जम्मू-कश्मीर सरकार ने हाल ही में वामपंथी अरुंधति रॉय सहित अन्य लेखकों की 25 किताबों पर बैन लगा दिया है। सरकार का कहना है कि ये किताबें अलगाववादी सोच को बढ़ावा देती हैं। सरकार ने कहा है कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं। सरकार ने बताया है कि ये किताबें युवाओं को भड़काने का काम करती हैं।
यह फैसला जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने लिया है। सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इन किताबों में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और आतंकवादियों को हीरो की तरह दिखाया गया है। सरकार ने बताया है कि सेना और सुरक्षा बलों की छवि को इसमें खराब किया गया है और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है।
इन किताबों पर युवाओं को हिंसा की तरफ ले जाने वाली सोच को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया है। इन किताबों को भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 152, 196 और 197 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 98 के तहत जब्त घोषित कर दिया गया है।
कौन-कौन सी किताबें कश्मीर में हुईं बैन
बैन की गई किताबों में कई वामपंथी और इस्लामी कट्टरपंथियों की किताबें शामिल हैं। इसमें अरुंधति रॉय की किताब ‘आजादी’, ए जी नूरानी की किताब ‘द कश्मीर डिस्प्यूट, 1947-2012’, सुमंत्रा बोस की ‘कश्मीर ऐट द क्रॉसरोड्स’ और ‘कॉन्टेस्टेड लैंड्स’, डेविड देवदास की ‘इन सर्च ऑफ अ फ्युचर: द कश्मीर स्टोरी’ और पत्रकार अनुराधा भसीन की ‘अ डिसमैंटल्ड स्टेट: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीर आफ्टर आर्टिकल 370′ जैसी किताबें हैं।
इसमें विदेशी लेखकों की भी कई किताबें शामिल हैं, जैसे हाफ्सा कंजवाल की ‘क्लोंजिंग कश्मीर’, हेली दुशिंस्की की ‘रेसिस्टिंग ऑकुपेशन इन कश्मीर’, विक्टोरिया स्कोफील्ड की ‘कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट’ और क्रिस्टोफर स्नेडन की ‘इंडिपेंडेंट कश्मीर’। कश्मीर पर लगातार प्रोपगेंडा चलाने वाले वामपंथियों के अलावा इस्लामी कट्टरपंथियों की किताबें भी बैन की गई हैं। इसमें मौलाना अबुल आला मौदूदी की ‘अल जिहाद फिल इस्लाम’ और हसन अल-बन्ना की ‘मुजाहिद की अजान’ भी शामिल है।
बाकी किताबों में पिओत्र बाल्सेरोविक्ज और अग्निएश्का कुसेव्स्का की लॉ एंड कॉन्फ्लिक्ट इन कश्मीर, डॉ. शमशाद शान की ‘यूएसए एंड कश्मीर’, और डॉ. अफाक की ‘तारिख-ए-सियासत कश्मीर’ भी शामिल हैं। सरकार ने बताया है कि इस तरह की किताबें युवाओं के मन में असंतोष, कट्टरता और देशविरोधी विचार पैदा करती हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। इसलिए अब इन किताबों का छपना, बाँटना या रखना गैरकानूनी है।
वामपंथी अरुंधति रॉय पर चल रहा UAPA का मुकदमा
दिल्ली के LG वीके सक्सेना ने जून 2024 में अरुंधति रॉय के खिलाफ UAPA कानून के तहत केस चलाने की मंजूरी दी थी। अरुंधति रॉय पर 21 अक्टूबर 2010 को दिल्ली के कॉपरनिकस रोड पर मौजूद LTG ऑडिटोरियम में ‘आजादी – द ओनली वे’ के बैनर तले आयोजित एक सम्मेलन में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था।
बता दें कि सम्मेलन में ‘कश्मीर को भारत से अलग करने’ का प्रचार किया गया था। 21 अक्टूबर 2010 को दिए भाषणों को लेकर कश्मीर के सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित ने 28 अक्टूबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत में यह आरोप लगाया गया था कि रॉय ने जोर देकर कहा था कि कश्मीर कभी भारत का हिस्सा नहीं था, उस पर भारतीय सशस्त्र बलों ने जबरन कब्जा किया था। शिकायत में कहा गया था कि अरुंधति रॉय ने इस कायर्क्रम में कहा कि भारत से जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
Delhi LG V K Saxena has sanctioned for prosecution of Arundhati roy for an FIR registered in 2010.
