अमेरिका ने हाल ही में दुनिया के 90 देशों पर सख्त टैरिफ लगा दिया है। ट्रंप का मानना है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली अमेरिका के साथ अन्याय कर रही है और इसी सोच के तहत उन्होंने ये कड़े कदम उठाए हैं।

शुरुआत में ट्रंप ने चीन के साथ एक बड़ा टैरिफ युद्ध शुरू किया था, जो बाद में सुलझ गया। अब उन्होंने भारत को निशाना बनाया है। ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करता है, तो उसे 50% टैरिफ देना पड़ेगा।

हालाँकि भारत ने इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया और अपना मजबूत रुख बनाए रखा। भारत की तरह ही अन्य देशों ने भी ट्रंप की धमकियों का जवाब देने के लिए अपनी-अपनी रणनीति तैयार की।

राष्ट्रपति ट्रंप 2 अप्रैल को ‘लिबरेशन डे’ पर नया टैरिफ लगाने वाले थे। इसके तहत वियतनाम पर सबसे ज्यादा 46% टैरिफ लगने वाला था। लेकिन बाद में यह घटा कर 20% कर दिया गया। यह बदलाव उस वक्त हुआ जब ट्रंप परिवार को वियतनाम में 1.5 बिलियन डॉलर (लगभग 12,500 करोड़ रुपये) के एक भव्य गोल्फ रिसॉर्ट बनाने की अनुमति मिली।

ट्रम्प परिवार का गोल्फ रिसॉर्ट बना वियतनाम में टैरिफ घटाने की ‘कीमत’!

रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, वियतनाम की राजधानी हनोई के पास अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ब्रांड का एक भव्य गोल्फ और रेसिडेंशियल रिसॉर्ट बनने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत मई में वियतनामी प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह और एरिक ट्रंप (डोनाल्ड ट्रंप के बेटे) द्वारा किए गए भूमि पूजन समारोह से हुई थी।

निर्माण कार्य अगले महीने से शुरू होने वाला है। यह प्रोजेक्ट 990 हेक्टेयर (2,446 एकड़) क्षेत्र में फैला होगा और इसमें तीन 18-होल गोल्फ कोर्स, लग्जरी रेसिडेंशियल अपार्टमेंट और कई सुविधाएँ होंगी।

प्रधानमंत्री चिन्ह ने एरिक ट्रंप की यात्रा को प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ाने की प्रेरणा बताया और स्थानीय अधिकारियों को इसे 2027 के अंत तक पूरा करने के निर्देश दिए। उन्होंने इसे अमेरिका-वियतनाम रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम भी बताया।

यह वियतनाम में ट्रंप परिवार के ब्रांड का पहला प्रोजेक्ट है। दिलचस्प बात यह है कि जब यह योजना मंजूर की गई, उसी समय वियतनाम और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता वार्ता भी चल रहा था।

वियतनामी रियल एस्टेट कंपनी ‘किन्हबाक सिटी’ और उसके साझेदार इस प्रोजेक्ट का निर्माण करेंगे। इन कंपनियों ने 5 मिलियन डॉलर (लगभग 42 करोड़ रुपए) ट्रंप ऑर्गनाइजेशन को सिर्फ उसका नाम इस्तेमाल करने के लिए दिए हैं।

हालाँकि ट्रंप ऑर्गनाइजेशन निर्माण, जमीन अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया में शामिल नहीं है, लेकिन प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद इसका संचालन ट्रंप परिवार की कंपनी ही करेगी रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को धड़ाधड़ मंजूरी दी गई, यहाँ तक कि कई जरूरी प्रक्रियाएँ जैसे पर्यावरणीय समीक्षा भी पूरी नहीं हुईं।

ट्रस्ट की कमाई का असली लाभार्थी ट्रंप खुद

व्हाइट हाउस ने ट्रंप के बिजनेस ट्रस्ट में किसी भी तरह के हितों के टकराव (conflict of interest) से इनकार किया है। डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके बच्चे ही बिजनेस ट्रस्ट को संभाल रहे हैं, लेकिन जून 2025 में सामने आए दस्तावेजों के मुताबिक, इस ट्रस्ट से मिलने वाली अधिकांश कमाई के असली लाभार्थी ट्रंप स्वयं हैं।

ट्रम्प कंपनी की परियोजना के लिए ली गई जमीन के बदले किसान विस्थापित, मिला मामूली मुआवजा

