मुंबई के स्पेशल एनआईए कोर्ट ने बीते दिनों मालेगाँव ब्लास्ट केस में पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी 7 आरोपितों को बरी कर दिया था। हालाँकि, इस केस से जुड़े कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं और इनमें ही एक सवाल इस केस के एक आरोपित रामजी कलसांगरा की गुमशुदगी का भी है।

17 वर्षों से सुहागन की तरह जी रहीं कलसांगरा की पत्नी

दरअसल, कलसांगरा पिछले करीब 17 वर्षों से लापता हैं। कलसांगरा की पत्नी लक्ष्मी कलसांगरा ने दैनिक भास्कर से बातचीत करते हुए कहा कि जाँच एजेंसियों को बताना चाहिए कि उनके पति जीवित हैं या मर चुके हैं। वह पिछले 17 वर्षों से सुहागन का जीवन जी रही हैं।

उन्होंने कहा, “हर तीसरे दिन एनआईए और एटीएस के अधिकारियों ने जाँच के नाम पर परेशान किया। उन्होंने ऐसे सूलूक किया जैसे हम अपराधी हों।”

लक्ष्मी बेशक सुहागन की तरह जी रही हैं लेकिन उनका कहना है कि ये सिर्फ जाँच एजेंसी को ही पता है कि कलसांगरा जीवित हैं या नहीं। वह बताती हैं कि पति के लापता होने के बाद उन्होंने खेती-बाड़ी की और मजदूरी तक करनी पड़ी तब जाकर अपने तीनों बेटों का पालन-पोषण कर सकीं। उन्हें आज भी अपने पति के लौटने का इंतजार है।

रामजी कलसांगरा के बेटे देवव्रत ने क्या कहा?

रामजी कलसांगरा के बेटे देवव्रत कलसांगरा का कहना है कि उन्हें अब भी न्याय का इंतजार है। उन्होंने इस मामले की जाँच करने वाले एटीएस अधिकारियों से सवाल किया है कि क्या उनकी माँ को खुद को विवाहित महिला मानना चाहिए या विधवा।

देवव्रत भावुक होते हुए बताते है कि 9 अक्टूबर 2008 को उन्होंने आखिरी बार पिताजी के साथ गाँव में दशहरा मनाया था और उसके बाद फिर अपने पिता को कभी नहीं देखा।

पिता के लापता होने के बाद की तकलीफों को लेकर देवव्रत ने कहा कि उनके लापता होने के बाद जाँच एजेंसी के अफसर घर आकर उनकी माँ को परेशान करते थे और समाज में हमारे परिवार को हीन नजरों से देखा जाता था।

वे बताते हैं कि 2011 में इस मामले की जाँच के दौरान अधिकारी उनके घर आए और उनके पिता के साथ के बचपन के फोटो और अन्य सामान ले गए। आज उनके पास पिता की कोई तस्वीर भी नहीं है।

देवव्रत ने अपने पिता के लापता होने की जाँच की माँग की है। उनका आरोप है, “उनके पिता को अवैध रूप से एटीएस ने हिरासत में लिया होगा और उस दौरान उनके साथ कुछ अप्रिय घटना घटी होगी।” देवव्रत और उनके पूरे परिवार को अभी भी अभी रामजी कलसांगरा के बारे में कोई ठोस खबर मिलने की उम्मीद है।

देवव्रत ने अपने चाचा को लेकर बताया कि मालेगाँव केस में उनके चाचा शिवनारायण कलसांगरा को भी एटीएस ने गिरफ्तार किया था। 2008 में उन्हें हिरासत में लेने के 15 दिन बाद उनकी गिरफ्तारी दिखाई गई। देवव्रत बताते हैं कि उनके चाचा को टॉर्चर किया गया। वो 2014 तक जेल में रहे फिर साल 2017 में एनआईए ने उन्हें बरी कर दिया था।

कौन हैं रामजी कलसांगरा?

रामचंद्र उर्फ रामजी कलसांगरा लापता होने से पहले इंदौर में रहते थे और वे इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रामजी 15 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए थे और उन्होंने 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या जाकर कारसेवा में भी हिस्सा लिया था।

कलसांगरा पर आरोप था कि उन्होंने मालेगाँव में भीकू चौक पर शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट नाम की दुकान के बाहर बम बँधी हुई बाइक रखी थी। उन पर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में शामिल होने का भी आरोप था।

कोर्ट ने बेशक सात लोगों को बरी कर दिया हो लेकिन कलसांगरा को अभी भी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने वॉन्टेड आरोपित के तौर पर दिखाया है। यानी अगर इन्हें अभी भी गिरफ्तार किया जाता है तो इन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ेगा

कलसांगरा की हत्या किए जाने का दावा

मालेगाँव ब्लास्ट की जाँच कर रही महाराष्ट्र एटीएस की टीम में शामिल रहे और बाद में सस्पेंड कर दिए गए पुलिस अधिकारी महबूब मुजावर दिसंबर 2016 में सोलापुर की एक अदालत में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि रामजी कलसांगरा और उनके साथी संदीप डांगे की 2008 में कस्टडी में ही हत्या कर दी गई थी

उन्होंने अपने हलफनामे में दावा किया कि दोनों के शवों को मुंबई 26/11 के आतंकी हमलों के ‘अज्ञात पीड़ितों’ के रूप में पेश किया गया था। मुंबई आतंकी हमला डांगे और कलसांगरा को कथित हिरासत में लिए जाने के कुछ महीनों बाद हुआ था।

मुजावर ने दावा किया था कि कलसांगरा और डांगे को एटीएस ने भोपाल से पकड़ा था लेकिन 26 नवंबर 2008 को (मुंबई आतंकी हमले के दिन) दोनों को मुंबई में गोली मार दी गई थी। मुजावर का दावा था कि मारे जाने से पहले उन्हें कालाचौकी स्थित एटीएस ऑफिस में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था।

मुजावर ने दावा किया कि उन्हें लापता आरोपितों की तलाश में कर्नाटक भेजा गया था लेकिन वे दोनों मारे जा चुके थे। उनका कहना था कि वह इन हत्याओं के खिलाफ थे और उन्हें चुप कराने के लिए उनके खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत एक फर्जी केस दर्ज किया गया था।

देवव्रत का कहना है कि मुजावर ने कोर्ट में एफिडेविट देने और उनकी हत्या की खबर को सुनने के बाद हमने जाँच एजेंसी और कोर्ट से स्पष्टीकरण माँगा था। देवव्रत ने कहा, “हमने उनसे गुजारिश की थी कि यदि मेरे पिता का शव उनके पास है तो वह हमें दे दें, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।”

इन हमलों के 17 वर्ष बाद जब सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है और कथित ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी भरभराकर गिर गई है तो ऐसे में कलसांगरा के परिवार की माँगों की भी जाँच किए जाने की जरूरत है। उनके परिवार को इंतजार है, उम्मीद है लेकिन सच कहीं फाइलों में दर्ज है या शायद उसे एक गुमनाम मौत बना दिया गया है।

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