Arundhati Roy had said, “Kashmir is not an integral part of India, and it never was.”
Finally after 13 yrs. @khanumarfa pic.twitter.com/hIR5Mkx0Pj— BALA (@erbmjha) October 10, 2023
शिकायतकर्ता ने इन बयानों की रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराई थी। इसके बाद दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद वामपंथन अरुंधति रॉय के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।अक्टूबर 2023 में भी दिल्ली LG वीके सक्सेना ने दूसरी धाराओं में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी।
सभी राज्यों को उपनिवेश बताती है वामपंथन अरुंधति
अरुंधति रॉय सिर्फ कश्मीर ही नहीं बल्कि देश के बाकी इलाकों को भी तोड़ने की बातें करती आई है। उसने 2011 में ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिन्स्टर के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, ह्यूमैनिटीज़ एंड लैंग्वेजेज के तत्वावधान में ऐसा ही जहर उगला था।
रॉय ने कहा था कि अंग्रेजों के जाने के बाद भारत ने एक तरह से उपनिवेशवाद ही किया है और आज तक भारत के लोग भारतीय सेना की बर्बरता झेल रहे हैं। रॉय ने आगे कहा था कि हर जगह के कबीलाई लोग, एवम् समुदाय विशेष और ईसाई भारतीय राष्ट्र के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं।
वामपंथी अरुंधति रॉय ने दावा किया था कि आजादी के बाद भारत ने इन सारे राज्यों को उपनिवेश बना लिया और वो अपनी आजादी के लिए संघर्षरत हैं। ये कहते हुए रॉय ने कश्मीर से शुरुआत की और पंजाब, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, गोवा होते हुए तेलंगाना और हैदराबाद तक पहुँच गई थी।
साथ ही, रॉय ने बिना झिझक के यह भी कहा कि इस तरह की बर्बरता तो पाकिस्तान की फौज भी नहीं करती। आगे इन्होंने बताया कि अपर कास्ट हिन्दू राष्ट्र लगातार युद्ध की स्थिति में रहा है।
उसने कहा था, “पाक फौज बलूचिस्तान में जो कुछ भी कर रही है या बांग्लादेश में उसने जो नरसंहार किया- इस बारे में मेरी राय कभी भी अस्पष्ट नहीं रही है। मैंने इस बारे में काफी कुछ लिखा है। हिन्दू राष्ट्रवादी मेरे पुराने विडियो क्लिप को निकाल कर हंगामा मचा रहे हैं।” अरुंधति रॉय ने इसके बाद पाक फ़ौज को लेकर माफी माँग ली थी।
उसने कहा, “जिसने भी मुझे पढ़ा है वो इन बातों पर एक सेकंड के लिए भी विश्वास नहीं करेगा। नैतिक रूप से पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में से कोई भी एक-दूसरे से बढ़ कर नहीं है। भारत में अभी फासिज्म का वातावरण तैयार हो रहा है। जो इसके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे बदनाम होने, ट्रोल किए जाने, जेल में भेजे जाने और पिटाई किए जाने का डर है।”
अरुंधति रॉय जैसे वामपंथी कभी किताबों के जरिए तो कभी अपने बयानों से लगातार कश्मीर को लेकर जहर फैलाते रहे हैं। एक दौर था कि यह लोग भारत की राजधानी में खड़े होकर भारत को तोड़ने की बातें करते थे। तब इनकी बातों को तालियाँ बजती थीं। इनकी किताबों को पुरस्कार मिलते थे। लेकिन अब समय बदल गया है और इनकी अलगाववादी सोच को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं रह गया है।