वियतनाम में एक 990 हेक्टेयर जमीन पर गोल्फ कोर्स बनाने की योजना के चलते वहाँ पर लंबे समय से रह रहे और खेती कर रहे किसानों को जमीन खाली करने के लिए कहा गया। बदले में उन्हें सिर्फ 3,200 डॉलर और कुछ महीनों के लिए चावल दिए जा रहे हैं। इस मामले से जुड़े छह लोगों और कुछ दस्तावेजों से पता चला है कि कई स्थानीय लोगों को इसी तरह का मुआवजा देकर वहाँ से हटने को कहा गया है।

इस जमीन पर फिलहाल लॉन्गन, केले और दूसरी फलों की खेती होती है। ज्यादातर किसान बुजुर्ग हैं और उन्हें डर है कि वियतनाम की युवा-आबादी वाली अर्थव्यवस्था में उन्हें नया काम मिलना मुश्किल होगा। वे चिंता में हैं कि सरकार उनकी जमीन जब्त कर लेगी और वे बेरोजगार हो जाएँगे।

शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के लिए 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा के मुआवजे की बात थी, लेकिन अब डेवलपर्स मुआवजा घटाने की योजना बना रहे हैं। ट्रंप परिवार का इस निवेश और किसानों को भुगतान में कोई सीधा संबंध नहीं है। अंतिम मुआवजे की राशि जमीन के स्थान और आकार के आधार पर तय होगी और इसका आधिकारिक ऐलान अगले महीने होने की उम्मीद है।

Reuters की रिपोर्ट के अनुसार, पाँच किसानों को 12 से 30 डॉलर प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मुआवजा मिला है। साथ ही, जिन पौधों को जमीन से हटाया गया, उनके लिए कुछ अतिरिक्त पैसे और कुछ महीनों के लिए चावल भी दिए गए हैं। लेकिन किसानों ने इन दरों को बहुत कम बताया है। एक और चिट्ठी में स्थानीय अधिकारियों ने कहा है कि अंतिम भुगतान का फैसला अगले महीने होगा और इससे हजारों लोग प्रभावित होंगे।

वियतनाम में सारी जमीन सरकार की होती है। किसानों को केवल लंबे समय तक इस्तेमाल करने के लिए जमीन दी जाती है, लेकिन सरकार जब चाहे जमीन वापस ले सकती है। मुआवजा सरकार देती है, लेकिन उसका खर्च निजी डेवलपर्स उठाते हैं।

मई में हुए भूमि पूजन समारोह में प्रधानमंत्री फाम मिन चिन्ह ने वादा किया था कि किसानों को उचित मुआवजा मिलेगा। लेकिन किसानों ने शिकायत की है कि वे मोलभाव नहीं कर सकते और देश में विरोध-प्रदर्शन भी असरदार नहीं होते।

किसानों के हितों से नहीं होगा कोई समझौता- भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए अनुचित टैरिफ (शुल्क) पर सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,  “हमारे किसानों का हित ही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत कभी भी अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा। मुझे पता है कि हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और मैं इसके लिए तैयार हूँ। भारत इसके लिए तैयार है।”  

ट्रंप ने भारत पर यह शुल्क रूस से तेल आयात के मुद्दे को लेकर लगाया है और इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा व विदेश नीति से जुड़े कारणों का हवाला दिया है। व्हाइट हाउस के आदेश के अनुसार, ट्रंप का कहना है कि भारत द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूस से तेल मँगाना अमेरिका के लिए ‘असाधारण और असामान्य खतरा’ है।

भारत ने स्पष्ट किया है कि तेल आयात बाजार की स्थितियों के अनुसार होता है और इसका उद्देश्य देश की 1.4 अरब आबादी की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है। भारत सरकार ने यह भी कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार है।

इससे पहले भी मोदी सरकार ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की दोहरी नीति पर सवाल उठाया था। भारत ने बताया कि ये देश खुद रूस से गैर-जरूरी वस्तुओं का व्यापार कर रहे हैं, जबकि भारत ने केवल तेल खरीदा जिससे वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति स्थिर बनी रही। इसके बावजूद भारत को निशाना बनाया जा रहा है।

