भोपाल के जहांगीराबाद में एक पुरानी, खामोश बिल्डिंग खड़ी थी। बाहर एक बोर्ड लगा था – ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’। इस सुनसान इमारत में न तो क्लासरूम थे, न कोई शिक्षक। फिर भी इसी नाम पर 29 फर्जी छात्रों की लिस्ट बनाई गई। सरकार से ₹1.65 लाख की छात्रवृत्ति माँगी गई। पैसा भी मिल गया। मगर पढ़ाई कभी नहीं हुई।
ऐसे ही कई स्कूल और मदरसे सिर्फ कागज़ों पर थे। नाम, छात्रों की सूची और बैंक अकाउंट सब फर्जी थे। ये सिर्फ एक ही मकसद से बने थे, केंद्र सरकार की छात्रवृत्ति योजना से पैसा निकालना। कुछ स्कूलों की इमारतें अब दुकानों में बदल चुकी थीं। कुछ पूरी तरह गायब थे। कुछ चल रहे थे, मगर क्लास 5वीं तक। फिर भी उन्होंने 11वीं-12वीं के छात्रों के नाम से फर्जीवाड़ा किया।
इस पूरे नेटवर्क में 40 संस्थान शामिल हैं। इनमें 17 मदरसे भी हैं और 23 मिशनरी स्कूल भी। आँकड़ों के मुताबिक कुल ₹57.78 लाख का गबन हुआ।
ऐसे हुआ फर्जीवाड़ा: स्कूलों के नाम पर खाली इमारतें
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जाँच में एक चौंकाने वाली बात सामने आई। जिन स्कूलों और मदरसों के नाम पर पैसे निकाले गए, वे असली में थे ही नहीं।
भोपाल के जहांगीराबाद में एक बोर्ड मिला। उस पर ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’ लिखा था। पर जब लोग उस जगह गए तो वहाँ कोई स्कूल नहीं था। सिर्फ एक खाली बिल्डिंग थी। वहाँ पढ़ाई-लिखाई का कोई काम नहीं होता था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक पान वाले ने बताया कि यह बोर्ड दो साल से लगा है। उसने कभी कोई छात्र या टीचर नहीं देखा। इस ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’ ने 29 ऐसे छात्रों के नाम पर ₹1.65 लाख माँगे जो थे ही नहीं।
आगे जाँच में बेरसिया रोड पर एक बड़ी इमारत मिली। इसमें दो और स्कूल थे। एमजे कॉन्वेंट और सेंट डी’सूजा कॉन्वेंट स्कूल। इन स्कूलों ने 11वीं और 12वीं के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप माँगी गई थी। लेकिन इन स्कूलों में ये कक्षा नहीं थी।
एमजे कॉन्वेंट ने 30 फर्जी छात्रों के लिए ₹1.7 लाख लिए। सेंट डी’सूजा ने दो छात्रों के लिए ₹11,400 लिए। एमजे कॉन्वेंट के एक कर्मचारी ने कबूल किया कि दिए गए नंबर फर्जी थे।
एक और मामला एंबर्ले कॉन्वेंट स्कूल का है। इसने 33 छात्रों के लिए ₹1.8 लाख का दावा किया। लेकिन यह स्कूल अब है ही नहीं। लिली टॉकीज के पास उसके पुराने पते पर अब एक क्लिनिक और दुकानें हैं। लोगों ने बताया कि वहाँ सालों से कोई स्कूल नहीं चला।
नकली छात्रों के बैंक खाते में पैसे
जानकारी के अनुसार, यह घोटाला बहुत आसान तरीके से किया जाता था। स्कूल और मदरसे झूठे छात्रों की जानकारी ऑनलाइन सरकारी पोर्टल पर डालते थे।
अधिकारी इन आवेदनों को बिना जाँचे ही आगे बढ़ा देते थे। ये आवेदन फिर जिले और राज्य के अधिकारियों से होते हुए केंद्र सरकार तक पहुँचते थे। जब आवेदन पास हो जाता था, तो ₹5,700 हर छात्र के हिसाब से बैंक खाते में आ जाते थे। पर ये खाते छात्रों के नहीं थे। ये स्कूल चलाने वालों के रिश्तेदारों या दोस्तों के थे।
जैसे ही पैसा खाते में आता था, उसे तुरंत निकाल लिया जाता था। इससे धोखाधड़ी को तुरंत पकड़ना मुश्किल हो जाता था।
मदरसे भी शामिल
इस घोटाले में 40 संस्थानों में से 17 मदरसे भी शामिल हैं। इन्होंने भी धोखाधड़ी में बड़ी भूमिका निभाई।
कुछ मदरसों ने लाखों रुपए हड़पे। जैसे- मदरसा मादुल उलूम ने ₹1,28,200 (एक लाख अट्ठाईस हजार दो सौ रुपए) का घोटाला किया। मदरसा दानिकी वसीरुल हयात ने ₹1,09,300 (एक लाख नौ हजार तीन सौ रुपए) हड़पे। होली फील्ड स्कूल ने ₹3,81,900 (तीन लाख इक्यासी हजार नौ सौ रुपए) का गबन किया।
Missionary and Madrasa Scholarship Fraud in MP:
Last month, an investigation was initiated in the minority schools of Bhopal following irregularities in central government scholarships.
It has now come to light that over 40 missionary schools and madrasas have siphoned off… pic.twitter.com/0Wh8QZhhwf— Subhi Vishwakarma (@subhi_karma) July 16, 2025
यूनिटी मिशन स्कूल ने ₹3,70,500 (तीन लाख सत्तर हजार पाँच सौ रुपए) का चूना लगाया। एफआर कॉन्वेंट स्कूल ने सबसे ज्यादा ₹5,45,100 (पाँच लाख पैंतालीस हजार एक सौ रुपए) का फर्जीवाड़ा किया। इनमें से कई मदरसे या तो चल नहीं रहे थे, या बड़ी कक्षाओं की पढ़ाई नहीं कराते थे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इन मदरसों को सिर्फ सरकारी पैसे लेने के लिए ही बनाया गया था।
मौजूदा जाँच
यह घोटाला तब सामने आया जब पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड ने 17 जून 2025 को शिकायत दर्ज कराई। मध्य प्रदेश राज्य बाल आयोग (MPSCPCR) भी इस मामले की जाँच शुरू करेगा और पूरे राज्य में नजर रखेगा। मंदसौर में भी कुछ मदरसों में गड़बड़ी मिली है।
वहीं, पुलिस ने धोखाधड़ी, जालसाजी और गबन की धाराओं में कानूनी कार्रवाई शुरू की है। यह रिपोर्ट राज्य सरकार और CBI को भी भेजी जाएगी ताकि मामले की और बड़ी जाँच हो सके।
यह घोटाला दिखाता है कि कैसे कुछ संस्थान सरकारी योजनाओं का गलत फायदा उठा रहे हैं। जिन संस्थानों को बच्चों की मदद करनी चाहिए थी, वे ही घोटाला कर रहे हैं। इससे उन छात्रों को नुकसान हुआ है जिन्हें छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए थी और करदाताओं का पैसा बर्बाद हुआ है।
मंत्री का बयान
पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री कृष्णा गौर ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने कहा कि यह घोटाला उनके मंत्री बनने से पहले का है।
हालाँकि, उन्होंने यह भी बताया कि विभाग ने जाँच शुरू कर दी है। मंत्री गौर ने भरोसा दिलाया कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि ‘किसी को भी छात्रों की छात्रवृत्ति का पैसा हड़पने का हक नहीं है।’ राज्य मंत्री कृष्णा गौर ने यह भी बताया कि सरकार अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है।