नक्सलवाद के खात्मे को लेकर मोदी सरकार ने कमर कसी हुई है। ‘लाल आतंक’ के खिलाफ सरकार की मुहिम को अब सफलता भी मिल रही है। 15 अगस्त 2025 को आजादी के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के 14 दूर-दराज के जनजातीय (Tribal) गाँवों में तिरंगा फहराया जाएगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, रेड टेरर यानी नक्सली हिंसा से प्रभावित बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों के अंदरूनी इलाकों में 26 जनवरी के बाद बनाए गए सुरक्षा शिविरों के चलते यह स्थिति बनी है।

पहले इन गाँवों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का कब्जा था। राष्ट्रीय पर्वों पर काले या लाल झंडे लगवाए जाते थे और बैनर या पर्चों के जरिए लोगों को स्वतंत्रता दिवस मनाने से रोक दिया जाता था। सीधे तौर पर कहें तो इन गाँव में लोगों को देशभक्ति दिखाने की भी इजाजत नहीं थी।

अधिकारियों ने बताया कि इस साल CPIM द्वारा ऐसे कोई प्रयास नहीं हुए। बस्तर जोन के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल पी. सुंदरराज ने कहा, “गाँवों के सेंटर में तिरंगा फहराया जाएगा जिसमें अर्धसैनिक बल, बस्तर पुलिस और गाँव वाले मौजूद रहेंगे। ये 14 गाँव ऐसे हैं जहाँ नए शिविर 26 जनवरी 2025 के बाद बनाए गए हैं। इन गाँवों में पहले कोई राष्ट्रीय पर्व नहीं मनाया था।”

सुंदरराज ने आगे कहा, “इसके अलावा 15 और गाँव हैं, जहाँ सुरक्षा शिविर 15 अगस्त के बाद बने थे। वहाँ पहले ही गणतंत्र दिवस मनाया जा चुका है लेकिन अब वो पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाएँगे।” उनका कहना है कि नए सुरक्षा शिविर सिर्फ सुरक्षा के लिए ही नहीं हैं बल्कि ये गाँवों में विकास और लोगों से जुड़ाव का काम भी कर रहे हैं।

अधिकारी ने कहा, “यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि बस्तर के अंदरूनी इलाके के लोग इस साल पहली बार 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाएँगे। यह ऐतिहासिक पल हमारे सुरक्षा बलों की लगातार मेहनत और इन नए शिविरों के कारण संभव हुआ है। इन शिविरों की वजह से न सिर्फ सुरक्षा बेहतर हुई है बल्कि लोगों में आत्मविश्वास भी बढ़ा है, जिससे वे खुले दिल से राष्ट्रीय पर्व में हिस्सा ले पाएँगे।”

उन्होंने कहा, “युवा और बच्चे खास तौर पर अपने गाँव में तिरंगा देखने के लिए उत्साहित हैं। हमारे जवान भी इन गाँवों में लोगों के साथ मिलकर लोकतंत्र की ताकत को मजबूत करने के लिए बेहद खुश हैं।”

नक्सली आतंक का होगा खात्मा

इस बार पहली बार जिन गाँवों में तिरंगा फहराया जाएगा उनमें गुनजेपुरती, पुजारिकांकर, भीमराम, कुटुल, पदमकोट, नेलंगुर, पंगुर और उसकावाया शामिल हैं। कोंडापल्ली, कुटुल, नेलंगुर, रायगुड़ेम, गोमगुड़ा और पिड़िया जैसे गांव नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित रहे हैं। ग्रामीणों को सिर्फ तिरंगा फहराने तक ही नहीं बल्कि आजादी के दिन और उसके महत्व के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

CRPF और स्थानीय अधिकारी पहले ही बस्तर में तिरंगा रैलियाँ आयोजित कर रहे हैं। इस खास मौके पर सुरक्षा के लिए जिला रिजर्व गार्ड (DRG), बस्तर फाइटर्स, स्पेशल टास्क फोर्स (STF), छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (CAF), सीआरपीएफ, कोबरा, SSB, ITBP, BSF और स्थानीय पुलिस तैनात रहेगी।

अधिकारियों का कहना है कि इस कार्यक्रम का मकसद यही है कि चाहे कोई शहर में रहता हो या दूरदराज के गाँव में, हर किसी को देश की आजादी और संविधान की ताकत से जुड़ाव महसूस हो। इसके अलावा सरकार और सुरक्षा बलों के बीच मजबूत तालमेल भी इस आयोजन में साफ दिख रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार कहा है कि 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करना सरकार का लक्ष्य है और इसके लिए केंद्र पूरी ताकत से काम कर रहा है।

सुरक्षाबलों के हालिया ऑपरेशनों की सफलता से जवानों का हौसला बढ़ा है। इस साल अब तक 19 सुरक्षाकर्मी नक्सली हमलों में शहीद हो चुके हैं जबकि 229 नक्सलियों को ढेर किया गया है। वहीं, नक्सलियों ने पुलिस का इनफॉर्मर होने के शक में 28 लोगों की हत्या की है।