एक अधिकारी ने जानकारी दी कि भारत सरकार धार्मिक भावनाओं से जुड़े मुद्दों पर कोई रियायत नहीं देगी, जैसे कि माँसहारी गायों का दूध और उसके डेयरी प्रोडक्ट (non-vegetarian milk) और बीफ उत्पाद। मोदी सरकार ने अमेरिका को भारतीय डेयरी और कृषि बाजार खोलने से साफ इनकार किया है और इन पर शुल्क कम करने से भी मना किया है।

अगर भारतीय कृषि और डेयरी बाजार अमेरिका के लिए खोले गए, तो करोड़ों भारतीय किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए भारत ने कृषि क्षेत्र को व्यापार समझौतों से बाहर रखा है।

फिर भी अमेरिका लगातार दबाव बनाता रहा है, क्योंकि वह भारत जैसे बड़े बाजार से अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहता है। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान जैसे आतंकवाद-समर्थक देश की ओर बढ़ता दिख रहा है।

कतर ने ट्रम्प को दिया 400 मिलियन डॉलर का उपहार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कतर की शाही फैमिली की ओर से एक लग्जरी बोइंग 747-8 विमान तोहफे में दिया गया है, जिसकी कीमत करीब 400 मिलियन डॉलर (लगभग 3,300 करोड़ रुपये) है। यह विमान अमेरिकी रक्षा विभाग को मई में सौंपा गया और इसे भविष्य में ‘एयर फोर्स वन’ के तौर पर इस्तेमाल करने की योजना है, यानी राष्ट्रपति के आधिकारिक विमान के रूप में।

हालाँकि इस विमान को पूरी तरह तैयार करने और सुरक्षा व तकनीकी अपग्रेड करने में कई साल और करोड़ों डॉलर लगेंगे। लेकिन व्हाइट हाउस के एक वक्तव्य पर विवाद हो गया है। इसके अनुसार, ट्रंप के कार्यकाल के बाद यह विमान उनके राष्ट्रपति पुस्तकालय (Presidential Library) में रखा जाएगा। इसका मतलब है कि ट्रंप इसे पद छोड़ने के बाद भी इस्तेमाल कर सकेंगे।

जैसे ही यह खबर सामने आई, अमेरिका में राजनीतिक हलकों में हंगामा मच गया। ट्रंप ने अपने बचाव में कहा, “अमेरिका का विमान दुनिया के बाकी नेताओं से बेहतर और ज्यादा शानदार होना चाहिए।” उन्होंने मौजूदा एयर फोर्स वन को ‘छोटा और कम प्रभावशाली’ बताया।

लेकिन इस फैसले पर दोनों पार्टियों (रिपब्लिकन और डेमोक्रेट) ने कड़ी आलोचना की। कई नेताओं ने इसे संभावित सुरक्षा खतरा बताया और इस पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे।

सीनेट अल्पसंख्यक नेता चक शूमर ने कहा कि जब तक व्हाइट हाउस इस ‘तोहफे’ से जुड़ी पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं करता, वह जस्टिस डिपार्टमेंट के सभी नामांकनों को रोके रखेंगे। उन्होंने अटॉर्नी जनरल पैम बॉन्डी को भी कॉन्ग्रेस के सामने गवाही देने को कहा।

रिपब्लिकन सीनेट मेजॉरिटी लीडर जॉन थ्यून ने कहा, “इस मामले में गंभीर सवाल उठने तय हैं।” वहीं, रिपब्लिकन सीनेट कॉमर्स कमेटी के चेयरमैन टेड क्रूज ने कहा कि “इस विमान से जासूसी और निगरानी जैसे सुरक्षा खतरे हैं।”

ट्रंप के इस कदम की आलोचना रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, दोनों पार्टियों के नेताओं ने मिलकर की। यह अमेरिका की राजनीति में एक असामान्य बात मानी जा रही है।

दूसरे देशों को मजबूर करने की चाल है ट्रंप का टैरिफ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में दावा किया कि उनके लगाए गए टैरिफ से अमेरिका को अरबों डॉलर की आमदनी हो रही है। इसके साथ ही उन्होंने धमकी दी कि विदेशों में बने कंप्यूटर चिप्स पर 100% शुल्क लगाया जाएगा। उन्होंने अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग टैरिफ दरें तय कीं और कहा कि समय के साथ इसमें बदलाव भी आएगा।

