साल की थी और मौत के समय उसका वजन सिर्फ 2.5 किलो था। उसकी माँ ने बताया कि जन्म के समय वह ठीक थी, लेकिन धीरे-धीरे उसका शरीर कमजोर होता गया और उसके हाथ-पाँव बिलकुल सूख गए थे।

भिंड जिले से भी हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया, जहाँ एक और बच्ची की मौत कुपोषण के कारण हुई, हालाँकि डॉक्टरों की राय इससे विपरीत थी।

इन लगातार हो रही मौतों से एक सच्चाई सामने आती है कि सरकार की योजनाओं के बावजूद मध्यप्रदेश अब भी देश के सबसे ज्यादा कुपोषण-प्रभावित राज्यों में बना हुआ है। यहाँ बेटियों के साथ हो रहा भेदभाव इस स्थिति को और भी गंभीर बना रहा है।

विभिन्न राज्यों में कुपोषण के मामले

कुपोषण का मतलब है कि शरीर को सही मात्रा में जरूरी पोषण नहीं मिल रहा है। बच्चों में यह समस्या और भी खतरनाक होती है क्योंकि यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास को रोक सकती है, उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर सकती है और गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2024 में जारी सरकारी आँकड़े इस समस्या की गंभीरता को साफ दिखाते हैं। इसके तहत उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 46.36% बच्चे बौनेपन से पीड़ित हैं, यानी वहाँ लगभग हर दूसरा बच्चा उम्र के अनुसार ठीक से नहीं बढ़ पा रहा है।

इसके बाद लक्षद्वीप में 46.31%, महाराष्ट्र में 44.59% और मध्य प्रदेश में 41.61% बच्चे बौनापन झेल रहे हैं। मध्य प्रदेश में 26.21% बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन सामान्य की अपेक्षा बहुत कम हैं। इसके बाद दादरा- नगर हवेली और दमन एवं दीव (26.41%) और लक्षद्वीप (23.25%) में भी हालात चिंताजनक हैं।

बात करें द्रुत कुपोषण (Wasting) की तो यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चे का वजन अचानक कम होने लगता है। इसमें लक्षद्वीप सबसे आगे है। यहाँ 13.22% बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं। बिहार (9.81%) और गुजरात (9.16%) भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। यह दिखाता है कि वहाँ के बच्चे या तो पर्याप्त भोजन नहीं कर पा रहे या बार-बार बीमार पड़ रहे हैं।

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