पिछले साल भी आजादी के दिन बस्तर के 13 दूरदराज के गाँवों में पहली बार तिरंगा फहराया गया था। इनमें नर्लीघाट (दंतेवाड़ा), पनिडोबिर (कांकेर), गंडम, पुटकेल और छूटवाही (बिजापुर), कस्तुरमेटा, मसपुर, इरकभट्टी और मोहंडी (नरायणपुर), टेकलगुड़ेम, पुवर्ती, लाखापाल और पुलनपाड़ (सुकमा) गाँव शामिल थे।

नक्सलियों के खिलाफ जारी है ऑपरेशन

छत्तीसगढ़ के मनपुर-मोहला-अंबागढ़ चौकी इलाके में बीते 13 अगस्त को सुरक्षाबलों और माओवादी के बीच मुठभेड़ में 2 नक्सली विजय रेड्डी और लोकेश सलामे मारे गए थे। इन पर कुल 35 लाख रुपए का इनाम था। यह ऑपरेशन बांदा पहाड़ के पास मदनवाड़ा थाना क्षेत्र में हुआ था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस ऑपरेशन में ITBP ने और DRG के जवानों की मदद की थी। ऑपरेशन 12 अगस्त की रात शुरू हुआ क्योंकि सुरक्षा बलों को खबर मिली थी कि इलाके में बड़े नक्सली नेता मौजूद हैं।

विजय रेड्डी दण्डकारण्य स्पेशल जोनल समिति का हिस्सा था और उस पर 25 लाख रुपए का इनाम था। लोकेश सलामे डिविजनल समिति का हिस्सा था और उस पर 10 लाख रुपए का इनाम था। रेड्डी पर महाराष्ट्र में भी इनाम घोषित था। वह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की सीमा से लगे क्षेत्र का प्रमुख नक्सली नेता था और राजनांदगांव-कांकेर सीमा (RKB) संभाग में संगठन के अभियानों की देखरेख करता था। यह क्षेत्र नक्सलियों के ट्रेनिंग क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।

26 जुलाई को बस्तर पुलिस ने बताया था कि बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 4 नक्सली मारे गए थे। सुंदरराज ने बताया था, “खुफिया जानकारी के आधार पर यह ऑपरेशन शुरू हुआ था। उनके पास INSAS राइफल, SLR और विस्फोटक सामग्री मिली थी।”

झारखंड के गुमला में भी 26 जुलाई को तीन नक्सली मारे गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये नक्सली CPI (M) की शाखा झारखंड जन मुक्ति परिषद (JJMP) के सदस्य थे। नक्सलियों के पास से 3 ऑटोमैटिक राइफल, AK-47, INSAS और देशी बंदूकें मिली थीं।

गुमला के SP हारिस जमाँ ने कहा था, “सुरक्षा बलों के मौके पर पहुँचते ही नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। जवानों ने जवाबी कार्रवाई में JJMP के तीन नक्सली मारे गए। समूह में शामिल दो अन्य नक्सली भाग निकले।” इस ऑपरेशन को झारखंड जगुआर और गुमला पुलिस ने मिलकर किया था। इससे कुछ दिन पहले बोकारो जिले में भी मुठभेड़ हुई जिसमें दो नक्सली मारे गए थे और एक सुरक्षाकर्मी गंभीर रूप से घायल हुआ था।

18 जुलाई को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में 6 नक्सली मारे गए थे। उनके पास भी कई हथियार और विस्फोटक सामग्री मिली। अबूझमाड़ क्षेत्र के जंगल में हुई इस मुठभेड़ को लेकर पी. सुंदरराज ने कहा था, “मुठभेड़ स्थल से 6 नक्सलियों के शव, AK-47 राइफल, सेल्फ लोडिंग राइफल (SLR) व अन्य हथियार, विस्फोटक सामग्री और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ बरामद की गई हैं।”

हथियार डाल रहे नक्सली

सुरक्षा बलों के अभियान के साथ-साथ कई माओवादी अब हथियार डालकर सामान्य जीवन में लौट रहे हैं। 26 जुलाई को जोरिगे नागराजु उर्फ कमलेश और उनकी पत्नी मेदाका ज्योतीश्वरी उर्फ अरुणा ने विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) में DGP हरीश कुमार गुप्ता के सामने आत्मसमर्पण किया। नागराजु CPIM पूर्व बस्तर डिविजनल कमेटी का प्रमुख था और 34 वर्ष तक नक्सली संगठन में सक्रिय था। नागराजु पर 20 लाख रुपए का इनाम था। उसकी पत्नी 30 वर्षों तक नक्सली संगठन में सक्रिय थी और उस पर 5 लाख रुपए का इनाम था।

