ये घर सत्यजित रे के दादा उपेन्द्र किशोर रे चौधरी की थी। वे एक प्रसिद्ध बांग्ला लेखक थे।
भारत ने जताई चिंता
भारत ने घर को सांस्कृतिक धरोहर करार देते हुए इसे गिराने को लेकर चिंता वक्त की थी। साथ ही बांग्लादेश से कहा था कि इसकी मरम्मत और संरक्षण का जिम्मा भारत सरकार उठाने के लिए तैयार है। बंगाल की राजनीतिक पार्टियाँ भी इस मकान को गिराए जाने का विरोध कर रही हैं।
इनका कहना है कि यह मकान बंगाल के सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ा हुआ है। हालाँकि बांग्लादेशी अधिकारियों ने इस इमारत को जर्जर कहते हुए इसे ‘नशेड़ियों का अ्डडा’ बताया था।
एनडीटीवी से बात करते हुए बांग्लादेश के मंत्री फैजल महमूद ने कुछ अलग ही दावा किया है। उनका कहना है कि सत्यजीत रे के दादा उपेन्द्र किशोर रे चौधरी मैमनसिंह वाले घर में कभी नहीं रहे।
उन्होंने कहा, ” वह बगल के किशोरगंज जिले के कोटियाडी में रहते थे। उनका घर का संरक्षण पहले ही किया जा चुका है। हमारी विरासत सूची में 531 संरक्षित इमारतें हैं। यह घर उपेंद्र किशोर राय चौधरी के पूर्वज का है। यह मैमनसिंह प्रशासन की चूक है कि इसे उस विरासत सूची में शामिल नहीं किया गया, इसलिए यह संरक्षित इमारत नहीं थी। “
टैगौर के पैतृक घर को भी तोड़ा गया
दरअसल जब से बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गई है और जब से अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस बने हैं, तभी से बांग्लादेश के कट्टरपंथी अपनी ही विरासत को मिटाने में लगे हैं। इससे पहले महान लेखक रविन्द्रनाथ टैगोर के पैतृक घर में तोड़फोड़ की गई थी।
ये सिराजगंज जिले के शहजादपुर में मौजूद है। यहाँ मुस्लिम भीड़ ने घर के मुख्य हॉल को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस दौरान एक अधिकारी पर हमला किया गया और संग्रहालय को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
भारतीय शख्सियतों की विरासत तो छोड़िए बांग्लादेश अपनी विरासत भी संभाल नहीं पा रहा। कट्टरपंथी इस्लामिक भीड़ ने बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुर्रहमान की जगह जगह लगी प्रतिमा तोड़ डाली। हिन्दू देवी देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ और मंदिरों को नहीं बख्शा। आज भी इन मंदिरों को तोड़ने, हड़पने की साजिश चल रही है।
सत्यजीत रे का फिल्मों में अमूल्य योगदान
सत्यजीत रे विश्व सिनेमा के बड़े फिल्मकारों में से एक रहे हैं। उनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई। वह फिल्म डायरेक्टर होने के साथ-साथ लेखक, संगीतकार और चित्रकार भी थे। रे की फिल्मों में बंगाल की सामाजिक, सांस्कृतिक गहराई है। ये दुनिया के दिलों को छू लेती है।
उन्हें 1992 में ऑस्कर का मानद पुरस्कार मिला जिसे लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” के नाम से भी जाना जाता है।