ट्रम्प ने बातचीत के लिए अगस्त तक की समय सीमा तय की। इसके अलावा, स्टील और ऑटोमोबाइल जैसे उद्योगों से जुड़े कई अन्य टैरिफ के कारण अमेरिका का औसत टैरिफ रेट अब पिछले सौ सालों में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया है।

इसका सबसे ज्यादा असर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों पर पड़ा, जो निर्यात (exports) पर अधिक निर्भर हैं। खासकर, लाओस और म्यांमार जैसे मैन्युफैक्चरिंग आधारित देशों पर ट्रम्प ने 40% तक के भारी टैरिफ लगाए। जनवरी में व्हाइट हाउस में वापसी के बाद ट्रम्प ने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन, कनाडा और मैक्सिको पर भी नए टैरिफ लागू किए।

ट्रम्प का मकसद खुद को एक मजबूत और प्रभावशाली वैश्विक नेता के रूप में पेश करना है, जो अपने टैरिफ के जरिए दुनिया की राजनीति को अपनी शर्तों पर प्रभावित कर सकता है। वे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर दबाव डालना भी चाहते हैं ताकि उन्हें गंभीरता से लिया जाए।

इसके अलावा, ट्रम्प चाहते हैं कि अन्य देश उनके अनुसार चलें। इसी वजह से उन्होंने भारत के प्रति सख्त रुख अपनाया, खासकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान मध्यस्थता को लेकर भारत द्वारा उनके दावों को खारिज करने पर। ट्रम्प ने पाकिस्तान से जैसी ‘शुक्रगुजारी’ की उम्मीद की थी, वैसी भारत से नहीं मिली, जो उन्हें नागवार गुजरी।

ट्रम्प खुद को विश्व शांति दूत के रूप में दिखाना चाहते हैं और नोबेल शांति पुरस्कार पाने के लिए भी उत्सुक हैं। कुछ देशों, जैसे पाकिस्तान, ने उन्हें इसके लिए नामांकित भी किया।

स्पष्ट है कि ट्रम्प टैरिफ्स का इस्तेमाल अन्य देशों पर अपनी शर्तें थोपने के लिए कर रहे हैं। उनके कुछ अधिकारियों ने भी इस बात को स्वीकार किया, खासकर तब जब अमेरिका की एक कोर्ट ने उनके इस कदम को अवैध करार दिया।

कोर्ट ने कहा कि व्हाइट हाउस की ओर से लागू की गई आपातकालीन कानून ट्रम्प को यह अधिकार नहीं देता कि वे लगभग सभी देशों पर टैरिफ्स लगा दें। तीन जजों के पैनल ने फैसला दिया कि ट्रम्प ने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया और 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) के तहत घोषित की गई राष्ट्रीय आपातकाल स्थिति भी कानूनी तौर पर सही नहीं थी।

व्हाइट हाउस पर ‘कानून के विपरीत’ काम करने का आरोप भी लगा। वहीं सरकार के वकीलों ने तर्क दिया कि टैरिफ्स ने अंतरराष्ट्रीय बातचीत को बढ़ावा दिया है और अगर इन पर रोक लगाई गई तो अमेरिका का वैश्विक प्रभाव कम हो जाएगा। न्याय विभाग के वकील ब्रेट शुमेट ने कोर्ट में कहा, “अगर टैरिफ्स पर रोक लगाई गई, तो यह राष्ट्रपति की ताकत को पूरी तरह खत्म कर देगा।”

निजी और राजनीतिक फायदे के लिए लगाया टैरिफ

ट्रंप साफ तौर पर टैरिफ का इस्तेमाल अपने निजी और राजनीतिक फायदों के लिए कर रहे हैं। वियतनाम में उनके गोल्फ कोर्स और पाकिस्तान से मिली नोबेल पुरस्कार की नामांकन जैसी बातें इसका संकेत देती हैं।

अगर मोदी सरकार ने ट्रंप की शर्तें मान ली होती तो भारत भी बढ़ी हुई टैरिफ की धमकियों से बच सकता था, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय मोदी सरकार ने मजबूती दिखाई, जो ट्रंप को और ज्यादा नाराज कर गई।

ट्रंप टैरिफ को इनाम या सजा के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। जिस देश से उनकी मर्जी चलती है, उसे फायदा देते हैं और जो विरोध करता है, उस पर दबाव डालते हैं।

मूल रुप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी में रुक्मा राठौर ने लिखी है। इसका अनुवाद सौम्या सिंह ने किया है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।



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