दोनों नक्सली केंद्रीय समिति की नीतियों से संतुष्ट नहीं और उन्हें एहसास होने लगा था कि नक्सली विचारधारा कमजोर हो रही है। DGP ने बताया, “लोगों के समर्थन की कमी, कम भर्तियाँ, माओवादी पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की मौत और पार्टी की विचारधारा से मोहभंग के कारण उन्होंने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया था।”

DGP के मुताबिक, अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) जिला पुलिस ने 23 से 25 जुलाई तक मम्पा, मदुगुकोटा और तांगेदुकोटा जंगलों में 3 माओवादी सशस्त्र ठिकानों का पता लगाया और एके-47, 5 एसएलआर, 2 इंसास राइफल, 5 303 राइफल, 2 बीजीएल हथियार, 1 पिस्तौल, 16 बीजीएल गोले और 20 कारतूस, 15 डेटोनेटर, 8 वॉकी, भारी मात्रा में गोला-बारूद, एक दूरबीन और अन्य सामग्री जब्त की है।

24 जुलाई को छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के 5 जिलों में 66 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए। इन नक्सलियों पर कुल 2.54 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। पी. सुंदरराज के अनुसार, बीजापुर में 25, दंतेवाड़ा में 15, कांकेर में 13, नारायणपुर में 8 और सुकमा जिलों में 5 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।

यह आत्मसमर्पण सुरक्षाबलों के नए कार्यक्रम ‘पूना मार्गम’ (नया रास्ता) के साथ हुआ था। इस योजना के अनुसार, सुरक्षा बल नक्सलियों के परिवारों से संपर्क करके उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मनाने में मदद के लिए और अधिक प्रयास करते हैं।

पुलिस ने बताया, “अंदरूनी क्षेत्रों में नए सिक्योरिटी कैंपों की स्थापना और सड़क, परिवहन, पेयजल, बिजली और अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं की बेहतर पहुँच के साथ विकास अब दूर-दराज के गाँवों तक पहुँच रहा है। नक्सली विचारधारा से मोहभंग, संगठन के भीतर बढ़ते आंतरिक संघर्ष और एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित पारिवारिक जीवन जीने की तीव्र इच्छा इन आत्मसमर्पणों के प्रमुख कारणों में से हैं।”

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के अनुसार, पिछले 15 महीनों में 1,521 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इसे साय ने ‘नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की बढ़ती पहुँच और विश्वास का एक मजबूत संकेत’ बताया है। बीते जुलाई में नारायणपुर जिले में अबूझमाड़ क्षेत्र में सक्रिय 22 माओवादियों के आत्मसमर्पण किया जिन पर कुल 37.5 लाख रुपए का इनाम था। साथ ही, बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले में 23 नक्सलियों ने भी सरेंडर किया था जिन पर कुल 1.18 करोड़ रुपए का इनाम था।

‘लाल आतंक’ के खिलाफ भारत का युद्ध

केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों को मुक्त करने और लाल आतंक को खत्म करने के उद्देश्य से ऑपरेशन कगार (ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट) शुरू किया है। इसके चलते जिन इलाकों में अब तक नक्सलियों का नियंत्रण था, वो अब मुक्त हो रहे हैं और विकास के बाद बाकी हिस्सों के साथ मिलकर देश की भागीदारी में हिस्सा बन रहे हैं।

कई खूँखार नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है जबकि कई को मार गिराया गया है। सरकार की ठोस रणनीति और जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण 2010 और 2021 के बीच नक्सली हिंसा में 77% की कमी आई है। जो हिंसक घटनाएँ 2009 में 2,258 थीं वो 2021 में घटकर 509 रह गई हैं।

पिछले 10 वर्षों में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भी भारी कम दिखी है। 2015 में 106 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे जो अब सिर्फ 6 रह गए हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर व सुकमा, झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़ चिरौली जिला शामिल है। साथ ही, नक्सलवाद से जुड़ी हत्याओं की संख्या भी 90% तक कम हुई है।

2014 में 63 नक्सली मारे गए थे और 2025 आते-आते यह आँकड़ा कुल 2,089 तक पहुँच गया है। 2024 में 928 नक्सलियों ने सरेंडर किया जबकि 2025 के पहले 4 महीनों में 718 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। राज्य पुलिस की मदद से, सेना ने 2019 और 2025 के बीच माओवाद प्रभावित राज्यों में रात्रिकालीन लैंडिंग क्षमता वाले 68 हेलीपैड सहित 320 शिविर बनाए हैं। किलेबंद पुलिस थानों की संख्या 2014 के 66 से बढ़कर 555 हो गई है।

सरकार, सुरक्षाबल और स्थानीय प्रशासन के जमीनी स्तर पर किए कार्यों के चलते भारत नक्सल मुक्त बनने की दिशा में लगातार कदम बढ़ा रहा है।

(यह खबर मूल रूप से अंग्रेजी में रूकमा राठौड़ ने लिखी है, जिसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं। इस खबर का हिंदी अनुवाद शिव ने किया है)

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